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कोलकाता हादसाः ऐक्ट ऑफ गॉड नहीं, ऐक्ट ऑफ करप्शन और क्राइम है!

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 02 अप्रिल, 2016 07:21 PM
  • 02 अप्रिल, 2016 07:21 PM
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कोलकाता में जो हुआ कुछ वैसी ही घटना पिछले साल मक्का शहर में हुई थी. कितनी हैरानी की बात है कि भारत हो या दुनिया का कोई और देश, मरता हमेशा आम आदमी ही है. न यहां इन कंपनियों को ठेका देने वाली सरकारों को कुछ होता है, न वहां.

सितंबर में इस्लाम के सबसे पवित्र शहर मक्का में एक विशालकाय क्रेन के गिरने से सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए. इस घटना के छह महीने बाद कभी देश की राजधानी रहे कोलकाता में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर के एक हिस्से के ढहने की घटना ने कइयों को मौत की नींद सुला दिया. दोनों ही घटनाओं में कंपनियों की लापरवाही, भ्रष्टाचार, प्रशासन की ढिलाई साफ नजर आती है. लेकिन दोनों ही घटनाओं में मासूमों की मौतों की जिम्मेदार इन कंपनियों ने इन घटनाओं को ऐक्ट ऑफ गॉड यानी की भगवान की मर्जी कहकर अपना पल्ला झालने की कोशिश की.

कितनी हैरानी की बात है कि भारत हो या दुनिया का कोई और देश, मरता हमेशा आम आदमी ही है. न यहां इन कंपनियों को ठेका देने वाली सरकारों को कुछ होता है, न वहां. भ्रष्टाचार, लापरवाही और लालच का यह खेल आम आदमियों की जान की कीमत पर भी जारी रहता है और किसी के खिलाफ कुछ नहीं होता. हर घटना के बाद वादे किए जाते हैं लेकिन ऐसी ही अगली घटना तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है. अगर आप कोलकाता में हुए इस दर्दनाक हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी का इतिहास खंगालेंगे तो हैरान रह जाएंगे कि आखिर क्यों और कैसे इतनी लापरवाह और डिफाल्टर घोषित हो चुकी कंपनी को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई. आइए जानें क्यों ये हादसा ऐक्ट ऑफ करप्शन और क्राइम है.

ऐक्ट ऑफ करप्शन और क्राइम है कोलकाता हादसाः

कोलकाता के विवेकानंदर रोड स्थित 2.2 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर के निर्माण का ठेका हैदराबाद की कंपनी आईवीआरसीएल (IVRCL) को दिया गया था. इस कंपनी को यह ठेका साल 2009 में दिया गया था. महज 2 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर को ये कंपनी लगभग साल दर साल बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं कर सकी. जाहिर सी बात है पुल को अधूरा बना छोड़कर कंपनी ने सैकड़ों लोगों की जिंदगियों को खतरे में डाल दिया था. कंपनी इसके लिए इस बात का बहाना बनाती रही कि यह पुल जिस इलाके में बन रहा है वह काफी संकरा है इसलिए इसे बनाने में वक्त लग रहा है. लेकिन क्या 2 किलोमीटर के पुल को बनाने में इतना वक्त लगना...

सितंबर में इस्लाम के सबसे पवित्र शहर मक्का में एक विशालकाय क्रेन के गिरने से सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए. इस घटना के छह महीने बाद कभी देश की राजधानी रहे कोलकाता में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर के एक हिस्से के ढहने की घटना ने कइयों को मौत की नींद सुला दिया. दोनों ही घटनाओं में कंपनियों की लापरवाही, भ्रष्टाचार, प्रशासन की ढिलाई साफ नजर आती है. लेकिन दोनों ही घटनाओं में मासूमों की मौतों की जिम्मेदार इन कंपनियों ने इन घटनाओं को ऐक्ट ऑफ गॉड यानी की भगवान की मर्जी कहकर अपना पल्ला झालने की कोशिश की.

