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जिस दौर में नीतीश बीजेपी से हाथ मिला लेते हों, हजार रुपये देकर कांग्रेस से कोई क्यों जुड़े?

    • आईचौक
    • Updated: 04 अगस्त, 2017 02:02 PM
  • 04 अगस्त, 2017 02:02 PM
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तरह तरह के एक्सपेरिमेंट करते हुए सिफर के करीब पहुंच चुकी कांग्रेस अब एक नये आइडिया के साथ आई है - जिसमें पेशेवर लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश है.

"अगर आप 7वीं और 8वीं पास हैं, तो इसके बूते कुछ बनने की गुंजाइश सिर्फ राजनीति में ही है. पॉलिटिकल पद पा सकते हैं - क्योंकि राजनीति में शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं समझी जाती है. लेकिन बिना योग्यता के आप सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं कर सकते." पटना हाई कोर्ट की ये टिप्पणी एक केस की सुनवाई के दौरान आई है. कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें एक महिला को सिर्फ प्रवेश परीक्षा पास कर लेने से ही अच्छे कनेक्शन के चलते नौकरी मिल गयी और साल दर साल तरक्की भी होती रही, लेकिन आगे चल कर पेंच फंस गया.

तरह तरह के एक्सपेरिमेंट करते हुए सिफर के करीब पहुंच चुकी कांग्रेस अब एक नये आइडिया के साथ आई है - जिसमें पेशेवर लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश है. कांग्रेस का ये प्रयोग भी एक और टाइमपास बन कर रह जाएगा या कोई करिश्मा दिखा सकेगा, देखना होगा?

आइडिया में दम तो है, मगर...

पेशेवर लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए कांग्रेस ने एक नया फोरम बनाया है - ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस. पूर्व मंत्री शशि थरूर को इसका चेयरमैन बनाया गया है. राहुल गांधी को इससे काफी उम्मीदे हैं. थरूर की भी राय पटना हाई कोर्ट जैसी ही है लेकिन उनका मानना है कि सोच बदल रही है और इससे भारतीय लोकतंत्र का उद्धार होगा. द क्विंट डॉट कॉम पर एक लेख में थरूर ने कहा है, "मध्य वर्ग मानता है कि राजनीति उन लोगों के लिए है, जो किसी और काम के लायक नहीं होते. वहीं, भारतीय राजनीति में सफल होने के लिए जो गुण होने चाहिए, उसका पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, यह सोच बदल रही है."

"अगर आप 7वीं और 8वीं पास हैं, तो इसके बूते कुछ बनने की गुंजाइश सिर्फ राजनीति में ही है. पॉलिटिकल पद पा सकते हैं - क्योंकि राजनीति में शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं समझी जाती है. लेकिन बिना योग्यता के आप सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं कर सकते." पटना हाई कोर्ट की ये टिप्पणी एक केस की सुनवाई के दौरान आई है. कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें एक महिला को सिर्फ प्रवेश परीक्षा पास कर लेने से ही अच्छे कनेक्शन के चलते नौकरी मिल गयी और साल दर साल तरक्की भी होती रही, लेकिन आगे चल कर पेंच फंस गया.

तरह तरह के एक्सपेरिमेंट करते हुए सिफर के करीब पहुंच चुकी कांग्रेस अब एक नये आइडिया के साथ आई है - जिसमें पेशेवर लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश है. कांग्रेस का ये प्रयोग भी एक और टाइमपास बन कर रह जाएगा या कोई करिश्मा दिखा सकेगा, देखना होगा?

आइडिया में दम तो है, मगर...

पेशेवर लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए कांग्रेस ने एक नया फोरम बनाया है - ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस. पूर्व मंत्री शशि थरूर को इसका चेयरमैन बनाया गया है. राहुल गांधी को इससे काफी उम्मीदे हैं. थरूर की भी राय पटना हाई कोर्ट जैसी ही है लेकिन उनका मानना है कि सोच बदल रही है और इससे भारतीय लोकतंत्र का उद्धार होगा. द क्विंट डॉट कॉम पर एक लेख में थरूर ने कहा है, "मध्य वर्ग मानता है कि राजनीति उन लोगों के लिए है, जो किसी और काम के लायक नहीं होते. वहीं, भारतीय राजनीति में सफल होने के लिए जो गुण होने चाहिए, उसका पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, यह सोच बदल रही है."

देश बदल रहा है...

वैसे तो कोई भी आईडिया बुरा नहीं होता. कुछेक अपवाद हो सकते हैं. किसी भी आइडिया के क्लिक करने के पीछे पहला फैक्टर उसकी डिमांड और दूसरा उसके अमल का तरीका होता है. प्रोफेशनल कांग्रेस के साथ भी मामला बिलकुल वैसा ही है. देश को ऐसे फोरम की जरूरत तो है - और संभव है विशेषज्ञों ने उसके अमल का तरीका भी बेहतरीन बना रखा हो. फिर भी इस आइडिया के कामयाब होने पर शक हो रहा है.

