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सत्ता में हैं तो क्या रिटायर ही नहीं होंगे?

    • चंदन कुमार
    • Updated: 26 जून, 2015 11:53 AM
  • 26 जून, 2015 11:53 AM
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BCCI चीफ जगमोहन डालमिया को बोलने-सुनने में दिक्कत है. 75 से ऊपर के नेताओं को ब्रेन-डेड मानने में यशवंत सिन्हा को दिक्कत है. आखिर कब तक ये कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं?

फेविकोल का विज्ञापन याद है? और उसका पंच लाइन - 'ये फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं'. सत्ताधारी लोग हमेशा याद दिलाते रहते हैं इस एड को. कारण भी है. फेविकोल से जुड़ी कुर्सियां टूट सकती हैं, लेकिन क्या मजाल कि इन कुर्सियों से सत्ता का मोह टटू जाए! BCCI चीफ जगमोहन डालमिया भी चिपके पड़े हैं अपनी कुर्सी से. हालत ठीक नहीं है, शरीर साथ नहीं दे रहा पर कुर्सी कैसे छोड़ें? उधर यशवंत सिन्हा राग अलाप रहे हैं कि 26 मई 2014 (नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के दिन) को बीजेपी के 75 साल से ऊपर के नेताओं को ब्रेन डेड मान लिया गया.

पहली कहानी क्रिकेट से

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में बनी कमेटी को आईपीएल मैच फिक्सिंग की जांच का जिम्मा सौंपा था. कमेटी को साथ ही यह जिम्मेदारी भी दी गई थी कि वह बीसीसीआई के एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार के लिए सुझाव दे. इसी सिलसिले में कमेटी ने जगमोहन डालमिया से मुलाकात की. कमेटी से डालमिया मिले जरूर, लेकिन अपने बेटे के साथ.

बैठक में कमेटी के सवालों को डालमिया के बेटे सुनते हैं, अपने पिता को बताते हैं. फिर अपने पिताजी से उत्तर पाते हैं और कमेटी को बताते हैं. मतलब डालमिया सही से अपनी बात तक नहीं कह पा रहे थे और न ही दूसरों की बात समझ पा रहे थे. है न आश्चर्य की बात. कमेटी भी आश्चर्यचकित थी.

इस बैठक के बाद कमेटी ने BCCI की कार्य संचालन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए. कमेटी का कहना था कि अगर BCCI अध्यक्ष की मानसिक और शारिरिक स्थिति ऐसी है तो इसे चला कौन रहा है? दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड से जुड़े फैसले आखिर ले कौन रहा है? जिन लोगों ने डालमिया को महज तीन महीने पहले चुना है, क्या वह इस तथ्य से वाकिफ नहीं थे? डालमिया को इस साल मार्च में ही BCCI का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया था.

अब यशवंत सिन्हा की बारी

अगर यह मान भी लिया जाए कि नरेंद्र मोदी के इशारे पर आप जैसे 75 साल पार नेताओं को ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका है, तो इसमें...

फेविकोल का विज्ञापन याद है? और उसका पंच लाइन - 'ये फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं'. सत्ताधारी लोग हमेशा याद दिलाते रहते हैं इस एड को. कारण भी है. फेविकोल से जुड़ी कुर्सियां टूट सकती हैं, लेकिन क्या मजाल कि इन कुर्सियों से सत्ता का मोह टटू जाए! BCCI चीफ जगमोहन डालमिया भी चिपके पड़े हैं अपनी कुर्सी से. हालत ठीक नहीं है, शरीर साथ नहीं दे रहा पर कुर्सी कैसे छोड़ें? उधर यशवंत सिन्हा राग अलाप रहे हैं कि 26 मई 2014 (नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के दिन) को बीजेपी के 75 साल से ऊपर के नेताओं को ब्रेन डेड मान लिया गया.

पहली कहानी क्रिकेट से

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में बनी कमेटी को आईपीएल मैच फिक्सिंग की जांच का जिम्मा सौंपा था. कमेटी को साथ ही यह जिम्मेदारी भी दी गई थी कि वह बीसीसीआई के एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार के लिए सुझाव दे. इसी सिलसिले में कमेटी ने जगमोहन डालमिया से मुलाकात की. कमेटी से डालमिया मिले जरूर, लेकिन अपने बेटे के साथ.

बैठक में कमेटी के सवालों को डालमिया के बेटे सुनते हैं, अपने पिता को बताते हैं. फिर अपने पिताजी से उत्तर पाते हैं और कमेटी को बताते हैं. मतलब डालमिया सही से अपनी बात तक नहीं कह पा रहे थे और न ही दूसरों की बात समझ पा रहे थे. है न आश्चर्य की बात. कमेटी भी आश्चर्यचकित थी.

इस बैठक के बाद कमेटी ने BCCI की कार्य संचालन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए. कमेटी का कहना था कि अगर BCCI अध्यक्ष की मानसिक और शारिरिक स्थिति ऐसी है तो इसे चला कौन रहा है? दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड से जुड़े फैसले आखिर ले कौन रहा है? जिन लोगों ने डालमिया को महज तीन महीने पहले चुना है, क्या वह इस तथ्य से वाकिफ नहीं थे? डालमिया को इस साल मार्च में ही BCCI का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया था.

अब यशवंत सिन्हा की बारी

अगर यह मान भी लिया जाए कि नरेंद्र मोदी के इशारे पर आप जैसे 75 साल पार नेताओं को ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका है, तो इसमें बुराई क्या है? नेता बनने से पहले आप पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे. फिर IAS ऑफिसर बने. इन दोनों पेशों में आप कब के रिटायर हो गए होते. नेता बन गए तो 67 की उम्र तक सत्ता में बने रहे. अब भी बने रहने का इरादा है? हद है! फिर आपके बेटे और देश के वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा का क्या होगा? उन्हें भी सत्ता सुख भोगने दीजिए.

दो ही बार बन सकते हैं अमेरिका में राष्ट्रपति

अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन (1789 से 1797) दो ही बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़े. वो भी बिना किसी लिखित संविधान के. वह चाहते तो तीसरी बार भी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकते थे. पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. यह प्रथा पहली बार 1940 में फ्रैंकलिन रुजवेल्ट ने तोड़ी. वह 1933 से 1945 तक चार बार राष्ट्रपति रहे. इसके दो साल के भीतर ही 1947 में अमेरिका में 22वां संविधान संशोधन किया गया और राष्ट्रपति के लिए दो बार चुनाव लड़ने की समय सीमा तय कर दी गई.   

भारत में सरकारी नौकर के लिए रिटायरमेंट की उम्र (58 या 60 साल) किसने तय की होगी? निश्चित ही सरकार ने. कारण रहा होगा - कब तक काम करेगा इंसान? ठीक से प्रोडक्टिविटी नहीं दे पाएगा एक उम्र के बाद. लेकिन उसी सरकार ने अपने लिए कोई सीमा तय नहीं की. नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक... किसी ने भी नहीं. 'युवा' राजीव भी नहीं कर पाए. आखिर क्यों हर कायदे-कानून सिर्फ जनता के लिए ही? आप खुद इनके दायरे में क्यों नहीं आते?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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