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मुलायम और कांग्रेस गठबंधन में रोड़ा कौन, 100 सीटें या डिप्टी सीएम की पोस्ट ?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2016 07:31 PM
  • 16 दिसम्बर, 2016 07:31 PM
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बीजेपी की नोटबंदी से लोगों में उभरे असंतोष को भुनाने को आतुर कांग्रेस फिलहाल मुलायम सिंह के साथ डील की कोशिश में है. इसका मतलब ये नहीं कि मायावती के साथ हाथ मिलाने की बात खत्म हो चुकी है.

क्या बीजेपी ने यूपी में कांग्रेस को वॉकओवर दे दिया है? समाजवादी पार्टी का तो नहीं पता, कांग्रेस नेता तो ऐसा ही मान कर चल रहे हैं. कांग्रेस नेताओं को ऐसा लगने लगा है जैसे बीजेपी ने उन्हें बारगेन की पोजीशन में ला दिया है.

बीजेपी की नोटबंदी से लोगों में उभरे असंतोष को भुनाने को आतुर कांग्रेस फिलहाल मुलायम सिंह के साथ डील की कोशिश में है. इसका मतलब ये नहीं कि मायावती के साथ हाथ मिलाने की बात खत्म हो चुकी है. अब सवाल ये है कि इसमें रोड़ा कौन बन रहा है?

तो महागठबंधन नहीं...

यूपी में महागठबंधन की कवायद अब दो दलों के आपसी तालमेल पर आकर ठहर गई लगती है. तालमेल की ये चर्चा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हो रही है. बीएसपी फिलहाल वेटिंग लिस्ट में है. दिलचस्प बात ये है कि तमाम शोर शराबे के बाद कांग्रेस की डील फिर से सौ सीटों में सिमट गई है. जब समाजवादी पार्टी में उठापटक का दौर पीक पर था, दिल्ली में यूपी के लिए महागठबंधन की भी कवायद हुई थी. एक मोड़ पर प्रशांत किशोर भी बड़ी भूमिका में दिखाई दिये - और जेडीयू के नेताओं की भी भागीदारी दिखी. बताया गया मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव को इस खास काम में लगाया था, लेकिन अब लगता है मामला ठंडा पड़ गया.

इसे भी पढ़ें : यूपी में भी ‘बिहार फॉर्मूला’ कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन को लेकर हाल के दिनों में अखिलेश यादव काफी मुखर दिखे हैं. वैसे तो वो अकेले दम पर एक बार फिर बहुमत की सरकार बनाने का दावा करते हैं, लेकिन लगे हाथ ये भी बता देते हैं कि अगर कांग्रेस हाथ मिला ले तो यूपी में 300 का आंकड़ा आसानी से पार किया जा सकता है. साथ में, अखिलेश ये जरूर बोलते हैं कि किसी भी तालमेल या गठबंधन का फैसला नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ही लेंगे. कांग्रेस की ओर से...

क्या बीजेपी ने यूपी में कांग्रेस को वॉकओवर दे दिया है? समाजवादी पार्टी का तो नहीं पता, कांग्रेस नेता तो ऐसा ही मान कर चल रहे हैं. कांग्रेस नेताओं को ऐसा लगने लगा है जैसे बीजेपी ने उन्हें बारगेन की पोजीशन में ला दिया है.

बीजेपी की नोटबंदी से लोगों में उभरे असंतोष को भुनाने को आतुर कांग्रेस फिलहाल मुलायम सिंह के साथ डील की कोशिश में है. इसका मतलब ये नहीं कि मायावती के साथ हाथ मिलाने की बात खत्म हो चुकी है. अब सवाल ये है कि इसमें रोड़ा कौन बन रहा है?

तो महागठबंधन नहीं...

यूपी में महागठबंधन की कवायद अब दो दलों के आपसी तालमेल पर आकर ठहर गई लगती है. तालमेल की ये चर्चा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हो रही है. बीएसपी फिलहाल वेटिंग लिस्ट में है. दिलचस्प बात ये है कि तमाम शोर शराबे के बाद कांग्रेस की डील फिर से सौ सीटों में सिमट गई है. जब समाजवादी पार्टी में उठापटक का दौर पीक पर था, दिल्ली में यूपी के लिए महागठबंधन की भी कवायद हुई थी. एक मोड़ पर प्रशांत किशोर भी बड़ी भूमिका में दिखाई दिये - और जेडीयू के नेताओं की भी भागीदारी दिखी. बताया गया मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव को इस खास काम में लगाया था, लेकिन अब लगता है मामला ठंडा पड़ गया.

