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बुर्का और बुरकिनी नहीं, पानी में जाना है तो बिकनी पहनो

    • आईचौक
    • Updated: 19 अगस्त, 2016 11:27 PM
  • 19 अगस्त, 2016 11:27 PM
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फ्रांस पर ये आरोप लगता रहा है कि अपने यहां धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के नाम ये देश सख्ती की हद तक जाने से भी नहीं कतराता. फिर वो चाहे वो चाहे बुरके से लेकर पगड़ी पहनने तक पर रोक हो या फिर हाल में बुरकिनी पर शुरू हुआ विवाद...

पिछले साल जनवरी में फ्रांस में चार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए हमले से लेकर अब तक की कहानी पर गौर कीजिए, तो यही बात सामने आएगी कि मौजूदा दौर में फ्रांस सबसे ज्यादा आतंकियों के निशाने पर है. इसके अपने दूसरे कारण जो भी हों लेकिन फ्रांस पर ये आरोप भी लगता रहा है कि अपने यहां धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के नाम ये देश सख्ती की हद तक जाने से भी नहीं कतराता. फिर वो चाहे वो चाहे बुरके से लेकर पगड़ी पहनने तक पर रोक हो या फिर हाल में बुरकिनी पर शुरू हुआ विवाद.

फ्रांस में सार्वजनकि जगहों पर किसी भी धर्म से जुड़ी चीज को पहनने पर रोक है. मतलब, आप अपनी धार्मिक पहचान को जाहिर नहीं कर सकते. कानून इतने सख्त हैं कि इसे लेकर कई बार फ्रांस की आलोचना होती है. बुरकिनी पर शुरू हुआ विवाद इसी कहानी का अगला हिस्सा है. पिछले कुछ दिनों में फ्रांस और पश्चिमी मीडिया में इसे लेकर काफी बातें हो रही हैं. आईए, जानते क्या है बुरकिनी और क्या है पूरा विवाद

फ्रांस में बुरकिनी पहनने पर बैन!

पिछले हफ्ते फ्रांस के शहर कांस में पुलिस ने 10 मुस्लिम महिलाओं को पकड़ा था. इनका कसूर इतना भर था कि एक बीच (समुंद्री किनारा) पर ये बुरकिनी (Burkini) पहन कर आईं थीं. छह महिलाएं तो चेतावनी मिलने के बाद बीच छोड़ कर लौट गईं. लेकिन चार पर 38 यूरो (43 डॉलर) का जुर्माना लगाया गया. बुरकिनी पर 28 जुलाई, 2016 को कांस के मेयर ने बैन लगा दिया था.

यह भी पढ़ें- आतंकियों के निशाने पर क्यों रहता है फ्रांस...

दरअसल, बुरकिनी एक तरह का स्विमसूट है. बिकनी से बेहद अलग और बुर्के से काफी मिलता-जुलता. इसे 2004 में लेबनन मूल की एक ऑस्ट्रेलियाई महिला अहिदा जानेटी ने तब डिजाइन किया जब उसने अपनी भतीजी को हिजाब पहनकर नेटबॉल खेलते देखा. तब अहिदा को ये ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा...

पिछले साल जनवरी में फ्रांस में चार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए हमले से लेकर अब तक की कहानी पर गौर कीजिए, तो यही बात सामने आएगी कि मौजूदा दौर में फ्रांस सबसे ज्यादा आतंकियों के निशाने पर है. इसके अपने दूसरे कारण जो भी हों लेकिन फ्रांस पर ये आरोप भी लगता रहा है कि अपने यहां धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के नाम ये देश सख्ती की हद तक जाने से भी नहीं कतराता. फिर वो चाहे वो चाहे बुरके से लेकर पगड़ी पहनने तक पर रोक हो या फिर हाल में बुरकिनी पर शुरू हुआ विवाद.

फ्रांस में सार्वजनकि जगहों पर किसी भी धर्म से जुड़ी चीज को पहनने पर रोक है. मतलब, आप अपनी धार्मिक पहचान को जाहिर नहीं कर सकते. कानून इतने सख्त हैं कि इसे लेकर कई बार फ्रांस की आलोचना होती है. बुरकिनी पर शुरू हुआ विवाद इसी कहानी का अगला हिस्सा है. पिछले कुछ दिनों में फ्रांस और पश्चिमी मीडिया में इसे लेकर काफी बातें हो रही हैं. आईए, जानते क्या है बुरकिनी और क्या है पूरा विवाद

फ्रांस में बुरकिनी पहनने पर बैन!

पिछले हफ्ते फ्रांस के शहर कांस में पुलिस ने 10 मुस्लिम महिलाओं को पकड़ा था. इनका कसूर इतना भर था कि एक बीच (समुंद्री किनारा) पर ये बुरकिनी (Burkini) पहन कर आईं थीं. छह महिलाएं तो चेतावनी मिलने के बाद बीच छोड़ कर लौट गईं. लेकिन चार पर 38 यूरो (43 डॉलर) का जुर्माना लगाया गया. बुरकिनी पर 28 जुलाई, 2016 को कांस के मेयर ने बैन लगा दिया था.

