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'कालेधन, 500 और 1000 रु.' के नीचे दब गए कई मुद्दे

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 15 नवम्बर, 2016 01:59 PM
  • 15 नवम्बर, 2016 01:59 PM
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डिमॉनेटाइजेशन के बाद से ऐसा लग रहा है जैसे कोई दूसरी खबर है ही नहीं देश में. मगर जो खबरें मीडिया के रनडाउन से हट गई हैं उस पर भी चर्चा होने की जरुरत है.

जैसे ही 8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि 500-1000 के नोट अब नहीं चलेंगे. आपको बैंक जाकर जमा करने होंगे. उसके बाद से ऐसा लगा मानो जैसे कोई दूसरी खबर ही नहीं हो देश में. मगर जो खबरें मीडिया के रनडाउन से हट गई हैं उस पर भी चर्चा होने की जरुरत है.

सबसे पहले तो दिल्ली के प्रदूषण की क्या स्थिति है? क्या प्रदूषण कि स्थिति सामन्य हुई? जैसे ही दिल्ली में दिवाली मनाई गई उसके अगले ही दिन घना कोहरा पूरी दिल्ली पर छा गया था. कोई समझ ही नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है. जब प्रदूषण का स्तर देखा तो पारा 1000 तक जा पहुंचा था. 7 दिन तक सिर्फ एक ही खबर चली कि दिल्ली को कैसे बचाया जाए.

 डिमॉनेटाइजेशन के बाद प्रदूषण भी मु्द्दा न रहा

कुछ लोगों ने तो 1952 में लंदन में प्रदुषण से हुई 4000 मौतों को ही दिल्ली से जोड़ दिया. मगर जब से 500-1000 को नोटबंदी की खबर सामने आई, किसी को ये भी नहीं पता कि दिल्ली का प्रदुषण स्तर क्या है ? ये खबर इसलिये भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि ये सिधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी थी. अगर स्वास्थ्य ही नहीं रहा तो पैसे का आप करेंगे क्या? 

ये भी पढ़ें- काले धन के खिलाफ जंग जरूरी थी

500 और 1000 रु. के नोटों पर पाबंदी क्‍या लगी, अचानक यूपी के मुलायम सिंह परिवार के बीच चल रही खींचतान से भी नजर हट गई. झगड़े में अखिलेश यादव ताकतवर हुए या कमजोर, कोई बात नहीं कर रहा है. शिवपाल यादव का कद बढ़ा या घटा,...

जैसे ही 8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि 500-1000 के नोट अब नहीं चलेंगे. आपको बैंक जाकर जमा करने होंगे. उसके बाद से ऐसा लगा मानो जैसे कोई दूसरी खबर ही नहीं हो देश में. मगर जो खबरें मीडिया के रनडाउन से हट गई हैं उस पर भी चर्चा होने की जरुरत है.

सबसे पहले तो दिल्ली के प्रदूषण की क्या स्थिति है? क्या प्रदूषण कि स्थिति सामन्य हुई? जैसे ही दिल्ली में दिवाली मनाई गई उसके अगले ही दिन घना कोहरा पूरी दिल्ली पर छा गया था. कोई समझ ही नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है. जब प्रदूषण का स्तर देखा तो पारा 1000 तक जा पहुंचा था. 7 दिन तक सिर्फ एक ही खबर चली कि दिल्ली को कैसे बचाया जाए.

 डिमॉनेटाइजेशन के बाद प्रदूषण भी मु्द्दा न रहा

कुछ लोगों ने तो 1952 में लंदन में प्रदुषण से हुई 4000 मौतों को ही दिल्ली से जोड़ दिया. मगर जब से 500-1000 को नोटबंदी की खबर सामने आई, किसी को ये भी नहीं पता कि दिल्ली का प्रदुषण स्तर क्या है ? ये खबर इसलिये भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि ये सिधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी थी. अगर स्वास्थ्य ही नहीं रहा तो पैसे का आप करेंगे क्या? 

ये भी पढ़ें- काले धन के खिलाफ जंग जरूरी थी

500 और 1000 रु. के नोटों पर पाबंदी क्‍या लगी, अचानक यूपी के मुलायम सिंह परिवार के बीच चल रही खींचतान से भी नजर हट गई. झगड़े में अखिलेश यादव ताकतवर हुए या कमजोर, कोई बात नहीं कर रहा है. शिवपाल यादव का कद बढ़ा या घटा, किसी की नजर नहीं है.

मोदी सरकार के आने के बाद ऐसा लगता है जैसे आपके शब्दों का ज्ञान बढ़ गया है. intolerance के बाद अब surgical strike. भारत ने पाकिस्तान में जाकर 29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक की. 40 आतंकी सहि्त 2 पाकिस्तानी जवानों के मार गिराया. मगर आपने कभी ये जानने कि कोशिश की कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से कश्मीर के क्या हालात हैं? हमारे कितने जवान शहीद हुए है? कितनी बार सीजफायर का उल्लंघन हुआ?

  डिमॉनेटाइजेशन क्या हुआ बर्डर को भूल गए लोग

तो आपको बता दें कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान की और से 256 बार सीजफायर का उल्लंघन हुआ. 14 जवान शहीद हो गए हैं. 19 से ज्यादा लोग इस गोलीबारी में मारे जा चुके हैं. लगभग हर दूसरे दिन खबर आती है कि हमारा एक जवान शहीद हो गया है. बीते 100 दिनों में हमारे 52 जवान शहीद हो चुके हैं. मगर ये खबर भी गायब हो गई.

ये भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट : ऐलान के एक हफ्ते बाद कैसा है भारत का हाल

 जिसके स्वास्थ्य के लिए सारा देश परेशान था, उसका क्या हुआ किसी को याद नहीं

पिछले 50 दिनों से जयललिता अस्पताल में भर्ती हैं. उनके चाहने वाले उनके लिये पूजा-पाठ कर रहे थे. इतने दिनों से सस्पेंस बना हुआ था कि आखिर जयललिता ठीक हो पाएंगी या नहीं, और आखिरकार जब वो ठीक हो गईं. तो ये खबर भी नोटबंदी के आगे दब गई. यानी की देश में बस अब सिर्फ एक ही खबर रह गई है 'नोटबंदी'. अगले 50 दिनों तक तो तय कर ही लीजिए कि कोई भी दूसरी खबर सामने नहीं आने वाली है. अगर आई भी तो ज्यादा देर टिक नहीं पाएगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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