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BHU के अलावा यहां भी हैं 'तुगलक', चलता है सिर्फ उनका तुगलकी फरमान

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 27 सितम्बर, 2017 01:21 PM
  • 27 सितम्बर, 2017 01:21 PM
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परिसर में लड़कियों के साथ जुल्म केवल बीएचयू में नहीं हो रहा है. देश में कई ऐसे संस्थान हैं जिनके ज़ुल्म को हमें बिल्कुल जानना और उसपर गहनता से चिंतन करना चाहिए.

'आजादी' आइस्‍क्रीम का कोन है या फिर शायद ये स्वीट कॉर्न का कप है. मौजूदा वक्त में, लोगों का इसे मांगना किसी फैशन सरीखा है. लोगों पर थोड़ी बंदिशें लगी नहीं कि, हो गयी शुरू आजादी की मांग. प्रायः आंदोलनों के दौरान ये देखा गया है कि अपने शुरूआती दिनों में आजादी की मांग शांत होती है, किसी ठहरे हुए पानी की झील की तरह. फिर जैसे-जैसे समय बीतता है हमारे सामने इसका वीभत्स चेहरा और उग्र रूप आता है.

बीएचयू में प्रदर्शन करती लड़कियां

बीएचयू में जो हुआ और उस होने पर जो राजनीति चल रही है वो हमारे सामने हैं. लड़कियां सुरक्षा की मांग कर रही हैं, उन्हें अपने आप को सुरक्षित देखना था, उन्हें उनके जायज अधिकार चाहिए. लड़कियों की मांग पर वीसी साहब के अपने अलग तर्क हैं. कैम्पस के बच्चों के लिए वीसी साहब मास्टर से गार्जियन बन खुद को मुहम्मद बिन तुगलक समझने लग गए हैं. वीसी साहब को शक है कि लड़कों की अपेक्षा अगर लड़कियों को ज्यादा छूट दे दी गयी तो मामला कहीं गंभीर न हो जाए और भविष्य में बीएचयू कहीं 'जेएनयू' न बन जाए.

बीएचयू मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि, इसमें जहां लड़कियों को अपनी आजादी के लिए आम जनता और कुछ दीगर राजनीतिक संगठनों का संरक्षण और समर्थन मिल रहा है. तो वहीं दूसरी तरफ वीसी साहब आए रोज अपने बयानों और कार्यप्रणाली से गली-गली, शहर-शहर रुसवा होते नजर आ रहे हैं.

अपने वीसी के चलते चर्चा में आई बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी

ज्ञात हो कि, परिसर की लड़कियां अपनी सुरक्षा के प्रति फिक्रमंद हैं. वहीं ये विश्वविद्यालय के कुलपति जीसी त्रिपाठी हैं जिन्होंने...

'आजादी' आइस्‍क्रीम का कोन है या फिर शायद ये स्वीट कॉर्न का कप है. मौजूदा वक्त में, लोगों का इसे मांगना किसी फैशन सरीखा है. लोगों पर थोड़ी बंदिशें लगी नहीं कि, हो गयी शुरू आजादी की मांग. प्रायः आंदोलनों के दौरान ये देखा गया है कि अपने शुरूआती दिनों में आजादी की मांग शांत होती है, किसी ठहरे हुए पानी की झील की तरह. फिर जैसे-जैसे समय बीतता है हमारे सामने इसका वीभत्स चेहरा और उग्र रूप आता है.

बीएचयू में प्रदर्शन करती लड़कियां

बीएचयू में जो हुआ और उस होने पर जो राजनीति चल रही है वो हमारे सामने हैं. लड़कियां सुरक्षा की मांग कर रही हैं, उन्हें अपने आप को सुरक्षित देखना था, उन्हें उनके जायज अधिकार चाहिए. लड़कियों की मांग पर वीसी साहब के अपने अलग तर्क हैं. कैम्पस के बच्चों के लिए वीसी साहब मास्टर से गार्जियन बन खुद को मुहम्मद बिन तुगलक समझने लग गए हैं. वीसी साहब को शक है कि लड़कों की अपेक्षा अगर लड़कियों को ज्यादा छूट दे दी गयी तो मामला कहीं गंभीर न हो जाए और भविष्य में बीएचयू कहीं 'जेएनयू' न बन जाए.

बीएचयू मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि, इसमें जहां लड़कियों को अपनी आजादी के लिए आम जनता और कुछ दीगर राजनीतिक संगठनों का संरक्षण और समर्थन मिल रहा है. तो वहीं दूसरी तरफ वीसी साहब आए रोज अपने बयानों और कार्यप्रणाली से गली-गली, शहर-शहर रुसवा होते नजर आ रहे हैं.

