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एक और गंभीर रेल हादसा: बुलेट ट्रेन या डिरेल्ड डिब्बे?

    • संतोष चौबे
    • Updated: 20 नवम्बर, 2016 12:03 PM
  • 20 नवम्बर, 2016 12:03 PM
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पटना-इंदौर रेल हादसे को देखें तो ये लगता है कि अभी कई कमियां हैं हमारे सिस्टम में. ऐसे में क्या बुलेट ट्रेन का सपना देखना और हर रोज करीब दो करोड़ यात्रियों के लिए सुविधाएं पक्की ना करना सही है?

एक और बड़ा रेल हादसा हो गया है. पटना-इंदौर एक्सप्रेस की 14 बोगियां आज सुबह तीन बजे के आस-पास कानपुर से 100 किमी दूर एक छोटे स्टेशन पुखरायां के पास पटरी से उतर गयी. अभी तक 90 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और 150 से घायलों को आस-पास के अस्पतालों में पहुँचाया जा रहा है.  जैसा की होता है - जांच के आदेश दे दिए गए हैं - मुआवजों का एलान हो चुका है - संवेदनाएं सबसे पहले आजकल ट्विटर पर आती हैं और आ भी चुकी हैं.

जैसा कहा जाता है - जिम्मेदार लोगों के खिलाफ, अगर कोई जिम्मेदार पाया गया, कठोर कार्रवाई की जाएगी और फिर एक हफ्ते बाद भारतीय लोगों का जीवन और भारतीय रेल वैसे ही हो जायेगा जैसा एक हफ्ते पहले था.

 पटना-इंदौर एक्सप्रेस के हादसे की तस्वीर

रेल भारत की जीवन रेखा है. एक ऐसे देश में जहाँ अभी भी गरीबी रेखा पर बहस होती है और हमारे नीति-नियंता मान लेते हैं कि महीना 1410 रुपये से ज्यादा कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है. ये तो शहरों के लिए है. गांवों में तो ये और भी कम है - 960 रुपये महीना. कॉमन-सेंस कहता है कि इतने में तो आदमी महीना भर दो जून खाना भी नहीं खा सकता है. ऐसे में रेल ही हमारे देश के जीवन रेखा हो सकती है. भारतीय रेल सालाना 8 अरब से ज्यादा यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है - लगभग दो करोड़ से ज्यादा लोग रोज.  हालांकि, उनके जीवन की चिंता कोई नहीं करता ऐसे लगातार होने वाले रेल हादसे ये बताते हैं. ये उस देश में हो रहा है जहाँ हम बुलेट ट्रेन कॉरिडोर बनाने की बात कर रहे हैं.

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एक और बड़ा रेल हादसा हो गया है. पटना-इंदौर एक्सप्रेस की 14 बोगियां आज सुबह तीन बजे के आस-पास कानपुर से 100 किमी दूर एक छोटे स्टेशन पुखरायां के पास पटरी से उतर गयी. अभी तक 90 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और 150 से घायलों को आस-पास के अस्पतालों में पहुँचाया जा रहा है.  जैसा की होता है - जांच के आदेश दे दिए गए हैं - मुआवजों का एलान हो चुका है - संवेदनाएं सबसे पहले आजकल ट्विटर पर आती हैं और आ भी चुकी हैं.

जैसा कहा जाता है - जिम्मेदार लोगों के खिलाफ, अगर कोई जिम्मेदार पाया गया, कठोर कार्रवाई की जाएगी और फिर एक हफ्ते बाद भारतीय लोगों का जीवन और भारतीय रेल वैसे ही हो जायेगा जैसा एक हफ्ते पहले था.

 पटना-इंदौर एक्सप्रेस के हादसे की तस्वीर

रेल भारत की जीवन रेखा है. एक ऐसे देश में जहाँ अभी भी गरीबी रेखा पर बहस होती है और हमारे नीति-नियंता मान लेते हैं कि महीना 1410 रुपये से ज्यादा कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है. ये तो शहरों के लिए है. गांवों में तो ये और भी कम है - 960 रुपये महीना. कॉमन-सेंस कहता है कि इतने में तो आदमी महीना भर दो जून खाना भी नहीं खा सकता है. ऐसे में रेल ही हमारे देश के जीवन रेखा हो सकती है. भारतीय रेल सालाना 8 अरब से ज्यादा यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है - लगभग दो करोड़ से ज्यादा लोग रोज.  हालांकि, उनके जीवन की चिंता कोई नहीं करता ऐसे लगातार होने वाले रेल हादसे ये बताते हैं. ये उस देश में हो रहा है जहाँ हम बुलेट ट्रेन कॉरिडोर बनाने की बात कर रहे हैं.

