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नेपाल में क्यों फेल हो रही मोदी की विदेश नीति?

    • विनीत कुमार
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2015 04:48 PM
  • 04 अक्टूबर, 2015 04:48 PM
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नेपाल में भारत का विरोध केवल राजनीतिक स्तर पर नहीं हो रहा. नेपाली लोगों के बीच भारत को लेकर एक निगेटिव छवि बन रही है. यह चिंताजनक है. क्या भारत को अपना रवैया बदलना होगा...

1947 के बाद से ही भारत के लिए विदेश नीति के तौर पर पाकिस्तान सबसे बड़ी चुनौती रहा है. आज भी है. लेकिन अब लग रहा है कि इस कड़ी में एक नया नाम नेपाल भी जुड़ने जा रहा है. एक ऐसा देश जहां आने-जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती वह अगर संयुक्त राष्ट्र में आपकी शिकायत लगाने लगे तो समझना चाहिए कि मामला गंभीर है.

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों, योजनाओं, भाषणों की आलोचना होती रही हो. घरेलू राजनीति का यह तकाजा भी है कि विपक्ष आपके हर कदम पर पहले सवाल खड़े करेगा. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर वाहवाही लूटने वाले मोदी के आलोचक भी कम से कम उनकी विदेश नीति पर सहमति जताते दिखते हैं. मोदी चीन से लेकर अमेरिका और जापान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक को अपनी विदेश नीति में समेटे हुए हैं. लेकिन नेपाल के मसले पर फेल होते दिख रहे हैं.

फेल इसलिए क्योंकि नेपाल में भारत का विरोध केवल राजनीतिक स्तर पर नहीं हो रहा. नेपाली लोगों के बीच भारत को लेकर एक निगेटिव छवि बन रही है. यह चिंताजनक है. वैसे, मोदी पिछले साल नेपाल भी गए थे और पशुपतिनाथ के दर्शन भी कर आए. लेकिन लगता है कि उसका बहुत ज्यादा फल उनके हिस्से नहीं आया. नेपाल ने हाल में लोकतांत्रिक पद्धति को अपनाया है. मतलब, वोटों का खेल वहां भी शुरू होगा. नेपाल की तीन बड़ी पार्टियां नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल और यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी ने आरोप लगाया है कि भारत उनके देश के अंदरूनी मसलों में दखल देने का प्रयास कर रहा है.

नेपाली कांग्रेस के भारत से रिश्ते तो बहुत करीबी हैं. उसकी स्थापना ही 1946 में कोलकाता में हुई थी. इसलिए उसका स्टैंड हैरान करने वाला है. भारत-नेपाल सीमा पर पिछले कुछ दिनों से कई ट्रक खड़े हैं. तेल से लेकर कई जरूरी सामान इन ट्रकों के जरिए नेपाल जाते रहे हैं. नए संविधान का विरोध कर रहा मधेशी समुदाय भारत से आने वाले ट्रकों को नेपाल में प्रवेश नहीं करने दे रहा. लेकिन दुनिया भर की मीडिया और नेपाल में यह...

1947 के बाद से ही भारत के लिए विदेश नीति के तौर पर पाकिस्तान सबसे बड़ी चुनौती रहा है. आज भी है. लेकिन अब लग रहा है कि इस कड़ी में एक नया नाम नेपाल भी जुड़ने जा रहा है. एक ऐसा देश जहां आने-जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती वह अगर संयुक्त राष्ट्र में आपकी शिकायत लगाने लगे तो समझना चाहिए कि मामला गंभीर है.

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों, योजनाओं, भाषणों की आलोचना होती रही हो. घरेलू राजनीति का यह तकाजा भी है कि विपक्ष आपके हर कदम पर पहले सवाल खड़े करेगा. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर वाहवाही लूटने वाले मोदी के आलोचक भी कम से कम उनकी विदेश नीति पर सहमति जताते दिखते हैं. मोदी चीन से लेकर अमेरिका और जापान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक को अपनी विदेश नीति में समेटे हुए हैं. लेकिन नेपाल के मसले पर फेल होते दिख रहे हैं.

