• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

बलात्कारियों और पीड़ितों की करा दो शादी, झंझट ही खत्म

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 26 जून, 2015 04:27 PM
  • 26 जून, 2015 04:27 PM
offline
सवाल उठाना लाजिमी हो जाता है. कोई अदालत बलात्कार पीड़ित को हमलावर से शादी की हिदायत दे तो टिप्पणी लाजिमी हो जाती है.

दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सख्त कानून पर लंबी बहस चली थी. कुछ लोग बलात्कारी को फांसी देने के खिलाफ थे. उनका तर्क था कि हमलावर बलात्कार के बाद पीड़ित को मार डालने की कोशिश करेगा. पीड़ित के जिंदा रहते और मौत हो जाने की दोनों ही परिस्थितियों में सजा में फांसी ही मिलती. ऊपर से पीड़ित का जिंदा रहना हमलावर के लिए ज्यादा खतरनाक होता.

करीब तीन साल बाद मद्रास हाई कोर्ट के एक अंतरिम आदेश ने नई बहस को जन्म दे दिया है. कोर्ट का फरमान है कि पीड़ित को एडीआर यानी वैकल्पिक विवाद निपटारे के तहत मध्यस्थता करवानी चाहिए. दरअसल कोर्ट ने सुलह के लिए इस रेप केस को बिलकुल ठीक मामला बताया है.

क्या है मामला?

एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का ये मामला 2009 का है. बाद में पीड़ित ने एक बच्चे को जन्म दिया. जब डीएनए टेस्ट हुआ तो पता चला कि बलात्कारी ही बच्चे का पिता है. इस पर तमिलनाडु के कुड्डलूर कोर्ट ने 2012 में बलात्कारी को सात साल की सजा और दो लाख का जुर्माना भी लगाया. सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस पी देवदास ने अपने अंतरिम निर्देश में कहा है कि पीड़ित को एडीआर के तहत मध्यस्थता करवानी चाहिए क्योंकि सुलह के लिए ये सही केस है.

महिला आयोग की राय

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद न सिर्फ वकील, बल्कि सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सभी हैरान हैं. अगर किसी को हैरानी नहीं हुई है तो वो हैं तमिलनाडु महिला आयोग की चेयरपर्सन विशालाक्षी नेदुंचेजियन.

नेदुंचेजियन की राय भी काबिले गौर है, "हमें इस बात से बेहद खुशी होगी अगर अपराधी और पीड़ित लड़की साथ-साथ खुशी से रहें. यही हमारा उद्देश्यब है." नेदुंचेजियन इसे उचित या अनुचित से परे बताती हैं, "इस मामले में सही या गलत का कोई प्रश्नर ही नहीं है. अगर लड़की के पास अपने जीवन यापन के लिए संसाधन नहीं हैं, तो वो चाहे तो उसके साथ रह सकती है. यहां मुख्या मुद्दा है सहनशीलता.'

बहस क्यों होनी चाहिए?

कहां टू-फिंगर टेस्ट का...

दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सख्त कानून पर लंबी बहस चली थी. कुछ लोग बलात्कारी को फांसी देने के खिलाफ थे. उनका तर्क था कि हमलावर बलात्कार के बाद पीड़ित को मार डालने की कोशिश करेगा. पीड़ित के जिंदा रहते और मौत हो जाने की दोनों ही परिस्थितियों में सजा में फांसी ही मिलती. ऊपर से पीड़ित का जिंदा रहना हमलावर के लिए ज्यादा खतरनाक होता.

करीब तीन साल बाद मद्रास हाई कोर्ट के एक अंतरिम आदेश ने नई बहस को जन्म दे दिया है. कोर्ट का फरमान है कि पीड़ित को एडीआर यानी वैकल्पिक विवाद निपटारे के तहत मध्यस्थता करवानी चाहिए. दरअसल कोर्ट ने सुलह के लिए इस रेप केस को बिलकुल ठीक मामला बताया है.

क्या है मामला?

एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का ये मामला 2009 का है. बाद में पीड़ित ने एक बच्चे को जन्म दिया. जब डीएनए टेस्ट हुआ तो पता चला कि बलात्कारी ही बच्चे का पिता है. इस पर तमिलनाडु के कुड्डलूर कोर्ट ने 2012 में बलात्कारी को सात साल की सजा और दो लाख का जुर्माना भी लगाया. सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस पी देवदास ने अपने अंतरिम निर्देश में कहा है कि पीड़ित को एडीआर के तहत मध्यस्थता करवानी चाहिए क्योंकि सुलह के लिए ये सही केस है.

महिला आयोग की राय

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद न सिर्फ वकील, बल्कि सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सभी हैरान हैं. अगर किसी को हैरानी नहीं हुई है तो वो हैं तमिलनाडु महिला आयोग की चेयरपर्सन विशालाक्षी नेदुंचेजियन.

नेदुंचेजियन की राय भी काबिले गौर है, "हमें इस बात से बेहद खुशी होगी अगर अपराधी और पीड़ित लड़की साथ-साथ खुशी से रहें. यही हमारा उद्देश्यब है." नेदुंचेजियन इसे उचित या अनुचित से परे बताती हैं, "इस मामले में सही या गलत का कोई प्रश्नर ही नहीं है. अगर लड़की के पास अपने जीवन यापन के लिए संसाधन नहीं हैं, तो वो चाहे तो उसके साथ रह सकती है. यहां मुख्या मुद्दा है सहनशीलता.'

बहस क्यों होनी चाहिए?

कहां टू-फिंगर टेस्ट का विरोध हो रहा है.

कहां मैरिटल रेप को लेकर बहस चल रही है.

कहां बलात्कारी के बधियाकरण की बात होती है.

कहां बलात्कारी के लिए फांसी तक की मांग होती है.

और,

कहां बलात्कारी के साथ शादी की सलाह दी जा रही है.

कोर्ट के फैसलों पर टिप्पणी नागवार मानी जाती है. क्योंकि ऐसा करने पर अदालत की अवमानना का मामला बन सकता है.

लेकिन ऐसा कब तक हो सकता है?

जब जजों की नियुक्तियों को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में बहस के दौरान एक दूसरे की बखिया उधेड़ी जा रही हो.

जब देश का कानून मंत्री पत्र लिख कर सवाल पूछता हो कि आखिर दिल्ली न्यायिक सेवा में जजों के बाल-बच्चे ही क्यों सेलेक्ट हुए?

तब सवाल उठाना लाजिमी हो जाता है. कोई अदालत बलात्कार पीड़ित को हमलावर से शादी की हिदायत दे तो टिप्पणी लाजिमी हो जाती है.

मद्रास हाई कोर्ट का ये अंतरिम आदेश किसी भी सूरत में गले के नीचे नहीं उतरता.

ऐसा लगता है जैसे पीड़ित को सजा सुनाई जा रही हो - और बलात्कारी को बाइज्जत बरी किया जा रहा हो.

सवाल-जवाब जरूरी है

मद्रास हाई कोर्ट के इस अंतरिम आदेश के बाद ये सवाल मौजूं लगते हैं. अगर आपकी राय पूछी जाए तो आप क्या कहना चाहेंगे -

1. बलात्कारी को फांसी की सजा दी जानी चाहिए?

2. बलात्कारी को उम्रकैद की सजा दी जानी चाहिए?

3. बलात्कारी का बधिया कर देना चाहिए?

4. बलात्कारी का पीड़ित से विवाह कर देना चाहिए?

आप अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं. अगर आपकी राय इन चार विकल्पों से अलग हो तो उसे भी आप बता सकते हैं. आपकी टिप्पणियों का हमें इंतजार है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