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स्‍कूल जाने वाले हर बच्‍चे की मां टेंशन में क्‍यों है

    • सईद अंसारी
    • Updated: 08 फरवरी, 2016 07:44 PM
  • 08 फरवरी, 2016 07:44 PM
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दिल्ली में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के वॉटर टैंक में गिरने से बच्चे दिव्यांश की मौत ने देश के हर मम्मी-पापा, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-ताऊ, भाई-बहनों को डरा दिया है. देश की हर मां आजकल बेचैन है.

देश की हर मां आजकल बेचैन है. उसका दिल घबराता है. रोज सुबह से उसका बीपी बढ़ना शुरू हो जाता है. वह अजीब बदहवास सी दिखाई देती है. उसके घर बाहर का हर काम ठप हो जाता है कुछ घंटों के लिए. उसके सोचने-समझने की शक्ति लगभग खत्म सी हो जाती है. उसका दिल तो बस सुबह से दोपहर तक अपने जिगर के टुकड़े की फिक्र में तेजी से धड़कता रहता है.

उसके होंठ अपने लाल के लिए प्रार्थना में बुदबुदाते रहते हैं क्योंकि उसका मासूम बच्चा स्कूल गया है. वह स्कूल जो बहुत मशहूर है, जहां मोटी फीस ली जाती है, जहां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली टीचर हैं, जहां की प्रिंसीपल बहुत ही सख्त है. स्कूल की सुरक्षा भी बेहद चुस्त-दुरूस्त है. स्कूल में बच्चे के सर्वांगीण विकास का भरोसा भी मैनेजमेंट की तरफ से दिलाया जाता है.

बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करवाकर मम्मी-पापा अपने नौनिहालों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति निश्चिंत हो जाते हैं. दिल्ली में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के वॉटर टैंक में गिरने से बच्चे दिव्यांश और इससे पहले कापसहेड़ा के सरकारी स्कूल के सेप्टिक टैंक में गिरने से बच्चे की मौत ने देश के हर मम्मी-पापा, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-ताऊ, भाई-बहनों को डरा दिया है. इस घटना के बाद हालात ये हैं कि बालकनी या दरवाजे से या बस स्‍टॉप पर अपने लाल का रास्‍ता देखती मां के दिल को तब तक सुकून नहीं हो पाता, जब तक बच्चा मम्मी को देखकर मुस्कुरा ना दें और कहीं वह उदासी के साथ बस या वैन से उतरा तो समझो मां का हाल बुरा.

लगभग यही या इससे भी बुरा हाल उन महिलाओं का है जिनके छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं. इन दिनों घर, दफ्तर, बाजार जहां भी कोई यार-दोस्त रिश्तेदार मिलता है बातचीत में स्कूल में बच्चों की सुरक्षा पर बात निकल ही आती है. जिनके छोटे बच्चे हैं उनका तो हाल बुरा है ही लेकिन जिनके बच्चे नहीं हैं वह लोग भी कम परेशान नहीं हैं क्योंकि देश के हर घर में कोई ना कोई छोटा बच्चा अवश्य है और वह बच्चा स्कूल भी जाता है.

बच्चे माता-पिता की जान होते हैं, घर की रौनक होते हैं, उनकी...

देश की हर मां आजकल बेचैन है. उसका दिल घबराता है. रोज सुबह से उसका बीपी बढ़ना शुरू हो जाता है. वह अजीब बदहवास सी दिखाई देती है. उसके घर बाहर का हर काम ठप हो जाता है कुछ घंटों के लिए. उसके सोचने-समझने की शक्ति लगभग खत्म सी हो जाती है. उसका दिल तो बस सुबह से दोपहर तक अपने जिगर के टुकड़े की फिक्र में तेजी से धड़कता रहता है.

उसके होंठ अपने लाल के लिए प्रार्थना में बुदबुदाते रहते हैं क्योंकि उसका मासूम बच्चा स्कूल गया है. वह स्कूल जो बहुत मशहूर है, जहां मोटी फीस ली जाती है, जहां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली टीचर हैं, जहां की प्रिंसीपल बहुत ही सख्त है. स्कूल की सुरक्षा भी बेहद चुस्त-दुरूस्त है. स्कूल में बच्चे के सर्वांगीण विकास का भरोसा भी मैनेजमेंट की तरफ से दिलाया जाता है.

बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करवाकर मम्मी-पापा अपने नौनिहालों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति निश्चिंत हो जाते हैं. दिल्ली में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के वॉटर टैंक में गिरने से बच्चे दिव्यांश और इससे पहले कापसहेड़ा के सरकारी स्कूल के सेप्टिक टैंक में गिरने से बच्चे की मौत ने देश के हर मम्मी-पापा, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-ताऊ, भाई-बहनों को डरा दिया है. इस घटना के बाद हालात ये हैं कि बालकनी या दरवाजे से या बस स्‍टॉप पर अपने लाल का रास्‍ता देखती मां के दिल को तब तक सुकून नहीं हो पाता, जब तक बच्चा मम्मी को देखकर मुस्कुरा ना दें और कहीं वह उदासी के साथ बस या वैन से उतरा तो समझो मां का हाल बुरा.

