• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

क्या खत्म हो गई जंग?

    • आशुतोष मिश्रा
    • Updated: 24 दिसम्बर, 2016 05:00 PM
  • 24 दिसम्बर, 2016 05:00 PM
offline
नजीब जंग के इस्तीफे ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. पिछले कुछ समय से केजरी सरकार और नजीब जंग के बीच चल रहे विवाद का क्या यहां अंत हो गया है या फिर अभी लड़ाई जारी रहेगी?

दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के इस्तीफे के बाद जो सबसे बड़ा सवाल हर जेहन में उठ रही है वो ये कि क्या अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और राजनिवास के बीच जंग खत्म हो गई? क्या ऩजीब जंग के इस्तीफे के बाद दिल्ली सचिवालय और राजनिवास के बीच की दूरियां खत्म होंगी?

इन सवालों के जवाब छुपे हैं उस सवाल के बीच कि आखिर नजीब जंग ने इस्तीफा क्यों दिया. यूं तो केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय ये नुमाइंदे के तौर पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल का कोई तय कार्यकाल नहीं होता. फिर भी माना जा रहा था कि नजीब जंग बतौर उपराज्यपाल दिल्ली में 2017 तक पारी खेलने वाले थे. इन कयासों को अगर दरकिनार भी कर दें तो ये सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ जिसने जंग को दिल्ली का सिंहासन खाली करने पर मजबूर कर दिया है. जाहिर है इतनी आसानी से इस्तीफे से पीछे नजीब जंग द्वारा दिए गए निजी वजह और अध्यापन में लौटने के कारणों को इतनी आसानी से कोई पचा नहीं सकता.

 नजीब जंग का ये फैसला किसी पहेली की तरह है

नजीब जंग को अगर अध्यापन में ही लौटना था तो ये फैसला पहले या कुछ महीने बाद क्यों नहीं लिया? हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई पर फैसला नजीब जंग के पक्ष में रखा. इसी फैसले के बाद नजीब जंग ने शुंगलू कमेटी बनाकर केजरीवाल सरकार द्वारा पिछले डेढ़ सालों में लिए गए सभी फैसलों को जांच के दायरे में खडा कर दिया. इतना ही नहीं, सूत्रों की मानें तो जंग ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ये जुड़ी फाइलें भी सीबीआई को भेजीं. इसी बीच एसीबी के जरिए स्वाति मालीवाल के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग में नियुक्ति को लेकर एफ आइ आर भी हुई. राजनिवास से केजरीवाल सरकार के सभी करीबी अधिकारियों के तबादले के आदेश आ गए, लेकिन इस बीच अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से मोहभंग कर पंजाब और गोवा का रुख कर लिया. दिल्ली की कमान मनीष सिसोदिया को...

दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के इस्तीफे के बाद जो सबसे बड़ा सवाल हर जेहन में उठ रही है वो ये कि क्या अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और राजनिवास के बीच जंग खत्म हो गई? क्या ऩजीब जंग के इस्तीफे के बाद दिल्ली सचिवालय और राजनिवास के बीच की दूरियां खत्म होंगी?

इन सवालों के जवाब छुपे हैं उस सवाल के बीच कि आखिर नजीब जंग ने इस्तीफा क्यों दिया. यूं तो केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय ये नुमाइंदे के तौर पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल का कोई तय कार्यकाल नहीं होता. फिर भी माना जा रहा था कि नजीब जंग बतौर उपराज्यपाल दिल्ली में 2017 तक पारी खेलने वाले थे. इन कयासों को अगर दरकिनार भी कर दें तो ये सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ जिसने जंग को दिल्ली का सिंहासन खाली करने पर मजबूर कर दिया है. जाहिर है इतनी आसानी से इस्तीफे से पीछे नजीब जंग द्वारा दिए गए निजी वजह और अध्यापन में लौटने के कारणों को इतनी आसानी से कोई पचा नहीं सकता.

