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एक वेश्यालय पर छापा और वसंता की रिहाई

    • अनुसूया बासु
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2018 11:24 AM
  • 04 जुलाई, 2015 09:57 AM
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गुलाबी रंग की शर्ट, काले रंग की एक स्कर्ट पहने बेहद डरी हुई सी एक दुबली लड़की ने पुलिस को देखते ही पैर पकड़ते हुए कहा - प्लीज मुझे यहां से बाहर ले जाओ. मुझे यहां मत छोड़ो. ये सब मुझे मार डालेंगे.

ये बात करीब 3 साल पुरानी है. दिल्ली का जीबी रोड इलाका. यहां करीब 4,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर रहती हैं. यहीं 59 नंबर वेश्यालय में सब कुछ रोज की तरह सामान्य था. लेकिन 23 जून 2015 की उस रात का सबसे असमान्य क्षण उस वेश्यालय में समीर त्यागी का आना रहा. थोड़ा मुरझाया हुआ. अपने फोन पर व्यस्त समीर वहां खड़ी करीब 20 महिलाओं पर तेजी से नजरें दौड़ाने लगा. रात के करीब 10 बजे थे. सभी महिलाएं अपने अगले ग्राहक के इंतजार में थीं. बॉलीवुड के गाने रोज की तरह उस माहौल में अपना शोर घोल रहे थे. मैं और सादी वर्दी में दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच के कुछ अफसर तेजी से एक सीढ़ी पर चढ़ने लगे, तभी वहां मौजूद एक बुजुर्ग महिला ने पूछा, ''नया मुनिया लाए हो क्या.'' कुछ ही सेकंड में शक्ति वाहिनी नाम की एक NGO के कार्यकर्ता भी वहां आ गए.

थोड़ी ही देर में सेक्सकर्मियों और उनके ग्राहकों को पता चल गया कि पुलिस ने छापा मारा है. हम सभी वहां कर्नाटक के कोलार से लाई गई एक 18 वर्षीय लड़की वसंता (बदला हुआ नाम) को छुड़ाने आए थे. समीर ने NGO को यह सूचना दी थी कि वसंता वेश्यालय से बाहर आना चाहती है. पुलिस और एनजीओ की टीम के सदस्यों के पास वसंता की तस्वीर या कोई पहचान नहीं थी. ऐसे में सभी ने वहां खड़ी महिलाओं से वसंता के बारे में पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

 

वहीं, हम सभी से कुछ दूर खड़ा समीर पूरे घटनाक्रम को गौर से देख रहा था. उसने शक्ति वाहिनी के एक सदस्य को बुलाया और उसे वसंता का ठिकाना और उसने क्या पहना था, इसके बारे में जानकारी दी. हम जैसे ही उस कमरे की ओर बढ़े, वेश्यालय के मैनेजर और कुछ दलालों ने हमारा रास्ता रोक लिया. कुछ धक्का-मुक्की और जोर-जबर्रदस्ती के बाद हम आखिर उस अंधेरे कमरे में दाखिल होने में कामयाब हो गए. गुलाबी रंग की शर्ट, काले रंग की एक स्कर्ट...

ये बात करीब 3 साल पुरानी है. दिल्ली का जीबी रोड इलाका. यहां करीब 4,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर रहती हैं. यहीं 59 नंबर वेश्यालय में सब कुछ रोज की तरह सामान्य था. लेकिन 23 जून 2015 की उस रात का सबसे असमान्य क्षण उस वेश्यालय में समीर त्यागी का आना रहा. थोड़ा मुरझाया हुआ. अपने फोन पर व्यस्त समीर वहां खड़ी करीब 20 महिलाओं पर तेजी से नजरें दौड़ाने लगा. रात के करीब 10 बजे थे. सभी महिलाएं अपने अगले ग्राहक के इंतजार में थीं. बॉलीवुड के गाने रोज की तरह उस माहौल में अपना शोर घोल रहे थे. मैं और सादी वर्दी में दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच के कुछ अफसर तेजी से एक सीढ़ी पर चढ़ने लगे, तभी वहां मौजूद एक बुजुर्ग महिला ने पूछा, ''नया मुनिया लाए हो क्या.'' कुछ ही सेकंड में शक्ति वाहिनी नाम की एक NGO के कार्यकर्ता भी वहां आ गए.

