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कल्‍पना कीजिए, आपका शरीर तो हो लेकिन उस पर चमड़ी न हो

    • सईद अंसारी
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2016 03:12 PM
  • 21 अक्टूबर, 2016 03:12 PM
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इससे बड़ा पाप और क्या हो सकता है कि किसी से उसके हाव-भाव ही छीन लिए जाएं. उसके चेहरे की प्राकृतिक बनावट को तहस-नहस कर दिया जाए. उसकी आंखें छीन ली जाएं. उसके नाक, कान, गाल को गला दिया जाए.

क्या कभी आपने तेजाब की जलन महसूस की है? नहीं? दुआ यही है कि कभी ऐसा न हो. लेकिन अब जरा सोचिए उन युवतियों के बारे में, जिनके चेहरों पर तेजाबनुमा लावा उड़ेल दिया जाता है.

दिल्‍ली में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला. वहां कुछ युवतियां मिलीं. जिनकी खूबसूरती किसी हैवान ने चुरा ली थी. अब उनके पास कुछ बचा है तो दिल में ढेर सारा दर्द. जिसे महसूस किया जा सकता है. सहानुभूति जताकर बांटा जा सकता है. लेकिन जो उनका शरीर झेल रहा है, उसे कोई नहीं बांट सकता है.

दिल्ली में पत्रकार और लेखिका प्रतिभा ज्योति की किताब 'एसिड वाली लड़की' के विमोचन पर एसिड हमले की शिकार एक-दो नहीं सैकड़ों लड़कियां मौजूद थीं. लेकिन इस खचाखच भरे हॉल में उदासी मौजूद थी. माहौल में अजीब सी बचैनी और छटपटाहट थी. शायद उन लड़कियों के चेहरों को इतने नजदीक से देखने के बाद लोगों को एसिड अटैक के दर्द का अहसास होने लगा था. जिस दुर्घटना को हम सिर्फ खबर के तौर पर लेते थे यहां समझ आ रहा था कि यह कभी न मिटने वाले निशान की निरंतर असहनीय पीड़ा है.

आजकल सजने-संवरने में महिलाओं-पुरूषों में कोई भेद नहीं है. दोनों खूब श्रृंगार करते हैं. लेकिन इन बेगुनाह बच्चियों का क्या जिनसे उनका यह अधिकार भी छीन लिया गया. विश्वास कीजिए उस रात का खाना अधिकतर लोगों के गले से नीचे नहीं उतरा होगा. इन बच्चियों के चेहरों को भुला पाना कठिन नहीं, असंभव होगा. इनके ज्यादातर गुनाहगार एकतरफा प्‍यार में पड़कर इस हैवानियत तक पहुंचे. इन युवतियों का चेहरा अब भावहीन है. सिर्फ आंखें बोलती हैं. बल्कि सवाल करती हैं. क्या यह उन्‍हें अपनी मर्जी से जीने की सजा मिली है ?

  एसिड अटैक...सबसे बड़ा...

क्या कभी आपने तेजाब की जलन महसूस की है? नहीं? दुआ यही है कि कभी ऐसा न हो. लेकिन अब जरा सोचिए उन युवतियों के बारे में, जिनके चेहरों पर तेजाबनुमा लावा उड़ेल दिया जाता है.

दिल्‍ली में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला. वहां कुछ युवतियां मिलीं. जिनकी खूबसूरती किसी हैवान ने चुरा ली थी. अब उनके पास कुछ बचा है तो दिल में ढेर सारा दर्द. जिसे महसूस किया जा सकता है. सहानुभूति जताकर बांटा जा सकता है. लेकिन जो उनका शरीर झेल रहा है, उसे कोई नहीं बांट सकता है.

दिल्ली में पत्रकार और लेखिका प्रतिभा ज्योति की किताब 'एसिड वाली लड़की' के विमोचन पर एसिड हमले की शिकार एक-दो नहीं सैकड़ों लड़कियां मौजूद थीं. लेकिन इस खचाखच भरे हॉल में उदासी मौजूद थी. माहौल में अजीब सी बचैनी और छटपटाहट थी. शायद उन लड़कियों के चेहरों को इतने नजदीक से देखने के बाद लोगों को एसिड अटैक के दर्द का अहसास होने लगा था. जिस दुर्घटना को हम सिर्फ खबर के तौर पर लेते थे यहां समझ आ रहा था कि यह कभी न मिटने वाले निशान की निरंतर असहनीय पीड़ा है.

आजकल सजने-संवरने में महिलाओं-पुरूषों में कोई भेद नहीं है. दोनों खूब श्रृंगार करते हैं. लेकिन इन बेगुनाह बच्चियों का क्या जिनसे उनका यह अधिकार भी छीन लिया गया. विश्वास कीजिए उस रात का खाना अधिकतर लोगों के गले से नीचे नहीं उतरा होगा. इन बच्चियों के चेहरों को भुला पाना कठिन नहीं, असंभव होगा. इनके ज्यादातर गुनाहगार एकतरफा प्‍यार में पड़कर इस हैवानियत तक पहुंचे. इन युवतियों का चेहरा अब भावहीन है. सिर्फ आंखें बोलती हैं. बल्कि सवाल करती हैं. क्या यह उन्‍हें अपनी मर्जी से जीने की सजा मिली है ?

