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आखिर क्या है अखिलेश यादव के तुरुप के पत्ते में

    • आईचौक
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2016 01:55 PM
  • 06 अक्टूबर, 2016 01:55 PM
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बाप-बेटे की सियासी नाराजगी का नजारा जब मौजूद लोगों ने देखा तो अवाक रह गये. क्या मंत्री और क्या अफसर ऐसा लगा जैसे सभी को एक साथ सांप सूंघ गया हो.

लोक भवन के उद्घाटन का मौका था. वक्त का फेर ऐसा कि मुलायम सिंह यादव पहले पहुंचे और अखिलेश बाद में. तभी कुछ नारेबाजी भी हो गई. बस क्या था - नाराज मुलायम ने फीता काटने से इंकार कर दिया.

मौके की नजाकत को मोहम्मद आजम खां ने बखूबी समझा और मुलायम के कान में कुछ फुसफुसाए - और उनका हाथ पकड़कर अखिलेश के हाथ में दे दिया - तब कहीं जाकर फीता कट पाया.

बाप-बेटे की सियासी नाराजगी का ये नजारा जब मौजूद लोगों ने देखा तो अवाक रह गये. क्या मंत्री और क्या अफसर ऐसा लगा जैसे सभी को एक साथ सांप सूंघ गया हो.

तुरुप का पत्ता

मुलायम सिंह और अखिलेश की ये राजनीतिक तनातनी धीरे धीरे हर तरफ हावी होने लगी है. नवरात्र में ही जहां अखिलेश के घर बदलने की खबर है वहीं उनके समर्थकों के लिए भी जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के भीतर बैठने का ठिकाना तलाशा गया है. इतना ही नहीं, इन सबका असर मुलायम की आजमगढ़ रैली और अखिलेश की विकास रथयात्रा पर भी पड़ा है.

इसे भी पढ़ें: चाचा-भतीजे के घमासान से बुआ का रास्ता आसान

शिवपाल यादव को अध्यक्ष बनाने के साथ ही मुलायम ने पार्टी में संसदीय बोर्ड को अलग कर दिया था - बताया गया कि ये व्यवस्था इसलिए बनाई गई ताकि अखिलेश का भी टिकट बंटवारे में पूरा दखल रहे.

अभी अभी जब शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची जारी की तो मालूम हुआ कई अखिलेश समर्थकों का भी उन्होंने टिकट काट दिया. जब अखिलेश यादव से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने खुद को बेखबर बताया.

लोक भवन के उद्घाटन का मौका था. वक्त का फेर ऐसा कि मुलायम सिंह यादव पहले पहुंचे और अखिलेश बाद में. तभी कुछ नारेबाजी भी हो गई. बस क्या था - नाराज मुलायम ने फीता काटने से इंकार कर दिया.

मौके की नजाकत को मोहम्मद आजम खां ने बखूबी समझा और मुलायम के कान में कुछ फुसफुसाए - और उनका हाथ पकड़कर अखिलेश के हाथ में दे दिया - तब कहीं जाकर फीता कट पाया.

बाप-बेटे की सियासी नाराजगी का ये नजारा जब मौजूद लोगों ने देखा तो अवाक रह गये. क्या मंत्री और क्या अफसर ऐसा लगा जैसे सभी को एक साथ सांप सूंघ गया हो.

तुरुप का पत्ता

मुलायम सिंह और अखिलेश की ये राजनीतिक तनातनी धीरे धीरे हर तरफ हावी होने लगी है. नवरात्र में ही जहां अखिलेश के घर बदलने की खबर है वहीं उनके समर्थकों के लिए भी जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के भीतर बैठने का ठिकाना तलाशा गया है. इतना ही नहीं, इन सबका असर मुलायम की आजमगढ़ रैली और अखिलेश की विकास रथयात्रा पर भी पड़ा है.

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शिवपाल यादव को अध्यक्ष बनाने के साथ ही मुलायम ने पार्टी में संसदीय बोर्ड को अलग कर दिया था - बताया गया कि ये व्यवस्था इसलिए बनाई गई ताकि अखिलेश का भी टिकट बंटवारे में पूरा दखल रहे.

अभी अभी जब शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची जारी की तो मालूम हुआ कई अखिलेश समर्थकों का भी उन्होंने टिकट काट दिया. जब अखिलेश यादव से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने खुद को बेखबर बताया.

"जाने कब पापा बन जाते हैं और कब नेताजी..."

खास बात ये रही कि टिकट पाने वालों में गोरखपुर के अमनमणि त्रिपाठी भी रहे. अमनमणि खुद जहां पत्नी की मौत में जांच का सामना कर रहे हैं वहीं उनके पिता अमरमणि मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में जेल में सजा काट रहे हैं.

रैली और रथयात्रा

राहुल गांधी की देवरिया से निकली किसान यात्रा जहां दिल्ली पहुंचने वाली है तो मायावती की मौजूदा रैलियों का दौर खत्म होने वाला है. किसानों की रैली में राहुल जहां मोदी सरकार को घेरने की तरकीब खोज रहे हैं तो मायावती लखनऊ पहुंच कर अखिलेश सरकार की बखिया उधेड़ने के मौके का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं.

कहां मुलायम सिंह आजमगढ़ के मंच से विरोधियों पर बरसते. कहां अखिलेश यादव चमचमाती बस में सवार होकर अपनी विकास रथयात्रा को आगे बढ़ाते - लेकिन यूपी का शाही परिवार अभी तक झगड़े से उबर नहीं पा रहा. उबरने की बात तो दूर ऐसा लगता है जैसे झगड़ा बढ़ता ही जा रहा है.

इसे भी पढ़ें: चाचा-भतीजे के रिश्तों में उलझी अमरबेल!

विरोधी समाजवादी पार्टी में बाप-बेटे के बीच सियासी शह-मात के खेल के मजे ले रहे हैं तो बाहर होकर अंदर दाखिल हो चुके अमर सिंह अपनी हर चाल में कामयाब होते नजर आ रहे हैं.

मुलायम सिंह अखिलेश यादव के सारे फैसले पलट चुके हैं, सिर्फ दीपक सिंघल को फिर से कुर्सी और शिवपाल यादव को लोक निर्माण विभाग मंत्रालय दिलाने के. वो भी इसलिए क्योंकि उसका फैसला सिर्फ मुख्यमंत्री की मर्जी पर निर्भर है - और चुनाव होने तक अखिलेश इतना तो अपने मन से कर ही सकते हैं.

जहां तक टिकट बंटवारे का सवाल है अखिलेश ने जो अहम बात कही वो ये थी कि चुनाव में अभी देर है और तब तक बहुत फेर बदल होंगे - और उसमें असली भूमिका तुरुप के पत्ते की होगी.

ये तुरुप का पत्ता कोई अखिलेश यादव का कोई नया सियासी दाव है - या फिर, समर्थकों का मनोबल बनाये रखने का फॉर्मूला अभी साफ नहीं हो पाया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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