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भारत की पहली बुलेट ट्रेन अहमदाबाद-मुंबई के बीच चलेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की जापान यात्रा के दौरान इसपर अंतिम सहमति बनी और 2018 में इसपर कार्य शुरू होगा. लक्ष्य 2023 तक भारत में बुलेट ट्रेन चला देने का है. अच्छा है - एक स्पेस पावर जो मंगल ग्रह तक पहुँच रहा है और जो दुनिया की बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्ति है वहां ऐसा होना भी चाहिए.  लेकिन, फिर ऐसे रेल हादसों का क्या? जब भी ऐसा कोई रेल हादसा होता है हमें कुछ घिसी-पिटी बातें सुनायी देती हैं - एंटी-कोलिजन डिवाइस, कोहरे में देखने की तकनीक, पुरानी रेल पटरियों का नवीनीकरण, नए और आधुनिक रेल डब्बे जैसा और भी बहुत कुछ, आधुनिक तकनीक के नाम पर और जैसा कि अभी-अभी रेल राज्यमंत्री ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा कि रेल अधिकारी सूरजकुंड चिंतन शिविर में मंथन कर रहे हैं कि कैसे जीरो-एक्सीडेंट रेल नेटवर्क बनाया जाये. 

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भारतीय रेलवे हमेशा इन सब का हवाला देकर किराया बढ़ाने की ताक में रहती है और वर्तमान रेलमंत्री सुरेश प्रभु ऐसा कर भी रहे हैं. एयरलाइनों की तरह अब हमारे रेलों में भी डायनामिक प्राइसिंग है. जैसे 500 रुपये का स्लीपर श्रेणी का रेल टिकेट आपको प्रीमियम तत्काल श्रेणी में 2000-2500 रुपये के बीच मिलेगा और आपको लेना भी पड़ेगा, भले ही उसके लिए आपको उधार लेना पड़े.  बनारस-दिल्ली के बीच फ्लाइट टिकट आपको 3000 रुपये में मिल सकता है लेकिन, सुविधा ट्रेनों में एसी थ्री-टियर का टिकट आपको उससे भी ज्यादा कीमत में मिलेगा. ये तो मजबूर लोगों का जेब तराशने जैसा हुआ.

 ट्रेन हादसे की तस्वीर

भले ही सुविधाएँ सुधरें या नहीं. ट्रेनें अभी भी वैसे ही लेट होती हैं जैसे होती थीं. मेरा खुद का दो बार का अनुभव है. वर्तमान रेलमंत्री सुरेश प्रभु ट्विटर पर काफी सक्रीय हैं लेकिन वो ऐसे ही ट्वीट्स का जवाब देते हैं जो उनके मन-माफिक हों. अगर आप लेट होती हुई ट्रेनों में फंसे हो तो आप कितने भी ट्वीट कर लें प्रभुजी आपको कभी भी जवाब नहीं देंगे. हाँ, भारतीय रेल में घाटे का नाम पर किराया हमेशा बढ़ता रहेगा. वो तब है जब सुरेश प्रभु के रेलमंत्री रहते हुए भी कई बड़े रेल हादसे हो चुके हैं.  

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अनुमान है कि भारत की पहली बुलेट ट्रेन पर एक लाख करोड़ की लागत आएगी. एक रिपोर्ट के अनुसार ये भारत के हेल्थ बजट का तीन गुना है और शिक्षा बजट से ज्यादा है. देश की दूसरी बुलेट ट्रेन की भी योजना बन चुकी है - बनारस होते हुए दिल्ली से कोलकाता तक. जाहिर है ये बुलेट ट्रेन कॉरिडोर लगभग 500 किमी लंबे मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर से तीन गुना लंबा है तो लागत भी वैसे ही बढ़ जाएगी. ये तब है जबकि चीन के अनुभव को देखते हुए, जहाँ अब दुनिया का सबसे लंबा हाई-स्पीड रेल नेटवर्क है, ये लगता है कि ये सफ़ेद हाथी ही साबित होगा और घाटे में चलेगा - जैसा चीन में हो रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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