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मुल्क की सबसे मुश्किल सरकार: बीजेपी-पीडीपी में फंसे 5 पेंच

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 18 फरवरी, 2015 02:46 PM
  • 18 फरवरी, 2015 02:46 PM
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फिलहाल ये तो माना ही जा सकता है कि जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. लेकिन दोनों के बीच कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर गतिरोध बना हुआ है.

फिलहाल ये तो माना ही जा सकता है कि जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. लेकिन दोनों के बीच कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर गतिरोध बना हुआ है. जम्मू-कश्मीर के लिए ये ऐतिहासिक मौका है जब दो विपरीत ध्रुवों वाले राजनीतिक दल मिल कर सरकार बनाने की कवायद में जुटे हों. दिसंबर में विधानसभा की 87 सीटों के लिए हुए चुनाव में पीडीपी को 28 जबकि बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं. इसमें सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को क्रमश: 15 और 12 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी थी. किसी भी दल की सरकार न बन पाने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर में फिलहाल राज्यपाल शासन लागू है.
राज्य विधान परिषद की 11 सीटों के लिए 2 मार्च को चुनाव होने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस चुनाव तक सरकार का गठन टल भी सकता है. इस बीच पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता नईम अख्तर ने साफ किया है कि राज्य में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनाने को लेकर कोई समय सीमा तय जैसी बात नहीं है. सरकार बनने में दोनों पार्टियों के बीच जिन मुद्दों पर टकराव है उनमें ये पांच पेंच फंसे हुए हैं -

1. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 दोनों पार्टियों के बीच टकराव का सबसे बड़ा मसला है. पीडीपी चाहती है कि बीजेपी उसे लिखित आश्वासन दे कि वो धारा 370 का मुद्दा नहीं उठाएगी. बीजेपी लिखित आश्वासन देने के पक्ष में तो कतई नहीं है.

2. जम्मू-कश्मीर में अफस्पा [AFSPA - सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून] को लेकर दोनों पार्टियों की अलग अलग राय रही है. बीजेपी का स्टैंड है कि इसमें सेना की राय ली जानी चाहिए और चूंकि ये केंद्र का विशेषाधिकार है इसलिए ये मामला केंद्र सरकार पर ही छोड़ा जाना चाहिए. पीडीपी की मांग रही है कि इस पर पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए.

3. मुख्यमंत्री किस का होगा? अब इस पर विवाद नहीं रह गया है. ज्यादा सीटें जीतने वाली पीडीपी की ओर से मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री होंगे ये तय हो चुका...

फिलहाल ये तो माना ही जा सकता है कि जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. लेकिन दोनों के बीच कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर गतिरोध बना हुआ है. जम्मू-कश्मीर के लिए ये ऐतिहासिक मौका है जब दो विपरीत ध्रुवों वाले राजनीतिक दल मिल कर सरकार बनाने की कवायद में जुटे हों. दिसंबर में विधानसभा की 87 सीटों के लिए हुए चुनाव में पीडीपी को 28 जबकि बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं. इसमें सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को क्रमश: 15 और 12 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी थी. किसी भी दल की सरकार न बन पाने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर में फिलहाल राज्यपाल शासन लागू है.
राज्य विधान परिषद की 11 सीटों के लिए 2 मार्च को चुनाव होने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस चुनाव तक सरकार का गठन टल भी सकता है. इस बीच पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता नईम अख्तर ने साफ किया है कि राज्य में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनाने को लेकर कोई समय सीमा तय जैसी बात नहीं है. सरकार बनने में दोनों पार्टियों के बीच जिन मुद्दों पर टकराव है उनमें ये पांच पेंच फंसे हुए हैं -

1. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 दोनों पार्टियों के बीच टकराव का सबसे बड़ा मसला है. पीडीपी चाहती है कि बीजेपी उसे लिखित आश्वासन दे कि वो धारा 370 का मुद्दा नहीं उठाएगी. बीजेपी लिखित आश्वासन देने के पक्ष में तो कतई नहीं है.

2. जम्मू-कश्मीर में अफस्पा [AFSPA - सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून] को लेकर दोनों पार्टियों की अलग अलग राय रही है. बीजेपी का स्टैंड है कि इसमें सेना की राय ली जानी चाहिए और चूंकि ये केंद्र का विशेषाधिकार है इसलिए ये मामला केंद्र सरकार पर ही छोड़ा जाना चाहिए. पीडीपी की मांग रही है कि इस पर पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए.

3. मुख्यमंत्री किस का होगा? अब इस पर विवाद नहीं रह गया है. ज्यादा सीटें जीतने वाली पीडीपी की ओर से मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री होंगे ये तय हो चुका है. इसी तरह बीजेपी बीजेपी के निर्मल सिंह उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे, ये भी तकरीबन तय ही है. पीडीपी चाहती है कि सईद पूरे छह साल मुख्यमंत्री बने रहें,  जबकि बीजेपी चाहती है कि दोनों पार्टियों को तीन-तीन साल के लिए मुख्यमंत्री पद मिले.

4. कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान और हुर्रियत के साथ बातचीत को लेकर भी बीजेपी और पीडीपी के स्टैंड परस्पर विरोधी रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच बातचीत के बाद दोनों पक्ष इस मामले में नरमी बरत रहे हैं.

5. पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को लेकर यथास्थिति बनाए रखने और परिसीमन आयोग को लेकर भी दोनों के सियासी हित टकरा रहे हैं. इस पर बातचीत से रास्ता निकालने की कोशिश है.

इनके अलावा पीडीपी जम्मू-कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर के बीच मुक्त व्यापार और पर्यटन, राज्य के बाहर जेलों में बंद कश्मीरी युवकों की वापसी, केंद्र सरकार के '100 स्मार्ट सिटी' के तहत श्रीनगर और डल झील को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाना चाहती है.
वैसे ऐसा लग रहा है कि दोनों पार्टियां विवादास्पद मुद्दों को ज्यादा तूल न देते हुए बीच का रास्ता तलाश रही हैं. इस सिलसिले में पीडीपी संरक्षक मुफ्ती मुहम्मद सईद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दो बार बातचीत भी हो चुकी है - अब दोनों के बीच बस, आमने-सामने की मुलाकात बाकी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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