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'गेम ऑफ थ्रोन्स' के एक भारतीय फैन की व्यथा...

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 15 जुलाई, 2017 07:16 PM
  • 15 जुलाई, 2017 07:16 PM
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आखिर क्या होता है जब कोई भारतीय गेम ऑफ थ्रोन्स पहली बार देखता है... जान लीजिए कैसा रहा शर्मा जी का #GOT एक्सपीरियंस...

आखिर 16 जुलाई आ ही गई...

वैसे तो संडे एक ऐसा दिन है जिसके आने से कम से कम 5 दिन पहले से उसका इंतजार किया जाता है, लेकिन इस 16 जुलाई वाले संडे के लिए तो दुनिया भर के लाखों लोग कई महीनों से इंतजार कर रहे हैं. कारण ये कि 16 जुलाई को गेम ऑफ थ्रोन्स का सीजन 7 का आगाज होना है. देखिए इमानदारी से कहें तो गेम ऑफ थ्रोन्स उन कुछ एक सीरियल में से एक है जो भारत में क्योंकि सास भी कभी बहू थी से ज्यादा लोकप्रिय रहा है.

भारत में गेम ऑफ थ्रोन्स देखने के लिए भी कई बार आपको उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है उतनी मेहनत में आराम से इंसान जिम का एक महीना निकाल लेगा. हमारे शर्मा जी को भी गेम ऑफ थ्रोन्स का चस्का चढ़ गया. हुआ कुछ यूं कि बेटा अपने टूर पर जाते समय अपनी एक्सटेंडेड हार्डडिस्क ले जाना भूल गया और शर्मा जी के हाथ लग गया वो खजाना जिसने उनका सुख-चैन ही छीन लिया.

हार्ड डिस्क में था गेम ऑफ थ्रोन्स. पूरे 6 सीजन. शर्मा जी ने इससे पहले कई बार ये नाम सुन रखा था और उन्हें इस बला के नाम के आगे क्यों बवाल हो रहा है वो जानने का चस्का था. चारों तरफ गेम ऑफ थ्रोन्स के नए सीजन की बातें चल रही थीं. अभी तक तो उन्होंने हिंदी सीरियल नागिन के सीजन ही देखे थे, लेकिन इसे जानने के लिए उन्होंने एक चांस ले ही लिया. पत्नी और मां जगराते में गईं थीं और इससे बेहतर मौका उन्हें मिल नहीं सकता था. अब बस देखना शुरू कर दिया ये सीरियल.

पहला एपिसोड खत्म होते ही शर्मा जी इतना घिना गए थे कि उन्हें और कुछ सूझ ही नहीं रहा था. एक तो उन्हें रानी और उसके भाई का किस्सा समझ नहीं आ रहा था और दूसरा राम-राम ऐसा कांड भी भला कोई करता है. और इतनी खुली औरतें? तौबा-तौबा कोई शर्म लिहाज ही नहीं. भला ऐसा सीरियल भी कोई बनाता है क्या? एक तो इतनी जटिल अंग्रेजी... ऊपर से ऐसी कहानी जो सर के ऊपर से चली गई और...

आखिर 16 जुलाई आ ही गई...

वैसे तो संडे एक ऐसा दिन है जिसके आने से कम से कम 5 दिन पहले से उसका इंतजार किया जाता है, लेकिन इस 16 जुलाई वाले संडे के लिए तो दुनिया भर के लाखों लोग कई महीनों से इंतजार कर रहे हैं. कारण ये कि 16 जुलाई को गेम ऑफ थ्रोन्स का सीजन 7 का आगाज होना है. देखिए इमानदारी से कहें तो गेम ऑफ थ्रोन्स उन कुछ एक सीरियल में से एक है जो भारत में क्योंकि सास भी कभी बहू थी से ज्यादा लोकप्रिय रहा है.

भारत में गेम ऑफ थ्रोन्स देखने के लिए भी कई बार आपको उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है उतनी मेहनत में आराम से इंसान जिम का एक महीना निकाल लेगा. हमारे शर्मा जी को भी गेम ऑफ थ्रोन्स का चस्का चढ़ गया. हुआ कुछ यूं कि बेटा अपने टूर पर जाते समय अपनी एक्सटेंडेड हार्डडिस्क ले जाना भूल गया और शर्मा जी के हाथ लग गया वो खजाना जिसने उनका सुख-चैन ही छीन लिया.

हार्ड डिस्क में था गेम ऑफ थ्रोन्स. पूरे 6 सीजन. शर्मा जी ने इससे पहले कई बार ये नाम सुन रखा था और उन्हें इस बला के नाम के आगे क्यों बवाल हो रहा है वो जानने का चस्का था. चारों तरफ गेम ऑफ थ्रोन्स के नए सीजन की बातें चल रही थीं. अभी तक तो उन्होंने हिंदी सीरियल नागिन के सीजन ही देखे थे, लेकिन इसे जानने के लिए उन्होंने एक चांस ले ही लिया. पत्नी और मां जगराते में गईं थीं और इससे बेहतर मौका उन्हें मिल नहीं सकता था. अब बस देखना शुरू कर दिया ये सीरियल.

पहला एपिसोड खत्म होते ही शर्मा जी इतना घिना गए थे कि उन्हें और कुछ सूझ ही नहीं रहा था. एक तो उन्हें रानी और उसके भाई का किस्सा समझ नहीं आ रहा था और दूसरा राम-राम ऐसा कांड भी भला कोई करता है. और इतनी खुली औरतें? तौबा-तौबा कोई शर्म लिहाज ही नहीं. भला ऐसा सीरियल भी कोई बनाता है क्या? एक तो इतनी जटिल अंग्रेजी... ऊपर से ऐसी कहानी जो सर के ऊपर से चली गई और ऊपर से ऐसे दृश्य. घिन को पीछे करते हुए बस उन्हें अब दूसरा एपिसोड इसलिए देखना था कि पहले का क्लाइमैक्स जो था उसकी गुत्थी खुल सके.

