• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

27 साल बाद मालूम हुआ सैटनिक वर्सेज पढ़ना जुर्म नहीं

    • आईचौक
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2015 02:06 PM
  • 01 दिसम्बर, 2015 02:06 PM
offline
अब तो ये साफ हो गया कि सैटनिक वर्सेज पढ़ने को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. यानी इस केस में असहिष्णुता कुछ कम हो गई है.

सलमान रुश्दी को लेकर सस्पेंस बना हुआ था. रुश्दी, 2012 के जयपुर साहित्य महोत्सव में हॉट टॉपिक बने हुए थे. आयोजकों को छोड़कर हर कोई रुश्दी पर चर्चा में मशगूल था.

तभी हरि कुंजरू और अमिताभ कुमार मंच पर प्रकट हुए और ‘सैटनिक वर्सेज’ के अंश सरेआम बांच डाले. फिर तो अफरातफरी ही मच गई. जो बुक-रीडिंग ऐसे समारोहों का खास इवेंट हुआ करता है उस पर नया बवाल खड़ा हो गया. दोनों लेखकों की गिरफ्तारी की आशंका जताई जाने लगी, जिसमें खुद रुश्दी भी शुमार नजर आए, "मैंने पता लगाया है कि मेरी जान को खतरा बताना एक झूठ था और मुझे लगता है कि मुझे गलत खबर देने वाले पुलिस के लोग ही हरि कुंजरू और अमिताभ कुमार को ग़िरफ्तार करने की कोशिश में हैं."

इस विरोध में भी तेवर अवॉर्ड वापसी जैसा ही था, लेकिन अंदाज बिलकुल अलग था. तीन साल पहले असहिष्णुता अलग फॉर्म में रही होगी!

27 साल बाद

पिछले हफ्ते कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने टाइम्स लिटफेस्ट में माना कि रुश्दी की किताब पर तब की राजीव गांधी सरकार द्वारा रोक लगाना गलत था. चिदंबरम ने साथ में इमरजेंसी का भी जिक्र किया. चिदंबरम ने ये भी कहा कि इंदिरा गांधी ने 1980 में स्वीकार किया था कि देश में इमरजेंसी लगाना भी एक भूल थी. फौरी सवालों पर चिदंबरम बोले, "अगर आप मुझसे 20 साल पहले पूछते, तब भी मैं यही बात कहता."

चिदंबरम का बयान मीडिया में आते ही रुश्दी ने भी ट्वीट कर पूछ लिया, ये मानने में तो 27 साल लग गये. अब गलती सुधारने में कितने साल लगेंगे?

मौका देख तसलीमा नसरीन भी पीछे नहीं रहीं. तसलीमा ने ट्वीट किया, "पी चिदंबरम ने कहा कि सैटनिक वर्सेज पर पाबंदी लगाया जाना गलत था. कब बुद्धदेव भट्टाचार्य कहेंगे कि मेरी किताब द्विखंडितो पर पाबंदी लगाया जाना गलत था." लगे हाथ तसलीमा ने ममता बनर्जी को भी नसीहत लेने की सलाह दी.

चिदंबरम के इस इकबालनामे को लेकर कांग्रेस में ही बहस शुरू हो गई - और आखिरकार कांग्रेस ने इस पूरे मामले से खुद किनारा कर लिया. मनीष तिवारी ने कहा, "27...

सलमान रुश्दी को लेकर सस्पेंस बना हुआ था. रुश्दी, 2012 के जयपुर साहित्य महोत्सव में हॉट टॉपिक बने हुए थे. आयोजकों को छोड़कर हर कोई रुश्दी पर चर्चा में मशगूल था.

तभी हरि कुंजरू और अमिताभ कुमार मंच पर प्रकट हुए और ‘सैटनिक वर्सेज’ के अंश सरेआम बांच डाले. फिर तो अफरातफरी ही मच गई. जो बुक-रीडिंग ऐसे समारोहों का खास इवेंट हुआ करता है उस पर नया बवाल खड़ा हो गया. दोनों लेखकों की गिरफ्तारी की आशंका जताई जाने लगी, जिसमें खुद रुश्दी भी शुमार नजर आए, "मैंने पता लगाया है कि मेरी जान को खतरा बताना एक झूठ था और मुझे लगता है कि मुझे गलत खबर देने वाले पुलिस के लोग ही हरि कुंजरू और अमिताभ कुमार को ग़िरफ्तार करने की कोशिश में हैं."

इस विरोध में भी तेवर अवॉर्ड वापसी जैसा ही था, लेकिन अंदाज बिलकुल अलग था. तीन साल पहले असहिष्णुता अलग फॉर्म में रही होगी!

27 साल बाद

पिछले हफ्ते कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने टाइम्स लिटफेस्ट में माना कि रुश्दी की किताब पर तब की राजीव गांधी सरकार द्वारा रोक लगाना गलत था. चिदंबरम ने साथ में इमरजेंसी का भी जिक्र किया. चिदंबरम ने ये भी कहा कि इंदिरा गांधी ने 1980 में स्वीकार किया था कि देश में इमरजेंसी लगाना भी एक भूल थी. फौरी सवालों पर चिदंबरम बोले, "अगर आप मुझसे 20 साल पहले पूछते, तब भी मैं यही बात कहता."

