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#अगर कांग्रेस नहीं होती तो?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2016 02:44 PM
  • 09 दिसम्बर, 2016 02:44 PM
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ट्विटर पर हैशटैग '#अगर_कांग्रेस_ना_होती' सुबह से ट्रेंड कर रहा है. अगर ये सोचने की कोशिश की जाए कि कांग्रेस ना होती तो वाकई होता क्या? इतिहास में कांग्रेस के ना होने पर क्या हो सकता था चलिए देखते हैं.

ट्विटर पर आज सुबह से एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. '#अगर_कांग्रेस_ना_होती'. लोग अपने-अपने तरीके से इस हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर देखा जाए तो कांग्रेस के ना होने से देश की पूरी दशा ही बदली हुई होती. अगर वाकई कांग्रेस नहीं होती तो क्या होता?

- आजादी की लड़ाई और लंबी हो जाती

 इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस ने देश की आजादी के समय अहम भूमिका निभाई थी. जिस मार्गदर्शन की जरूरत थी वो देश को उस समय मिला था. देश कई हिस्सों में बटा हुआ होता. कांग्रेस के कई अभियान ऐसे थे जिनके कारण देश एकजुट हुआ. 1917 से 1918 के दौरान गांधी के पहले सत्याग्रह अभियान चंपारन और खेड़ (बिहार में चंपारन और गुजरात में खेड़ा) को कांग्रेस का भारी समर्थन मिला था. उस दौर में कांग्रेस से जुड़ने के लिए लाखों युवा आ गए थे. ये था ए.ओ.ह्यूम की कांग्रेस का भारतीयकरण. गांधी, नेहरू और लाला लाजपत राय ने कांग्रेस की नई नींव रखी और गोपाल कृष्ण गोखले और लोकमान्य तिलक के बाद कांग्रेस के खयाल पूरी तरह गांधी वादी हो गए.

ये भी पढ़ें- अपने अंतिम तुरुप के पत्ते के बाद अब कांग्रेस आगे क्या करेगी?

भारत छोड़ो आंदोलन, इंडियन नैशनल आर्मी ट्रायल, सविनय अवज्ञा आंदोलन (सिविल डिसओबिडिएंस मूवमेंट) आदि के साथ कांग्रेस का अहम हिस्सा पार्टीशन में भी रहा.

 जवाहरलाल नेहरू और महात्मा...

ट्विटर पर आज सुबह से एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. '#अगर_कांग्रेस_ना_होती'. लोग अपने-अपने तरीके से इस हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर देखा जाए तो कांग्रेस के ना होने से देश की पूरी दशा ही बदली हुई होती. अगर वाकई कांग्रेस नहीं होती तो क्या होता?

- आजादी की लड़ाई और लंबी हो जाती

 इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस ने देश की आजादी के समय अहम भूमिका निभाई थी. जिस मार्गदर्शन की जरूरत थी वो देश को उस समय मिला था. देश कई हिस्सों में बटा हुआ होता. कांग्रेस के कई अभियान ऐसे थे जिनके कारण देश एकजुट हुआ. 1917 से 1918 के दौरान गांधी के पहले सत्याग्रह अभियान चंपारन और खेड़ (बिहार में चंपारन और गुजरात में खेड़ा) को कांग्रेस का भारी समर्थन मिला था. उस दौर में कांग्रेस से जुड़ने के लिए लाखों युवा आ गए थे. ये था ए.ओ.ह्यूम की कांग्रेस का भारतीयकरण. गांधी, नेहरू और लाला लाजपत राय ने कांग्रेस की नई नींव रखी और गोपाल कृष्ण गोखले और लोकमान्य तिलक के बाद कांग्रेस के खयाल पूरी तरह गांधी वादी हो गए.

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भारत छोड़ो आंदोलन, इंडियन नैशनल आर्मी ट्रायल, सविनय अवज्ञा आंदोलन (सिविल डिसओबिडिएंस मूवमेंट) आदि के साथ कांग्रेस का अहम हिस्सा पार्टीशन में भी रहा.

 जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी

- नेताजी की जगह सुभाष चंद्र बोस प्रधानमंत्री बनते

ये सभी जानते हैं कि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के सदस्य थे और 1920-30 के दशक में इतने ताकतवर हो गए थे कि कांग्रेस के प्रेसिडेंट बन जाएं. फिर कुछ कारणों से कांग्रेस से अलग हो गए. अपनी अलग पार्टी बनाने के लिए.

अगर कांग्रेस ना होती तो भी बोस इसी तरह से आगे बढ़ते. कई देशों में काम करने और अपने आचरण के कारण बोस एक प्रभावी नेता बन सकते थे.

 सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू

- इतिहास के कई बड़े फैसले नहीं लिए जाते

कांग्रेस ने भारत के इतिहास में अहम भूमिका निभाई है. अगर कांग्रेस ना होती तो इतिहास के कई अहम फैसले जैसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बाद कांग्रेस की बात करें तो नेहरू के समय इंडस्ट्री आदि के लिए काफी काम किया गया. जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए इंडस्ट्री का होना बहुत जरूरी है. कोयला, स्टील, लोहा आदि का काम जोरों पर हुआ. नेहरू के समय ही कश्मीर मुद्दा भी गहराया.

इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की बागडोर 1966-84 के दौर में संभाली. गरीबी हटाओ इंदिरा के सबसे चर्चित जुमलों में से एक है. इसे इंदिरा के प्रचार के समय इस्तेमाल किया गया था. इसके बाद इसे आंदोलन की शक्ल दी गई और एंटी-पावर्टी के लिए कई काम किए गए. इंदिरा गांधी सत्ता को सेंट्रलाइज्ड करने का काम करती थीं. 1975 में इमरजेंसी भी इंदिरा गांधी की अहम भूमिका थी. इंदिरा ने कई फैसले लिए. इनमें से एक उनकी मृत्यू के लिए अहम साबित हुआ. ऑपरेशन ब्लू स्टार और एंटी सिख दंगे इस बात का प्रतीक हैं.

 राजीव गांधी और इंदिरा गांधी

राजीव गांधी के समय अगर एक बोफोर्स घोटाले को छोड़ दिया जाए तो एक अच्छी सरकार रही. मनमोहन सिंह उस समय फाइनेंस मिनिस्टर थे.

राजीव गांधी के बाद आई मॉर्डन राजनीति. कांग्रेस में सोनिया गांधी तुरुप का पत्ता साबित हुईं और खोई हुई सत्ता वापस मिली. रोजगार गारंटी बिल (MGNREGA), राइट टू इन्फॉर्मेशन, राइट टू एजुकेशन आदि बहुत कुछ मॉर्डन कांग्रेस के समय शुरू हुआ.

- कश्मीर की गलती ना होती

जवाहर लाल नेहरू की सबसे बड़ी गलतियों में से एक कश्मीर मामले को माना जाता है. शेख अब्दुल्लाह पर जरूरत से ज्यादा भरोसा और भारतीय आर्मी को आगे ना बढ़ने देने के कारण ही आज पाकिस्तान ऑक्युपाइड कश्मीर आज भारत के हाथ नहीं है. 1947 में अक्टूबर 21/22 में 5000 पठान आदिवासियों (पाकिस्तान आर्मी की तरफ से) ने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा किया. उस समय महाराज हरि सिंह ने IQA (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेशन) साइन कर दिया था. इसके बाद इंडियन आर्मी अपने सबसे बड़े ऑपरेशन के लिए तैयार थी और बारमुल्ला के कई हिस्सों को वापस ले लिया था. इससे श्रीनगर सुरक्षित हो गया, लेकिन इससे आगे बढ़ने के लिए नेहरू जी के ऑर्डर चाहिए थे जो नहीं दिए गए. और नेहरू ने NO को मामला रिपोर्ट कर दिया.

 शेख अब्दुल्लाह और नेहरू

वो शेख अब्दुल्ला थे जिन्होंने नेहरू को आर्मी को ऑर्डर देने के लिए रोका था. 1953 में शेख को पाकिस्तान की मदद करने के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया. अब तक नेहरू की उस गलती को उन बातों में माना जाता है जिनसे कश्मीर का मुद्दा चक्रव्यूह बन गया.

- घोटालों की लिस्ट शायद कम होती

देश में सबसे ज्यादा घोटाले कांग्रेस के शाशन में हुए हैं. हालांकि, ये कहना कि अगर कोई और पार्टी होती तो स्कैम ना होते गलत होगा क्योंकि, किसी और पार्टी का राज देखा ही नहीं है. कांग्रेस के शाशन में ही बोफोर्स स्कैम, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, सत्यम घोटाला, कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाला, कोयला घोटाला, हेलीकॉप्टर घोटाला, आदर्श हाउसिंग स्कैम जैसे कई घोटाले हुए हैं. इनके अलावा भी तेलगी स्कैम, इंशोरेंस स्कैम, चारा घोटाला, ताज कॉरिडोर केस आदि हैं.

ये भी पढ़ें- फारूक अब्दुल्ला के हुर्रियत के सपोर्ट के पीछे क्या सिर्फ महबूबा विरोध है?

 मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी

- देश को राहुल भी ना मिलते...

अब कांग्रेस ना होती तो देश में काफी कुछ बदला हुआ होता, लेकिन देश को राहुल गांधी भी ना मिलते. हालांकि, इस लिस्ट में दिगविजय सिंह जैसे लीडर भी आते हैं, लेकिन फिर भी राहुल गांधी की एक अहम भूमिका है. अब ये अच्छा हुआ या बुरा इसका निर्णय तो आप खुद ही करें.

 

 राहुल गांधी

कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी की अहम भूमिका हर मामले में रही है. अगर कांग्रेस का नाम घोटालों में जुड़ता है तो उसी कांग्रेस का नाम स्वतंत्रता आंदोलन में भी जुड़ता है. ये बात सही है कि कांग्रेस के ना होने से देश की राजनीति शायद इतनी मजबूत ना होती.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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