अपने वीसी के चलते चर्चा में आई बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी

ज्ञात हो कि, परिसर की लड़कियां अपनी सुरक्षा के प्रति फिक्रमंद हैं. वहीं ये विश्वविद्यालय के कुलपति जीसी त्रिपाठी हैं जिन्होंने पासे को उलट कर उसे लड़कियों के पाले में फेंक दिया. इसके बाद वीसी साहब की दुर्गति तब हुई, जब उनकी तरफ से ये बयान आया कि, परिसर की लड़कियों को शाम के वक्त निकलना ही नहीं चाहिए. साथ ही हॉस्टल के लिए बनाए गए तुगलकी फरमानों के हवाले से वीसी साहब ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि हम जो भी कर रहे हैं वो छात्राओं की भलाई के लिए कर रहे हैं.

गौरतलब है कि हॉस्टल की नियमावली के अनुसार परिसर की लड़कियां न तो हॉस्टल में नॉन वेज खाना ही खा सकती हैं और न ही उन्हें छोटे और चुस्त कपड़े पहनने का अधिकार है. शायद वीसी साहब ये मान बैठे हैं कि परिसर में लड़कियां सेवार्थ आई हैं और उन्हें शिक्षार्थ होकर ही जाना है. ऐसा अकेले बीएचयू में नहीं होता है. देश में ऐसे कई अन्य संसथान हैं, जहां पर मुहम्मद बिन तुगलक बैठे हैं और आए दिन वो अपने तुगलकी फरमानों से वहां उपस्थित छात्रों या फिर छात्राओं को प्रताड़ित कर उनका जीना मुहाल करते हैं.

तो अब देर किस बात की, आइये जानें बीएचयू के अलावा और कौन से ऐसे संस्थानों के बारे में जहां के कुछ नियमों ने वहां रह रही छात्राओं के जीवन को नर्क बना दिया है.

एएमयू को भी लम्बे समय से अपनी सख्ती के लिए जाना गया हैअलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

हफिंगटन पोस्ट की एक खबर को अगर मानें तो मिलता है कि, न सिर्फ बीएचयू बल्कि प्रमुख अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान एएमयू के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं. आपको बताते चलें कि एएमयू में पढ़ रही छात्राओं के लिए शाम 6:30 के बाद परिसर में कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते हैं. शाम 6 बजे के बाद परिसर का गेट बंद कर दिया जाता है इस दौरान जो अन्दर रहता है वो अन्दर ही रहता है और जो बाहर रहता है वो बाहर ही रह जाता है.

ज्ञात हो कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रही छात्राएं सप्ताह में केवल एक दिन यानी सन्डे को परिसर के बाहर जाती हैं और इसके बाद बचे 6 दिन उन्हें फिर परिसर रुपी जेल में रहना होता है. इसके अलावा यदि परिसर की लड़कियों को बाहर निकलना हो तो उन्हें एक दिन पहले घर वालों का सिग्नेचर किया हुआ फैक्स परिसर में जामा करना होता है. विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले लड़कों के लिए ऐसे कोई नियम नहीं हैं.

फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं को हर हाल में 8 बजे आ जाना होता हैफर्ग्यूसन कॉलेज

पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ने वाली महिलाओं को हर हाल में रात 8 बजे तक परिसर में रिपोर्ट करना होता है. यहां रहने वाले पुरुष रात 10 बजे तक बाहर घूम सकते हैं. इस कॉलेज के बारे में कहा जाता है कि यहां पढ़ने वाली छात्राएं रात 10 बजे के बाद फोन पर बात नहीं कर सकती हैं.

इस कॉलेज में सबसे दिलचस्प, इसकी नियमावली है जिसमें साफ निर्देश हैं कि छात्र- छात्राएं 'डीसेंट' कपड़े पहनें और अच्छा व्यवहार करें. साथ ही यहां पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं के लिए ये अनिवार्य है कि वो विश्व विद्यालय की मेस में खाना खाएं. 

