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पुलिस को पढ़ा लिखा होना चाहिए या बहादुर?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 जुलाई, 2015 02:25 PM
  • 17 जुलाई, 2015 02:25 PM
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पुलिसवाले सिर्फ बहादुर होंगे तो अपराधी को गिरफ्तार तो कर सकते हैं, लेकिन अगर पढ़े लिखे न रहे तो क्या उन्हें सजा भी दिला पाएंगे?

कोर्ट की कड़ी फटकार - अदालतों से जुड़ी ज्यादातर खबरों में ये बात अक्सर देखने को मिलती है. फिल्म जॉली एलएलबी के एक सीन में जज बने सौरभ शुक्ला वकील अरशद वारसी को कुछ ऐसे फटकार लगाते हैं. बानगी देखिए...

सौरभ शुक्ला - क्या नाम क्या बताया आपने?

अरशद वारसी - जी, जगदीश त्यागी, जी. जॉली, जॉली कहते हैं मुझे.

सौरभ शुक्ला - हां, कहां से एलएलबी किया आपने

अरशद वारसी - जी, लॉ कॉलेज मेरठ.

सौरभ शुक्ला - ये पीआईएल डाली आपने... हैं, अपील को एप्पल लिख रखा है इसके अंदर... प्रॉसिक्यूशन को प्रॉस्टिट्यूशन लिख रखा है...

रिलीज से पहले वकीलों को इसी बात पर एतराज था कि फिल्म में उनकी छवि को गलत तरीके से पेश किया गया है. बात आई और गई. फिल्म रिलीज भी हुई - और पता चला फिल्म तो ट्रेलर से भी कहीं आगे बढ़कर रही.

खैर, फिलहाल मामला वकीलों की नहीं, बल्कि पुलिसवालों से जुड़ा है. खासतौर पर पुलिसवालों की पढ़ाई लिखाई और कानूनी समझ को लेकर.

पुलिस की भाषा और कानूनी समझ

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक पुलिस अफसर को उसकी भाषाई और कानूनी समझ को लेकर कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने पाया कि पुलिसवाले ने जो एफिडेविट पेश किया है उसकी भाषा तो भ्रष्ट है ही, उसकी कानूनी समझ भी ठीक नहीं है. कोर्ट ने पुलिसकर्मी को सरकारी वकील से ड्राफ्ट सही कराने की जगह खुद ही फाइल करने को लेकर भी डांट पिलाई.

इसी बीच, दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में दायर एक याचिका में दिल्‍ली पुलिस के डेली रूटीन, एफआईआर, गवाहों के बयान दर्ज करने और अदालत में दाखिल चालान की भाषा पर आपत्ति जताई गई है. याचिका में दस्तावेजों में पुराने और मुश्किल उर्दू-फारसी शब्‍दों के इस्‍तेमाल पर सवाल उठाया गया है, जिसे आम लोग तो दूर वकीलों के लिए भी समझना मुश्किल होता है. याचिका में कोर्ट से गुजारिश की गई है कि इन्हें पुलिस की शब्‍दावली से हटाकर इनकी जगह हिंदी और अंग्रेजी के आसान शब्‍दों के इस्‍तेमाल की हिदायत दी...

कोर्ट की कड़ी फटकार - अदालतों से जुड़ी ज्यादातर खबरों में ये बात अक्सर देखने को मिलती है. फिल्म जॉली एलएलबी के एक सीन में जज बने सौरभ शुक्ला वकील अरशद वारसी को कुछ ऐसे फटकार लगाते हैं. बानगी देखिए...

सौरभ शुक्ला - क्या नाम क्या बताया आपने?

अरशद वारसी - जी, जगदीश त्यागी, जी. जॉली, जॉली कहते हैं मुझे.

सौरभ शुक्ला - हां, कहां से एलएलबी किया आपने

अरशद वारसी - जी, लॉ कॉलेज मेरठ.

सौरभ शुक्ला - ये पीआईएल डाली आपने... हैं, अपील को एप्पल लिख रखा है इसके अंदर... प्रॉसिक्यूशन को प्रॉस्टिट्यूशन लिख रखा है...

