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चादर में सुषमा दरअसल विदेश-नीति का 'खुला-खेल' है!

    • सुशांत झा
    • Updated: 20 अप्रिल, 2016 04:21 PM
  • 20 अप्रिल, 2016 04:21 PM
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विदेश नीति में और आमतौर पर राजनीति में स्थानीय संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाता है. वह देश-हित में 'विराट उद्येश्यों' की पूर्ति का माध्यम होती है जिसमें कई तात्कालिक मुद्दों की बलि भी दी जाती है.

सुषमा स्वराज की ईरान के नेता से मुलाकात और उनके कपड़े का जिक्र ऐसे उपहास में किया जा रहा है मानो सुषमा वहां पर उनसे नारी अभिव्यक्तिकरण या किसी फैशन शो जैसे मुद्दे पर बहस करने गई हों! जवाब में इंदिरा गांधी की तस्वीर भी लगाई जा रही है. दिक्कत ये है कि लोग कई बातों को समझने में नाकामयाब हो रहे हैं. हरेक नेता, हर दौर और हर सरकार का काम करने का अपना एक खास अंदाज होता है और विदेश नीति भले ही दिखने में एक-रेखीय लगती हो, उसमें कई उठापटक, अचानक के समझौते, दुरभि-संधियां, हत्याओं की साजिश, धमाकों की सरगोशी और कई बार हद से ज्यादा की चमचागीरी भी होती है-जो आम जनता को कभी पता नहीं चलता. चल भी नहीं सकता.

विदेश नीति में और आमतौर पर राजनीति में स्थानीय संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाता है-उसमें हरेक बात अकादमिक विमर्श की नहीं होती. वह देश-हित में 'विराट उद्येश्यों' की पूर्ति का माध्यम होती है जिसमें कई तात्कालिक मुद्दों की बलि भी दी जाती है, कई दीर्घकालीन मुद्दों पर संकेत दिए जाते हैं और एक ही साथ कई दर्शकों-श्रोताओं को संबोधित किया जाता है.

सुषमा स्वराज का ईरान के नेता के सामने चादर ओढकर जाने को मैं 'स्टेटक्राफ्ट' का वैसा ही हिस्सा मानता हूं. उसका स्त्री-विमर्श से कोई लेना-देना नहीं है, न ही इससे सुषमा का सरकार, बीजेपी या भारतीय समाज में कोई कद या हैसियत परिवर्तन ही हो जाएगा.

मुझे इस बारे में दो-तीन कहानी याद आती है. जनता सरकार जब टूट रही थी तो चरण सिंह के संक्षिप्त शासन काल में मेरे जिले के ही श्याम नंदन मिश्र विदेश मंत्री थे और हेमवती नंदन बहुगुणा वित्तमंत्री. अरब के किसी शेख का दौरा हुआ और उनके सचिव ने भारत सरकार से मांग कर दी कि शेख के मनोरंजन के लिए एक सुंदर स्त्री का बंदोवस्त किया जाए. बात सुनने में अजीब लगती है, लेकिन भारत सरकार ने एक हाई-प्रोफाइल कॉल गर्ल का इंतजाम किया. अब शेख ने एक और अजीबो-गरीब मांग की...

सुषमा स्वराज की ईरान के नेता से मुलाकात और उनके कपड़े का जिक्र ऐसे उपहास में किया जा रहा है मानो सुषमा वहां पर उनसे नारी अभिव्यक्तिकरण या किसी फैशन शो जैसे मुद्दे पर बहस करने गई हों! जवाब में इंदिरा गांधी की तस्वीर भी लगाई जा रही है. दिक्कत ये है कि लोग कई बातों को समझने में नाकामयाब हो रहे हैं. हरेक नेता, हर दौर और हर सरकार का काम करने का अपना एक खास अंदाज होता है और विदेश नीति भले ही दिखने में एक-रेखीय लगती हो, उसमें कई उठापटक, अचानक के समझौते, दुरभि-संधियां, हत्याओं की साजिश, धमाकों की सरगोशी और कई बार हद से ज्यादा की चमचागीरी भी होती है-जो आम जनता को कभी पता नहीं चलता. चल भी नहीं सकता.

