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राजनीति में 'सेक्सी' महिलाओं के आने से क्यों मच जाती है हलचल

    • श्रीमई पियू कुंडू
    • Updated: 18 जुलाई, 2015 03:59 PM
  • 18 जुलाई, 2015 03:59 PM
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वासना से भरे घटिए आइटम सॉन्ग को समाज स्वीकार करता है लेकिन राजनीति में खूबसूरत महिलाओं के आने से डरता है. तभी तो पश्चिम बंगाल बीजेपी की सदस्य रूपा गांगुली की कमर और नाभि को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की गई.

दो दिन पहले मेरी एक दोस्त ने कोलकाता से फोन किया और पूछा कि क्या मैंने पार्थ दासगुप्ता के बारे में सुना है. सोशल मीडिया पर कुछ खोजबीन के बाद मुझे पता लगा कि दासगुप्ता एक आत्म-घोषित 'स्वतंत्र फिल्ममेकर' हैं. कुर्ता पहने हुए अधेड़ उम्र के दासगुप्ता एक परंपरागत बंगाली पुरुष लग रह थे. हाल में वह अभिनेत्री और पश्चिम बंगाल बीजेपी की सदस्य रूपा गांगुली पर अपनी एक अपमानजनक टिप्पणी के लिए चर्चा में रहे.

बी. आर. चोपड़ा की महाभारत में द्रौपदी का किरदार निभाने वाली रूपा गांगुली के बारे में दासगुप्ता ने कहा था, 'इस उम्र में भी उनकी कमर और नाभि का हिस्सा किसी भी पुरुष की कामेच्छा जगाने और दूसरी महिलाओं के उनसे इर्ष्या करने का कारण है. मानना पड़ेगा बीजेपी में भर्ती करने वाले लोगों की नजर बहुत 'अच्छी' है.'

दासगुप्ता की इस भद्दी टिप्पणी का जवाब रूपा गांगुली ने यह कहते हुए दिया , 'पार्थ ने बेहद गंदी मानसिकता का परिचय दिया है. पश्चिम बंगाल के ज्यादातर पुरुष उनकी इस टिप्पणी पर शर्म महसूस कर रहे होंगे.'

कड़वा सच
हम जरा खुल के बात करते हैं. मेरी मां की पीढ़ी के पुरुष जिनमें ज्यादातर 50 की उम्र से ज्यादा होंगे. आधे गंजे होंगे, तोंद निकल आई होगी. सामान्य वजन से ज्यादा की हो चुकी उनकी पत्नियां टीवी पर रात नौ बजे के बाद 'दादागिरी' और अन्य टीवी सीरीयलों को देखते हुए बिताती होंगी. ऐसे में उन पुरुषों की इच्छा के लिए गांगुली आखिरी उम्मीद होंगी. गांगुली- एक ऐसी नारी, जिसे क्षेत्रीय सिनेमा के साथ-साथ आज के पॉपुलर कल्चर में गंभीर और सेक्सी दोनों माना जाता है. एक ऐसी महिला, जो अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं और पुरुषों की कामेच्छा भी जगा सकती हैं.

उनकी शुष्क आवाज और खुले बाल किसी भी अधेड़ उम्र के पुरुष की काम-कल्पना को जगा सकते हैं. महाभारत में जब द्रौपदी के वस्त्रहरण का दृश्य आता है, तब कई लोग रूपा गांगुली को एकटक देखते रह जाते हैं. इससे पता चलता है कि हमारा एक समाज ऐसा भी है, जो गुप्त तौर से सेक्स और हिंसा पर ही अपनी...

दो दिन पहले मेरी एक दोस्त ने कोलकाता से फोन किया और पूछा कि क्या मैंने पार्थ दासगुप्ता के बारे में सुना है. सोशल मीडिया पर कुछ खोजबीन के बाद मुझे पता लगा कि दासगुप्ता एक आत्म-घोषित 'स्वतंत्र फिल्ममेकर' हैं. कुर्ता पहने हुए अधेड़ उम्र के दासगुप्ता एक परंपरागत बंगाली पुरुष लग रह थे. हाल में वह अभिनेत्री और पश्चिम बंगाल बीजेपी की सदस्य रूपा गांगुली पर अपनी एक अपमानजनक टिप्पणी के लिए चर्चा में रहे.

बी. आर. चोपड़ा की महाभारत में द्रौपदी का किरदार निभाने वाली रूपा गांगुली के बारे में दासगुप्ता ने कहा था, 'इस उम्र में भी उनकी कमर और नाभि का हिस्सा किसी भी पुरुष की कामेच्छा जगाने और दूसरी महिलाओं के उनसे इर्ष्या करने का कारण है. मानना पड़ेगा बीजेपी में भर्ती करने वाले लोगों की नजर बहुत 'अच्छी' है.'

दासगुप्ता की इस भद्दी टिप्पणी का जवाब रूपा गांगुली ने यह कहते हुए दिया , 'पार्थ ने बेहद गंदी मानसिकता का परिचय दिया है. पश्चिम बंगाल के ज्यादातर पुरुष उनकी इस टिप्पणी पर शर्म महसूस कर रहे होंगे.'

