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योगी vs केजरीवाल: एमसीडी चुनावों में दो मुख्यमंत्रियों की जंग

    • कुमार कुणाल
    • Updated: 29 मार्च, 2017 07:53 PM
  • 29 मार्च, 2017 07:53 PM
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दिल्ली में एमसीडी चुनावों में तमाम बातों के साथ ही इस बात पर भी चर्चा जोरों पर है कि प्रचार के लिए अलग-अलग पार्टियां कौन सी रणनीति अपनाएंगी.

दिल्ली में एमसीडी चुनावों में तमाम बातों के साथ ही इस बात पर भी चर्चा जोरों पर है कि प्रचार के लिए अलग-अलग पार्टियां कौन सी रणनीति अपनाएंगी. इस बात में दो मत नहीं है कि इस बार भी प्रचार में सभी तीन मुख्य पार्टियां अपनी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगी.

बात सिर्फ मुद्दों तक ही नहीं रहने वाली है बल्कि प्रचार के तौर तरीकों से लेकर चेहरों तक की अहमियत इस बार कहीं ज़्यादा रहने वाली है. कई पार्टियों ने अभी तक अपने उम्मीदवारों को चुना तक बेशक न हो लेकिन, इस बात पर माथापच्ची जरूर शुरु कर दी है कि चुनाव जीतने के लिए प्रचार में कौन सी बातों का ध्यान रखना होगा.

चुनावी चेहरों के पीछे की कहानी क्या है

सबसे पहले बात चुनावी चेहरों की और उन चेहरों के पीछे पार्टियां कौन सा दांव खेलना चाहतीं हैं. सबसे पहले दिल्ली में एमसीडी की सत्ता पर काबिज बीजेपी की बात करें तो चुनावी बिसात पर कई लोगों को उतारने की कवायद है. दिल्ली और आस-पास के राज्यों के 6 मुख्यमंत्रियों समेत 14 कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारकर बीजेपी ने ये संदेश तो दे ही दिया है कि वो एमसीडी जैसे लोकल समझे जाने वाले चुनावों को भी हल्के से लेने को तैयार नहीं है. बीजेपी के मौजूदा हीरो और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के सीएम आदित्यनाथ योगी भी इस लिस्ट में शुमार हैं.

जाहिर है, यूपी में मिली ताजातरीन जीत को योगी के नाम पर भुनाने में पार्टी मे कोई भी दो मत नहीं है. दीगर है कि यूपी में करीबी होने की वज़ह से न सिर्फ यहां के मुद्दों में यूपी से समानता है बल्कि सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से भी दिल्ली यूपी में चल रहे घटनाक्रमों से अछूती नहीं रह सकती है. दिल्ली में सांस्कृतिक तौर पर एक कॉस्मो-पॉलिटन शहर है, यानि यहां अलग-अलग राज्यों से आने वाले लोग रहते हैं.

बाहरी राज्यों से दिल्ली में आकर बसने...

दिल्ली में एमसीडी चुनावों में तमाम बातों के साथ ही इस बात पर भी चर्चा जोरों पर है कि प्रचार के लिए अलग-अलग पार्टियां कौन सी रणनीति अपनाएंगी. इस बात में दो मत नहीं है कि इस बार भी प्रचार में सभी तीन मुख्य पार्टियां अपनी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगी.

बात सिर्फ मुद्दों तक ही नहीं रहने वाली है बल्कि प्रचार के तौर तरीकों से लेकर चेहरों तक की अहमियत इस बार कहीं ज़्यादा रहने वाली है. कई पार्टियों ने अभी तक अपने उम्मीदवारों को चुना तक बेशक न हो लेकिन, इस बात पर माथापच्ची जरूर शुरु कर दी है कि चुनाव जीतने के लिए प्रचार में कौन सी बातों का ध्यान रखना होगा.

चुनावी चेहरों के पीछे की कहानी क्या है

सबसे पहले बात चुनावी चेहरों की और उन चेहरों के पीछे पार्टियां कौन सा दांव खेलना चाहतीं हैं. सबसे पहले दिल्ली में एमसीडी की सत्ता पर काबिज बीजेपी की बात करें तो चुनावी बिसात पर कई लोगों को उतारने की कवायद है. दिल्ली और आस-पास के राज्यों के 6 मुख्यमंत्रियों समेत 14 कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारकर बीजेपी ने ये संदेश तो दे ही दिया है कि वो एमसीडी जैसे लोकल समझे जाने वाले चुनावों को भी हल्के से लेने को तैयार नहीं है. बीजेपी के मौजूदा हीरो और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के सीएम आदित्यनाथ योगी भी इस लिस्ट में शुमार हैं.

जाहिर है, यूपी में मिली ताजातरीन जीत को योगी के नाम पर भुनाने में पार्टी मे कोई भी दो मत नहीं है. दीगर है कि यूपी में करीबी होने की वज़ह से न सिर्फ यहां के मुद्दों में यूपी से समानता है बल्कि सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से भी दिल्ली यूपी में चल रहे घटनाक्रमों से अछूती नहीं रह सकती है. दिल्ली में सांस्कृतिक तौर पर एक कॉस्मो-पॉलिटन शहर है, यानि यहां अलग-अलग राज्यों से आने वाले लोग रहते हैं.

बाहरी राज्यों से दिल्ली में आकर बसने वालों में सबसे बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश के लोगों की ही है. यानि यूपी में जो कुछ भी होगा उसके असर से लाखों लोग अछूते रहेंगे, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. तभी योगी आदित्यनाथ को बीजेपी तुरुप का पत्ता मान कर चल रही है.