 नजीब जंग का ये फैसला किसी पहेली की तरह है

नजीब जंग को अगर अध्यापन में ही लौटना था तो ये फैसला पहले या कुछ महीने बाद क्यों नहीं लिया? हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई पर फैसला नजीब जंग के पक्ष में रखा. इसी फैसले के बाद नजीब जंग ने शुंगलू कमेटी बनाकर केजरीवाल सरकार द्वारा पिछले डेढ़ सालों में लिए गए सभी फैसलों को जांच के दायरे में खडा कर दिया. इतना ही नहीं, सूत्रों की मानें तो जंग ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ये जुड़ी फाइलें भी सीबीआई को भेजीं. इसी बीच एसीबी के जरिए स्वाति मालीवाल के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग में नियुक्ति को लेकर एफ आइ आर भी हुई. राजनिवास से केजरीवाल सरकार के सभी करीबी अधिकारियों के तबादले के आदेश आ गए, लेकिन इस बीच अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से मोहभंग कर पंजाब और गोवा का रुख कर लिया. दिल्ली की कमान मनीष सिसोदिया को सौंप केजरीवाल गोवा और पंजाब में विधानसभा चुनावों की तैयारियों के लिए निकल गए. यानि नजीब जंग की राह में फिलहाल कोई रोड़ा दिल्ली में नहीं था सिवाय छिटपुट हमलों के जो केजरीवाल सरकार के मंत्री लगातार उनपर करते रहे. ऐसे में जंग का अचानक पलायन सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसे कौन से हालात अचानक बन गए जिन्होने जंग को दिल्ली की गद्दी छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

ये भी पढ़ें- जंग के जाने के बाद टीम केजरीवाल की आशंकाएं...

गलियारों में चर्चा कई है, किस्से कई हैं. कहा जा रहा है कि जंग के जाने की वजह खुद जंग ही हैं. केंद्र सरकार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने का दबाव बड़ी वजह रही उनके जाने की. हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली के सर्वेसर्वा बने नजीब जंग ने शुंगलू कमेटी के जरिए केजरीवाल सरकार के पिछले सभी फैसलों की जांच शुरू करवाई लेकिन सिवाय कुछ छोटे-मोटे फैसलों को पलटने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ उस जांच में. साथ ही एसीबी में दाखिल केजरीवाल सरकार के खिलाफ किसी भी केस में बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल पाई. इतना ही नहीं हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली पर अधिकारों की लडाई को लकेर जो अदालत की टिप्पणी आई उससे भी राजनिवास परेशान था.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास अगर अधिकार ना हों तो काम नहीं हो सकता. सुनवाई अपने पड़ाव पर है तो क्या राजनिवास में बैठे जंग को सुप्रीमकोर्ट से फैसला अपने खिलाफ आने का डर सता रहा था. संविधान के जानकार भी मान रहे थे कि भले ही दिल्ली की व्यवस्था संविधान के मुताबिक आधे राज्य की हो, चुनी हुई सरकार के हर अधिकार छीन लेना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. ऐसे में क्या एलजी जंग पर दबाव बढ़ गया था? इतना ही केजरीवाल द्वारा बार-बार केंद्र सरकार का एजेंट होने का आरोप, दिल्ली की चुनी सरकार को काम ना करने देना और जनहित के फैसले बदल देने के आरोपों से भी जंग की छवि को बहुत धक्का लगा. ये और बात है कि नजीब जंग कांग्रेस सरकार की पसंद थे और दिल्ली में तब लाए गए जब शीला दीक्षित की सरकार थी.

 अब क्या होगा केजरी और नजीब की जंग का?

चर्चा यहां है कि नजीब जंग दिसंबर के आखिरी सप्ताह से छुट्टी पर जाने वाले थे और इसकी जानकारी उन्होने दिल्ली सरकार को भी दे दी थी. लेकिन इसके पहले वो छुट्टी पर जाते उन्होने दिल्ली से हमेशा के लिए छुट्टी ले ली. यानि पर्दे के पीछे कुछ कहानी औऱ कुछ बातचीत जरुर हुई जिसने जंग को झकझोर दिया और ऐसा झकझोरा जिसके बाद उन्होने दिल्ली को अलविदा कहने का फैसला ले लिया.

ये भी पढ़ें- 2016 में इन सभी ने दिया 'जंग' वाला झटका...

अब सवाल उठ रहा है कि अगला उपराज्यपाल दिल्ली में कौन होगा? क्या अगला राज्यपाल भी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के निशाने पर होगा? इन सवालों के जवाब तभी मिलेंगे जब केंद्र की बीजेपी सरकार किसी एक नाम पर आखिरी मुहर लगाएगी. कई नाम चर्चा में हैं लेकिन किसी नाम का ऐलान अभी नहीं हुआ है. लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं के रुख से साफ है कि भले ही राजनिवास में रहने वाला चेहरा कोई भी हो, चुनी हुई सरकार औऱ उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर लड़ाई जारी रहेगी और तबतक जारी रहेगी जबतक सुप्रीम कोर्ट दोनों के अधिकारों पर आखिरी फैसला नहीं सुना देता. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