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शिवसेना का ये शांति पाठ हजम क्‍यों नहीं हो रहा...

    • विनीत कुमार
    • Updated: 07 सितम्बर, 2015 06:17 PM
  • 07 सितम्बर, 2015 06:17 PM
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आग लगाने वाले अगर अचानक आग बुझाने की बात करने लगे तो हैरान होना जायज है. शिवसेना या असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM जैसी पार्टियां धर्म और क्षेत्रवाद की बुनियाद पर ही खड़ी हुई हैं. फिर स्टैंड में ऐसा बदलाव क्यो?

महाराष्ट्र की उन दो लड़कियां की गिरफ्तारी का किस्सा आप भूल तो नहीं गए. बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उनकी अंतिम यात्रा और मुंबई बंद को लेकर शाहीन नाम की एक लड़की ने फेसबुक पर कुछ कमेंट किया और उसकी दोस्त रीनू ने उसे लाइक किया था. मुंबई पुलिस की तेजी देखिए, दोनों को गिरफ्तार किया गया. ऐसे ही अभी कुछ महीने पहले प्राइम टाइम में महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई के मल्टीप्लेक्सों में मराठी फिल्मों को दिखाए जाने का फरमान और शोभा डे के ट्वीट पर सामना में छपे लेख को याद कीजिए.

सामना के उस लेख को भी याद कीजिए जिसमें कहा गया कि वोट देने का अधिकार उन्हीं मुस्लिमों को दिया जाए जो परिवार नियोजन कराएं. मोहन भागवत द्वारा मदर टेरसा पर सेवा के नाम पर गरीबों का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप और शिवसेना का भागवत को समर्थन देने का प्रकरण. एक से एक बढ़कर एक उदाहरण हैं जो साबित कर देंगे कि ऐसी पार्टियों की राजनीति कहां से शुरू होती है और कहां जा कर खत्म हो जाती है.

अब बदलने लगे सुर

आग लगाने वाले अगर अचानक आग बुझाने की बात करने लगे तो हैरान होना जायज है. सामना का ताजा लेख कुछ ऐसा ही है. हाल में कर्नाटक में प्रोफेसर एमएम कुलबर्गी की हत्या कर दी गई थी. अब सामना ने अपने लेख में विरोध की आवाज उठाने वालों के खिलाफ ऐसे काम करने वाले कट्टर हिंदू संगठनों की आलोचना की है.

सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने अपने लेख में लिखा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और इराक जैसे देशों में इस तरह की हत्याएं पहले से हो रही हैं और भारत में भी हिंदूत्व के नाम पर ऐसा होने लगेगा तो हमें तालिबानी कट्टरपंथियों की निंदा करने का कोई हक नहीं होगा. साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे इन हमलों से देशा की आत्मा पर हमला हो रहा है. और तो और शिवसेना ने ऐसे संगठनों को कायर तक कह दिया और कहा कि इन हमलों को हिंदूत्व की हार के तौर पर देखा जाना चाहिए. सामना ने अपने लेख में नरेंद्र दाभोलकर से लेकर गोविंद पानसरे की हत्या का जिक्र किया और इसे गलत...

महाराष्ट्र की उन दो लड़कियां की गिरफ्तारी का किस्सा आप भूल तो नहीं गए. बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उनकी अंतिम यात्रा और मुंबई बंद को लेकर शाहीन नाम की एक लड़की ने फेसबुक पर कुछ कमेंट किया और उसकी दोस्त रीनू ने उसे लाइक किया था. मुंबई पुलिस की तेजी देखिए, दोनों को गिरफ्तार किया गया. ऐसे ही अभी कुछ महीने पहले प्राइम टाइम में महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई के मल्टीप्लेक्सों में मराठी फिल्मों को दिखाए जाने का फरमान और शोभा डे के ट्वीट पर सामना में छपे लेख को याद कीजिए.

सामना के उस लेख को भी याद कीजिए जिसमें कहा गया कि वोट देने का अधिकार उन्हीं मुस्लिमों को दिया जाए जो परिवार नियोजन कराएं. मोहन भागवत द्वारा मदर टेरसा पर सेवा के नाम पर गरीबों का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप और शिवसेना का भागवत को समर्थन देने का प्रकरण. एक से एक बढ़कर एक उदाहरण हैं जो साबित कर देंगे कि ऐसी पार्टियों की राजनीति कहां से शुरू होती है और कहां जा कर खत्म हो जाती है.

अब बदलने लगे सुर

आग लगाने वाले अगर अचानक आग बुझाने की बात करने लगे तो हैरान होना जायज है. सामना का ताजा लेख कुछ ऐसा ही है. हाल में कर्नाटक में प्रोफेसर एमएम कुलबर्गी की हत्या कर दी गई थी. अब सामना ने अपने लेख में विरोध की आवाज उठाने वालों के खिलाफ ऐसे काम करने वाले कट्टर हिंदू संगठनों की आलोचना की है.

सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने अपने लेख में लिखा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और इराक जैसे देशों में इस तरह की हत्याएं पहले से हो रही हैं और भारत में भी हिंदूत्व के नाम पर ऐसा होने लगेगा तो हमें तालिबानी कट्टरपंथियों की निंदा करने का कोई हक नहीं होगा. साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे इन हमलों से देशा की आत्मा पर हमला हो रहा है. और तो और शिवसेना ने ऐसे संगठनों को कायर तक कह दिया और कहा कि इन हमलों को हिंदूत्व की हार के तौर पर देखा जाना चाहिए. सामना ने अपने लेख में नरेंद्र दाभोलकर से लेकर गोविंद पानसरे की हत्या का जिक्र किया और इसे गलत ठहराया.

स्टैंड में यह बदलाव क्यों?

यह वाकई हैरानी वाली बात है. शिवसेना या असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM जैसी पार्टियां धर्म और क्षेत्रवाद की बुनियाद पर ही खड़ी हुई हैं. फिर स्टैंड में ऐसा बदलाव क्यों. आप कैटेलिस्ट भी हैं और आपके बयान और कामों के कारण जो रिएक्शन होता है उसे रोकने की भी बात आप ही करने लगे हैं. कमाल है! ऐसे ही अभी हाल में समन्वय बैठक के बाद आरएसएस की ओर से बयान आया कि पाकिस्तान और भारत भाई-भाई है. सरकार को संबंध सुधारने की दिशा में काम करना चाहिए.

बहरहाल, जब इतनी बड़ी-बड़ी बातें हो ही रही हैं तो क्या शिवसेना या संघ अपने पुराने बयानों, कारनामों पर भी कोई सफाई देंगे? खैर...स्टैंड में बदलाव का कारण जो भी हो या थोड़े दिनों के लिए ही हो लेकिन ऐसी पहल सुखद लगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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