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दिल्‍ली दुष्‍कर्म की शिकार निर्भया नहीं, एक डरी हुई युवती थी

    • सुरभि सप्रू
    • Updated: 05 मई, 2017 02:26 PM
  • 05 मई, 2017 02:26 PM
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2012 के उस विभत्‍स दुष्‍कर्म कांड के साथ एक झूठ चिपका दिया गया है कि मारी गई युवती 'निर्भया' थी. हकीकत में वह एक डरी हुई लड़की थी, इस देश की लाखों-करोड़ों लड़कियों-महिलाओं की तरह.

निर्भय का अर्थ है, जो भयभीत नहीं है. ज्योति सिंह को आज हमने ‘निर्भया’ नाम दिया है. क्या ये नाम उसे इसीलिए दिया गया है कि वो उस समय भयभीत नहीं थी? किसको बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है उसे निर्भया कहकर? अगर उसका नाम निर्भया रख दिया गया है तो हम उस भय तक नहीं पहुँच पाएंगे जो भय इस देश की कईं लड़कियों के अन्दर जीता है. क्या लगता है आप सबको, क्या वो उस दिन भयभीत नहीं होगी? उसे निर्भया कहकर सच्चाई पर एक तरह से पर्दा डाला जा रहा है.

अगर ये समस्या है तो सीना ठोक कर सब कहते क्यूँ नहीं, वो उस दिन भयभीत थी. क्यूँ नहीं पूछते उसके भय का कारण? यही विडंबना है देश की, जब भी किसी के साथ कुछ गलत होता है हम उसे ‘हीरो’ या भगवान बनाते हैं पर उस मुद्दे का समाधान कोई ठीक से सोचता नहीं है. बातचीत होती रहती है. मत कहिये उसे ‘निर्भया’, भयभीत थी वो उस दिन. जिस तरह से उसके साथ घटना हुई वो घटना भगवान न करे किसी और के साथ हो. उसे किसी फिल्म किसी पब्लिसिटी की आवश्यकता नहीं है.

वो गई नहीं है. अब भी यहीं है. और सबसे पूछ रही है कि क्या लड़की का रात में निकलना इतना बड़ा अपराध है? क्या एक अनपढ़ आदमी मुझे समझाएगा मेरा जीवन? मेरा रेप करके, मुझे नग्न सड़क पर छोड़कर कब तक वो राक्षस सांस लेता रहेगा? कब तक जियेगा? आप सब बताईये क्या सही है ज्योति को निर्भया कहना? रेप 5 मिनट में हो जाता है, कुछ समय में ही एक लड़की को नग्न हालत में सड़क पर फेंक दिया जाता है और दण्ड देते समय उस पर बहस छिड़ जाती है कि सज़ा कितनी होनी चाहिए, उम्र क्या होनी चाहिए, आखिर क्यूँ दण्डित करते समय ही इतना विचार किया जाता है? क्या हमारा देश इतना लापरवाह हो गया है, इतना नासमझ हो गया है. ऊपर से अजीब अजीब टिप्णियाँ सुनने को मिलती है, उबलता है खून हम लड़कियों का ये देखकर कि हम अपने ही घर में, अपने ही देश में कितने असुरक्षित हैं, कितने भयभीत हैं.

मुजरिम कहता है ‘वो उसे सबक सिखाना चाहता था’ मैं उसे जवाब देकर कहती हूँ ‘तू है कौन?’ क्या है तेरी औकात? तू...

निर्भय का अर्थ है, जो भयभीत नहीं है. ज्योति सिंह को आज हमने ‘निर्भया’ नाम दिया है. क्या ये नाम उसे इसीलिए दिया गया है कि वो उस समय भयभीत नहीं थी? किसको बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है उसे निर्भया कहकर? अगर उसका नाम निर्भया रख दिया गया है तो हम उस भय तक नहीं पहुँच पाएंगे जो भय इस देश की कईं लड़कियों के अन्दर जीता है. क्या लगता है आप सबको, क्या वो उस दिन भयभीत नहीं होगी? उसे निर्भया कहकर सच्चाई पर एक तरह से पर्दा डाला जा रहा है.