थरूर के सामने ढेरों चुनौतियां हैं

थरूर की नजर में आर्थिक तरक्की के चलते मध्य वर्ग और प्रोफेशनल क्लास बड़ा हो रहा है - और उन्हें उम्मीद है, "एक वक्त आएगा, जब सिर्फ संख्या की वजह से इस वर्ग को राजनीति में नजरअंदाज करना संभव नहीं रह जाएगा."

ऐसा भी नहीं कि थरूर इन चुनौतियों से वाकिफ नहीं हैं. थरूर ने इसके लिए अमेरिका का उदाहरण देते हैं जहां राष्ट्रपति पद के पिछले 16 उम्मीदवारों में से 12 हॉर्वर्ड या येल यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट थे.

थरूर कहते हैं, "हमारे देश में पैसा उच्च वर्ग के पास है और वोट निचले तबके के पास. इसलिए पढ़ा-लिखा वर्ग इससे दूर रहता है और वह राजनीति को हिकारत की नजर से देखता है. इस वर्ग की वोट डालने में भी बहुत दिलचस्पी नहीं है, जबकि गरीब बड़ी संख्या में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं."

सवाल ये है कि कोई पेशवर शख्स कांग्रेस पार्टी से क्यों जुड़े? कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए दो सरकार के तमाम घोटाले अभी भूले नहीं हैं. इस वक्त भी लोगों के सामने दो नाम हैं - नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव. कांग्रेस लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी के साथ खड़ी है और नीतीश को राहुल गांधी धोखेबाज बता रहे हैं. ये सही है कि जब तक किसी के खिलाफ दोष सिद्ध न हो जाये उसे अपराधी नहीं मानते. अगर इस हिसाब से देखें तो लालू यादव तो इस मामले में भी किनारे हो जाते हैं, लेकिन कांग्रेस उनके और उनके परिवार के खिलाफ आरोपों को राजनीतिक साजिश बता रही है.

हाल की ही बात है. बड़े अरमानों ने ढेरों प्रोशेशनल ने जमी जमाई नौकरी छोड़ कर आम आदमी पार्टी के साथ खड़े रहने का फैसला किया - ज्यादा दिन नहीं लगे और उन्हें निराश होना पड़ा.

थरूर ने खुद का भी उदाहरण दिया है कि कैसे मध्यवर्गीय परिवार में पैदा होने के बाद कड़ी मेहनत के बूते वो यहां तक पहुंचे हैं. मालूम नहीं वो किस जमाने में हैं जब हॉर्वर्ड पर हार्ड वर्क को तरजीह दी जा रही हो - चाय बेच कर थरूर से भी ज्यादा ऊपर पहुंचा जा सकता हो, फिर पढ़ लिख कर अगर कोई इस ओर ध्यान नहीं देता तो गलत क्या है?

अच्छी बात ये है कि थरूर को कांग्रेस ने पहली बार कोई ढंग की जिम्मेदारी दी है - वरना, राज्य मंत्री से ऊपर तो उन्हें कभी मौका ही नहीं मिला. थरूर को ऐसे मंत्री को रिपोर्ट करना होता था जो दुनिया के किसी भी मंच से किसी भी मुल्क का स्पीच बेधड़क पढ़ने का हुनर रखता हो. पार्टी बदलने के साथ उनकी भी काबिलियत में इजाफा हो गया हो क्या मालूम! हाई कोर्ट की ये टिप्पणी ऐसे दौर में आई है जब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री फिर से मीडिया में छाई हुई है, लेकिन किसी दूसरी वजह से.

कल तक नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार हुआ करते थे. सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ देश भर में महागठबंधन खड़ा करने की पहल की और कुछ हद तक अगुवाई भी की, लेकिन में ऐन वक्त पर यू टर्न ले लिया. ये टिप्पणी उस दौर में आई है जब संघ मुक्त देश का नारा देने वाले नीतीश कुमार मौके की नजाकत देख कांग्रेस मुक्त अभियान में शामिल हो गये हैं. ऐसे दौर में कोई पेशेवर शख्स जो खुद को घिस घिस कर तमाम हुनर हासिल किये हों, भला वो हजार रूपये देकर डूबती जहाज पर क्यों चढ़ने की सोचे? अगर कांग्रेस के पास ऐसे सवालों के जवाब हैं तो बेशक उसे नये आइडिया के साथ आगे बढ़ना चाहिये, वरना टाइमपास के लिए तो कुछ भी बुरा नहीं होता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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