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क्या हमारे लिए पाकिस्तान से ज्यादा खतरनाक हो जाएगा नेपाल?

    • विनीत कुमार
    • Updated: 07 नवम्बर, 2015 08:17 PM
  • 07 नवम्बर, 2015 08:17 PM
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भारत और नेपाल के बीच जो खटास आई है, वह और बिगड़ती जा रही है. जुबानी जंग यूएन के चौखट तक जा पहुंची है. भाई-भाई की बात सरेआम हो गई है.

मधेशी और तराई क्षेत्र में बसे लोगों का विरोध और भारत-नेपाल सीमा पर नाकेबंदी जैसी स्थिति के बीच कुछ दिन पहले ही चीन ने करीब 1000 मेट्रिक टन पेट्रोलियम और दूसरी जरूरी चीजें नेपाल भेजी. महीने भर से ऊपर का समय बीत चुका है. भारत और नेपाल के संबंधों में जो खटास आई है, वह और बिगड़ती जा रही है. जुबानी जंग यूएन के चौखट तक जा पहुंची है. भाई-भाई की बात सरेआम हो गई है.

पिछले दो महीनों में भारत और नेपाल के बीच पूरा राजनैतिक समीकरण गड़बड़ा गया है. नेपाली मीडिया में भारत को लेकर जो लिखा जा रहा वह भी आक्रामक है. भारत के लिए अब तक तो पाकिस्तान ही सबसे बड़ी चिंता का विषय रहा है. लेकिन नेपाल के हालात हमारे लिए पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं. उसके साथ हमारी तल्खी कहां जाकर खत्म होगी?

नेपाल में चीन की घुसपैठ: पिछले दो दशकों में चीन लगातार अपनी नजदीकी नेपाल से बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. 2012 में उसने नेपाल के सेती नदी पर प्रस्तावित सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना में 1.6 बिलियन डॉलर निवेश का फैसला किया. इसके अलावा भी पिछले एक दशक में चीन ने नेपाल की कई परियोजनाओं में निवेश किया है.

पिछले कुछ वर्षों में काठमांडू की गलियों में चीनी भाषा सिखाने वाली कई प्राइवेट संस्थाएं आ गई हैं. पारंपरिक तौर पर उच्च शिक्षा के लिए नेपाल के छात्र भारत का ही रुख करते रहे हैं लेकिन अब चीन भी नेपाली छात्रों को आकर्षक स्कॉलरशिप देने लगा है.

नेपाल का कदम भारत के लिए क्यों खतरनाक: अब तक भारत और नेपाल के बीच जैसा रिश्ता रहा है, वैसा उदाहरण दुनिया के बहुत कम देशों के बीच देखने को मिला है. सांस्कृतिक और भौगोलिक तौर पर दोनों देश एक-दूसरे के बेहद करीब है. दोनों देशों के बीच सीमाओं का बंधन नहीं है. कोई भी नागरिक बिना पासपोर्ट-वीजा इस पार या उस पार जा सकता है. ऐसे में कल अगर रिश्ते और तल्ख होते हैं तो इसका खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ेगा. वैश्विक राजनीति में भारत का एक साथी तो छूटेगा ही, साथ ही इस तल्खी का असर...

मधेशी और तराई क्षेत्र में बसे लोगों का विरोध और भारत-नेपाल सीमा पर नाकेबंदी जैसी स्थिति के बीच कुछ दिन पहले ही चीन ने करीब 1000 मेट्रिक टन पेट्रोलियम और दूसरी जरूरी चीजें नेपाल भेजी. महीने भर से ऊपर का समय बीत चुका है. भारत और नेपाल के संबंधों में जो खटास आई है, वह और बिगड़ती जा रही है. जुबानी जंग यूएन के चौखट तक जा पहुंची है. भाई-भाई की बात सरेआम हो गई है.

पिछले दो महीनों में भारत और नेपाल के बीच पूरा राजनैतिक समीकरण गड़बड़ा गया है. नेपाली मीडिया में भारत को लेकर जो लिखा जा रहा वह भी आक्रामक है. भारत के लिए अब तक तो पाकिस्तान ही सबसे बड़ी चिंता का विषय रहा है. लेकिन नेपाल के हालात हमारे लिए पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं. उसके साथ हमारी तल्खी कहां जाकर खत्म होगी?

नेपाल में चीन की घुसपैठ: पिछले दो दशकों में चीन लगातार अपनी नजदीकी नेपाल से बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. 2012 में उसने नेपाल के सेती नदी पर प्रस्तावित सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना में 1.6 बिलियन डॉलर निवेश का फैसला किया. इसके अलावा भी पिछले एक दशक में चीन ने नेपाल की कई परियोजनाओं में निवेश किया है.

पिछले कुछ वर्षों में काठमांडू की गलियों में चीनी भाषा सिखाने वाली कई प्राइवेट संस्थाएं आ गई हैं. पारंपरिक तौर पर उच्च शिक्षा के लिए नेपाल के छात्र भारत का ही रुख करते रहे हैं लेकिन अब चीन भी नेपाली छात्रों को आकर्षक स्कॉलरशिप देने लगा है.

नेपाल का कदम भारत के लिए क्यों खतरनाक: अब तक भारत और नेपाल के बीच जैसा रिश्ता रहा है, वैसा उदाहरण दुनिया के बहुत कम देशों के बीच देखने को मिला है. सांस्कृतिक और भौगोलिक तौर पर दोनों देश एक-दूसरे के बेहद करीब है. दोनों देशों के बीच सीमाओं का बंधन नहीं है. कोई भी नागरिक बिना पासपोर्ट-वीजा इस पार या उस पार जा सकता है. ऐसे में कल अगर रिश्ते और तल्ख होते हैं तो इसका खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ेगा. वैश्विक राजनीति में भारत का एक साथी तो छूटेगा ही, साथ ही इस तल्खी का असर बॉर्डर पर बसने वाले लोगों की जिंदगी पर होगा.

सीमा का दुरुपयोग: ऐसा भी नहीं हो सकता कि भारत-नेपाल सीमा पर रातों-रात कोई तारबंदी कर दी जाए और मामला रफा-दफा हो जाए. सीमा का दुरुपयोग सबसे बड़ी चिंता होगी. खासकर, भारत में आतंक फैलाने वाले आईएसआई जैसे संगठन अगर इसका फायदा उठाने लगे तो मामला चिंताजनक हो जाएगा. वैसे भी, चीन और पाकिस्तान पहले ही एक मंच पर हैं. नेपाल उस खेमे की ओर कदम बढ़ाता है तो निश्चित तौर पर ज्यादा मुश्किलें पैदा होंगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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