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अपनी राय बदल लीजिए क्योंकि ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 17 मई, 2016 05:14 PM
  • 17 मई, 2016 05:14 PM
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राष्ट्रपति पद की दौड़ में आते ही कई विवादित बयानों के लिए डोनाल्ड ट्रंप की खिल्ली दुनियाभर ने उड़ाई. आज चुनाव में उनकी स्थिति बेहद मजबूत है और वे राष्ट्रपति पद के बेहद करीब. ऐसे में अब क्या करें वो नेता जो ट्रंप का मजाक उड़ा चुके हैं.

जून 2015 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी से दौड़ शुरू की तो अमेरिका सहित दुनिया के कई बड़े नेताओं को यह महज एक चुटकुला लगा. करोड़पति रियल स्टेट डेवलपर डोनाल्ड ट्रंप ने दौड़ की शुरुआत में मेक्सिको सीमा से अमेरिका में आ रहे गैरकानूनी अप्रवासियों का मुद्दा उठाया. ट्रंप ने दावा किया कि मेक्सिको से अमेरिका में दाखिल हो रहे लोग महज ड्रग्स बेचने, बलात्कार करने और चोरी करने के लिए दाखिल हो रहे हैं. इस चुनौती के चलते बीते दशकों में अमेरिका एक कमजोर देश बन चुका है लिहाजा ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के उद्देश्य को साफ-साफ रखा- ‘दोबारा अमेरिका को एक महान देश बनाना’. डोनाल्ड ट्रंप के इस उद्देश्य का नतीजा जल्द सामने आया और जुलाई के अंत में कराए गए सर्वे में वह रिपब्लिकन पार्टी के फ्रंटरनर उम्मीदवार बन गए. इसके बाद, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर के तमाम सर्वे में ट्रंप की दावेदारी मजबूत होती रही और वह लगातार फ्रंटरनर बने रहे. इस दौरान अमेरिका में बेरोजगारी, ग्लोबल ट्रेड और क्लाइमेट चेंज जैसे अनेक मुद्दों पर ट्रंप के बयान ने उनके विरोधियों को यही विश्वास दिलाया कि वह एक नॉनसीरियल उम्मीदवार हैं और जल्द ही वह मैदान छोड़कर भाग जाएंगे.

इस बीच नवंबर 2015 में पेरिस पर तीन बड़े आतंकी हमले हुए. बाटाक्लान थिएटर में 89 समेत 139 लोगों को गोलियों से भून दिया गया. इस्लामिक स्टेट ने हमलों की जिम्मेदारी ली. दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ की जमकर भर्त्सना की गई. अब तक अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के फ्रंटरनर बन चुके डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि राष्ट्रपति बनने के बाद वह अमेरिकी मुसलमानों का पूरा डेटाबेस तैयार करवाएंगे और अमेरिका में सभी मस्जिदों की निगरानी बढ़ाने का काम करेंगे. उनके इस बयान से उनके डेमोक्रैट विरोधियों के साथ-साथ रिपब्लिकन पार्टी पूरी तरह से स्तब्ध रह गई और सभी ने उनके इस बयान से इत्तेफाक नहीं रखने पर सफाई दे डाली. वहीं ट्रंप ने अपनी सफाई में कहा कि उनका इसलिए ऐसा मानना है क्योंकि उन्होंने सितंबर 11, 2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद न्यूयार्क और न्यूजर्सी में मुसलमानों को जश्न मनाते देखा था. इस सफाई के साथ-साथ ट्रंप ने दावा किया कि राष्ट्रपति बनने के बाद वह अमेरिका में मुसलमानों की एंट्री पर पूरी तरह...

