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वाइस चांसलर कोई संविधान नहीं है

    • आशुतोष सिंह
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2016 04:13 PM
  • 05 अक्टूबर, 2016 04:13 PM
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बीएचयू कैंपस प्रशासन निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है, जहां के सर्वेसर्वा वाइस चांसलर अपने नियम कानून बनाए जा रहे हैं. उनकी नाक तले बेरहमी से छात्र हित का दमन हो रहा है.

देश भर में विश्वविद्यालय परिसरों से छात्रों के ऊपर निर्मम दमन की चीखें बस अखबारों के किसी कोने में टिक जा रही हैं, ना तो विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ सुनता है ना ही सरकार. एक आम छात्र जो अपने हित के लिए आवाज लगाता है उसे गिरफ्तारी, लाठीचार्ज, निलंबन उपहार में दिया जाता है. यही कहानी जेएनयू, एएमयू, बीएचयी की भी है.

यहां तो हालात उससे भी भयावह और डरावने हैं. लाइब्रेरी की मांग इसलिए दबा दी जाती है क्योंकि यहां के वाइस चांसलर का कहना है की हमारे जमाने में लाइब्रेरी ही नहीं थी और रात में लाइब्रेरी की जरुरत क्या है? अब उनके जमाने में फोन और कंप्यूटर भी नहीं थे और वैसे भी लाइब्रेरी को कब, कैसे उपयोग में लाना है ये छात्र जानते हैं, इसकी समय सारणी थोपी नहीं जा सकती. आगे बढ़ते हैं तो लड़कियों पर इसलिए तरह-तरह के नियम कानून लगाये जाते हैं क्योंकी उन्हें लगता है कि कैंपस में असुरक्षा का माहौल है, उनकी आजादी से कैंपस में अस्थिरता आ जायेगी?

 कैंपस में गुंडागर्दी और अपराधिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रहे हैं

अब आप ही बताएं क्या ये कैंपस प्रशासन सिर्फ लाठीचार्ज, गिरफ्तारी करवाने के लिए है? लड़कियों के लिए ये क्यों हाथ खड़े कर रहे हैं. वीसी कहते हैं ये सब उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश है. अब आप सोचिये क्या वो नेता हैं जो उनके खिलाफ साजिश होगी. छात्र तो बेरहमी से कुचला जा रहा है और वो आराम से अपने बचे दिन गिन रहे हैं. सच हमेशा आंखों के सामने आ ही जाता है चाहे कितनी भी लीपापोती की जाए. संविदा कर्मचारी की भूख हड़ताल अब इच्छामृत्यु की बात तक आ चुकी है, पर कोई देखने तक नहीं जाता है, भर्ती में धांधली, भगवाकरण, तानाशाही रवैया ये सब आंख के सामने है. ये धीरे धीरे वीसी के कार्यकाल को शोभामान करते जा रहे. कोई पिस रहा है तो वो है एक आम छात्र. परिसर की हर जगह से अब आवाजें आ रही हैं, अब कोई चुप नहीं बैठना चाहता और ये आवाजें एक आंदोलन की ओर बढ़ रही हैं. 

देश भर में विश्वविद्यालय परिसरों से छात्रों के ऊपर निर्मम दमन की चीखें बस अखबारों के किसी कोने में टिक जा रही हैं, ना तो विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ सुनता है ना ही सरकार. एक आम छात्र जो अपने हित के लिए आवाज लगाता है उसे गिरफ्तारी, लाठीचार्ज, निलंबन उपहार में दिया जाता है. यही कहानी जेएनयू, एएमयू, बीएचयी की भी है.

यहां तो हालात उससे भी भयावह और डरावने हैं. लाइब्रेरी की मांग इसलिए दबा दी जाती है क्योंकि यहां के वाइस चांसलर का कहना है की हमारे जमाने में लाइब्रेरी ही नहीं थी और रात में लाइब्रेरी की जरुरत क्या है? अब उनके जमाने में फोन और कंप्यूटर भी नहीं थे और वैसे भी लाइब्रेरी को कब, कैसे उपयोग में लाना है ये छात्र जानते हैं, इसकी समय सारणी थोपी नहीं जा सकती. आगे बढ़ते हैं तो लड़कियों पर इसलिए तरह-तरह के नियम कानून लगाये जाते हैं क्योंकी उन्हें लगता है कि कैंपस में असुरक्षा का माहौल है, उनकी आजादी से कैंपस में अस्थिरता आ जायेगी?

