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हर फिल्‍म देखने आते हैं ये 5 लोग !

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 25 सितम्बर, 2017 06:54 PM
  • 25 सितम्बर, 2017 06:54 PM
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एक आम हिंदुस्तानी की तरह हॉलीवुड फिल्में देखते समय मुझे भी थोड़ा ज्यादा ध्यान लगाना पड़ता है. सिनेमा हॉल में अगर ऐसी कोई फिल्म देखी जा रही है तो कई ऐसे कैरेक्टर होते हैं जो परेशान कर देते हैं जैसे...

भारत में बॉलीवुड की फैन फॉलोविंग क्या है वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है. हर शुक्रवार एक नई फिल्म और एक नई कहानी. जिन लोगों को फिल्में देखने का शौक होता है उन्हें इस बारे में तो पूरी जानकारी होगी कि सिनेमा हॉल में किस-किस तरह के लोग मिलते हैं! कम से कम मैं तो ये मानकर चलती हूं. मैं उन लोगों में से हूं जो हर हफ्ते कोई नई फिल्म थिएटर में देखते हैं. बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड फिल्मों के भी शौकीन होते हैं. हाल ही में रिलीज हुई दो हॉरर फिल्में It (इट) और एनाबेल भी सिनेमा हॉल में ही जाकर देखीं.

एक आम हिंदुस्तानी की तरह हॉलीवुड फिल्में देखते समय मुझे भी थोड़ा ज्यादा ध्यान लगाना पड़ता है. सिनेमा हॉल में अगर ऐसी कोई फिल्म देखी जा रही है तो कई ऐसे कैरेक्टर होते हैं जो परेशान कर देते हैं जैसे...

1. चुगलखोर चाची..

ये किस्सा एनाबेल के समय का है. हॉल कचाकच भरा हुआ था और बगल में कुछ लड़कियों का ग्रुप बैठा हुआ था. हॉरर फिल्म देखते समय कोई आखिर कैसे गॉसिप कर सकता है. लेकिन नहीं बगल में पूरे समय कचर-कचर चलती रही. आखिर इंटरवल के ठीक पहले बोल ही दिया कि थोड़ी शांती रखिए. पर एनाबेल में भूत से ज्यादा मुझे वो लड़कियां परेशान कर रही थीं. भारतीय ये भूल जाते हैं कि वो फिल्म देखने गए हैं न की बात करने.

2. हनीमून कपल...

फिल्म देखते समय अक्सर मुझे सेंटर सीट लेनी होती है क्योंकि पूरी स्क्रीन बेहतर दिखती है और कपल्स के लिए साइड सीट भी तो छोड़नी होती है. ऐसे समय में अगर कोई कपल आपकी सीट के आस-पास बैठ जाए तो यकीन मानिए फिल्म देखना दूभर हो जाता है. अलग ही फिल्म बगल वाली सीट पर चल रही होती है.

भारत में बॉलीवुड की फैन फॉलोविंग क्या है वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है. हर शुक्रवार एक नई फिल्म और एक नई कहानी. जिन लोगों को फिल्में देखने का शौक होता है उन्हें इस बारे में तो पूरी जानकारी होगी कि सिनेमा हॉल में किस-किस तरह के लोग मिलते हैं! कम से कम मैं तो ये मानकर चलती हूं. मैं उन लोगों में से हूं जो हर हफ्ते कोई नई फिल्म थिएटर में देखते हैं. बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड फिल्मों के भी शौकीन होते हैं. हाल ही में रिलीज हुई दो हॉरर फिल्में It (इट) और एनाबेल भी सिनेमा हॉल में ही जाकर देखीं.

एक आम हिंदुस्तानी की तरह हॉलीवुड फिल्में देखते समय मुझे भी थोड़ा ज्यादा ध्यान लगाना पड़ता है. सिनेमा हॉल में अगर ऐसी कोई फिल्म देखी जा रही है तो कई ऐसे कैरेक्टर होते हैं जो परेशान कर देते हैं जैसे...

1. चुगलखोर चाची..

ये किस्सा एनाबेल के समय का है. हॉल कचाकच भरा हुआ था और बगल में कुछ लड़कियों का ग्रुप बैठा हुआ था. हॉरर फिल्म देखते समय कोई आखिर कैसे गॉसिप कर सकता है. लेकिन नहीं बगल में पूरे समय कचर-कचर चलती रही. आखिर इंटरवल के ठीक पहले बोल ही दिया कि थोड़ी शांती रखिए. पर एनाबेल में भूत से ज्यादा मुझे वो लड़कियां परेशान कर रही थीं. भारतीय ये भूल जाते हैं कि वो फिल्म देखने गए हैं न की बात करने.

2. हनीमून कपल...

फिल्म देखते समय अक्सर मुझे सेंटर सीट लेनी होती है क्योंकि पूरी स्क्रीन बेहतर दिखती है और कपल्स के लिए साइड सीट भी तो छोड़नी होती है. ऐसे समय में अगर कोई कपल आपकी सीट के आस-पास बैठ जाए तो यकीन मानिए फिल्म देखना दूभर हो जाता है. अलग ही फिल्म बगल वाली सीट पर चल रही होती है.

3. उफ्फ बच्चे...

जरा सोचिए इट (IT) जैसी हॉरर फिल्म आप देखने गए हों और सस्पेंस वाले सीन में पीछे कोई बच्चा रो रहा हो. भारत में बच्चों को सिनेमा हॉल साथ लेकर आने की प्रथा है. ऐसे में फिल्म का मजा किरकिरा करने में बच्चों का योगदान काफी बड़ा रहता है.

4. लंबे पैरों वाला राक्षस...

हर सिनेमा हॉल में ऐसा कोई न कोई किरदार जरूर मिल जाएगा जिसे अपनी सीट के साथ-साथ बैठने के लिए सामने और पीछे वाले की सीट की जरूरत होती है. पैर फालाने, हाथ फैलाने, जमहाई लेने में तो ये एक्सपर्ट होते हैं. थिएटर की सीट को घर का सोफा बनाने में देर नहीं लगती इन्हें.

5. मेरे पास फोन है...

उफ्फ... एक तो सिनेमा हॉल में फोन को लाउड पर रखेंगे. फिर फोन आने पर बात भी करेंगे और ये पूरे थिएटर को बता देंगे कि बॉस उनका कॉल इतना जरूरी है कि वो बाकी लोगों को डिस्टर्ब कर सकते हैं लेकिन फोन नहीं काट सकते. फिर उन्हें बाहर भी जाना होगा तो फोन का टॉर्च लाइट जलाकर बाहर जाएंगे, फिर उसी तरह वापस आएंगे और बाकी दर्शकों को परेशान करेंगे.

इनके अलावा भी इंडियन सिनेमा हॉल में कई तरह के किरदार मिल जाते हैं. कई बार तो एक्सपीरियंस ऐसा होता है कि हॉल जाने का मन ही नहीं करता. फिर भी फिल्म तो देखनी है और नए-नए अनुभव भी मिलते ही रहेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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