फेल इसलिए क्योंकि नेपाल में भारत का विरोध केवल राजनीतिक स्तर पर नहीं हो रहा. नेपाली लोगों के बीच भारत को लेकर एक निगेटिव छवि बन रही है. यह चिंताजनक है. वैसे, मोदी पिछले साल नेपाल भी गए थे और पशुपतिनाथ के दर्शन भी कर आए. लेकिन लगता है कि उसका बहुत ज्यादा फल उनके हिस्से नहीं आया. नेपाल ने हाल में लोकतांत्रिक पद्धति को अपनाया है. मतलब, वोटों का खेल वहां भी शुरू होगा. नेपाल की तीन बड़ी पार्टियां नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल और यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी ने आरोप लगाया है कि भारत उनके देश के अंदरूनी मसलों में दखल देने का प्रयास कर रहा है.

नेपाली कांग्रेस के भारत से रिश्ते तो बहुत करीबी हैं. उसकी स्थापना ही 1946 में कोलकाता में हुई थी. इसलिए उसका स्टैंड हैरान करने वाला है. भारत-नेपाल सीमा पर पिछले कुछ दिनों से कई ट्रक खड़े हैं. तेल से लेकर कई जरूरी सामान इन ट्रकों के जरिए नेपाल जाते रहे हैं. नए संविधान का विरोध कर रहा मधेशी समुदाय भारत से आने वाले ट्रकों को नेपाल में प्रवेश नहीं करने दे रहा. लेकिन दुनिया भर की मीडिया और नेपाल में यह छवि भी बन रही है कि भारत ने नाराज होकर एक तरह से 'अघोषित नाकेबंदी' नेपाल पर थोप दी है.

बिहार चुनाव तो नहीं है वजह?

यह सवाल इसलिए कि भारत की सरकार को जिस प्रकार इस 'अघोषित नाकेबंदी' के आरोप से निपटना चाहिए, वैसी कोशिश करती वह नहीं दिख रही. बिहार की सीमा का बड़ा हिस्सा नेपाल से जुड़ा है. मधेशी समुदाय में भी मुख्यत: वे लोग आते हैं जो भारतीय सीमा से सटे हैं और उनका बिहार से गहरा संबंध है. बिहार में चुनाव होने है. इसलिए यह सवाल है कि क्या जानबूझकर इस मसले को और लटकाया जा रहा है. नेपाल वैश्विक मंचों से भारत पर आरोप लगा रहा है लेकिन यहां सरकार इन आरोपों का जवाब नहीं दे रही.

चीन का फायदा

हम इस मुगालते में तो नहीं रह सकते कि नेपाल हमेशा हमारे प्रभाव में रहेगा. नेपाल अगर हमसे निराश होगा तो चीन की ओर जाएगा. चीन इसकी ताक में बहुत दिनों से है और नेपाल को मदद पहुंचाता रहा है. जब नेपाल में इस साल भूकंप आया तो भारतीय सहायता दल वहां सबसे तेजी से पहुंचा था लेकिन वाहवाही चीन बटोर ले गया. इसलिए नेपाल में अपनी इमेज को बरकरार रखना भारत के लिए बड़ी चुनौती है.

नेपाल में शुरू से उग्र राष्ट्रवाद की भावना रही है. पहले भी कभी किसी भारतीय अभिनेता तो कभी भारतीय मीडिया के नाम पर भारत के खिलाफ माहौल देखने को मिलता रहा है. नेपाल में भारत को लेकर एक छवि यह भी रही है कि हम उनके साथ हमेशा 'बिग ब्रदर' वाली भूमिका निभाते रहे हैं. लेकिन यह देखते हुए कि नेपाल अब लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है, भारत को अपना रवैया बदलना होगा. यह सच है कि नेपाल के नए संविधान में मधेशियों या कह लें कि तराई क्षेत्र में रहने वाले लोगों के अधिकार को लेकर विवाद है. लेकिन जरूरी है कि भारत कूटनीतिक तरीके से इस समस्या से निपटे और जल्दी निपटे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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