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वो बच्ची तो नॉर्मल है, असली मोगली तो हम हैं !

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 10 अप्रिल, 2017 01:55 PM
  • 10 अप्रिल, 2017 01:55 PM
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इस मानसिक रूप से अक्षम बच्ची को मोगली कहना इंसानों की पीडित मानसिकता को दर्शाता है. अगर उस बच्ची की अक्षमता की तुलना जानवर से की जाए तो अफसोस है कि मोगली वो बच्ची नहीं हम हैं!

उस बच्ची के चर्चे आज हर जगह हैं. उसे देखा तो देखने में बिल्कुल सामान्य बच्चों की तरह लगी. उसके दो हाथ, दो पैर, एक सर और नाक-कान-आंखे भी ठीक वैसे ही हैं जैसे किसी भी सामान्य बच्चे के होते हैं. पर लोगों ने उसे नाम दिया 'मोगली गर्ल'. वही चड्ढ़ी पहने हुए जंगल बुक वाला मोगली, जिसके किस्से कहानियां हम कार्टून शो के जरिए बचपन से देखते सुनते आए हैं. वही जिसे इंसानों के साथ रहने का कोई अनुभव न था, जो जंगली जानवरों के साथ रहा और जानवरों जैसा ही व्यवहार सीख गया. मोगली की परिभाषा को सरल शब्दों में समझा जाए तो कह सकते हैं 'जानवरों जैसा'.

कहा जा रहा है ये बच्ची भी बहराइच के जंगलों से लहुलुहान हालत में मिली थी, वो बंदरों के झुंड के साथ थी और बड़ी मशक्कत के बाद उसे बदरों से छ्ड़ाया गया. बच्ची की जख्मी हालत देखते हुए उसे उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वहां उसकी हरकतों को देखकर उसे मोगली कहा गया और बताया गया कि वो बंदरों के साथ रहती थी, इसलिए हाथ के बजाय सीधे मुंह से खाना खाती है, इंसानों को देखकर चिल्लाने लगती है, यहां तक क‌ि उसे कपड़े पहनना तक नहीं आता. वो इंसान भाषा नहीं समझती. और ये सारे लक्षण काफी हैं किसी के लिए भी ये साबित करने के लिए कि वो इंसान नहीं मोगली है, यानी जानवर जैसा है.

भारत के मीडिया को तो जैसे ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गई और एक सनसनीखेज नाम 'मोगली' जिसका इस्तेमाल कर हर इंसान का ध्यान इस ओर खींचा जा सके. भारत ही क्यों इस 'मोगली गर्ल' के चर्चे तो सात संदर पार तक पहुंच गए. विदेशी मीडिया ने भी जोर-शोर से खबरे चलाईं कि भारत में मोगली जैसी लड़की मिली है. वहां के लिए...

उस बच्ची के चर्चे आज हर जगह हैं. उसे देखा तो देखने में बिल्कुल सामान्य बच्चों की तरह लगी. उसके दो हाथ, दो पैर, एक सर और नाक-कान-आंखे भी ठीक वैसे ही हैं जैसे किसी भी सामान्य बच्चे के होते हैं. पर लोगों ने उसे नाम दिया 'मोगली गर्ल'. वही चड्ढ़ी पहने हुए जंगल बुक वाला मोगली, जिसके किस्से कहानियां हम कार्टून शो के जरिए बचपन से देखते सुनते आए हैं. वही जिसे इंसानों के साथ रहने का कोई अनुभव न था, जो जंगली जानवरों के साथ रहा और जानवरों जैसा ही व्यवहार सीख गया. मोगली की परिभाषा को सरल शब्दों में समझा जाए तो कह सकते हैं 'जानवरों जैसा'.

कहा जा रहा है ये बच्ची भी बहराइच के जंगलों से लहुलुहान हालत में मिली थी, वो बंदरों के झुंड के साथ थी और बड़ी मशक्कत के बाद उसे बदरों से छ्ड़ाया गया. बच्ची की जख्मी हालत देखते हुए उसे उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वहां उसकी हरकतों को देखकर उसे मोगली कहा गया और बताया गया कि वो बंदरों के साथ रहती थी, इसलिए हाथ के बजाय सीधे मुंह से खाना खाती है, इंसानों को देखकर चिल्लाने लगती है, यहां तक क‌ि उसे कपड़े पहनना तक नहीं आता. वो इंसान भाषा नहीं समझती. और ये सारे लक्षण काफी हैं किसी के लिए भी ये साबित करने के लिए कि वो इंसान नहीं मोगली है, यानी जानवर जैसा है.

