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इतना हंगामा क्‍यों ? रेलवे के खाने का एक सनातन सच ही तो उगला है कैग ने...

    • नीरज जोशी
    • Updated: 21 जुलाई, 2017 09:33 PM
  • 21 जुलाई, 2017 09:33 PM
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर संसद में जो रिपोर्ट पेश की है. इसमें बताया है कि रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है.

जब भी रेल बजट संसद में पढ़ा जाता है और हम रेल मंत्री जी को रेल बजट पढ़ते हुए देखते हैं, तो लगता है कि बढ़ता भारत और बदलती रेल व्यवस्था है, लेकिन जब आप रेल में सफर करते हैं, तो लगता है कि सब बातें हवा हवाई हैं.

बदलाव कुछ आया नहीं, वही गंदगी, वही खाना, वही रेल लाइनों के हालत तो सवाल उठता है कि बदलाव क्या? बदलाव सिर्फ इतना की सरकार ने रेल बजट को खत्म करके उसे भी वित्त बजट में शामिल कर दिया है. अब मंत्री जी अलग से रेल बजट नहीं पढ़गे, ना ही हम रेल बजट पढ़ते रेल मंत्री जी को सुन पायेंगे. बस इतना ही बदलाव. अब जरा इस रिर्पोट को देखिए...

खुले कूड़ेदानों के बीच और गंदे पानी से बनता है ट्रेन में मिलने वाला खाना - CAG रिपोर्ट में खुलासा

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर संसद में जो रिपोर्ट पेश की है उसके बारे में जानकर आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है. 21 जुलाई को सीएजी ने यह रिपोर्ट संसद में पेश की. रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाना और डब्बा बंद व बोतलबंद सामान का इस्तेमाल एक्सपाइरी डेट के बाद भी किया जाता है. सीएजी के मुताबिक खाना बनाने में साफ-सफाई पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता.

74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के निरीक्षण के बाद सीएजी ने पाया कि खाना तैयार करने के दौरान सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता. खाना या फिर ड्रिंक्स तैयार करने के लिए सीधे नल से अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है. निरीक्षण के दौरान...

जब भी रेल बजट संसद में पढ़ा जाता है और हम रेल मंत्री जी को रेल बजट पढ़ते हुए देखते हैं, तो लगता है कि बढ़ता भारत और बदलती रेल व्यवस्था है, लेकिन जब आप रेल में सफर करते हैं, तो लगता है कि सब बातें हवा हवाई हैं.

बदलाव कुछ आया नहीं, वही गंदगी, वही खाना, वही रेल लाइनों के हालत तो सवाल उठता है कि बदलाव क्या? बदलाव सिर्फ इतना की सरकार ने रेल बजट को खत्म करके उसे भी वित्त बजट में शामिल कर दिया है. अब मंत्री जी अलग से रेल बजट नहीं पढ़गे, ना ही हम रेल बजट पढ़ते रेल मंत्री जी को सुन पायेंगे. बस इतना ही बदलाव. अब जरा इस रिर्पोट को देखिए...

खुले कूड़ेदानों के बीच और गंदे पानी से बनता है ट्रेन में मिलने वाला खाना - CAG रिपोर्ट में खुलासा

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर संसद में जो रिपोर्ट पेश की है उसके बारे में जानकर आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है. 21 जुलाई को सीएजी ने यह रिपोर्ट संसद में पेश की. रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाना और डब्बा बंद व बोतलबंद सामान का इस्तेमाल एक्सपाइरी डेट के बाद भी किया जाता है. सीएजी के मुताबिक खाना बनाने में साफ-सफाई पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता.

74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के निरीक्षण के बाद सीएजी ने पाया कि खाना तैयार करने के दौरान सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता. खाना या फिर ड्रिंक्स तैयार करने के लिए सीधे नल से अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है. निरीक्षण के दौरान कूड़ेदानों के ढक्कन गायब पाए गए और यह भी पता चला कि उनकी धुलाई का काम भी नियमित रूप से नहीं किया जाता. मक्खियां-कीड़ों से खाद्य पदार्थों के बचाव के लिए कोई कवर इस्तेमाल नहीं किया जाता. वहीं कुछ ट्रेनों में कॉकरोच और चूहे भी मिले. सीएजी ने ऑडिट में पाया है कि रेलवे की फूड पॉलिसी में लगातार बदलाव होने से यात्रियों को बहुत ज्यादा परेशानियां होती हैं.

भारत में रेल एक जीवन रेखा की तरह है. दो करोड़ से ज्‍यादा लोग किसी भी दिन रेल पर सफर कर रहे होते हैं. बावजूद इसके ट्रेनों में खान-पान को लेकर जो लापरवाही बरती जाती है, वह बेहद अहम किंतु आम तथ्‍य है. जिसे शायद हर यात्री और रेलवे के हुक्‍मरान जानते हैं. यात्रियों के पास विकल्‍प नहीं है, और रेलवे हुक्‍मरानों के पास भ्रष्‍टाचार युक्‍त व्‍यवस्‍था में पैसा कमाने का आसान जरिया. ऐसे में कैग की ये रिपोर्ट कोई आमूलचूल परिवर्तन ला देगी, ऐसी उम्‍मीद करना वैसा ही है जैसे कभी सभी ट्रेनों के राइट टाइम पर चलने के बारे में सोचना.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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