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समाज

...तो क्या मैं ईमानदार नहीं हूँ?

    • मौसमी सिंह
    • Updated: 13 नवम्बर, 2016 03:36 PM
  • 13 नवम्बर, 2016 03:36 PM
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वित्त मंत्री साहब कह रहे हैं कि जो ईमानदार है वो सरकार के इस फ़ैसले से ख़ुश है. ऐसे में 74 साल से मदन लाला ये सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि वो ईमानदार हैं की नहीं?

देश में केंद्र सरकार कि काले धन पर लगाम कसने कि मुहिम पर लोगों ने पीएम मोदी को शाबाशी ज़रूर दी, लेकिन बैकों में लंबी क़तारें झेलते-झेलते लोगों का सब्र टूट रहा है. आम आदमी परेशान है मगर  इसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा तो देश के वरिष्ठ नागरिकों को उठाना पड़ रहा है. बुढ़ापे में सरकार के आदेश से मानो सहारा छिन गया हो उपर से बैंकों में बदइंतज़ामी से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

ये भी पढ़ें- 500-1000 के नोट बैन, अफवाहें छुट्टा घूम रहीं

पीएम साहब जनता को सरकार के सहयोग के लिए बधाई दे रहे हैं. वित्त मंत्री साहब कह रहे हैं कि जो ईमानदार है वो सरकार के इस फ़ैसले से ख़ुश है. ऐसे में 74 साल से मदन लाला ये सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि वो ईमानदार हैं की नहीं?  सुबह से देश कि राजधानी दिल्ली के गोल डाकखाने के बाहर खड़े-खड़े मन ही मन कुछ बड़बड़ाते रहते हैं. जीवन भर पत्रकारिता कर रोटी कमाई अब बुढ़ापे में उनको ये दिन देखना पड़ेगा उनको इस बात की पीड़ा है. एक तो बुढ़ापे की लाचारी ने शरीर को खोकला कर दिया उपर से सरकार के फ़रमान ने आज ऐसा बोझ लाद है जिससे उबर पाना मुश्किल है. "मैं बेबस हूँ खड़े-खड़े परेशान हो गया सरकार ने कहा नोट नहीं चलेंगे. मैंने जीवन भर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया पर आज ख़ुद मजबूर हो गया. मेरे पास खुल्ले पैसे नहीं है और मेरा आपरेशन होना है तो छुट्टे लेने आया हूँ. "

 सांकेतिक फोटो

मदन लाल दिल्ली के न्यू राजेन्द्र नगर में अकेले रहते हैं. बुढ़ापे का कोई...

देश में केंद्र सरकार कि काले धन पर लगाम कसने कि मुहिम पर लोगों ने पीएम मोदी को शाबाशी ज़रूर दी, लेकिन बैकों में लंबी क़तारें झेलते-झेलते लोगों का सब्र टूट रहा है. आम आदमी परेशान है मगर  इसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा तो देश के वरिष्ठ नागरिकों को उठाना पड़ रहा है. बुढ़ापे में सरकार के आदेश से मानो सहारा छिन गया हो उपर से बैंकों में बदइंतज़ामी से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

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पीएम साहब जनता को सरकार के सहयोग के लिए बधाई दे रहे हैं. वित्त मंत्री साहब कह रहे हैं कि जो ईमानदार है वो सरकार के इस फ़ैसले से ख़ुश है. ऐसे में 74 साल से मदन लाला ये सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि वो ईमानदार हैं की नहीं?  सुबह से देश कि राजधानी दिल्ली के गोल डाकखाने के बाहर खड़े-खड़े मन ही मन कुछ बड़बड़ाते रहते हैं. जीवन भर पत्रकारिता कर रोटी कमाई अब बुढ़ापे में उनको ये दिन देखना पड़ेगा उनको इस बात की पीड़ा है. एक तो बुढ़ापे की लाचारी ने शरीर को खोकला कर दिया उपर से सरकार के फ़रमान ने आज ऐसा बोझ लाद है जिससे उबर पाना मुश्किल है. "मैं बेबस हूँ खड़े-खड़े परेशान हो गया सरकार ने कहा नोट नहीं चलेंगे. मैंने जीवन भर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया पर आज ख़ुद मजबूर हो गया. मेरे पास खुल्ले पैसे नहीं है और मेरा आपरेशन होना है तो छुट्टे लेने आया हूँ. "