जून 2015 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी से दौड़ शुरू की तो अमेरिका सहित दुनिया के कई बड़े नेताओं को यह महज एक चुटकुला लगा. करोड़पति रियल स्टेट डेवलपर डोनाल्ड ट्रंप ने दौड़ की शुरुआत में मेक्सिको सीमा से अमेरिका में आ रहे गैरकानूनी अप्रवासियों का मुद्दा उठाया. ट्रंप ने दावा किया कि मेक्सिको से अमेरिका में दाखिल हो रहे लोग महज ड्रग्स बेचने, बलात्कार करने और चोरी करने के लिए दाखिल हो रहे हैं. इस चुनौती के चलते बीते दशकों में अमेरिका एक कमजोर देश बन चुका है लिहाजा ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के उद्देश्य को साफ-साफ रखा- ‘दोबारा अमेरिका को एक महान देश बनाना’. डोनाल्ड ट्रंप के इस उद्देश्य का नतीजा जल्द सामने आया और जुलाई के अंत में कराए गए सर्वे में वह रिपब्लिकन पार्टी के फ्रंटरनर उम्मीदवार बन गए. इसके बाद, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर के तमाम सर्वे में ट्रंप की दावेदारी मजबूत होती रही और वह लगातार फ्रंटरनर बने रहे. इस दौरान अमेरिका में बेरोजगारी, ग्लोबल ट्रेड और क्लाइमेट चेंज जैसे अनेक मुद्दों पर ट्रंप के बयान ने उनके विरोधियों को यही विश्वास दिलाया कि वह एक नॉनसीरियल उम्मीदवार हैं और जल्द ही वह मैदान छोड़कर भाग जाएंगे.

इस बीच नवंबर 2015 में पेरिस पर तीन बड़े आतंकी हमले हुए. बाटाक्लान थिएटर में 89 समेत 139 लोगों को गोलियों से भून दिया गया. इस्लामिक स्टेट ने हमलों की जिम्मेदारी ली. दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ की जमकर भर्त्सना की गई. अब तक अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के फ्रंटरनर बन चुके डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि राष्ट्रपति बनने के बाद वह अमेरिकी मुसलमानों का पूरा डेटाबेस तैयार करवाएंगे और अमेरिका में सभी मस्जिदों की निगरानी बढ़ाने का काम करेंगे. उनके इस बयान से उनके डेमोक्रैट विरोधियों के साथ-साथ रिपब्लिकन पार्टी पूरी तरह से स्तब्ध रह गई और सभी ने उनके इस बयान से इत्तेफाक नहीं रखने पर सफाई दे डाली. वहीं ट्रंप ने अपनी सफाई में कहा कि उनका इसलिए ऐसा मानना है क्योंकि उन्होंने सितंबर 11, 2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद न्यूयार्क और न्यूजर्सी में मुसलमानों को जश्न मनाते देखा था. इस सफाई के साथ-साथ ट्रंप ने दावा किया कि राष्ट्रपति बनने के बाद वह अमेरिका में मुसलमानों की एंट्री पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देंगे. ट्रंप के इस प्रस्ताव पर दुनियाभर में उनकी भर्त्सना शुरू हो गई और अमेरिका के कई मित्र देशों ने डोनाल्ड ट्रंप को मूर्ख और असंवेदनशील घोषित कर दिया.

राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदावर डोनाल्ड ट्रंप

मुसलमानों की एंट्री पर पाबंदी के मुद्दे पर यूरोप में सबसे पहले अमेरिका के सबसे बड़े समर्थक यूनाइटेड किंगडम ने एतराज दर्ज कराया. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने डोनाल्ड ट्रंप को एक बांटनेवाला, मूर्ख और गलत नेता होने की संज्ञा दे दी थी. फ्रांस में रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी ने डोनाल्ड ट्रंप को एक खतरनाक नेता कहा तो जर्मनी में चांसलर एंगेला मर्कल के करीबी वित्त मंत्री सिगमार गैब्रियल ने दावा किया कि डोनाल्ड ट्रंप से विश्व शांति और समृद्धि के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ा खतरा है. वहीं खुद एंगेला मर्कल ने डेमोक्रैटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को बेहतर उम्मीदवार बता दिया. डोनाल्ड ट्रंप के बयान पर एक सऊदी अरब प्रिंस अलवलीद बिन तलाल ने उन्हें अमेरिका पर कलंक की संज्ञा दी तो दूसरे प्रिंस और अमेरिका के राजदूत रहे तुर्की अल फैसल ने अमे‍रिकी वोटर से डोनाल्ड ट्रंप को न चुनने की अपील की.

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने ट्रंप के मुसलमानों की एंट्री प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव को नकारते हुए कहा कि आतंकवाद को किसी एक धर्म के सिर मढ़ना गलत होगा. ट्रंप के बयान पर दुनिया के दूसरे ताकतवर देश चीन ने कहा कि वह एक बड़बोले नेता हैं जिनसे रिपब्लिकन पार्टी को भीड़ बटोरने की उम्मीद थी लेकिन अब पार्टी खुद नहीं जानती कि उनके साथ क्या किया जाए. इस सब प्रतिक्रियाओं के बीच हालांकि सबसे अलग प्रतिक्रिया रूस से सुनाई दी. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने डोनाल्ड ट्रंप की तारीफ करते हुए कहा कि वह एक बिंदास और टैलेंडेट इंसान है राष्ट्रपति पद की दौड़ में वह सबसे काबिल उम्मीदवार है.