चिदंबरम का बयान मीडिया में आते ही रुश्दी ने भी ट्वीट कर पूछ लिया, ये मानने में तो 27 साल लग गये. अब गलती सुधारने में कितने साल लगेंगे?

मौका देख तसलीमा नसरीन भी पीछे नहीं रहीं. तसलीमा ने ट्वीट किया, "पी चिदंबरम ने कहा कि सैटनिक वर्सेज पर पाबंदी लगाया जाना गलत था. कब बुद्धदेव भट्टाचार्य कहेंगे कि मेरी किताब द्विखंडितो पर पाबंदी लगाया जाना गलत था." लगे हाथ तसलीमा ने ममता बनर्जी को भी नसीहत लेने की सलाह दी.

चिदंबरम के इस इकबालनामे को लेकर कांग्रेस में ही बहस शुरू हो गई - और आखिरकार कांग्रेस ने इस पूरे मामले से खुद किनारा कर लिया. मनीष तिवारी ने कहा, "27 साल बाद अगर उन्होंने माना है तो उनकी भावना का स्वागत किया जाना चाहिए." मनीष से इतर हंसराज भारद्वाज और संदीप दीक्षित ने इस पर विरोध जताया. राजीव गांधी सरकार का हिस्सा रहे नटवर सिंह और मणिशंकर अय्यर ने भी चिदंबरम की राय से असहमति जताई.

इन बातों का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि किताब को लेकर एक स्टेटस रिपोर्ट ही सामने आई, जो बिलकुल नई थी.

कांग्रेस के कम्युनिकेशन हेड रणदीप सूरजेवाला ने साफ किया, "राजीव गांधी सरकार ने सैटनिक वर्सेज पर कभी प्रतिबंध नहीं लगाया था और देश में सामाजिक तनाव फैलने की आशंका के चलते केवल इस किताब का इंपोर्ट रोका गया था. भारत में इस किताब को रखना कभी भी अपराध नहीं माना गया."

बहरहाल, ये तो साफ हो गया, क्योंकि सैटनिक वर्सेज के अंश पढ़ने को लेकर हरि कुंजरू और अमिताभ कुमार को तब गिरफ्तार नहीं किया गया था.

अफवाहों और आशंकाओं से चाहे जब निजात मिले - अच्छा ही होता है. चिदंबरम कम से कम इस बात के लिए बधाई के हकदार हैं, उन्हें मिले या नहीं, अलग बात है.

खैर, अब तो ये साफ हो गया कि सैटनिक वर्सेज पढ़ने को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. यानी इस केस में असहिष्णुता कुछ कम हो गई है.

नटवर बताते हैं, "मैं राजीव गांधी सरकार में मंत्री था और किताब के इंपोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का फैसला प्रधानमंत्री और मेरे सहित कई मंत्रियों के बीच विचार-विमर्श के बाद हुआ था. तत्कालीन सरकार में शामिल लोगों का मानना था कि उस किताब से देश में अशांति फैलेगी."

बैन के पीछे कौन

ये वाकया अक्टूबर 1988 का है और उसी साल ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी की ओर से फांसी का फतवा भी आया था.

रुश्दी की किताब के खिलाफ जम्मू कश्मीर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. माना जाता है कि टीवी पर विरोध प्रदर्शन देख कर ही खुमैनी ने फतवा दिया था.

सैटनिक वर्सेज के साथ भारत में जो भी बर्ताव हुआ उसमें खुशवंत सिंह की भूमिका की भी आलोचना होती रही है. तब खुशवंत सिंह पेंग्विन इंडिया के सलाहकार थे - और अपनी सलाह में खुशवंत सिंह ने कहा था कि अगर किताब प्रकाशित हुई तो सांप्रदायिक सौहार्द्र पर असर पड़ सकता है. किताब को लेकर जब राजीव गांधी ने खुशवंत सिंह की राय मांगी तब भी उन्होंने वही बात दोहराई. बाकी बातें जग जाहिर हैं.

'स्मॉल बिजनेस सैटरडे' के तहत बराक ओबामा ने भी सलमान रुश्दी की किताब खरीदी है. रुश्दी ने भी अपने एक ट्वीट में इसका जिक्र किया है, लेकिन वो किताब 'सैटनिक वर्सेज' नहीं, बल्कि टू ईयर्स एट मंथ्स एंड ट्वेंडी-एट नाइट्स' है.

ओबामा के किताब खरीदने का मकसद बिजनेस है, राजनीति नहीं. अमेरिका में 'स्मॉल बिजनेस सैटरडे' छोटे कारोबारियों की मदद में एक ट्रेंड बनता जा रहा है जिसे ओबामा ने सिर्फ एंडोर्स किया है. वैसे भी अमेरिकी बिजनेस पर ही ज्यादा जोर देते हैं - राजनीति अपने आप होती रहेगी. चाहे असहिष्णुता पर हो या किसी और बात पर.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