• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राहुल गांधी खुद ही कांग्रेस मुक्त भारत का क्रेडिट क्यों लेना चाहते हैं

    • आईचौक
    • Updated: 20 मई, 2016 07:06 PM
  • 20 मई, 2016 07:06 PM
offline
कांग्रेस की वापसी को लेकर सरमा का कहना है कि या तो राहुल गांधी को बदलना होगा, या फिर कांग्रेस को उन्हें ही बदल देना चाहिए.

बीजेपी की जीत के लिए जितना मोदी-शाह को क्रेडिट दिया जा रहा है - उससे जरा भी कम राहुल गांधी को नहीं मिल रहा. सिर्फ सोशल मीडिया के मजाकिया पोस्ट में ही नहीं, बल्कि गंभीर चर्चाओं में भी ऐसी ही बातें होने लगी हैं. खासकर, पुराने कांग्रेसी हिमंत बिस्वा सरमा के राहुल गांधी पर बयान के बाद से.

मालिक-नौकर जैसा रिश्ता !

अरुणाचल में तख्तापलट के बाद राहुल गांधी पर बागियों ने जो आरोप लगाए थे, मणिपुर के नेताओं की भी तकरीबन वैसी ही शिकायत रही. मणिपुर में मामला शायद इसलिए संभल गया क्योंकि सोनिया गांधी ने खुद इंटरेस्ट लिया और लोगों के लिए वक्त निकाला. लेकिन असम में बीजेपी की जीत की अहम कड़ी बने हिमंत बिस्वा सरमा ने जो बात कही है वो बड़ी ही गंभीर बात है.

इसे भी पढ़ें: गैरों का नसीब और कांग्रेस के अपने उसे ले डूबे...

एनडीटीवी से बातचीत में राहुल गांधी के बारे में सरमा कहते हैं, "वो बड़े ही घमंडी हैं. जब आप उनसे मिलने जाओ, तो मालिक-नौकर जैसा व्यवहार होता है, जो कि घृणित है."

कांग्रेस की वापसी को लेकर सरमा का कहना है कि या तो राहुल गांधी को बदलना होगा, या फिर कांग्रेस को उन्हें ही बदल देना चाहिए.

सरमा न सिर्फ तरुण गोगोई के आंख-कान थे बल्कि उनकी जीत में सबसे अहम भूमिका निभाते रहे. ठीक वैसे ही जैसे इस बार उन्होंने बीजेपी के लिए ताना बाना बुना. सरमा का कांग्रेस में तब तक बोलबाला रहा जब तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई लंदन में पढ़ाई करते रहे. जैसे ही गौरव असम लौटे कुछ दिन बाद तरुण गोगोई ने उन्हें अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर दिया. ये बात सरमा और दूसरे नेताओं को हजम नहीं हुई.

जब सरमा अपनी शिकायत लेकर राहुल गांधी के पास पहुंचे और साथी नेताओं की भावनाओं के बारे में बताना चाहा तो उनका रिएक्शन था, "तो क्या हुआ?" असल में आने के साथ ही...

बीजेपी की जीत के लिए जितना मोदी-शाह को क्रेडिट दिया जा रहा है - उससे जरा भी कम राहुल गांधी को नहीं मिल रहा. सिर्फ सोशल मीडिया के मजाकिया पोस्ट में ही नहीं, बल्कि गंभीर चर्चाओं में भी ऐसी ही बातें होने लगी हैं. खासकर, पुराने कांग्रेसी हिमंत बिस्वा सरमा के राहुल गांधी पर बयान के बाद से.

मालिक-नौकर जैसा रिश्ता !

अरुणाचल में तख्तापलट के बाद राहुल गांधी पर बागियों ने जो आरोप लगाए थे, मणिपुर के नेताओं की भी तकरीबन वैसी ही शिकायत रही. मणिपुर में मामला शायद इसलिए संभल गया क्योंकि सोनिया गांधी ने खुद इंटरेस्ट लिया और लोगों के लिए वक्त निकाला. लेकिन असम में बीजेपी की जीत की अहम कड़ी बने हिमंत बिस्वा सरमा ने जो बात कही है वो बड़ी ही गंभीर बात है.

इसे भी पढ़ें: गैरों का नसीब और कांग्रेस के अपने उसे ले डूबे...

एनडीटीवी से बातचीत में राहुल गांधी के बारे में सरमा कहते हैं, "वो बड़े ही घमंडी हैं. जब आप उनसे मिलने जाओ, तो मालिक-नौकर जैसा व्यवहार होता है, जो कि घृणित है."

कांग्रेस की वापसी को लेकर सरमा का कहना है कि या तो राहुल गांधी को बदलना होगा, या फिर कांग्रेस को उन्हें ही बदल देना चाहिए.

