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सियासत में पारिवारिक मूल्यों की भूमिका

    • कमलेश सिंह
    • Updated: 17 अप्रिल, 2015 10:35 AM
  • 17 अप्रिल, 2015 10:35 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विभाजनकारी होने की तोहमत भले ही लगती रही हो, मगर वो तो एकजुटता के अद्वितीय सूत्रधार बन गए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विभाजनकारी होने की तोहमत भले ही लगती रही हो, मगर वो तो एकजुटता के अद्वितीय सूत्रधार बन गए हैं. 2013 में जब उन्होंने भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने के लिए अभियान शुरू किया था, तो बिहार में पार्टी के सहयोगी नीतीश कुमार ने गंठबंधन तोड़ते हुए कहा था कि जनता दल (यूनाइटेड) उन्हें एनडीए के पीएम उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं करेगा. उनका तर्क था कि मोदी लोगों को बांटते हैं. मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले ही विपक्ष को एकजुट कर दिया था. और अब, जब मोदी अपनी सरकार का एक साल पूरा कर रहे हैं, सभी तथाकथित समाजवादी विचारधाराओं वाले दल मिलकर नई पार्टी बना रहे हैं.

"परिवार" भारतीय समाज को परिभाषित करती एक खासियत है और राजनीति को इससे काफी प्रेरणा मिलती है. वे एक साथ रहते हैं, अक्सर झगड़ा करते हैं और जब कोई मुश्किल आती हैं तो फिर से साथ हो लेते हैं. हमारी सत्तारूढ़ पार्टी संघ परिवार का हिस्सा है. कांग्रेस को "नेहरू-गांधी परिवार'' की पार्टी कहा जाता है. और अब जनता परिवार, जो परिवारों से मिलकर बना परिवार है. वे हमारे समाज के सच्चे प्रतिबिंब हैं जहां वंशवाद परिवार को बांधे रखता है. राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय है, और सदस्य इसमें वारिस की भूमिका निभाते हैं.

मुलायम सिंह यादव की फेमिली उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी परिवार है. समाजवादी पार्टी के पांचों सांसद उन्हीं के परिवार से हैं: मुलायम खुद लोक सभा में पार्टी के नेता हैं, उनके साथ उनकी बहू डिंपल यादव, भतीजे धर्मेंद्र और अक्षय यादव और पोते तेज प्रताप यादव (अब लालू प्रसाद यादव के दामाद भी) भी सांसद हैं. अक्षय के पिता और मुलायम के भाई रामगोपाल यादव राज्य सभा में पार्टी के नेता हैं. जबकि शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम किरदार हैं. मुलायम के बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

लालू प्रसाद यादव चुनाव नहीं लड़ सकते क्योंकि वह एक आपराधिक मामले में उन्हें सजा मिली हुई हैं. लेकिन उनकी पत्नी और बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकीं...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विभाजनकारी होने की तोहमत भले ही लगती रही हो, मगर वो तो एकजुटता के अद्वितीय सूत्रधार बन गए हैं. 2013 में जब उन्होंने भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने के लिए अभियान शुरू किया था, तो बिहार में पार्टी के सहयोगी नीतीश कुमार ने गंठबंधन तोड़ते हुए कहा था कि जनता दल (यूनाइटेड) उन्हें एनडीए के पीएम उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं करेगा. उनका तर्क था कि मोदी लोगों को बांटते हैं. मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले ही विपक्ष को एकजुट कर दिया था. और अब, जब मोदी अपनी सरकार का एक साल पूरा कर रहे हैं, सभी तथाकथित समाजवादी विचारधाराओं वाले दल मिलकर नई पार्टी बना रहे हैं.

"परिवार" भारतीय समाज को परिभाषित करती एक खासियत है और राजनीति को इससे काफी प्रेरणा मिलती है. वे एक साथ रहते हैं, अक्सर झगड़ा करते हैं और जब कोई मुश्किल आती हैं तो फिर से साथ हो लेते हैं. हमारी सत्तारूढ़ पार्टी संघ परिवार का हिस्सा है. कांग्रेस को "नेहरू-गांधी परिवार'' की पार्टी कहा जाता है. और अब जनता परिवार, जो परिवारों से मिलकर बना परिवार है. वे हमारे समाज के सच्चे प्रतिबिंब हैं जहां वंशवाद परिवार को बांधे रखता है. राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय है, और सदस्य इसमें वारिस की भूमिका निभाते हैं.