अगर ये समस्या है तो सीना ठोक कर सब कहते क्यूँ नहीं, वो उस दिन भयभीत थी. क्यूँ नहीं पूछते उसके भय का कारण? यही विडंबना है देश की, जब भी किसी के साथ कुछ गलत होता है हम उसे ‘हीरो’ या भगवान बनाते हैं पर उस मुद्दे का समाधान कोई ठीक से सोचता नहीं है. बातचीत होती रहती है. मत कहिये उसे ‘निर्भया’, भयभीत थी वो उस दिन. जिस तरह से उसके साथ घटना हुई वो घटना भगवान न करे किसी और के साथ हो. उसे किसी फिल्म किसी पब्लिसिटी की आवश्यकता नहीं है.

वो गई नहीं है. अब भी यहीं है. और सबसे पूछ रही है कि क्या लड़की का रात में निकलना इतना बड़ा अपराध है? क्या एक अनपढ़ आदमी मुझे समझाएगा मेरा जीवन? मेरा रेप करके, मुझे नग्न सड़क पर छोड़कर कब तक वो राक्षस सांस लेता रहेगा? कब तक जियेगा? आप सब बताईये क्या सही है ज्योति को निर्भया कहना? रेप 5 मिनट में हो जाता है, कुछ समय में ही एक लड़की को नग्न हालत में सड़क पर फेंक दिया जाता है और दण्ड देते समय उस पर बहस छिड़ जाती है कि सज़ा कितनी होनी चाहिए, उम्र क्या होनी चाहिए, आखिर क्यूँ दण्डित करते समय ही इतना विचार किया जाता है? क्या हमारा देश इतना लापरवाह हो गया है, इतना नासमझ हो गया है. ऊपर से अजीब अजीब टिप्णियाँ सुनने को मिलती है, उबलता है खून हम लड़कियों का ये देखकर कि हम अपने ही घर में, अपने ही देश में कितने असुरक्षित हैं, कितने भयभीत हैं.

मुजरिम कहता है ‘वो उसे सबक सिखाना चाहता था’ मैं उसे जवाब देकर कहती हूँ ‘तू है कौन?’ क्या है तेरी औकात? तू बताएगा किस लड़की को कैसे चलना चाहिए, कैसे जीना चाहिए? मैं जानती हूँ कि अगर यहाँ मैं उन दरिंदों को गाली दूं तो मेरा ये लेख कहीं नहीं छपेगा, ये है हमारा हाल जो कितना है बेहाल क्योंकि बहुत ‘जटिल’ है न हम, बेहद पढ़े लिखे. इसीलिए तो ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. कोई मुझे ये तो बताये कि क्यूँ नही छप सकती गाली? जिस देश में कोई भी आदमी ये कहे कि वो किसी लड़की का रेप करके उसे सबक सिखाना चाहता है और वो ऐसी आसानी से कर भी देता है, उस देश का भविष्य क्या है? उस देश की सुरक्षा का स्तर क्या है?

जब झटके से गलत काम हो जाते हैं तो झटके से गलत कार्य करने वालों को दण्ड क्यूँ नहीं मिलता? क्यूँ हम एक जुवेनाइल को उसका जीवन सुधारने का मौका देते हैं? क्यूँ हम भयभीत को ‘निर्भया’ कहते हैं और मुजरिम को ‘जुवेनाइल’ क्यूँ हर समय आम आदमी ही विरोध कर याद दिलाता है कि क्या गलत है और क्या सही?

वो ‘ज्योति’ थी और ज्योत ही दिखा रही है सबको पर समस्या ये है कि वो उनसे पूछ रही है जिनके पास जवाब होकर भी जवाब देने की क्षमता नहीं. रेप करने वाले ने जब उम्र नहीं देखी, तो बाकी सब उसकी उम्र क्यूँ देख रहे हैं? कल अगर 11 वर्ष का बच्चा किसी का रेप करता है तो उसे क्या दण्ड मिलेगा? ज्योति की ज्योत आज मशाल बनकर सीने में जल रही है, कब बुझेगी क्या है किसी के पास जवाब?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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