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इरोम शर्मिला को डर्टी पॉलिटिक्स से इतना मोह क्यों?

    • आईचौक
    • Updated: 10 अगस्त, 2016 08:31 PM
  • 10 अगस्त, 2016 08:31 PM
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सोनिया की रैली को लेकर कांग्रेस के सभी नेता ये तो मानते हैं कि रोड शो सफल रहा है - और इसका रिजल्ट भी अच्छा ही देखने को मिलेगा, लेकिन...

"एक आदमी भीड़ में खो गया... ससुरा नेता हो गया..." करीब दो दशक पहले बनारस के राजेंद्र प्रसाद घाट पर एक कवि सम्मेलन में चकाचक बनारसी ने ये लाइनें सुनाई तो भीड़ ने जोर का ठहाका लगाया. ये बात करीब दो दशक पहले की है, अब तो चकाचक के गुजरे भी डेढ़ दशक बीत चुके हैं - लेकिन उनकी ये बात आज भी मौजूं है. लगता है आगे भी रहेगी.

गंदा है पर...

लगातार 16 साल तक भूखे रह कर विरोध AFSPA का विरोध करती रहीं इरोम शर्मिला का कहना है कि राजनीति गंदी है.

इसे भी पढ़ें : इरोम से उम्मीदें तो बहुत हैं, बस डर है कहीं केजरीवाल न बन जाएं

बीबीसी से बातचीत में शर्मिला राजनीति को लेकर कहती हैं, "अगर लोग वोट की इज्जत करेंगे तो राजनीति से गंदगी निकल जाएगी. राजनीति में गंदगी लोगों की सोच से भी जुड़ी हुई है. लेकिन अगर मेंरे हाथ में शक्ति नहीं है तो कौन मेरी आवाज सुनेगा. मैं कब से झेल रही हूं."

फिर भी शर्मिला मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में उतरने जा रही हैं. पॉलिटिकली ताकतवर होने के लिए मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं. वजह भी साफ कर देती हैं - ताकि मणिपुर से AFSPA हटा सकें.

ये कैसी सहानुभूति

लंबे अरसे तक सोनिया गांधी की भी राय रही - राजनीति बहुत गंदी चीज है. हेलीकॉप्टर हादसे में संजय गांधी की मौत के बाद वो राजीव गांधी के भी राजनीति ज्वाइन करने के खिलाफ थीं. राजीव की हत्या के बाद जब खुद जिम्मेदारी उठाने की नौबत आई तो फैसले में भी काफी वक्त लगाया.

2 अगस्त को सोनिया गांधी बनारस में रोड शो के दौरान बीमार पड़ गईं - उन्हें सर्जरी तक करानी पड़ी...

"एक आदमी भीड़ में खो गया... ससुरा नेता हो गया..." करीब दो दशक पहले बनारस के राजेंद्र प्रसाद घाट पर एक कवि सम्मेलन में चकाचक बनारसी ने ये लाइनें सुनाई तो भीड़ ने जोर का ठहाका लगाया. ये बात करीब दो दशक पहले की है, अब तो चकाचक के गुजरे भी डेढ़ दशक बीत चुके हैं - लेकिन उनकी ये बात आज भी मौजूं है. लगता है आगे भी रहेगी.

गंदा है पर...

लगातार 16 साल तक भूखे रह कर विरोध AFSPA का विरोध करती रहीं इरोम शर्मिला का कहना है कि राजनीति गंदी है.

इसे भी पढ़ें : इरोम से उम्मीदें तो बहुत हैं, बस डर है कहीं केजरीवाल न बन जाएं

बीबीसी से बातचीत में शर्मिला राजनीति को लेकर कहती हैं, "अगर लोग वोट की इज्जत करेंगे तो राजनीति से गंदगी निकल जाएगी. राजनीति में गंदगी लोगों की सोच से भी जुड़ी हुई है. लेकिन अगर मेंरे हाथ में शक्ति नहीं है तो कौन मेरी आवाज सुनेगा. मैं कब से झेल रही हूं."

फिर भी शर्मिला मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में उतरने जा रही हैं. पॉलिटिकली ताकतवर होने के लिए मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं. वजह भी साफ कर देती हैं - ताकि मणिपुर से AFSPA हटा सकें.