मुलायम सिंह यादव की फेमिली उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी परिवार है. समाजवादी पार्टी के पांचों सांसद उन्हीं के परिवार से हैं: मुलायम खुद लोक सभा में पार्टी के नेता हैं, उनके साथ उनकी बहू डिंपल यादव, भतीजे धर्मेंद्र और अक्षय यादव और पोते तेज प्रताप यादव (अब लालू प्रसाद यादव के दामाद भी) भी सांसद हैं. अक्षय के पिता और मुलायम के भाई रामगोपाल यादव राज्य सभा में पार्टी के नेता हैं. जबकि शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम किरदार हैं. मुलायम के बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

लालू प्रसाद यादव चुनाव नहीं लड़ सकते क्योंकि वह एक आपराधिक मामले में उन्हें सजा मिली हुई हैं. लेकिन उनकी पत्नी और बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकीं राबड़ी देवी चुनाव लड़ सकती हैं. उनकी बेटी मीसा भी, जो पिछली बार चुनाव मैदान में उतरी थीं. लालू ने बेटे तेजस्वी को अपनी राजनीतिक विरासत का वारिस घोषित किया है. उनके दूसरे बेटे तेज प्रताप राष्ट्रीय जनता दल में अपनी हिस्सेदारी के लिए संघर्षरत हैं. लालू के साले साधु और सुभाष उनकी विरासत की जंग तो छोड़ कर हाशिये पर हैं, लेकिन सक्रिय हैं.

एक और परिवार के मुखिया जो अब चुनाव नहीं लड़ सकते, वो हैं - हरियाणा के ओम प्रकाश चौटाला, जो खुद मुख्यमंत्री रह चुके हैं और चौधरी देवीलाल के पुत्र हैं, जो कभी देश के उप प्रधानमंत्री रहे. चौटाला को उनके बड़े बेटे अजय के साथ एक आपराधिक मामले में सजा हुई है. उनके पौत्र दुष्यंत चौटाला उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से एकमात्र सांसद हैं. उनके दूसरे बेटे अभय हरियाणा विधानसभा में इनेलो का नेतृत्व करते हैं. उनकी बहु भी पिछला चुनाव लड़ चुकी हैं.

कर्नाटक के देवगौड़ा परिवार के नेतृत्व वाला जनता दल (सेक्युलर) दक्षिण भारत से जनता परिवार का सदस्य है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी 2006-07 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे. उनके एक और पुत्र एचडी रेवन्ना वहां से विधायक हैं. परिवार का मुख्य व्यवसाय राजनीति है, वैसे खनन और उनके अन्य बिजनेस खूब फल फूल रहे हैं.

ये चारों मिल कर सियासत की सुपर-फेमिली बना रहे हैं, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी भी एक नन्हें खिलाड़ी के रूप में शामिल है. इसमें नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) अकेली ऐसी पार्टी है जिसमें "पारिवारिक मूल्य" शामिल नहीं हैं. नरेंद्र मोदी के प्रति नीतीश कुमार के घोर घृणा भाव के चलते उन्हें परिवारों की पार्टी में विलय के लिए मजबूर होना पड़ा है. जो भी इस नए परिवार का हिस्सा बने हैं उन्हें अंदरूनी तौर पर कोई खतरा नहीं है. हरियाणा चौटाला की जमीन है, उत्तर प्रदेश मुलायम की जागीर है और कर्नाटक देवगौड़ाओं का. बिहार के राजनीतिक कारोबार पर दो फर्मों की दावेदारी है. लालू का अपना परिवार है. उनकी "एंड संस" पार्टी हैं. जद (यू) "एंड कंपनी" पार्टी है. नीतीश कुमार, शरद यादव एंड कंपनी.

सच्चाई यह है कि ब्रेक-अप के बाद नीतीश कुमार बिहार में और मजबूत हुए हैं, जबकि बहिष्कृत होने के चलते लालू की आभा धुंधली पड़ गई. नई जिंदगी मिलने से लालू नई पार्टी में हावी रहेंगे, क्योंकि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव अब एक परिवार का हिस्सा हैं. क्या नीतीश कुमार इस पारिवारिक मिल्कियत के सुहाने संबंधों में कांटा बन सकते हैं? जनता परिवार का अगला बिखराव इसी बात पर निर्भर करेगा. किसी और आखिरी दिन के लिए आप नीतीश कुमार और शरद यादव पर भरोसा कर सकते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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