थोड़ी ही देर में सेक्सकर्मियों और उनके ग्राहकों को पता चल गया कि पुलिस ने छापा मारा है. हम सभी वहां कर्नाटक के कोलार से लाई गई एक 18 वर्षीय लड़की वसंता (बदला हुआ नाम) को छुड़ाने आए थे. समीर ने NGO को यह सूचना दी थी कि वसंता वेश्यालय से बाहर आना चाहती है. पुलिस और एनजीओ की टीम के सदस्यों के पास वसंता की तस्वीर या कोई पहचान नहीं थी. ऐसे में सभी ने वहां खड़ी महिलाओं से वसंता के बारे में पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

 

वहीं, हम सभी से कुछ दूर खड़ा समीर पूरे घटनाक्रम को गौर से देख रहा था. उसने शक्ति वाहिनी के एक सदस्य को बुलाया और उसे वसंता का ठिकाना और उसने क्या पहना था, इसके बारे में जानकारी दी. हम जैसे ही उस कमरे की ओर बढ़े, वेश्यालय के मैनेजर और कुछ दलालों ने हमारा रास्ता रोक लिया. कुछ धक्का-मुक्की और जोर-जबर्रदस्ती के बाद हम आखिर उस अंधेरे कमरे में दाखिल होने में कामयाब हो गए. गुलाबी रंग की शर्ट, काले रंग की एक स्कर्ट पहने बेहद डरी हुई सी एक दुबली लड़की बिस्तर पर बैठी हुई थी. उसके चेहरे पर व्यग्रता और चिंता की झलक साफ देखी जा सकती थी. पुलिस ने उस लड़की को देखते ही पूछा, ''क्या तुम ही कर्नाटक से लाई गई वसंता हो.'' डरी हुई उस लड़की ने सहमति में अपना सिर हिलाया. हमने उससे दोबारा पूछा और बताया कि हम उसे यहां से बाहर ले जाने और उसे उसके घर भेजने के इरादे से आए हैं. इतना सुनते ही वसंता अपने बिस्तर से उठ कर आई और एक पुलिस अफसर का पैर पकड़ते हुए कहा, ''प्लीज मुझे यहां से बाहर ले जाओ. मुझे यहां मत छोड़ो. ये सब मुझे मार डालेंगे.'' 

पुलिस और शक्ति वाहिनी के सदस्यों द्वारा छुड़ाई गई वसंता के मेडिकल टेस्ट में साफ हुआ उसके साथ कितना अत्याचार हुआ है. मेडिकल अफसर द्वारा रिकॉर्ड किए गए बयान के अनुसार उसे एक दिन में करीब 30 मर्दों के साथ सोने के लिए कहा जाता था. प्रति ग्राहक 310 रुपये. लेकिन यह पैसे भी उसे नहीं मिलते. वेश्यालय के मैनेजर और दलाल इससे ऐश करते. वसंता को ग्राहकों से मिले टिप पर ही निर्भर रहना पड़ता. एक लड़की की मां वसंता का पति अब इस दुनिया में नहीं है. बेंगलुरू में एक दर्जी के तौर पर काम करने के दौरान ही वसंता के एक सहकर्मी की मां ने उसे इस वेश्यालय में बेच दिया था. वह उसी साल अप्रैल में दिल्ली आई थी और उस समय घर लौटना चाहती थी. 

वेश्यालय में बेची गईं और ऐसी ही मुश्किलों से गुजर रही महिलाओं और लड़कियों को छुड़ाने के लिए 100 से भी ज्यादा छापेमारी में सहभागी रहे शक्ति वाहिनी के सहसंस्थापक ऋषि कांत ने बाकायदा बस और रेलवे स्टेशनों पर अपने टीम के कई सदस्यों को लगा रखा है ताकि वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाली और मानव तस्करी का शिकार हुई संभावित महिलाओं की पहचान कर सकें. ऋषि के अनुसार, पीड़ितों के पुनर्वास की सुविधा मुहैया कराने और उन्हें हर्जाना देने की प्रक्रिया काफी धीमी और जटिल है. दिल्ली सरकार मानव तस्करी के शिकार हुए लोगों को केवल 50,000 रुपये सहायता के तौर पर देती है और वह भी उन तक पहुंचने में वर्षों लग जाते हैं. अदालती कार्रवाई भी काफी धीमी है. मानव तस्करों के वकीलों द्वारा सवाल-जवाब से परेशान पीड़ित कई बार कोर्ट के बाहर आपसी समझौते से मामले खत्म कर देते हैं. इसलिए इस मामले में दोषियों को सजा मिलने की दर काफी कम है.

यह एक बड़ी और लंबी लड़ाई है जिसे हमे लड़ते रहना होगा." यह भी दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश सरकार मानव तस्करी के मामले में पीड़ितों को तीन लाख रुपये मुआवजा देती है. साथ ही हाल में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद यूपी सरकार ने मानव तस्करी को रोकने के लिए कई कदम उठाए थे. नेपाल सरकार ने सात जून 2015 को जारी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि भूकंप के बाद नेपाल में मानव तस्करी के मामले में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. 

वसंता, जिसे उसके ही एक ग्राहक ने बचाने की पहल की है, के लिए एक आम जिंदगी की शुरुआत करना किसी बड़ी लड़ाई से कम नहीं हुई होगी. वसंता जैसी ही न जाने कितनी महिलाएं हैं जो मानव तस्करी के इस दलदल में फंसकर रह गई हैं. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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