 सांकेतिक फोटो

मदन लाल दिल्ली के न्यू राजेन्द्र नगर में अकेले रहते हैं. बुढ़ापे का कोई सहारा नहीं है. कब बीमारी में पैसों कि ज़रूरत पड़ जाए इसके लिए पैसा जमा करके रखा था पर एकाएक सरकार के आदेश से उनकी ज़िंदगी में मानो भूचाल सा आ गया हो. पहले दो दिन तो वो खाने के लिए भटकते रहे और फिर शुक्रवार सुबह गोल डाकखाने पंहुच गए. पर वहाँ उनको सिर्फ़ हैरान परेशान लोग मिले जो अपनी समस्याओं में डूबे हुए थे. वो कहते है 'मैं ठीक से चल नहीं सकता, घुटनों का आपरेशन है, उम्र हो गई है,  सोचा था यहाँ ज़्यादा लाईन नहीं होगी,  पर यहाँ इतनी देर तक इंतज़ार करना पड़ा. लोगों ने मदद कि, बैंक वालों ने भी, पर फिर भी मुझे तीन घंटे लग गए पैसे निकालने के लिए. ये इलाज के लिए हैं.' मदन लाला की ही तरह 70 साल के जगजीत सिंह अपनी पत्नी के साथ यहाँ आए हैं. पर यहाँ वरिष्ठ नागरिक के लिए कोई सुविधा नहीं है.

आटो चला कर गुज़र बसर की पर कुछ एक साल पहले उनको लक्वे का अटैक पड़ा था उसके बाद से मानो शरीर बेजान सा हो गया हो. ज़िंदगी के इस पड़ाव में आकर अब मुश्किलें पहाड़ लग रही हैं. जगजीत घंटों  डाकखाने के बाहर भूखे-प्यासे लाईन में खड़े रहे.  शरीर और हिम्मत दोनों जवाब दे गई तब जाकर चार घंटे में नंबर लगा तो उनका सब्र टूट गया " अब पीएम से क्या कहना बाक़ी रह गया. वो कहते है कि चाय वाला है? क्या उनको पता है कि हमें क्या झेलना पड़ रहा है. खुद तो जापान जा कर बैठ गए हैं और हम यहाँ जूझ रहे हैं बिना ख़ाए और पिए." ज़ाहिर है जगजीत नाराज़ है. उनकी पत्नी अभी भी बैंक के अंदर कतारों से जूझ रही हैं.

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देखते ही देखते ख़बर आती है कि डाकखाने में पैसा फिर ख़त्म हो गया. फिर धक्का मुक्की शुरू हो जाती है लोग झगड़ने लगते है और कई बड़े बुज़ुर्ग भी इस कसौटी में पिसते  रहते है. ये सिलसिला दिन भर चलता है. उधर अपने घर पंहुच कर भी मदन लाला के गरदन पर सरकार के फ़रमान कि तलवार लटक रही है ' सरकार से अपील हे कि वो वरिष्ठ नागरिकों की भी सोचें. क़दम अच्छा है पर हम जैसे लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है. माँ बाप ने सिखाया कभी किसी के सामने हाथ मत फैलाओ. इसलिए सरकार से कहता हीं हम बिलकुल लाचार हो गए हैं हम बूढ़ों का भी सोचे सरकार.'

जब वित्त मंत्री अरुण जेटली से  प्रेस वार्ता में पूछा गया कि आख़िर क्यों वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग इंतज़ाम नहीं किया गया तो उन्होंने आश्वासन कि दुहाई दी. " वरिष्ठ नागरिकों कि समस्या के बारे में पता चला है. हम  मानते है कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए इंतज़ाम होना चाहिए  हम इसकी ओर काम करेंगे. '

आपने सही फ़रमाया माननीय वित्त मंत्री जी. आपका शुक्रिया कि कम से कम आपका ध्यान वरिष्ठ नागरिकों पर गया तो.  जब तक आप इंतज़ाम करें तब तक इतनी रियायत दे दीजिए इन बड़े बुज़ुर्गों को कि अगर सरकार कि आलोचना करें तो इनकी ईमानदारी पर सवाल ना उठाए जाएं.

वीडियो में देखिए किस तरह से परेशान हैं बुजुर्ग-

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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