तो जी दूसरा एपिसोड भी आ गया. फिर तीसरा और ऐसा करते-करते शाम 7 बजे से लेकर सुबह के 4 बजे तक शर्मा जी ने पहला सीजन देख डाला. एक था नेड स्टार्क ... उनका पसंदीदा कैरेक्टर बन गया था, इतना निष्ठावान कैरेक्टर, एक आज्ञाकारी और कर्मठ सैनिक, एक अच्छा पति और पिता (अगर उसके नाजायज बेटे की बात को नकार दिया जाए तो) और एक सबसे अच्छा आदमी. लेकिन ये क्या बेटी के मंगेतर ने ही उसकी गर्दन काट दी. शिव... शिव... शिव...

शर्मा जी को भारी दुख हुआ. नेड स्टार्क की मौत देखकर उनका दिल भर आया. ऊपर से अब उनके 6 बच्चों का क्या होगा? और बेचारी लेडी स्टार्क अकेले कैसे क्या करेगी. उसपर उनकी दोनो बेटियां भी बड़ी मुश्किल में फंस गई हैं. अचानक शर्मा जी को ये एहसास हुआ कि उन्हें तो ये सीरियल अच्छा लगने लगा है. अब देखिए भाई कुछ भी हो शर्मा जी को तो अगला सीजन देखना ही था. लेकिन देखें कैसे?

पत्नी और मां को किसी ना किसी बहाने से वो घर के बाहर भेजना चाहते थे और लाख कोशिशों के बाद भी ऐसा ना कर पाए और तो और डांट खाकर (ये बताने की जरूरत नहीं किसकी) चुप बैठ गए. अब इंतजार होने लगा सबके सोने का. ऑफिस इसलिए नहीं गए क्योंकि रात भर सोए नहीं थे तो तबियत थोड़ी नासाज लग रही थी. दिन भर सोकर रात में फिर वही सिलसिला. रात भर में सीजन 2 भी देख डाला और अब तो बस शर्मा जी के मन में सिर्फ गेम ऑफ थ्रोन्स ही था.

उन्हें किसी ना किसी तरह से सारे सीजन देखने थे. यही तो होता है किसी भी भले घर के गेम ऑफ थ्रोन्स फैन के साथ. सबके सामने तो देखा जा नहीं सकता. किसी तरह से सीजन 4 तो शर्मा जी खत्म कर चुके थे, लेकिन अब आने वाला था उनका बेटा. अब चौथे सीजन के अंत में जॉन स्नो मारा गया था. शर्मा जी तो जैसे बेचारे रो ही दिए. जॉन स्नो की क्या गलती थी. और वो 13 साल का लड़का जिसे स्नो ने इतना प्यार दिया आखिर उसने ऐसा किया? इस सीजन के आने तक जॉफ्री और रामसे बोल्टन को देखकर उन्हें ये समझ आ गया था कि इनसे बद्तर कोई विलन आजतक पैदा ही नहीं हुआ है.

बहरहाल, शर्मा जी ने उस दिन भी छुट्टी ले ली और जॉन स्नो की डेथ का दुख मनाया. लेकिन अब आगे क्या? बेटा आ चुका था. ये सस्पेंस उन्हें इंटरनेट स्पॉइलर से मिल चुका था कि जॉन स्नो वापस आएगा. कैसे देखा जाए आगे? मां, पत्नी, बेटे को कैसे रास्ते से हटाया जाए. फिर कहीं पता चला कि शर्मा जी ने अपने ऑफिस ब्वॉय से सेटिंग करके गेम ऑफ थ्रोन्स अपने फोन में डलवा लिया था. लेकिन ये क्या मां और पत्नी दोनों ने डांट लगा दी... क्या दिन भर फोन में लगे रहते हो. ऑफिस में बॉस ने डांट लगा दी... काम में मन नहीं लगता. नया सीजन देख ना पाने की स्थिती में शर्मा जी परेशान हुए जा रहे थे और इस चक्कर में उन्हें और डिप्रेशन होने लगा था. बेटे ने उनके दुख का कारण पता करना चाहा. एक दिन बाथरूम से कहीं सांसा स्टार्क की आवाज आई. बेटे को पूरी कहानी समझ आ गई. अब क्या था बेटे ने पिता से इस बारे में बात करना चाही, लेकिन गलती से एक स्पॉइलर बता दिया. उस दिन शर्मा जी ने जो डांट लगाई अपने बेटे को वो उन्होंने कभी हाईस्कूल के समय भी नहीं लगाई होगी.

फिर क्या था बाप-बेटे ने एक दूसरे को स्पेस देना शुरू किया और शर्मा जी पूरा सीजन 6 तक दो महीने में देख पाए. तड़पते-तड़पते आखिर 16 जुलाई आ ही गई और अब दोनों ये सोच रहे हैं कि आगे वाला एपिसोड कैसे देखा जाए? ये बात तो पक्की है कि एक साथ देखना नहीं है. अगर एक साथ देखा तो दोबारा नजरें नहीं मिला पाएंगे एक दूसरे से. और अलग-अलग देखने के लिए दोनों को बड़ी मेहनत करनी होगी. अब सीजन और उसका दीवानापन क्या करता है शर्मा जी के साथ ये तो वक्त ही बताएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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