  एसिड अटैक...सबसे बड़ा पाप

इससे बड़ा पाप और क्या हो सकता है कि किसी से उसके हाव-भाव ही छीन लिए जाएं. उसके चेहरे की प्राकृतिक बनावट को तहस-नहस कर दिया जाए. उसकी आंखें छीन ली जाएं. उसके नाक, कान, गाल को गला दिया जाए. हम कितना भी कह लें एसिड सर्वाइवर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं. पहचान चेहरे से नहीं काम से मिलती है. सारी बातें ठीक हैं. लेकिन उनके उस दर्द का क्या जो उन्हें हर पल, पल-पल हो रहा है. उस तकलीफ का क्या जो ताउम्र की साथी बन गई है. उस जलन का क्या जो चेहर से तो खत्म हो जाएगी लेकिन दिल को जलाती रहेगी. इनके चेहरे और शरीर के घाव तो भर गए हैं लेकिन उन घावों का क्या जो इनके दिल-दिमाग पर हैं. क्या वह भर पाएंगे?

यह भी पढ़ें- सरकारी नौकरी दे सकते हैं, पर एसिड बैन नहीं कर सकते

हम भले ही इन बच्चियों के हाव-भाव न देख पाएं लेकिन उन्हें देखकर हमारे चेहरे की बदलती भाव-भंगिमाएं इनके दिलो-दिमाग पर जो चोट करती हैं उसका क्या. हमारी दया, सहानुभूति, करुणा इनके दर्द को और नहीं बढ़ाती बल्कि छिन्न-भिन्न कर देती हैं इनके पूरे अस्तित्व को. क्यों और कैसे हम इन बच्चियों से यह उम्मीद करें कि सबकुछ भूलकर जीवन में आगे बढ़ें. तेजाब के निशान तो अब जिन्दगी भर के साथी बन गए हैं. सबसे खौफनाक डरावनी घटना को हम भूलने की कोशिश करते हैं लेकिन इन मासूमों को ताउम्र डर की निशानी के साथ गुजारनी है. कैसे भूलें उस दरिंदगी को जिसके निशान चाहकर भी इनका पीछा नहीं छोड़ते बल्कि जोंक की तरह इनसे चिपक गए हैं और वह भी हमेशा-हमेशा के लिए.

यह भी पढ़ें- एसिड से जले चेहरे की 3 मिनट ब्यूटी गाइड

वरिष्ठ पत्रकार और ई-मैग्जीन 'वुमनिया' की संपादक प्रतिभा ज्योति ने एक कोशिश की है इन युवतियों पर हुए जुल्म की तह तक जाने की. एसिड अटैक जैसे घातक हमले के सामाजिक कारण को खोजने की. अच्छी खासी नौकरी छोड़कर प्रतिभा ने दो साल तक मेहनत की इन बच्चियों के संघर्ष को कलमबद्ध करने के लिए. एसिड सर्वाइवर्स के लिए काफी काम रहीं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील कमलेश जैन इन बच्चियों का हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद थीं. कमलेशजी इनकी कानूनी मदद कर रही हैं. उनका कहना है कि एसिड अटैक में मौत की सजा से कम कुछ भी उन्हें मंजूर नहीं. कानूनी पेचिदगियों को सरल बनाने की वकालत भी कमलेशजी करती हैं.

 'एसिड वाली लड़की' के पन्नों के जरिए...उनकी जिंदगी में झांकने की कोशिश 

एसिड सर्वाइवर युवतियों की मौजूदगी ने प्रतिभा की पुस्तक के विमोचन समारोह को एक मुहिम में बदल दिया था. रस्मी विमोचन से अलग यहां पत्रकारों का जमावड़ा था. जो इन युवतियों से जुड़ रहे थे. उनके दर्द को महसूस कर रहे थे. इनकी कलम इन युवतियों के पक्ष में माहौल बनाने का काम जरूर करेगी.

एक और शख्स की चर्चा यहां इसलिए जरूरी है क्योंकि इन्होंने एक-दो नहीं अबतक 400 एसिड सर्वाइवर का मुफ्त इलाज किया है और लगातार कर रहे हैं. यह हैं मुंबई के पद्मश्री डॉ अशोक गुप्ता. साथ ही डॉ गुप्ता सर्वाइवर्स के लिए सरकारी नौकरी की मांग की एक मुहिम भी चला रहे हैं.

लेकिन, इन सबसे ज्यादा जरूरी है समाज में पाशविकता को रोकने की. अपने परिवार में बड़े हो रहे लड़कों को समझाने की, कि जैसे घर में उनकी मां या बहन की आवाज की इज्जत है या होनी चाहिए. वैसी ही समाज में रहने वाली किसी भी लड़की की. यदि मन में बदले का ख्‍याल भी आए और एसिड अटैक जैसी हैवानियत सूझे, तो अपनी मां या बहन का चेहरा देखें और खौलते हुए तेल की एक बूंद अपने हाथ पर डाल लें.

वह जलन और गुस्‍सा ठंडा कर देगी.

यह भी पढ़ें- पहले गैंगरेप, फिर चेहरे पर तेजाब...एक नारी, कितनी मौतें?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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