ये कैसी सहानुभूति

लंबे अरसे तक सोनिया गांधी की भी राय रही - राजनीति बहुत गंदी चीज है. हेलीकॉप्टर हादसे में संजय गांधी की मौत के बाद वो राजीव गांधी के भी राजनीति ज्वाइन करने के खिलाफ थीं. राजीव की हत्या के बाद जब खुद जिम्मेदारी उठाने की नौबत आई तो फैसले में भी काफी वक्त लगाया.

2 अगस्त को सोनिया गांधी बनारस में रोड शो के दौरान बीमार पड़ गईं - उन्हें सर्जरी तक करानी पड़ी है.

सही बात है, राजनीति बहुत गंदी चीज है...

सोनिया की रैली को लेकर कांग्रेस के सभी नेता ये तो मानते हैं कि रोड शो सफल रहा है - और इसका रिजल्ट भी अच्छा ही देखने को मिलेगा.

इसे भी पढ़ें : आखिर किसके मत्थे मढ़ी जाएगी सोनिया के बीमार पड़ने की जिम्मेदारी

कई ऐसे भी कांग्रेस नेता हैं जो मान कर चल रहे हैं कि सोनिया के बीमार होने से पार्टी को लोगों की सहानुभूति भी मिलेगी. तो क्या ऐसे नेता ये जताना चाहते हैं कि चलो अच्छा हुआ - बीमार हुईं तो क्या हुआ, पॉलिटिकल माइलेज तो मिलेगा. ऐसे में जबकि कुछ कांग्रेस नेता इतने डरे हुए थे कि कुछ भी हो सकता था - और उसकी तोहमत कांग्रेस की मौजूदा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर मढ़ना चाह रहे हैं.

चुनावी सभाओं में सोनिया और राहुल गांधी बताते रहे हैं कि उनके परिवार को राजनीति के लिए कितने बलिदान देने पड़े हैं. ये सही है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर ने वोट बटोरे. ठीक वैसे ही राजीव गांधी की हत्या के बाद भी हुआ.

अब अगर उसी तरह कांग्रेस नेता सोनिया की बीमारी को भी एनकैश कराने की बात कर रहे हैं, तो ये कैसी सोच है?

इसे भी पढ़ें : इरोम का फैसला बताता है कि समाधान सत्ता में ही है

सत्ता और शासन को लेकर डर्टी पॉलिटिक्स से इतिहास भरा पड़ा है, लेकिन जो कांग्रेस नेता इस तरह की बात कर रहे हैं उनकी सोच किस तरह की हो चुकी है?

काजल की कोठरी में...

'काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय...' भला दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से बेहतर इसे कौन समझ रहा होगा?

इरोम शर्मिला का अपना मकसद है, अपनी मंजिल है. लेकिन केजरीवाल का मकसद तो राजनीति में आकर भ्रष्ट सिस्टम को बदलना था. जनलोकपाल लाकर देश से भ्रष्टाचार मिटाना था. केजरीवाल ने इसके लिए कड़ा संघर्ष भी किया, लेकिन क्या अब वो खुद भी राजनीति के गंदे दलदल में फंस नहीं गये हैं?

कभी न कभी, 24 घंटे में कोई क्षण ऐसा तो आता ही होगा जब ये बात केजरीवाल को भी सालती जरूर होगी. है कि नहीं?

आखिर इरोम को ये डर्टी पॉलिटिक्स इतना क्यों भाने लगी है? केजरीवाल उनके सामने सबसे बड़ी मिसाल बन कर खड़े हैं. वैसे वो चाहें तो नेल्सन मंडेला और आंग सान सू की को मिसाल के तौर पर पेश कर सकती हैं - लेकिन मेधा पाटकर और अन्ना हजारे जैसे उदाहरण भी तो उनके सामने हैं. जहां तक मणिपुर से AFSPA हटाने की बात है तो उसे तो शर्मिला सीएम बन कर भी नहीं कर सकतीं.

मणिपुर से AFSPA हटाने के लिए इरोम शर्मिला को पहले प्रधानमंत्री बनना होगा - और वो भी अपनी मंजिल तभी पा सकेंगी जब उनके पास लोक सभा के साथ साथ राज्य सभा में भी पूर्ण बहुमत हो - और उनके खुद के सांसद मन से उनके साथ हों.

फिलहाल तो ऐसा ही लगता है, शर्मिला भी बिलकुल वैसी ही कोशिश करने जा रही हैं, जैसे केजरीवाल देश में जनलोकपाल लागू करने के लिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे दिन लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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