कितनी हैरानी की बात है कि भारत हो या दुनिया का कोई और देश, मरता हमेशा आम आदमी ही है. न यहां इन कंपनियों को ठेका देने वाली सरकारों को कुछ होता है, न वहां. भ्रष्टाचार, लापरवाही और लालच का यह खेल आम आदमियों की जान की कीमत पर भी जारी रहता है और किसी के खिलाफ कुछ नहीं होता. हर घटना के बाद वादे किए जाते हैं लेकिन ऐसी ही अगली घटना तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है. अगर आप कोलकाता में हुए इस दर्दनाक हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी का इतिहास खंगालेंगे तो हैरान रह जाएंगे कि आखिर क्यों और कैसे इतनी लापरवाह और डिफाल्टर घोषित हो चुकी कंपनी को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई. आइए जानें क्यों ये हादसा ऐक्ट ऑफ करप्शन और क्राइम है.

ऐक्ट ऑफ करप्शन और क्राइम है कोलकाता हादसाः

कोलकाता के विवेकानंदर रोड स्थित 2.2 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर के निर्माण का ठेका हैदराबाद की कंपनी आईवीआरसीएल (IVRCL) को दिया गया था. इस कंपनी को यह ठेका साल 2009 में दिया गया था. महज 2 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर को ये कंपनी लगभग साल दर साल बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं कर सकी. जाहिर सी बात है पुल को अधूरा बना छोड़कर कंपनी ने सैकड़ों लोगों की जिंदगियों को खतरे में डाल दिया था. कंपनी इसके लिए इस बात का बहाना बनाती रही कि यह पुल जिस इलाके में बन रहा है वह काफी संकरा है इसलिए इसे बनाने में वक्त लग रहा है. लेकिन क्या 2 किलोमीटर के पुल को बनाने में इतना वक्त लगना चाहिए?

 कोलकाता का फ्लाईओवर हादसा

वर्ष 2009 में कोलकाता फ्लाईओवर का ठेका मिलने से पहले से ही IVRCL वित्तीय अनियमितताओं में जूझ रही थी. लेकिन फिर भी कंपनी ने न सिर्फ कोलकाता का ये प्रोजेक्ट हासिल किया बल्कि देश भर की 31 अन्य परियोजनाओं का ठेका भी हासिल कर लिया. इनमें बिहार में कोसी कैनाल सिस्टम और तमिलनाडु में हाईवेज डिपार्टमेंट के लिए सुनामी प्रभावित पुलों के निर्माण जैसे महत्पवूर्ण प्रोजेक्ट शामिल हैं. कंपनी ने जबर्दस्त लोन ले रखा है और 2015 तक कंपनी 4055 करोड़ रुपये का लोन ले चुकी थी. लेकिन इसके बावजूद भी 2015 तक कंपनी का घाटा 672 करोड़ रुपये था.

इन सब बातों के बावजूद कंपनी ने न सिर्फ कोलकाता फ्लाईओवर का ठेका हासिल किया बल्कि कई बार इसे पूरा करने की डेडलाइन चुकती रही. इसके बाद कंपनी ने पहले से तय हुए ठेके की लागत भी बढ़ा दी. कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों से पहले फरवरी में इसके उद्घाटन की समयसीमा तय कर दी थी और इसे देखते हुए कंपनी अचानक ही ऐक्शन मोड में आई गई. गुरुवार को जब फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिरा तो दिन में भी फ्लाईओवर को बनाने का काम जारी था. जबकि आमतौर पर बेहद व्यस्त इलाकों में रात में ही सार्वजनिक निर्माण कार्य किया जाता है.

पिछले पांच सालों के दौरान न तो ममता सरकार को इस पुल के बनने का ध्यान आया और न ही कंपनी ने इसे बनाने में कोई तेजी दिखाई. लागत बढ़ती रही थी. कंपनी भी इसकी डेडलाइन आगे बढ़ाकर अपनी कमाई बढ़ाती रही और सरकार सोई रही. अब जब चुनाव सिर पर आए तो सरकार एकदम से जागी और आननफानन में फ्लाईओवर को पूरा करने के आदेश जारी कर दिए. कंपनी ने भी सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखे बिना ही दिन-रात काम कर इसे पूरा करना शुरू कर दिया. नतीजा कई बेगुनाहों की मौत के रूप में सामने आया.

आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है, सरकार कह रही है कि कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. लेकिन ऐसी कंपनी को ठेका देने और जल्दबाजी में निर्माण कार्य को पूरा करने का आदेश देने की दोषी ममता सरकार के खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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