लगभग यही या इससे भी बुरा हाल उन महिलाओं का है जिनके छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं. इन दिनों घर, दफ्तर, बाजार जहां भी कोई यार-दोस्त रिश्तेदार मिलता है बातचीत में स्कूल में बच्चों की सुरक्षा पर बात निकल ही आती है. जिनके छोटे बच्चे हैं उनका तो हाल बुरा है ही लेकिन जिनके बच्चे नहीं हैं वह लोग भी कम परेशान नहीं हैं क्योंकि देश के हर घर में कोई ना कोई छोटा बच्चा अवश्य है और वह बच्चा स्कूल भी जाता है.

बच्चे माता-पिता की जान होते हैं, घर की रौनक होते हैं, उनकी किलकारियों से घर-आंगन गूंजते हैं, उनकी शरारतों से घर की बोरियत दूर होती है. बच्चा गिर जाए तो मां का कलेजा कांप जाता है. उसे बुखार आ जाए तो मां की नींद-चैन खो जाता है. कुछ पल के लिए ही सही अगर बच्चा नजरों से ओझल हो जाए तो मां की जान निकल जाती है.

यह कहा जा सकता है कि बच्चों में मां की नहीं हम सब की जान बसती है. बच्चा किसी का भी हो उसे तकलीफ में कोई नहीं देख सकता. किसी अंजान बच्चे को भी चोट लग जाए तो आप एक पल भी गंवाए बिना उस बच्चे की मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं. उसे उठाकर पुचकारते हैं, सहलाते हैं, ऐसे हिम्मत देते हैं जैसे वह बच्चा आप ही के जिगर का टुकड़ा है. मार्केट में घूमते किसी अंजान शख्स की गोद में बच्चे की मुस्कुराहट आपको उसकी ओर अनायास खींच लेती है.

आप बच्चे को देखकर मुस्कुरा देते हैं, बच्चा पास हो तो प्यार से उसके गालों को सहला देते हैं. अंजान शख्स से भी आत्मीयता का रिश्ता जोड़ देता है बच्चा. यही हाल पास-पड़ोस का भी है. पड़ोसी आपको कितना ही नापसंद क्यों ना हो, उसका बच्चा दोनों पड़ोसियों के बीच कड़ुवाहट को दूर करने या कम करने में अहम भूमिका निभाता है.

सोचिए, क्या गुजर रही होगी दिल्ली की उन दोनों मांओ पर जिन्होंने लाड़-प्यार से, मान-मनुहार से, चॉकलेट, आइसक्रीम का लालच देकर अपने बच्चों को स्कूल भेजा होगा. दोनों इंतजार कर रही होंगी अपने लाल के लौटने का क्योंकि आते ही तुतलाती जुबान में वह स्कूल की एक-एक बात मां को बताएगा. दोस्तों की शिकायत करेगा. क्या खाया, कौन सा खेल खेला, टीचर ने कैसे उसकी तारीफ की, स्कूल में उसे मजा आया या अच्छा नहीं लगा.

सबकुछ मां को बताकर ही दम लेगा. भले ही मां के लिए अपने लाल की इन बातों का कोई मतलब नहीं है लेकिन मां भी जबतक एक-एक बात नहीं सुन लेगी उसे अधूरा-अधूरा सा लगता रहेगा. अपने बेटों के इंतजार में बैठीं इन दोनों मांओं पर क्या गुजरी होगी जब स्कूल से डरावनी खबर आई होगी. कैसे इन्होंने खुद को संभाला होगा. कैसे इनके पांव तले जमीन खिसकी होगी.

आप और हमारा जब खबर सुनकर इतना बुरा हाल है तो इन मांओं की उस वक्त की स्थिति का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं. दोनों बच्चों में से एक की मां की ना तो कोई खबर आई और ना ही वह टीवी पर दिखाई दीं लेकिन सीने पर पत्थर रख दिव्यांश की मां निकल पड़ी अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए। गर्व होता है इस मां की हिम्मत देखकर. इस मां पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन किसी और मासूम के साथ ऐसा ना हो इसलिए रेयान इंटरनेशनल जैसे बड़े स्कूल के खिलाफ इसने छेड़ दी जंग. स्कूल मैनेजमेंट की ताकत को जानते हुए भी यह मां डटी हुई है.

सिर्फ अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए नहीं बल्कि रेयान और देशभर के तमाम स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए. छोटे-मोटे गम और दुख से हम टूट जाते हैं, उम्मीद का दामन छोड़ देते हैं, हमारी लड़ने, सोचने-समझने की ताकत खत्म हो जाती है लेकिन जिन्दगी के सबसे बड़े गम को भुलाकर यह मां देश के नौनिहालों की फिक्र कर रही है.

दिल से हर हिन्दुस्तानी इस मां के साथ है लेकिन हम ऐसा क्या कर सकते हैं कि आज के बाद जब बच्चा स्कूल जाए तो मां सुकून से घर में रह सके. उसे यह विश्वास हो कि उसका लाल सही-सलामत घर लौट आएगा.  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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