यह भी पढ़ें- आतंकियों के निशाने पर क्यों रहता है फ्रांस...

दरअसल, बुरकिनी एक तरह का स्विमसूट है. बिकनी से बेहद अलग और बुर्के से काफी मिलता-जुलता. इसे 2004 में लेबनन मूल की एक ऑस्ट्रेलियाई महिला अहिदा जानेटी ने तब डिजाइन किया जब उसने अपनी भतीजी को हिजाब पहनकर नेटबॉल खेलते देखा. तब अहिदा को ये ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाए जो इस्लामी कल्चर के खिलाफ भी न हो और मॉर्डन दुनिया की जरूरतों की पूर्ति भी करता हो.

फिर उन्होंने उन मुस्लिम महिलाओं के लिए भी ड्रेस डिजाइन किए जो सिडनी के समुद्री किनारों का लुत्फ तो लेना चाहती थी लेकिन बिकनी में नहीं! यही से बुरकिनी का कॉन्सेप्ट आया.

 फ्रांस के कई शहरों में बुरकिनी पर बैन

समय के साथ-साथ बुरकिनी मुस्लिम महिलाओं में काफी लोकप्रिय भी हो गया. लेकिन अब फ्रांस में इसे लेकर बवाल मचा है. कारण- एक के बाद एक कई शहरों ने फ्रांसिसी संविधान का हवाला देकर इस पर बैन लगाना शुरू कर दिया है. अब तक फ्रांस के पांच शहरों के मेयर ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया. बुरकिनी पर बैन लगाने वाला कांस सबसे पहला शहर है.

बैन के पीछे क्या हैं तर्क?

बैन के पीछे कांस सहित तमाम शहरों के मेयरों द्वारा जो तर्क दिए जा रहे हैं, उसे भी सुनिए- बुरकिनी शहर में पब्लिक ऑर्डर के लिए खतरा है. हाइजिन और वाटर शेफ्टी के लिए भी बड़ी चुनौती है. कैसे, ये समझना मुश्किल है! बैन के पीछे एक तर्क ये भी ये पहनावा नैतिकता के स्तर पर खड़ा नही उतरता. और तो और फ्रेंच रिपब्लिक के खिलाफ जंग कर रहे कट्टर लोगों के लिए हथियार के समान है ये बुरकिनी!

यह भी पढ़ें- हिजाबी फैशन: सिर्फ पहनावा नहीं सामाजिक बदलाव की बयार है

अब पूरे मसले पर बहस छिड़ी हुई है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या फ्रांस वाकई सख्ती की हद तक जा रहा है? एक बड़ी बात ये भी है कि इस मसले पर फ्रांस की सरकार ने सभी शहरों के मेयरों के फैसले का बचाव किया है. साथ ही सरकार ने सभी मेयरों को ये सलाह दी है कि वे इस मसले पर बढ़ रहे तनाव को कम करने की कोशिश करे.

एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि अगले कुछ महीनों में फ्रांस राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. माना जा रहा है कि हाल की आतंकी घटनाओं के बाद दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी नेशनल फ्रंट की लोकप्रियता काफी बढ़ी है. इस कारण भी फ्रांस के अधिकारी और दूसरी पार्टियां बैन का समर्थन कर रही है. और शायद इसलिए वहां के प्रधानमंत्री मैनुएल वैल्स तक को ये कहना पड़ा कि बुरकिनी महिलाओं की गुलामी का प्रतीक हैं और ये फ्रांस की मान्यताओं के खिलाफ है.

फ्रांस के लिए रियो का उदाहरण

बुरकिनी अगर महिलाओं की गुलामी का प्रतीक है तो फिर रियो ओलंपिक का उदाहरण भी तो याद किया जाना चाहिए. ये सही है कि सऊदी अरब और ऐसे ही कुछ दूसरे मुस्लिम देशों में महिलाओं पर तमाम बंदिशे हैं. लेकिन इन्हीं बंधनों के बीच वे अपनी जगह भी तो बना रही हैं. और कट्टर मुस्लिम देशों को भी मजबूरन उन्हें जगह देनी पड़ रही है. फिर वो चाहे मिस्र से हिजाब पहनकर बीच वॉलीबॉल खेलती महिलाएं हों या ये हिजाब पहनकर रेस की ट्रैक पर दौड़ती करिमन अबुलजदाएल.

 रियो ओलंपिक में सऊदी अरब की महिला धावक

इन सबके बीच फ्रांस में बुरकिनी पर बैन को लेकर जो तथ्य दिए जा रहे हैं- वो भी कम दकियानूसी नहीं. फ्रांस के नेता बुरकिनी पर बैन को मुस्लिम महिलाओं की आजादी का प्रतीक के तौर पर पेश करने में जूटे हैं और खुद ही ये फैसला भी कर रहे हैं कि उन्हें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं! अब, ये भला कितना तर्कसंगत हैं...

यह भी पढ़ें- बिकनी ही क्यों, हिजाब पहनकर भी खेला जा सकता है बीच वॉलीबॉल!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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