दुनियाभर से इन प्रतिक्रियाओं के बीच मार्च 2016 तक डोनाल्ड ट्रंप न सिर्फ लगातार रिपब्लिकन पार्टी के प्रबल दावेदार बने रहे बल्कि पॉप्युलैरिटी में वह अपने डेमोक्रैटिक प्रबल उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन से आगे निकल गए. अप्रैल आते-आते यह साफ हो गया कि वही रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार होंगे और राष्ट्रपति पद के लिए उनका मुकाबला संभवत: हिलेरी क्लिंटन से होगा. अब वैश्विक राजनीति एक बड़े टर्निंग प्वाइंट पर खड़ी हो गई है. जिन देशों और नेताओं ने पहले डोनाल्ड ट्रंप को एक जोकर, मजाक, चुटकुला या मूर्ख जैसी संज्ञा दी आज उनके सामने अपने-अपने शब्दों को एक गलत बयानी मानना की बड़ी चुनौती है.

इस दिशा में इग्लैंड शुरुआत कर चुका है क्योंकि डेविड कैमरून ने हाल में बयान दिया कि वह अमेरिका में चुने जाने वाले किसी भी राष्ट्रपति के साथ काम करने की दिशा में देख रहे हैं. गौरतलब है कि इंग्लैंड की राजनीति में डोनाल्ड ट्रंप का विरोध इस कदर था कि वहां संसद में डोनाल्ड ट्रंप को वीजा नहीं देने का प्रस्ताव आया जिसपर लंबी बहस चली. हालांकि मार्च में सत्तारूढ़ पार्टी ने इस प्रस्ताव पर वोट नहीं कराया और दलील दी कि वीजा का मामला पूरी तरह से विदेश मंत्रालय के अधीन है. यानी साफ है कि डेविड कैमरून को यह एहसास हो चुका है कि ट्रंप पर उनकी प्रतिक्रिया राजनीतिक तौर पर गलत थी और यदि ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो जाहिर है उनसे उनके निजी रिश्तों पर इस बयान का असर देखने को मिलेगा.

वहीं डोनाल्ड ट्रंप ने मुसलमानों के प्रति अपने कड़े रुख को जाहिर कर सिर्फ आलोचनाएं नहीं झेली. कई खेमों से ट्रंप को समर्थन भी प्राप्त हुआ है. वैश्विक राजनीति के जानकारों का मानना है कि भले डोनाल्ड ट्रंप को यूरोप के कई देशों में राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन उनके बयान ने यूरोपियन अमेरिकन वोटर के बीच ट्रंप की स्थिति को मजबूत किया है. गौरतलब के कि इंग्लैंड, फ्रांस, इटली समेत यूरोप के कई देश खाड़ी देशों से आ रहे मुसलमानों की समस्या से जूझ रहे हैं और इन सभी देशों में सरकार के रुख का विरोध हो रहा है. दक्षिण एशिया से भी डोनाल्ड ट्रंप खासा समर्थन बटोरने में कामयाब होते दुख रहे हैं.

रिपब्लिकन पार्टी से उनकी उम्मीदवारी लगभग तय होने के बाद भारत में भी कई दक्षिणपंथी ग्रुप डोनाल्ड ट्रंप की जीत की कामना करते हुए मान रहे हैं कि दुनियाभर में फैलते इस्लामिक कट्टरपंथ को लगाम लगाने के लिए ट्रंप का नुस्खा ज्यादा कारगर है. लिहाजा, आने वाले दिनों में यदि डोनाल्ड ट्रंप मौजूदा रफ्तार से राष्ट्रपति की कुर्सी की तरफ बढ़ते हैं तो ज्यादा से ज्यादा देशों को उनकी हुई भर्तस्ना को भुलाना होगा और अपनी राय में परिवर्तन की घोषणा करनी होगी. क्योंकि इसमे कोई दो राय नहीं कि अमेरिका में चुना जाने वाला राष्ट्रपति दुनिया का सबसे ताकतवर नेता होता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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