इसे भी पढ़ें : यूपी में भी ‘बिहार फॉर्मूला’ कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन को लेकर हाल के दिनों में अखिलेश यादव काफी मुखर दिखे हैं. वैसे तो वो अकेले दम पर एक बार फिर बहुमत की सरकार बनाने का दावा करते हैं, लेकिन लगे हाथ ये भी बता देते हैं कि अगर कांग्रेस हाथ मिला ले तो यूपी में 300 का आंकड़ा आसानी से पार किया जा सकता है. साथ में, अखिलेश ये जरूर बोलते हैं कि किसी भी तालमेल या गठबंधन का फैसला नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ही लेंगे. कांग्रेस की ओर से अभी तक किसी ने अखिलेश की तरह क्लिअर-कट नहीं बोला है - बल्कि, प्रशांत किशोर और मुलायम, शिवपाल की हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस नेता गोल मोल जवाब देकर चलते बने थे.

हाथी-हाथ साथ साथ

बहुत पहले कांग्रेस नेताओं के बीएसपी के साथ भी तोल मोल की खबरें आती रहीं. बताया तो वहां भी गया था कि 100 सीटें ही रोड़ा बन रही थीं, लेकिन वहां पता चला बड़ा रोड़ा मायावती की एक खास शर्त थी.

बीजेपी का शुक्रिया कहिये!

चर्चा ये थी कि मायावती कांग्रेस के साथ सीटों के तालमेल पर तैयार तो हो गई थीं, लेकिन उनकी शर्त थी कि चुनाव से पहले कोई घोषित गठबंधन नहीं होगा - जो भी होगा चुनाव बाद ही होगा. असल में, मायावती नहीं चाहतीं कि पहले से ही पार्टी को पंगु बनाने जैसा फैसला कर लिया जाये. कांग्रेस के साथ मायावती का हाथ मिलाना महज पॉलिटिकल इन्श्योरेंस जैसी व्यवस्था है - जो मुसीबत की घड़ी में रिस्क कवर करने का इंतजाम हो. अगर जरूरत पड़े तो उसका इस्तेमाल किया जाये नहीं तो यूं ही छोड़ने की भी पूरी गुंजाइश रहे.

यूपी चुनाव में मायावती का ज्यादा जोर मुस्लिम वोटों पर है. मुस्लिम वोटों के लिए वो 'कुछ भी करेगा' वाले अंदाज में सक्रिय हैं. कांग्रेस के लिए मायावती का जो भी महत्व हो, बीएसपी के लिए उसकी अहमियत तभी है जब कांग्रेस से हाथ मिलाने पर उसे कुछ ज्यादा मुस्लिम वोट मिलने की गारंटी हो. बाकियों की तरह मायावती भी समझती होंगी कि उन्हें मुस्लिम वोट तभी मिलेंगे जब वो बीजेपी की सत्ता की राह में दीवार बन जाने की गारंटी हों.

100 सीटें बोले तो किंगमेकर!

अखिलेश से अलग लाइन लेते हुए नवंबर की शुरुआत में मुलायम सिंह ने किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन से इंकार किया था. हालांकि, मार्केट में चर्चा ये रही कि समाजवादी पार्टी सौ से ज्यादा सीटें देने के पक्ष में कतई नहीं है - और वो भी इस तरह कि कांग्रेस उसी में से कुछ सीटें अजित सिंह की आरएलडी से भी शेयर करे. समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस की बातचीत बढ़ी तो काफी आगे तक है लेकिन सीटों की संख्या पर आकर बीएसपी की ही तरह अटक गई है.

इसे भी पढ़ें: यूपी में मुलायम-कांग्रेस गठबंधन बिहार जैसे नतीजे की गारंटी नहीं

ताजा चर्चा ये है कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी से सौ सीटों के साथ साथ डिप्टी सीएम की पोस्ट भी अपने लिये मांग रही है. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में कांग्रेस के एक सीनियर नेता को कोट किया गया है, "मुलायम सिंह की पार्टी जानती है कि कांग्रेस को पार्टनर बनाने पर बीजेपी के खिलाफ उसे यादव-मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने में मदद मिलेगी. अगर बीएसपी हमारे साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो उसे भी दलित-मुस्लिम वोटरों को गोलबंद करने में मदद मिलेगी."

रिपोर्ट में बताया गया है कि कांग्रेस मान कर चल रही है कि हो सकता है अकेले चुनाव लड़ने पर उसे सौ से ज्यादा सीटें न मिलें, लेकिन ये भी तय है कि इससे समाजवादी पार्टी और बीएसपी का खेल बिगड़ सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस को लगता है कि मुलायम या मायावती से डील में बारगेन करने की उसकी ताकत बढ़ी है. फिर भी बात वही आकर फंस जा रही है कि इसमें रोड़ा कौन बन रहा मुलायम सिंह, सौ सीटें या फिर डिप्टी सीएम की पोस्ट?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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