विदेश नीति में और आमतौर पर राजनीति में स्थानीय संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाता है-उसमें हरेक बात अकादमिक विमर्श की नहीं होती. वह देश-हित में 'विराट उद्येश्यों' की पूर्ति का माध्यम होती है जिसमें कई तात्कालिक मुद्दों की बलि भी दी जाती है, कई दीर्घकालीन मुद्दों पर संकेत दिए जाते हैं और एक ही साथ कई दर्शकों-श्रोताओं को संबोधित किया जाता है.

सुषमा स्वराज का ईरान के नेता के सामने चादर ओढकर जाने को मैं 'स्टेटक्राफ्ट' का वैसा ही हिस्सा मानता हूं. उसका स्त्री-विमर्श से कोई लेना-देना नहीं है, न ही इससे सुषमा का सरकार, बीजेपी या भारतीय समाज में कोई कद या हैसियत परिवर्तन ही हो जाएगा.

मुझे इस बारे में दो-तीन कहानी याद आती है. जनता सरकार जब टूट रही थी तो चरण सिंह के संक्षिप्त शासन काल में मेरे जिले के ही श्याम नंदन मिश्र विदेश मंत्री थे और हेमवती नंदन बहुगुणा वित्तमंत्री. अरब के किसी शेख का दौरा हुआ और उनके सचिव ने भारत सरकार से मांग कर दी कि शेख के मनोरंजन के लिए एक सुंदर स्त्री का बंदोवस्त किया जाए. बात सुनने में अजीब लगती है, लेकिन भारत सरकार ने एक हाई-प्रोफाइल कॉल गर्ल का इंतजाम किया. अब शेख ने एक और अजीबो-गरीब मांग की कि उस कॉल-गर्ल के लिए बनारसी साड़ी का इंतजाम किया जाए. विदेश मंत्रालय के अफसर रात को चांदनी चौक की तरफ भागे और दुकान खुलवाकर साड़ी ले आए. वित्त-विभाग के किसी अफसर ने बनारसी साड़ी पर एतराज किया और बात बहुगुणा तक पहुंच गई. उन्होंने रात को श्यामनंदन मिश्र को फोन किया तो ये निचली स्तर की बात उन्हें भी पता नहीं थी. फिर विदेश मंत्रालय के किसी अफसर ने डरते-डरते बताया कि वो बनारसी साड़ी अरब शेख के महिला 'मेहमान' के लिए थी! ये कहानी मेरे पिता ने मुझे बताई जो बहुगुणा के राजनीतिक सचिव हुआ करते थे.

दूसरी कहानी एक नेपाल नरेश की है. राजशाही के दौर में नेपाल नरेश का कोई दिल्ली दौरा हुआ और उनका दिल विदेश मंत्रालय की एक युवा महिला अफसर पर आ गया. उनके सचिव ने इसका गुप्त इशारा भारत सरकार को किया था और भारत सरकार ने 'देश के विराट हित में' उस महिला अफसर को 'न्यूनतम बलिदान' देने का सुझाव दिया. हालांकि बात आगे नहीं बढ़ पाई, लेकिन ऐसी बातें बताती हैं कि स्टेटक्राफ्ट में क्या-क्या कूट समझौते, दुरभिसंधियां और असहज बातें स्वीकार करनी होती हैं. सन् नब्बे के दशक में कुछ अखबारों में ऐसी खबरें छपीं भी, लेकिन फिर उसे सरकार ने करीने से ज्यादा प्रचारित नहीं होने दिया.

एक पुरानी कहानी स्टालिन से संबंधित है जो लेनिन की सरकार में महत्वपूर्ण पद पर थे. प्रथम विश्वयुद्ध से रूस अलग हो चुका था और किसी सम्मेलन में भाग लेने बतौर रूसी प्रतिनिधि स्टालिन को विएना जाना था जहां पर उसे सूट और टाई में जाना होता. इस पर कम्यूनिस्ट पार्टी के स्थानीय नेताओं ने विरोध किया कि एक सर्वहारा वर्ग के नेता को ऐसे कपड़े पहनकर नहीं जाना चाहिए. इस पर लेनिन का जवाब था-जब तुम वहां जाओगे ही नहीं, तो समझौता वार्ता खाक करोगे!

कहने का लब्बोलुवाब ये है कि विदेश नीति वो नहीं होती, जो हमें अक्सर दिख जाती है. सुषमा के सिर पर चादर रखने से अगर ईरानी संवेदनशीलता को प्रसन्नता होती है, इस पर विवाद या इसका उपहास क्यों उड़ाया जाना चाहिए?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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