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तेज सर्जरी करने वाले डॉक्‍टर अवार्ड के हकदार या सजा के?

    • आईचौक
    • Updated: 17 दिसम्बर, 2015 02:24 PM
  • 17 दिसम्बर, 2015 02:24 PM
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एक दिन में डॉक्टर केवल 30 ऑपरेशन ही कर सकते हैं. लेकिन इस गाइडलाइन को ताक पे रखकर खंडवा के एक डॉक्टर ने एक ही दिन में नसबंदी के 196 ऑपरेशन कर डाले.

ये खबरें हम अक्सर सुनते हैं कि शिविर में डॉक्टर्स ऑपरेशन करते हैं और फिर उन मरीजों के साथ कुछ बुरा हो जाता है. अफसोस की बात है कि इतनी गंभीर खबरों को भी अब सीरियसली नहीं लिया जाता क्योंकि ये अब रोज की बात है. डॉक्टरों के टार्गेट अब मरीजों पर भारी पड़ रहे हैं. इन्हें पूरा करने के चक्कर में डॉक्टर जल्दबाजी में एक साथ ढ़ेरों ऑपरेशन कर डालते हैं जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है.

पिछले साल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी कैंप लगाया गया था जहां 13 महिलाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इस घटना के बाद डॉक्टरों को गाइडलाइन्स दी गई थीं जिसके मुताबिक एक दिन में डॉक्टर केवल 30 ऑपरेशन ही कर सकते हैं. लेकिन इन गाइडलाइन्स को ताक पे रखकर खंडवा के डॉक्टर डी सी महादिक ने एक ही दिन में नसबंदी के 196 ऑपरेशन कर डाले. उसपर उनकी ये दलील कि 'मरीजों की सेवा में 24 घंटे लगे रहने वाले डॉक्टरों की काबीलियत पर शक नहीं करना चाहिए. जरूरत पड़ी तो मैं एक दिन में 1000 ऑपरेशन भी कर सकता हूं'.

सब जानते हैं कि आजकल के डॉक्टर्स कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं खासकर सरकारी डॉक्टर्स. ये सिर्फ टार्गेट की तलवार है जिसे पूरा करना उनकी अपनी जरूरत है.

टार्गेट तो है ही एक वजह, साथ साथ रिकॉर्ड भी बनाए जाते हैं. सबसे ज्यादा ऑपरेशन का रिकॉर्ड बनेगा तो नाम भी होगा न. इसीलिए कैंप लगाये जाते हैं और फटाफट सर्जरी की जाती हैं. बिलासपुर नसबंदी कांड में शिविर में 137 ऑपरेशन किए गए थे. डॉक्टर को तो इस बात के लिए सम्मान भी मिला था कि उन्होंने अपने करियर में 50 हज़ार नसबंदी के ऑपरेशन किए. पर हड़बड़ी में गड़बड़ी होना तो तय है लिहाजा 13 महिलाओं की जान चली गई.

पिछले महीने भी मध्यप्रदेश के बड़वानी में शिविर लगाया गया जहां मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए गये. लापरवाही के चलते 40 से ज्यादा लोगों की आंखों की रौशनी धंधली और खो गई. मोदी नगर में भी लगाए गए कैंप में 9 लोग आंखों की रौशनी खो बैठे. महाराष्ट्र के...

ये खबरें हम अक्सर सुनते हैं कि शिविर में डॉक्टर्स ऑपरेशन करते हैं और फिर उन मरीजों के साथ कुछ बुरा हो जाता है. अफसोस की बात है कि इतनी गंभीर खबरों को भी अब सीरियसली नहीं लिया जाता क्योंकि ये अब रोज की बात है. डॉक्टरों के टार्गेट अब मरीजों पर भारी पड़ रहे हैं. इन्हें पूरा करने के चक्कर में डॉक्टर जल्दबाजी में एक साथ ढ़ेरों ऑपरेशन कर डालते हैं जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है.

पिछले साल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी कैंप लगाया गया था जहां 13 महिलाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इस घटना के बाद डॉक्टरों को गाइडलाइन्स दी गई थीं जिसके मुताबिक एक दिन में डॉक्टर केवल 30 ऑपरेशन ही कर सकते हैं. लेकिन इन गाइडलाइन्स को ताक पे रखकर खंडवा के डॉक्टर डी सी महादिक ने एक ही दिन में नसबंदी के 196 ऑपरेशन कर डाले. उसपर उनकी ये दलील कि 'मरीजों की सेवा में 24 घंटे लगे रहने वाले डॉक्टरों की काबीलियत पर शक नहीं करना चाहिए. जरूरत पड़ी तो मैं एक दिन में 1000 ऑपरेशन भी कर सकता हूं'.

सब जानते हैं कि आजकल के डॉक्टर्स कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं खासकर सरकारी डॉक्टर्स. ये सिर्फ टार्गेट की तलवार है जिसे पूरा करना उनकी अपनी जरूरत है.

टार्गेट तो है ही एक वजह, साथ साथ रिकॉर्ड भी बनाए जाते हैं. सबसे ज्यादा ऑपरेशन का रिकॉर्ड बनेगा तो नाम भी होगा न. इसीलिए कैंप लगाये जाते हैं और फटाफट सर्जरी की जाती हैं. बिलासपुर नसबंदी कांड में शिविर में 137 ऑपरेशन किए गए थे. डॉक्टर को तो इस बात के लिए सम्मान भी मिला था कि उन्होंने अपने करियर में 50 हज़ार नसबंदी के ऑपरेशन किए. पर हड़बड़ी में गड़बड़ी होना तो तय है लिहाजा 13 महिलाओं की जान चली गई.

पिछले महीने भी मध्यप्रदेश के बड़वानी में शिविर लगाया गया जहां मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए गये. लापरवाही के चलते 40 से ज्यादा लोगों की आंखों की रौशनी धंधली और खो गई. मोदी नगर में भी लगाए गए कैंप में 9 लोग आंखों की रौशनी खो बैठे. महाराष्ट्र के अकोला में भी मोतिया बिंद का ऑपरेशन कराने वाले 23 लोगों की रौशनी चली गई. ये कुछ मामले हैं जो ये साफ करते हैं कि डॉक्टर्स के ऊपर टार्गेट का प्रेशर इतना ज्यादा है कि वो उसे पूरा तो कर लेते हैं लेकिन जो सावधानियां ऑपरेशन के बाद बरतनी चाहए उसपर ध्यान नहीं देते, लिहाजा मरीज संक्रमण के शिकार होते हैं और जान से जाते हैं.

हमारे डॉक्टर्स इतने काबिल हैं कि एक दिन में 1000 ऑपरेशन भी कर सकते हैं, ऐसा करके शायद रिकॉर्ड बुक में उनका नाम भी आ जाए, लेकिन इन टार्गेट और रिकॉर्ड के फेर में ये डॉक्टर्स मरीजों को सिर्फ टार्गेट पूरा करने वाला सामान समझते हैं. उनका तो रिकॉर्ड भी बन जाता है और टार्गेट भी पूरा हो जाता है, लेकिन जान से जाते हैं गरीब लोग जो स्वास्थ्य शिविरों में सिर्फ इसीलिए आते हैं कि महंगे अस्पतालों की फीस नहीं भर सकते. और उनकी आंखों की रौशनी और जान की कीमत शायद टार्गेट ओरिएंटेड डॉक्टर्स के आगे कुछ नहीं है. ऐसे डॉक्टर्स रिवार्ड के नहीं बल्कि सजा के हकदार हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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