बात सख्ती की हो और हम जामिया को भूल जाएं तो बात अधूरी हैजामिया मीलिया विश्वविद्यालय

जामिया मीलिया विश्व विद्यालय में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए ये समय सीमा शाम 7:45 तक है. यदि लड़की विश्व विद्यालय के छात्रावास में रह रही है तो उसे इस समय से पहले हर हाल में परिसर में वापस लौटना होता है. जबकि विश्व विद्यालय के पुरुष छात्रों के लिए ये समय सीमा रात 10 बजे तक है. यदि कोई लड़की जामिया के गर्ल्स होस्टल में रह रही है तो उसके लिए सख्त निर्देश हैं कि वो किसी भी सूरत में अनुपस्थित न हो.

इसके अलावा आपको बता दें कि यदि किसी रिसर्च स्कॉलर को भी फील्ड वर्क के लिए बाहर निकलना है तो भी उसे अलग-अलग आवेदन देने होंगे. बताया जाता है कि एएमयू के मुकाबले यहां पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं को काफी छूट मिलती है.

मिरांडा हाउस सिर्फ अपनी सख्ती के कारण लीव बुक के नाम से लोकप्रिय हैमिरांडा हाउस

दिल्ली स्थित मिरांडा हाउस जिसे लीव बुक के नाम से जाना जाता है एक अन्य ऐसा संस्थान है जो अपनी सख्ती के लिए जाना जाता है. यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां पढ़ने वाली सीनियर लड़कियों को कहीं जाने से पहले यहां मौजूद एक लीव बुक में सिग्नेचर कराना होता है. यदि उन्होंने ऐसा कर दिया तो ये अच्छी बात है अन्यथा परिसर में उनका प्रवेश  निषेध है. इसके अलावा भी यहां ऐसे कई नियम हैं जो अपने आप में अनोखे हैं.

अन्य कॉलेजों के मुकाबले हिन्दू कॉलेज काफी लिबरल हैहिन्दू कॉलेज

नियम के हिसाब से हिन्दू कॉलेज में भी वही नियम हैं जो अन्य संस्थनों में हैं मगर अन्य कॉलेजों के मुकाबले इस संस्थान को थोड़ा लिबरल बना जाता है. यहां के प्रशासन का मानना है कि भले ही लड़कियां हॉस्टल में न हों मगर किसी भी सूरत में उन्हें कैम्पस में ही रहना है.

यहां पढ़ने वाली छात्राओं के लिए भी नियम काफी कठोर हैंएसआरसीसी

अन्य कॉलेजों की तरह यहां भी वही नियम है कि छात्राएं रात 8 बजे और छात्र 10 बजे तक वापस आ जाएं. ऐसा करने के पीछे कॉलेज की मान्यता है कि लड़कियों को सुरक्षा चाहिए होती है जबकि लड़कों के साथ ऐसा कुछ नहीं है. यहां पढ़ने वाली छात्राओं को स्टाफ के साथ अच्छा व्यवहार और 'सही कपड़े' पहनने होते हैं जबकि लड़कों के लिए इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है. आपको बता दें कि यहां पढ़ने वाली लड़कियां परिसर में जहां भी जाएंगी उस जगह के मुताबिक ड्रेस करेंगी.

माना जाता है कि आईआईएमसी-ढेंकनाल का माहौल छात्र छात्राओं दोनों के लिए बहुत अच्छा हैआईआईएमसी-ढेंकनाल

बीएचयू या किसी अन्य संस्थान के मुकाबले यहां आने जाने के जो नियम लड़कों के लिए हैं वही लड़कियों के लिए हैं. दोनों को ही रात 9:30 तक परिसर में वापस आ जाना होता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुरक्षा के लिहाज से यहां जितना ख्याल स्त्रियों का रखा जाता है उतना ही ख्याल यहां लड़कों का रखा जाता है. परिसर द्वारा छात्रों की सुरक्षा सबसे ज्यादा मायने रखती है.

कॉलेज द्वारा यहां पढ़ने वाली छात्राओं को थोड़ी सी छूट दी गयी हैलेडी श्री राम कॉलेज

भारत के सबसे अच्छे शिक्षण संस्थनों में शुमार लेडी श्री राम कॉलेज भी नियम कानून के हिसाब से काम करता है और यहां भी छात्राओं के लिए थोड़ी सी सख्ती का प्रावधान है. डेडलाइन के लिहाज से यहां पढ़ने वाली छात्रों को भी शाम 7.30 तक हॉस्टल आ जाना होता है. यदि वो चाहें तो वो रात 10 बजे तक बाहर रह सकती हैं. यहां पढ़ने वाली छात्राओं के लिए एक अच्छी बात ये है कि वो कुछ भी चाहे खाएं और पहनें यहां ऐसी कोई रोक टोक नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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