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नेपाल सीमा से सटे इलाकों में नोटबंदी का असर

    • अबयज़ खान
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2016 06:36 PM
  • 28 दिसम्बर, 2016 06:36 PM
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नेपाल बॉर्डर के पहाड़ी इलाकों में मोबाइल कंपनियों के टॉवर ही नहीं है, जब यहां फोन ही काम नहीं करते तो ऑनलाइन शॉपिंग, कार्ड, स्वाइप मशीन और पेटीएम वगैरा के बारे में सोच ही नहीं सकते. हद तो ये है कि इस इलाके के लोग बीएसएनएल के अलावा नेपाल के सिम का इस्तेमाल करते हैं.

नोटबंदी को पचास दिन पूरे हो गए, लेकिन नोट की चोट की टीस अब तक कम नहीं हुई है. देश के तमाम कोनों में कहीं इसकी तारीफ हो रही है तो कहीं लोग सरकार और रिज़र्व बैंक पर अपना गुस्सा उतार रहे हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी इलाके हैं जहां नोटबंदी के बाद किसी का ध्यान नहीं गया.

हाल में मेरा उत्तराखंड के धारचूला जाना हुआ. दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर देश का ये इलाका एक तरफ नेपाल और दूसरी तरफ चीन से सटा है. इस इलाके में बहने वाली काली नदी इन तीनों देशों का बंटवारा करती है.

 दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर बसा है धारचूला

धारचूला यात्रा के दौरान मेरा सरहद से महज एक पुल के फासले पर मौजूद दारचूला, नेपाल भी जाना हुआ. दरअसल नेपाल के लोग अपने हिस्से को धारचूला के बजाय दारचूला ही कहते हैं. दारचूला नेपाल में एक छोटा सा बाजार है जहां चीन का बहुत सा सामान आता है, जिसे खरीदने भारतीय लोग बड़ी तादाद में पहुंचते हैं. लेकिन 8 नवंबर की नोटबंदी ने इस बाजार की कमर तोड़कर रख दी.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से दो-चार होते गांव की कथा-व्यथा

दारचूला नेपाल में फैंसी स्टोर चलाने वाले पान सिंह कहते हैं कि मोदी सरकार का ये फैसला भविष्य के लिए बेशक बहुत अच्छा है, लेकिन फिलहाल इससे उनके बाजार पर करीब 60% असर पड़ा है. साथ ही वो बताते हैं कि इससे भारत में काम करने वाले नेपाली मजदूरों को बहुत नुकसान हुआ, उनका पैसा किसी ने नहीं बदला, क्योंकि...

नोटबंदी को पचास दिन पूरे हो गए, लेकिन नोट की चोट की टीस अब तक कम नहीं हुई है. देश के तमाम कोनों में कहीं इसकी तारीफ हो रही है तो कहीं लोग सरकार और रिज़र्व बैंक पर अपना गुस्सा उतार रहे हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी इलाके हैं जहां नोटबंदी के बाद किसी का ध्यान नहीं गया.

हाल में मेरा उत्तराखंड के धारचूला जाना हुआ. दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर देश का ये इलाका एक तरफ नेपाल और दूसरी तरफ चीन से सटा है. इस इलाके में बहने वाली काली नदी इन तीनों देशों का बंटवारा करती है.

 दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर बसा है धारचूला

धारचूला यात्रा के दौरान मेरा सरहद से महज एक पुल के फासले पर मौजूद दारचूला, नेपाल भी जाना हुआ. दरअसल नेपाल के लोग अपने हिस्से को धारचूला के बजाय दारचूला ही कहते हैं. दारचूला नेपाल में एक छोटा सा बाजार है जहां चीन का बहुत सा सामान आता है, जिसे खरीदने भारतीय लोग बड़ी तादाद में पहुंचते हैं. लेकिन 8 नवंबर की नोटबंदी ने इस बाजार की कमर तोड़कर रख दी.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से दो-चार होते गांव की कथा-व्यथा

दारचूला नेपाल में फैंसी स्टोर चलाने वाले पान सिंह कहते हैं कि मोदी सरकार का ये फैसला भविष्य के लिए बेशक बहुत अच्छा है, लेकिन फिलहाल इससे उनके बाजार पर करीब 60% असर पड़ा है. साथ ही वो बताते हैं कि इससे भारत में काम करने वाले नेपाली मजदूरों को बहुत नुकसान हुआ, उनका पैसा किसी ने नहीं बदला, क्योंकि भारत में उनके बैंक खाते नहीं थे. मजबूरन हम लोगों ने मिल बांटकर उनकी मदद की.

