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दोस्ती के बीच आई 'धर्म की दीवार'

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 07 अप्रिल, 2017 05:59 PM
  • 07 अप्रिल, 2017 05:59 PM
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'हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में है भाई-भाई' इस लाइन को एक सर्वे ने चकना चूर कर दिया. विचार, कंफ़र्ट और ट्रस्ट के कंधों पर खड़ा ये ख़ूबसूरत रिश्ता शायद धर्म की भेंट चढ़ गया है.

दोस्ती एक ऐसी चीज है जिसमें धर्म को नहीं देखा जाता. दोस्त बनाने से पहले ये नहीं देखा जाता कि सामने वाला व्यक्ति किस धर्म का है. एक लाइन है जो भारत में काफी फेमस है, 'हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में है भाई-भाई' इस लाइन को एक सर्वे ने चकना चूर कर दिया.

जी हां, आपको भी जानकर हैरानी होगी कि विचार, कंफ़र्ट और ट्रस्ट के कंधों पर खड़ा ये ख़ूबसूरत रिश्ता शायद धर्म की भेंट चढ़ गया है. अब लोग दोस्त बनाने से पहले उनका धर्म देखते हैं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डिवेलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) ने एक सर्वे में ये पाया कि अलग-अलग समुदायों के लोग दोस्ती के रिश्ते बनाते समय धार्मिक हित को ज्यादा तरजीह देते हैं.

हिंदू दोस्त बनाने से पहले देखते हैं धर्म

सर्वे के मुताबिक, 91 फ़ीसदी हिंदुओं के नज़दीकी दोस्त उनके अपने समुदाय से होते हैं. लेकिन, इनमें 33 परसेंट करीबी मुस्लिम दोस्त भी हैं. वहीं सर्वे की मुताबिक मुस्लिम 74 फ़ीसदी मुस्लिमों का हिंदुओं से भी नज़दीकी रिश्ता है, जबकि 95 फ़ीसदी के बेस्ट फ्रेंड समान समुदाय से ही हैं.

यानी दोस्ती में धर्म की दीवार आकर खड़ी हो गई है. दोस्ती से पहले देखा जा रहा है कि वो भरोसेमंद है या नहीं. CSDS ने पाया कि हिंदुओं और मुसलमानों में अधिकतर ने अपने ही समुदाय से नज़दीकी दोस्त बनाए. गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक और ओडिशा में मुस्लिम समुदाय अलग रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

देशभक्ति पर भी सवाल

हिंदू सिर्फ महज 13 फ़ीसदी मुस्लिम को ही देशभक्त मानते हैं. ईसाइयों को 20 परसेंट, 47 फीसदी सिखों को देशभक्त मानते हैं. वहीं मुस्लिम की मानें तो वो 77 फीसदी खुद को देशभक्त...

दोस्ती एक ऐसी चीज है जिसमें धर्म को नहीं देखा जाता. दोस्त बनाने से पहले ये नहीं देखा जाता कि सामने वाला व्यक्ति किस धर्म का है. एक लाइन है जो भारत में काफी फेमस है, 'हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में है भाई-भाई' इस लाइन को एक सर्वे ने चकना चूर कर दिया.

जी हां, आपको भी जानकर हैरानी होगी कि विचार, कंफ़र्ट और ट्रस्ट के कंधों पर खड़ा ये ख़ूबसूरत रिश्ता शायद धर्म की भेंट चढ़ गया है. अब लोग दोस्त बनाने से पहले उनका धर्म देखते हैं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डिवेलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) ने एक सर्वे में ये पाया कि अलग-अलग समुदायों के लोग दोस्ती के रिश्ते बनाते समय धार्मिक हित को ज्यादा तरजीह देते हैं.

हिंदू दोस्त बनाने से पहले देखते हैं धर्म

सर्वे के मुताबिक, 91 फ़ीसदी हिंदुओं के नज़दीकी दोस्त उनके अपने समुदाय से होते हैं. लेकिन, इनमें 33 परसेंट करीबी मुस्लिम दोस्त भी हैं. वहीं सर्वे की मुताबिक मुस्लिम 74 फ़ीसदी मुस्लिमों का हिंदुओं से भी नज़दीकी रिश्ता है, जबकि 95 फ़ीसदी के बेस्ट फ्रेंड समान समुदाय से ही हैं.

यानी दोस्ती में धर्म की दीवार आकर खड़ी हो गई है. दोस्ती से पहले देखा जा रहा है कि वो भरोसेमंद है या नहीं. CSDS ने पाया कि हिंदुओं और मुसलमानों में अधिकतर ने अपने ही समुदाय से नज़दीकी दोस्त बनाए. गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक और ओडिशा में मुस्लिम समुदाय अलग रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

देशभक्ति पर भी सवाल

हिंदू सिर्फ महज 13 फ़ीसदी मुस्लिम को ही देशभक्त मानते हैं. ईसाइयों को 20 परसेंट, 47 फीसदी सिखों को देशभक्त मानते हैं. वहीं मुस्लिम की मानें तो वो 77 फीसदी खुद को देशभक्त मानते हैं. वहीं 26 फीसदी ईसाई ऐसे हैं, जो मुस्लिमों में देशभक्ति की भावना देखते हैं और 66 फीसदी सिख, हिंदुओं को देशभक्ति की नजर से देखते हैं.

गाय का सम्मान, भारत माता की जय बोलना, बीफ खाने, राष्ट्रीय गान के वक्त खड़े होने जैसे कुछ सवाल पूछने पर लोगों ने अलग-अलग तरह से जवाब दिए. 72 फीसदी लोग इसके पूरे समर्थन में हैं. 17 फीसदी लोग आजाद सोच के नजर आए वहीं 6 फ़ीसदी पूरी तरह से इन मुद्दों के खिलाफ़ थे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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