 कैंपस में गुंडागर्दी और अपराधिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रहे हैं

अब आप ही बताएं क्या ये कैंपस प्रशासन सिर्फ लाठीचार्ज, गिरफ्तारी करवाने के लिए है? लड़कियों के लिए ये क्यों हाथ खड़े कर रहे हैं. वीसी कहते हैं ये सब उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश है. अब आप सोचिये क्या वो नेता हैं जो उनके खिलाफ साजिश होगी. छात्र तो बेरहमी से कुचला जा रहा है और वो आराम से अपने बचे दिन गिन रहे हैं. सच हमेशा आंखों के सामने आ ही जाता है चाहे कितनी भी लीपापोती की जाए. संविदा कर्मचारी की भूख हड़ताल अब इच्छामृत्यु की बात तक आ चुकी है, पर कोई देखने तक नहीं जाता है, भर्ती में धांधली, भगवाकरण, तानाशाही रवैया ये सब आंख के सामने है. ये धीरे धीरे वीसी के कार्यकाल को शोभामान करते जा रहे. कोई पिस रहा है तो वो है एक आम छात्र. परिसर की हर जगह से अब आवाजें आ रही हैं, अब कोई चुप नहीं बैठना चाहता और ये आवाजें एक आंदोलन की ओर बढ़ रही हैं. 

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हाल के दिनों में कैंपस में गुंडागर्दी, छिनैती और अपराधिक गतिविधियां तेजी से बढ़े हैं पर प्रशासन चुपचाप सुन रहा है. बहुत होने पर अपने ही छात्रों को हॉस्टल से बाहर निकाल पुलिसिया जांच के आदेश दे दिए जाते हैं. अभी छात्रों के निलंबन के मामले में अलाहाबाद हाइकोर्ट के पैनल ने कहा- ये छात्र है, आतंकवादी नहीं है. इसके लिए बीएचयू प्रशाशन को फटकार भी लगाई और उन्हें निर्दोष करार दिया. 

यहां आज कैंपस प्रशासन निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है जहां सर्वेसर्वा एक वाइस चांसलर है जो अपने नियम कानून बनाये जा रहा है. उसकी नाक तले बेरहमी से छात्र हित का दमन हो रहा है पर वो अब तक इसका हल ढूंढ नहीं पाये हैं. छात्रों को अपने कैंपस में ही न्याय नहीं मिलेगा तो वो कहां भटकेगा. कैंपस उसकी आत्मा है ये प्रेरणा है जो हर छात्र को एक आदर्श नागरिक बनने के पथ पर अग्रसर करती है पर यहां विश्वविद्यालय में इसी आत्मा को कुचल देने की कोशिश चल रही है.

छात्र भले ही किसी विचारधारा से जुड़े हों पर छात्रहित हमेशा एक जैसे होते हैं जो हर छात्र के कल्याण से पूर्ण होते है. कैंपस में आजकल जो दमन का वक्त चल रहा है ये बेहद शर्मनाक है. अभिव्यक्ति की आजादी, लैंगिक समानता और सामजिक समानता के साथ एक लोकतांत्रिक माहौल में ही छात्र एक बेहतर भारत निर्माण की ओर बढ़ पाएंगे. अगर कोई इस निर्माण में बाधक बनेगा तो हम जवाब मांगेंगे, हम विरोध करेंगे, प्रदर्शन करेंगे, हम लड़ेंगे, रूढ़िवादी विचारधारा के खिलाफ, अव्यवस्था के खिलाफ, छात्र हित के दमन के खिलाफ हम ऐसा करेंगे क्योंकि ये हमारा हक़ है, अधिकार है, संविधान हमें इसकी इजाजत देता है और अगर मैं सही हूं तो वाइस चांसलर देश के संविधान नहीं हैं.

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झूठ को सच नहीं माना जा सकता, पर सच यही है कि दमन हो रहा है. आम छात्र पर लाठियां टूट रही हैं, वो महीनों से जेल में सढ़ रहे हैं, निलंबन हो रहा, पूरा बीएचयू कैंपस त्रस्त है पर अपने वीसी साहब मस्त हैं. यही सच है. इसके अलावा जो कुछ है वो विचारधारा की लड़ाई है, पर लाइब्रेरी, लड़कियों पर कायदे कानून थोपना, भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, इनका विरोध  किसी विचारधारा से जुड़े मुद्दे नहीं हैं. ये हर छात्र की आवाज है जिसे हर रोज दबा दिया जा रहा है. पर विरोध जारी रहेगा जब तक कैंपस में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं स्थापित हो जाती. अगर आप अब तक हाथ पे हाथ रखे बैठे हैं तो आप अपनी आत्मा के साथ विश्वासघात कर रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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