रिलीज से पहले वकीलों को इसी बात पर एतराज था कि फिल्म में उनकी छवि को गलत तरीके से पेश किया गया है. बात आई और गई. फिल्म रिलीज भी हुई - और पता चला फिल्म तो ट्रेलर से भी कहीं आगे बढ़कर रही.

खैर, फिलहाल मामला वकीलों की नहीं, बल्कि पुलिसवालों से जुड़ा है. खासतौर पर पुलिसवालों की पढ़ाई लिखाई और कानूनी समझ को लेकर.

पुलिस की भाषा और कानूनी समझ

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक पुलिस अफसर को उसकी भाषाई और कानूनी समझ को लेकर कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने पाया कि पुलिसवाले ने जो एफिडेविट पेश किया है उसकी भाषा तो भ्रष्ट है ही, उसकी कानूनी समझ भी ठीक नहीं है. कोर्ट ने पुलिसकर्मी को सरकारी वकील से ड्राफ्ट सही कराने की जगह खुद ही फाइल करने को लेकर भी डांट पिलाई.

इसी बीच, दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में दायर एक याचिका में दिल्‍ली पुलिस के डेली रूटीन, एफआईआर, गवाहों के बयान दर्ज करने और अदालत में दाखिल चालान की भाषा पर आपत्ति जताई गई है. याचिका में दस्तावेजों में पुराने और मुश्किल उर्दू-फारसी शब्‍दों के इस्‍तेमाल पर सवाल उठाया गया है, जिसे आम लोग तो दूर वकीलों के लिए भी समझना मुश्किल होता है. याचिका में कोर्ट से गुजारिश की गई है कि इन्हें पुलिस की शब्‍दावली से हटाकर इनकी जगह हिंदी और अंग्रेजी के आसान शब्‍दों के इस्‍तेमाल की हिदायत दी जाए.

अपडेट क्यों नहीं रहते हरियाणा की पुलिस महानिरीक्षक ममता सिंह ने भी पुलिसकर्मियों की कानूनी समझ पर सवाल उठाया है. ममता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के नए आदेशों के बारे में आजकल पुलिसकर्मियों को न तो जानकारी नहीं होती, न ही कभी वे जानने की कोशिश करते हैं. ममता कहती हैं, "पुलिसकर्मी हर मामले में केस दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार करने निकल पड़ते हैं. आज जरूरत है ऐसे सभी आदेश और कानूनों को पढ़ने और समझने की. समय तेजी से बदल रहा है."

एक कार्यक्रम में ममता सिंह ने कहा, "अब लोग बदल चुके हैं. उनमें जागरूकता आ चुकी है. इसलिए पुलिस को भी बदलना चाहिए. अगर पुलिस नहीं बदलेगी तो जनता उसे बदल देगी."

ममता सिंह की नजर में पुलिसकर्मियों की इस हरकत से महकमे की साख को धक्का तो पहुंचता ही है, सरकारों की भी फजीहत होती है.

शिक्षित या बहादुर

लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. फर्रुखाबाद में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलिस में बहुत शिक्षित लोगों की जरूरत नहीं है.

अखिलेश यादव की नजर में पुलिस में बहादुरों की जरूरत है शिक्षितों की नहीं. अखिलेश कहते हैं, "अपराधियों का मुकाबला करने के लिए बहादुर नौजवानों की जरूरत है, जिन्हें आधुनिक तकनीक के बारे में जानकारी हो."

थानों के मेन गेट पर पुलिस के बारे में पांच बातें लिखी होती हैं जिनमें एक गुण 'साहसी' होना भी होता है. शिक्षित नहीं होने से क्या फर्क पड़ता है बॉम्बे हाई कोर्ट में दाखिल एफिडेविट इसकी मिसाल है. अदलतों से अपराधी कई बार इसीलिए छूट जाते हैं क्योंकि मामलों की पैरवी ठीक से नहीं हो पाती.

बहादुरी से अपराधी को गिरफ्तार तो किया जा सकता है, लेकिन क्या उसे अदालत में सजा भी दिलाई जा सकती है. ऐसा करना शिक्षा के बगैर मुश्किल नहीं नामुमकिन है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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