भारत के मीडिया को तो जैसे ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गई और एक सनसनीखेज नाम 'मोगली' जिसका इस्तेमाल कर हर इंसान का ध्यान इस ओर खींचा जा सके. भारत ही क्यों इस 'मोगली गर्ल' के चर्चे तो सात संदर पार तक पहुंच गए. विदेशी मीडिया ने भी जोर-शोर से खबरे चलाईं कि भारत में मोगली जैसी लड़की मिली है. वहां के लिए तो वाकई ये खबर थी, आखिर जंगल बुक को लिखने वाले रुडयार्ड किपलिंग विदेशी ही थे. बहरहाल, ये बच्ची अब सनसनी बन गई है.

भारत में और उम्मीद भी क्या की जा सकती है. ये इंसानों का वो समाज है जहां अधिकांश लोग सिर्फ उन जैसे दिखने वालों को ही इंसान मानते हैं. यहां तो अगर जात अलग हो, धर्म अलग हो या रंग अलग हो तो भी लोग सामने वाले को इंसान नहीं समझते, तो फिर ऐसे लोगों को कैसे इंसान समझेंगे जो उनके जैसा व्यवहार नहीं करते, जो विकलांग हैं, जो मानसिक रूप से अक्षम हैं.

इस बच्ची की हरकतों को गौर से देखें तो साफ तौर पर समझा जा सकता है कि वो मानसिक रूप से अक्षम है. फिर भी उसे मोगली कहना इंसानों की पीडित मानसिकता को दर्शाता है. अगर उस बच्ची की अक्षमता की तुलना जानवर से की जाए तो अफसोस है कि मोगली वो बच्ची नहीं हम हैं!

अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था. वो मरीज थी, उसे एक बिस्तर दिया गया था, वहां उसका उपचार होता, उसे खाना खिलाया जाता. ये एक मरीज के लिए बहुत सामान्य चीजें होती हैं, लेकिन अगर उस वक्त उसके बिस्तर को घेरकर लोगों की भीड़ उसकी हरकतों को यूं देखें जैसे वो एक सर्कस में आए हैं या फिर वो करतब दिखाने वाले बंदर का तमाशा देख रहे हों, तो अफसोस है कि मोगली वो बच्ची नहीं हम हैं!

देखिए तमाशबीनों को झुंड जैसे कोई अजूबा देखा हो-

कोई नहीं जानता कि वो बच्ची जंगल में कैसे पहुंची. लेकिन अंदाजा लगाना बहुत आसान है कि क्या हुआ होगा. यहां के इंसानों के हाथ तो नवजात बच्चियों को कचरे में फेंकने से भी नहीं कांपते, तो फिर भला एक मानसिक रूप से अक्षम बच्ची को जंगल में छोड़ते हुए कैसे कांपे होंगे. कड़वी है लेकिन हकीकत यही है कि किसी को लड़की नहीं चाहिए और मानसिक अक्षम तो बिल्कुल ही नहीं. उसे बोझ समझकर अगर उसे परिवार से अलग कर दिया गया हो, तो अफसोस है कि मोगली वो बच्ची नहीं हम हैं!

वो मीडिया और उसके तमामा जिम्मेदार लोग भी इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकते कि उनसे इस बच्ची का सच समझने और दिखाने में चूक हुई. खबर को मसालेदार बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. एक तरफ बच्ची की तस्वीर थी तो दूसरी तरफ जंगल बुक के मोगली की, यानी एक झूठ को मजबूती के साथ दर्शकों के सामने रखा गया. तो अफसोस है कि मोगली वो बच्ची नहीं हम हैं!

एक मानसिक रूप से अक्षम बच्चा जिसे कभी कुछ सिखाया ही न गया हो, उससे किस व्यवहार की उम्मीद करते हैं हमारे पत्रकार? इन पत्रकार महोदय ने तो इस बच्ची को बंदर ही डिक्लेयर कर दिया.

देखिए संवेदनहीनता का एक जीता जागता उदाहरण-

जंगल में काम करने वाले समाजसेवी इस बात को कतई नहीं मानते कि बच्ची बंदरों के साथ रहती थी. उनका कहना है कि जंगल इतना बड़ा नहीं जहां मानव दखलंदाजी न हो. सीएमओ ने भी परीक्षण करने पर बच्ची को मानसिक रूप से पूरी तरह अक्षम ही बताया है. फिलहाल बच्ची को मानसिक इलाज के लिए लखनऊ के दृष्टि सामाजिक सेवा संस्थान में भेज दिया गया है.  

आखिर में गुजारिश है उन तमाम लोगों से जिन्होंने इस मामले को चटकारे लेकर लिखा और पढ़ा है, कि वो अब इस बच्ची को अपने हाल पर छोड़ दें. ईश्वर उन लोगों को सदबद्धी दें जो ऐसी सोच रखते हैं और उस जैसी मांओं को भी जिन्होंने अपनी बीमार बच्ची को दर दर की ठोकरें खाने के लिए खुला छोड़ दिया. समाज का ये चेहरा वाकई बेहद शर्मनाक है, अफसोस कि इंसानों की इस दुनिया में तकरीबन हर शख्स मोगली ही है.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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