कड़वा सच
हम जरा खुल के बात करते हैं. मेरी मां की पीढ़ी के पुरुष जिनमें ज्यादातर 50 की उम्र से ज्यादा होंगे. आधे गंजे होंगे, तोंद निकल आई होगी. सामान्य वजन से ज्यादा की हो चुकी उनकी पत्नियां टीवी पर रात नौ बजे के बाद 'दादागिरी' और अन्य टीवी सीरीयलों को देखते हुए बिताती होंगी. ऐसे में उन पुरुषों की इच्छा के लिए गांगुली आखिरी उम्मीद होंगी. गांगुली- एक ऐसी नारी, जिसे क्षेत्रीय सिनेमा के साथ-साथ आज के पॉपुलर कल्चर में गंभीर और सेक्सी दोनों माना जाता है. एक ऐसी महिला, जो अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं और पुरुषों की कामेच्छा भी जगा सकती हैं.

उनकी शुष्क आवाज और खुले बाल किसी भी अधेड़ उम्र के पुरुष की काम-कल्पना को जगा सकते हैं. महाभारत में जब द्रौपदी के वस्त्रहरण का दृश्य आता है, तब कई लोग रूपा गांगुली को एकटक देखते रह जाते हैं. इससे पता चलता है कि हमारा एक समाज ऐसा भी है, जो गुप्त तौर से सेक्स और हिंसा पर ही अपनी प्रतिक्रिया दिखाता है.

बहरहाल, गांगुली ने सबसे अच्छा यह किया कि उन्होंने बंगाली बंधुओं को दो भाग में बांट दिया. एक वर्ग खुलकर यह कह रहा है कि बीजेपी ने घटिया राजनीतिक स्टंट के तहत वोटरों को लुभाने के लिए रूपा गांगुली को शामिल किया. वहीं, कुछ लोगों के लिए यह अच्छी बात है कि उन्हें हर रोज अखबारों में अब गांगुली की तस्वीर देखने को मिलेगी. दरअसल, गंगुली हॉट हैं, अच्छी दिखती हैं, अच्छा बोलती हैं. इसलिए राजनीति में उनके आने के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए. खासकर, ऐसे राज्य में जहां की मुख्यमंत्री अपनी संयम भरी जिंदगी लिए जानी जाती हैं. हवाई चप्पल और बंगाली सूती साड़ी पहनती हैं.

महत्वपूर्ण बात
अगर सिनेमा, काल्पनिक भारतीय कहानियों, कॉरपोरेट जगत, हॉस्पिटैलिटी और विमानन के क्षेत्र में महिलाओं की देह की सुंदरता को ज्यादा महत्व दिया जाता है तो राजनीति में भला सेक्स अपील क्यों एक अमान्य सी बात मानी जाती है.

एक ऐसा देश जहां शादी के लिए विज्ञापन तक में महिला के शारीरिक सौंदर्य को बेचने का काम होता है. जहां किसी महिला को आसानी से पारंपरिक बंधनों में बांधा जाता है, कई बार कलंकित करने की कोशिश होती है. बसों, कॉलेज कैंटिनों और सार्वजनिक स्थानों पर छेड़ा जाता है. बड़ी बजट की फिल्मों में जहां ऐसी ही वासना से भरी और घटिया आइटम सॉन्ग को परोसा जाता है, वहां हमें राजनीति में खूबसूरत महिलाओं के आने से डर क्यों लगता है.

ऐसा क्यों है कि सादगी और बिना मेकअप वाली महिलाओं और ऊंची हील की सैंडल पहनने की बजाए चप्पल पहनने वाली को ही ज्यादा गंभीर माना जाता है. ऐसा भी क्यों है कि सिल्वर स्क्रीन पर खूबसूरत लग रही महिलाएं जब किसी मंच पर नजर आती हैं तो अलग दिखती हैं?

ऐसा क्यों है कि रूपहले पर्दें से आईं जयललिता की तरह केवल कुछ महिलाएं ही राजनीति में अपने पैर जमाने में कामयाब रहीं. जयललिता ने तमिल, तेलगु और कन्नड़ भाषाओं में 120 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय एमजी रामचंद्रन को जाता है, जो खुद अभिनय की दुनिया छोड़ यहां आए थे.

क्या सी-ग्रेड आइटम गाने करने वालीं राखी सावंत जैसे कुछ नामों के कारण राजनीति में महिलाओं की भूमिका का उपहास करना ज्यादा आसान हो जाता है. सावंत अब रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्य हैं. इससे पहले उन्होंने अपनी राष्ट्रीय आम पार्टी की शुरुआत की थी, जिसका चिन्ह हरी मिर्च था. अपनी घोषणापत्र में राखी ने कहा था, 'मैं गरीब लोगों की सेवा करना चाहती हूं. देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार की ओर प्रयास करना चाहती हूं. मैं दुखी जनता के लिए अपने शरीर के रक्त की आखिरी बूंद तक को कुर्बान करूंगी. भ्रष्टाचार से परेशान लोगों को इससे उबरने का एक नया विकल्प दूंगी.'

क्या यह सही है?
क्या रूपा गांगुली की स्थिति राजनीति में मौजूद पौरुषवाद की ही एक झलक है. क्या वह अति उत्साही दर्शकों के बीच फंस गई हैं, जो सपने तो द्रौपदी के देखता है लेकिन सोता सीता के साथ है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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