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मेलों और मंदिरों की भेंट चढ़ती भक्तों की जान

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 13 जुलाई, 2017 04:52 PM
  • 13 जुलाई, 2017 04:52 PM
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अक्सर देखा जाता है कि जहां यात्री ज्यादा होते हैं वहां हादसा हो जाता है. चाहे वो अमरनाथ की यात्रा हो या फिर केदारनाथ की बाढ़.

कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में अमरनाथ यात्रियों पर हुए एक चरमपंथी हमले में सात लोगों की मौत हुई. हर साल अमरनाथ यात्रा में कोई न कोई हमला होता है. होना भी मुंमकिन है क्योंकि वो पाकिस्तान बॉर्डर से काफी करीब है और यात्रा के दौरान पुलिस भी अलर्ट पर रहती है. वो एरिया सबसे सेंसेटिव भी माना जाता है. लेकिन भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो काफी सुरक्षित हैं लेकिन वहां भी लोग मौत के मुंह में आ जाते हैं.

* 2005 में महाराष्ट्र के सतारा में मंधार देवी मंदिर में 3 लाख से ज्यादा लोग जुटे थे. इस दौरान एक बड़ा हादसा पेश आया, जब मंदिर के पत्थरों पर पैर फिसलने से कई लोग गिरने लगे. दरअसल, नारियल तोड़े जाने से पूरे परिसर के पत्थर गीले हो गए थे. इन्ही पत्थरों पर लोगों के फिसलने की शुरूआत एक जबरदस्त भगदड़ में तब्दील हो गई. इस हादसे में करीब 300 लोग काल के गाल में समा गए.

* हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ नयनादेवी का मंदिर में साल 2008 में श्रद्धालुओं में भगदड़ मची और करीब 150 से भी ज्यादा पुरुषों बच्चों और महिलाओं की पुण्य की अभिलाषा, दर्दनाक मौत में बदल गई.

* मेहरागढ़ के किले में मौजूद चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्र के दौरान ही यहां भक्तों की जबरदस्त भीड़ उमड़ती है. 2008 में यहां हमेशा की तरह हजारों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद थे. नवरात्र में मां की एक झलक पाने के लिए मंदिर के पट खुलते ही भक्तों में जबरदस्त धक्का मुक्की के बाद ये घटना...

कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में अमरनाथ यात्रियों पर हुए एक चरमपंथी हमले में सात लोगों की मौत हुई. हर साल अमरनाथ यात्रा में कोई न कोई हमला होता है. होना भी मुंमकिन है क्योंकि वो पाकिस्तान बॉर्डर से काफी करीब है और यात्रा के दौरान पुलिस भी अलर्ट पर रहती है. वो एरिया सबसे सेंसेटिव भी माना जाता है. लेकिन भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो काफी सुरक्षित हैं लेकिन वहां भी लोग मौत के मुंह में आ जाते हैं.

* 2005 में महाराष्ट्र के सतारा में मंधार देवी मंदिर में 3 लाख से ज्यादा लोग जुटे थे. इस दौरान एक बड़ा हादसा पेश आया, जब मंदिर के पत्थरों पर पैर फिसलने से कई लोग गिरने लगे. दरअसल, नारियल तोड़े जाने से पूरे परिसर के पत्थर गीले हो गए थे. इन्ही पत्थरों पर लोगों के फिसलने की शुरूआत एक जबरदस्त भगदड़ में तब्दील हो गई. इस हादसे में करीब 300 लोग काल के गाल में समा गए.

* हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ नयनादेवी का मंदिर में साल 2008 में श्रद्धालुओं में भगदड़ मची और करीब 150 से भी ज्यादा पुरुषों बच्चों और महिलाओं की पुण्य की अभिलाषा, दर्दनाक मौत में बदल गई.

* मेहरागढ़ के किले में मौजूद चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्र के दौरान ही यहां भक्तों की जबरदस्त भीड़ उमड़ती है. 2008 में यहां हमेशा की तरह हजारों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद थे. नवरात्र में मां की एक झलक पाने के लिए मंदिर के पट खुलते ही भक्तों में जबरदस्त धक्का मुक्की के बाद ये घटना हुई थी जिसमें 200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. कुछ लोगों ने ये भी कहा थी कि यहां विस्फोटक की अफवाह के बाद ये धक्का मुक्की हुई थी.

* 2011 में केरल के सबरीमला मंदिर में भगदड़ में 102 लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

* मध्य प्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ माता के मंदिर में साल 2013 में दर्शन करने जा रहे श्रद्धालुओं के बीच भगदड़ मच गई, उसके बाद लोग जान बचाने के लिए पास में बहती सिंध नदी में कूद गए, जिस कारण 115 लोगों की मौत हुई और 110 से भी ज्यादा लोग घायल हुए. पुल के संकरा होने और उस पर बड़ी संख्या में टैक्टरों के पहुंचने से जाम की स्थिति बन गई. जाम के कारण भीड़ बेकाबू हो गई और पुलिस ने वहां हल्का बल प्रयोग कर दिया जिससे भगदड़ मच गई. जिसके कारण लोगों की मौत हुई.

* 16 जून 2013 के दिन केदारनाथ में शाम का समय था और कुछ ही देर में मंदिर में आरती होने वाली थी. उस समय तक किसी को यह अहसास नहीं था कि यहां पर साक्षात मृत्यु की भीषण तांडव होने वाला है. लगभग साढ़े 6.50 बजे मंदिर के पीछे की तरफ से पानी आने लगा और कुछ ही सेकंड में वो एक बड़ी बाढ़ में बदल गया जिसमें बड़े-बड़े पत्थर और चट्टानें बहकर आ रही थीं. उस हादसे में 6 हजार से ज्यादा लोग मारे गए.

ये तो चंद घटनाएं हैं. मंदिरों को इस देश में आए दिन छोटे बड़े हादसे होते रहते हैं. आस्था का सैलाब जहां भी जुटता है वहां हादसों की आशंका भी गहरा जाती है. परेशानी की बात ये है कि इतने हादसों के बावजूद हम इन मंदिरों में सुरक्षा और भीड़ को मैनेज करने के ऐसे इंतजाम करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं जो सैंकड़ों लोगों की जान बचा पाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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