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क्लाइमेट चेंज का असर देखना है तो इस पड़ोसी देश का रुख कीजिए

    • विनीत कुमार
    • Updated: 23 अप्रिल, 2016 01:49 PM
  • 23 अप्रिल, 2016 01:49 PM
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क्लाइमेंट चेंज पर माथापच्ची पूरी दुनिया में हो रही है. नतीजा क्या होगा, यह देखना बाकी है. लेकिन हमारा एक पड़ोसी देश है जहां क्लाइमेंट चेंज का असर साफ-साफ दिखने लगा है. यह भयावह है और हैरान करने वाली भी.

क्लाइमेंट चेंज पर माथापच्ची पूरी दुनिया में हो रही है. इस मसले पर हो रही तमाम बहसें और बैठक कितनी सार्थक होगी, ये देखना बाकी है. लेकिन वैश्विक राजनीति यहां भी हावी रही तो जाहिर है कुछ देशों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा. इनमें एक बांग्लादेश भी है. हमारा पड़ोसी, जहां क्लाइमेंट चेंज का असर साफ-साफ दिखने लगा है. बांग्लादेश को लेकर जो तस्वीर सामने आ रही है वह भयावह है और हैरान करने वाली भी.

बांग्लादेश की तस्वीर क्यों डराने वाली

दरअसल, बांग्लादेश में जो हो रहा है वह हाहाकार जैसी स्थिति तो पैदा नहीं कर रहा लेकिन धीरे-धीरे वहां के जमीन का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा चुका और यह लगातार जारी है. एक आंकड़े के अनुसार हर रोज करीब 2000 लोग बांग्लादेश के शहर ढाका में बसने आ जाते हैं. पहले तो वहां की सरकार को यही लगा कि ये आम पलायन है और रोजगार तथा बेहतर जिंदगी की तलाश में लोग शहर की ओर भाग रहे हैं. जैसा हमारे यहां भी होता है. लेकिन अब जाकर यह खुलासा हो रहा है कि बात दरअसल कुछ और है.

बांग्लादेश दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक है. यहां का करीब 80 प्रतिशत इलाका ऐसा है जहां बाढ़ आसानी से आ सकती है. ऐसे में साइक्लोन, समुंद्र तल में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के कारण तटीय क्षेत्रों पर बसे इलाकों का जीवन पिछले कुछ वर्षों में बुरी तरह प्रभावित हुआ है. खासकर बांग्लादेश का दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी हिस्सा लगातार चक्रवात और दूसरे प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. इसका सबसे खराब असर खेती पर पड़ा है. इस कारण वहां बसने वाले लोग पलायन को मजबूर हैं. वर्ल्ड बैंक के अनुसार हर साल करीब 400,000 लोग ढाका में प्रवेश कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगर अगले 50 वर्षों में समुद्रतल में तीन फीट की बढ़ोत्तरी होती है तो बांग्लादेश का एक चौथाई तटीय इलाका पानी में समा जाएगा. नतीजा ये कि तब तीन करोड़ बांग्लादेश अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे.

क्लाइमेंट चेंज पर माथापच्ची पूरी दुनिया में हो रही है. इस मसले पर हो रही तमाम बहसें और बैठक कितनी सार्थक होगी, ये देखना बाकी है. लेकिन वैश्विक राजनीति यहां भी हावी रही तो जाहिर है कुछ देशों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा. इनमें एक बांग्लादेश भी है. हमारा पड़ोसी, जहां क्लाइमेंट चेंज का असर साफ-साफ दिखने लगा है. बांग्लादेश को लेकर जो तस्वीर सामने आ रही है वह भयावह है और हैरान करने वाली भी.

बांग्लादेश की तस्वीर क्यों डराने वाली

दरअसल, बांग्लादेश में जो हो रहा है वह हाहाकार जैसी स्थिति तो पैदा नहीं कर रहा लेकिन धीरे-धीरे वहां के जमीन का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा चुका और यह लगातार जारी है. एक आंकड़े के अनुसार हर रोज करीब 2000 लोग बांग्लादेश के शहर ढाका में बसने आ जाते हैं. पहले तो वहां की सरकार को यही लगा कि ये आम पलायन है और रोजगार तथा बेहतर जिंदगी की तलाश में लोग शहर की ओर भाग रहे हैं. जैसा हमारे यहां भी होता है. लेकिन अब जाकर यह खुलासा हो रहा है कि बात दरअसल कुछ और है.

बांग्लादेश दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक है. यहां का करीब 80 प्रतिशत इलाका ऐसा है जहां बाढ़ आसानी से आ सकती है. ऐसे में साइक्लोन, समुंद्र तल में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के कारण तटीय क्षेत्रों पर बसे इलाकों का जीवन पिछले कुछ वर्षों में बुरी तरह प्रभावित हुआ है. खासकर बांग्लादेश का दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी हिस्सा लगातार चक्रवात और दूसरे प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. इसका सबसे खराब असर खेती पर पड़ा है. इस कारण वहां बसने वाले लोग पलायन को मजबूर हैं. वर्ल्ड बैंक के अनुसार हर साल करीब 400,000 लोग ढाका में प्रवेश कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगर अगले 50 वर्षों में समुद्रतल में तीन फीट की बढ़ोत्तरी होती है तो बांग्लादेश का एक चौथाई तटीय इलाका पानी में समा जाएगा. नतीजा ये कि तब तीन करोड़ बांग्लादेश अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे.

 एक चौथाई बांग्लादेश की ऊंचाई समुंद्र से सात फीट से भी कम है जिसके डूबने का खतरा हर पल बना रहता है.

चेन्नई की बाढ़ से भयानक बांग्लादेश की स्थिति

हमारे यहां दिल्ली में प्रदूषण और देश के दूसरे हिस्सों में बेतरतीब शहरीकरण के नुकसान पर खूब चर्चा हो रही है. चेन्नई का उदाहरण सबके सामने है. हम अगले कुछ दिनों में चेन्नई को उसके पुराने दिनों में लौटाकर बेफिक्र हो जाएंगे. क्योंकि आपदाओं से निपटने को लेकर हमारा फोकस बचाव और राहत कार्यों पर जाकर ठहर गया है. लेकिन बांग्लादेश में जो हो रहा है वह क्लाइमेंट चेंज की दूसरी तस्वीर पेश कर रहा है. क्योंकि तबाही वहां भी हो रही है लेकिन ऐसी जिसका शोर अभी तो सुनाई दे रहा लेकिन जिस दिन देगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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