सरमा न सिर्फ तरुण गोगोई के आंख-कान थे बल्कि उनकी जीत में सबसे अहम भूमिका निभाते रहे. ठीक वैसे ही जैसे इस बार उन्होंने बीजेपी के लिए ताना बाना बुना. सरमा का कांग्रेस में तब तक बोलबाला रहा जब तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई लंदन में पढ़ाई करते रहे. जैसे ही गौरव असम लौटे कुछ दिन बाद तरुण गोगोई ने उन्हें अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर दिया. ये बात सरमा और दूसरे नेताओं को हजम नहीं हुई.

जब सरमा अपनी शिकायत लेकर राहुल गांधी के पास पहुंचे और साथी नेताओं की भावनाओं के बारे में बताना चाहा तो उनका रिएक्शन था, "तो क्या हुआ?" असल में आने के साथ ही गौरव ने बढ़िया अंग्रेजी बोल कर और राहुल गांधी पर इम्प्रेशन डाल दिया और फिर लगातार मेलबाजी कर बढ़िया रैपो भी बना लिया था.

राहुल गांधी के साथ उस मीटिंग को लेकर भी सरमा ने अजीबोगरीब बातें बताईं. सरमा ने बताया कि उस बैठक में राहुल वहां मौजूद लोगों की बात सुनने की बजाए अपने डॉगी के साथ खेलने में व्यस्त थे.

आओ बच्चों तुम्हें...

तो क्या यही वजह रही कि अमरिंदर सिंह और शीला दीक्षित जैसे कांग्रेसी राहुल की जगह सोनिया गांधी के अध्यक्ष बने रहने पर जोर देते रहे - और राहुल गांधी की ताजपोशी को फिर से टालना पड़ा था.

वैसे अमरिंदर और सरमा का केस देखें तो कांग्रेस में दो तरह के नेता दिखाई दे रहे हैं. एक वे जो लड़ कर अपना हक ले ले रहे हैं और दूसरे वे जो अपनी आवाज नहीं सुनी जाने पर दूसरी पार्टियों का दामन थाम ले रहे हैं. अमरिंदर सिंह की ताकत को कांग्रेस ने समझ लिया इसिलए राहुल के मनपसंद प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर कमान सौंप दी, लेकिन सरमा के मामले में चूक हो गई. ये बात उन्हें अब जरूर समझ में आ रही होगी. उत्तराखंड अपवाद है - क्योंकि अगर न्यायपालिका का हस्तक्षेप नहीं हुआ होता और हरीश रावत अपना इंतजाम खुद नहीं किये होते तो वहां भी सीन कुछ और होता.

इंट्रोस्पेक्शन या सर्जरी?

कांग्रेस का जो हाल मोदी लहर में हुआ असम में भी लगभग वही हाल हुआ है. बाकी राज्यों में भी कांग्रेस के प्रदर्शन के वही कारण होंगे, सरमा की बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है.

लोक सभा चुनाव बीते दो साल हो चुके हैं, इसलिए कांग्रेस के लिए अब इंट्रोस्पेक्शन का वक्त भी नहीं बचा है. दिग्विजय सिंह का कहना है कि कांग्रेस में अब सर्जरी की जरूरत है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस आत्महत्या पर उतर आई है इसलिए उसे बचाने के लिए अच्छे से काउंसिलिंग की जरूरत है. वैसे दिग्विजय जितना करीब से कांग्रेस को भला कौन देख सकता है - वो सही कह रहे होंगे. सर्जरी ही ठीक रहेगी.

इसे भी पढ़ें: 5 राज्यों के चुनाव नतीजों की एक 'राष्ट्रवादी' व्याख्या

2014 में बुरी तरह सिमटने के बाद से कांग्रेस महाराष्ट्र, हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश और अब केरल और असम भी गवां दिया है. अब नॉर्थ ईस्ट के मणिपुर, मेघालय और मिजोरम को छोड़ दें तो कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें बची हैं जहां चुनाव होने में जितना वक्त बचा है वो बीतते देर नहीं लगने वाली.

कहने को तो उन्हीं प्रशांत किशोर को हायर किया है जिन्होंने नरेंद्र मोदी को ताज दिलाया तो नीतीश कुमार की कुर्सी बचा दी - लेकिन कांग्रेस में उनसे भी खटपट की खबरें आ रही हैं.

राहुल गांधी चाहे मोदी सरकार पर जितने भी हमले कर लें, चाहे जितनी भी पदयात्राएं कर लें - डाटा एनलिसिस से ज्यादा दिन काम नहीं चलने वाला, आखिरकार उन्हें लोगों के मन की बात ही सुननी होगी. लोकतंत्र बचाने का इससे कारगर कोई रास्ता अब तक सामने नहीं आया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