योगी की दूसरी बड़ी ख़ासियत ये भी है कि उनकी इमेज़ कट्टर हिंदूवादी की है और इस लिहाज़ से वो दिल्ली में भी ध्रुवीकरण करने की क्षमता रखते हैं. गौरतलब है कि राजधानी में 20 फीसदी से भी कम मुस्लिम आबादी है और ऐसे में ध्रुवीकरण हुआ तो सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा.

वहीं आम आदमी पार्टी के चुनावी प्रचार का सारा दारोमदार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर ही है. केजरीवाल दिल्ली की नब्ज को भली भांति जानते हैं और इसका उदाहरण उन्होंने राजनीति में कदम रहने के लगभग साल भर के भीतर ही दिल्ली में सरकार बनाकर दे दिया था. पहले चुनाव में उनकी पार्टी को पूरा बहुमत नहीं मिला था, लेकिन दूसरी बार तो ऐसे माहौल में जब पूरे देश में बीजेपी एक के बाद एक कई चुनाव जीतती चली आ रही थी, तब दिल्ली में ऐतिहासिक जीत हासिल की.

जीत भी ऐसी कि त्रिकोणीय मुकाबले में बाकी दोनों पार्टियों का सूपड़ा ही साफ हो गया. यानि ये कहें कि केजरीवाल दिल्ली की सियासी नब्ज के डॉक्टर बन गए तो कहना किसी लिहाज से ग़लत नहीं होगा. केजरीवाल का व्यक्तित्व एक साफ सुधरे नेता का रहा है और वही सियासत के लिहाज से न सिर्फ उनकी पहचान है बल्कि उनकी सबसे बड़ी ताकत भी है. ऐसे में केजरीवाल की हर विधानसभा में एक रैली के लिए निकलना, नगर निगम चुनावों के लिहाज से किसी भी विरोधी के लिए मुश्किल खड़ा करने वाला तो हो ही सकता है.

वहीं कांग्रेस के पास भी चेहरों की कमी तो नहीं है, लेकिन फिलहाल सिर्फ दिल्ली में कांग्रेस के मुखिया अजय माकन पर ही दारोमदार है. हालांकि, चुनाव कैंपेन की शुरुआत कांग्रेस ने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रामलीला मैदान से रैली से ही की, लेकिन लगभग महीने भर चलने वाले चुनाव प्रचार में कौन कौन से बड़े नेता कांग्रेस के प्रचार की कमान संभालेंगे उस पर सस्पेस अभी तक बरकरार है.

मुद्दों को लेकर भी खींचतान कम नहीं

एमसीडी चुनाव दिल्ली के यूं तो सबसे छोटे चुनाव हैं, लेकिन इन चुनावों में भी कई दांव पेंच चल रहे हैं. नगर निगम में यूं तो दस साल से बीजेपी सत्ता पर काबिज है, इसलिए तकनीकी तौर पर तमाम कमियों के लिए जिम्मेदारी भी बीजेपी की ही बनती है. लेकिन, बीजेपी ने बड़ी चालाकी से मुद्दा ही बदलने की तैयारी कर ली है. सबसे पहले अपने डेढ़ सौ से ज़्यादा पार्षदों का पत्ता काट दिया ताकि एंडी इंकंबेंसी की वज़ह से नुकसान ना है. क्योंकि एमसीडी पार्षदों की पहचान ही भ्रष्टाचार के लिए हो गई है.

शायद यही वज़ह है कि पार्टी चाहती है कि लोकल मुद्दों की बजाए राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर एमसीडी चुनाव भी हों. यही वज़ह है कि दिल्ली में तमाम मुख्यमंत्रियों की टीम उतारी जा रही है ताकि वो अपने-अपने राज्यों में किए गए कामों को दिल्ली वालों के सामने रख पाएं और दिल्ली में रहने वाले अपने राज्य के लोगों को बतौर वोटर बीजेपी के पक्ष में कर सकें. तभी बीजेपी के एजेंडे से साफ-सफाई और एमसीडी में भ्रष्टाचार जैसे मसलों की जगह राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे ही चाए रहेंगे.

आम आदमी पार्टी दिल्ली में केजरीवाल सरकार के कामकाज को मुद्दा बनाना चाहती है. केजरीवाल बतौर सीएम कैसे रहे हैं, उसपर भी वोट मांगेगी. एमसीडी में भ्रष्टाचार और दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में साफ-सफाई और बाकी कमियों को गिनाकर भी आप वोट मांगने की तैयारी में है. आम आदमी पार्टी का मसला ये भी रहेगा कि दिल्ली और एमसीडी में अगर एक ही पार्टी की सत्ता रही तो दिल्ली का बेहतर विकास होगा और करप्सन में भी कमी आएगी.

कांग्रेस का मुद्दा आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों को घेरने का है. जहां बीजेपी ने दस साल एमसीडी में सत्ता चलाई है, वहीं आम आदमी पार्टी के दो साल के कामकाज को भी कांग्रेस जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है. पिछले दिनों जिस तरह से केंद्र और दिल्ली सरकार आपस में अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे और नुकसान दिल्ली वालों को उठाना पड़ा उसको भी कांग्रेस पार्टी चुनावों के मुद्दे के रुप में उठाएगी.

इसके लिए पहले ही पार्टी ने अपना विज़न डॉक्यूमेंट जारी किया है. जिसमें एमसीडी को आर्थिक खस्ताहाल से निकालना, दिल्ली में साफ-सफाई की हालत सुधारने से लेकर एमसीडी स्कूलों और अस्पतालों को सुधारने के लिए विजन डॉक्यूमेंट भी शामिल है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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