पान सिंह का कहना है कि नोटबंदी से बाजार पर करीब 60% असर पड़ा है

जबकि दारचूला नेपाल में ही इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर चलाने वाले प्रेम निरौला कहते हैं, कि इस फैसले से पहले जहां उन्हें फुरसत नहीं मिलती थी वहीं अब वो ग्राहकों की बाट जोह रहे हैं. निरौला कहते हैं कि नेपाल में तो नया नोट आया ही नहीं और पुराना हम ले नहीं रहे इसलिए कारोबार एकदम ठप है.

 प्रेम निरौला अब सिर्फ ग्राहकों का रस्ता देख रहे हैं

5000 से ज्यादा की आबादी वाले इस नेपाली इलाके के लोगों की आमदनी का जरिया भारतीय नागरिक ही होते हैं, लेकिन दारचूला नेपाल में ही रेडीमेड की दुकान चलाने वाली निर्मला भट्ट कहती हैं कि लोग नया पैसा लाते भी हैं तो 2000 का नोट, जिसका चेंज मिलना ही मुश्किल है. साथ ही यहां पेटीएम, कार्ड और ऑनलाइन शॉपिंग का आप्शन भी नहीं है. जिसकी वजह से कारोबार पर मंदी की मार है. 2013 में केदारनाथ बाढ़ की बर्बादी झेल चुका ये इलाक़ा आजकल नोटबंदी की मार झेल रहा है.

 निर्मला भट्ट कहती हैं कि यहां पेटीएम, कार्ड और ऑनलाइन शॉपिंग का आप्शन भी नहीं है

नेपाल के दारचूला से निकालकर अब भारत के धारचूला में आते हैं. यहां की परेशानियों का आलम वहां से भी खराब है. इस इलाके में सबसे बड़ी परेशानी तो कम्युनिकेशन ही है. यहां सरकारी कंपनी बीएसएनएल के अलावा किसी दूसरी मोबाइल कंपनी का टॉवर ही नहीं है, जिसका बड़ा नुकसान ये है कि दूसरी कंपनियों के फोन यहां काम ही नहीं करते हैं. अब ऐसे में आप ऑनलाइन शॉपिंग, कार्ड, स्वाइप मशीन और पेटीएम वगैरा के बारे में सोच ही नहीं सकते. हद तो ये है कि इस इलाके के लोग बीएसएनएल के अलावा नेपाल की सिम भी साथ रखते हैं ताकि बुरे वक़्त में वो दुनिया से कम्युनिकेशन कर सकें. हैरानी की बात तो ये है कि शुरुआत में कुछ दिन तक इस इलाके के लोगों ने नेपाली करेंसी का भी इस्तेमाल किया.

ये भी पढ़ें- कैश और कैशलेस के बीच फंसा आम आदमी

धारचूला के निवासी मोहम्मद आज़म कहते हैं कि सरकारों से कई बार कम्युनिकेशन सिस्टम ठीक करने की गुहार लगाई गई लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. अब ऐसे में यहां के लोग कैशलेस और डिजिटल इंडिया के साथ कैसे जुड़ेंगे. ऊपर से बैंकों और एटीएम में पैसा नहीं मिलता जिसकी वजह से कारोबार पर बुरा असर पड़ा है.

सिर्फ धारचूला ही नहीं लगभग पूरे उत्तराखंड में कैशलेस को लेकर यही हाल है. अल्मोड़ा से लेकर भवाली, भीमताल, बेरीनाग, थल और जौलजीबी तक जिन जिन इलाक़ों में मेरा जाना हुआ वहां पेट्रोल पंप को छोड़कर कहीं पर भी मुझे डिजिटल ट्रांजेक्शन जैसा कोई सिस्टम नजर नहीं आया. हर किसी को नकद चाहिए था, यहां तक कि अल्मोड़ा की मशहूर बाल मिठाई के लिए भी मुझे नकद में ही पेमेंट करना पड़ा.

सरकार बेशक भरोसा दिला रही है कि बहुत जल्द ही हालात बेहतर होंगे लेकिन रोज-रोज बदलते नियमों ने लोगों का डर और बढ़ा दिया है. सबके मन में अब यही सवाल है कि देश में 8 नवंबर से पहले के हालात कब से बहाल होंगे या फिर कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि उसके लिए अगली 8 नवंबर तक ही इंतजार करना पड़ेगा .

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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