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नाज और लाज का इतना सरलीकरण भी न कीजिए, राजनाथ जी!

    • ओम थानवी
    • Updated: 10 मार्च, 2017 07:53 PM
  • 10 मार्च, 2017 07:53 PM
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कल राजनाथ सिंह ने सदन में सैफुल्लाह के पिता के प्रति अपनी और समूचे सदन की 'सहानुभूति', 'नाज' और 'गौरव' का जो इजहार किया, वह एक खतरनाक स्थापना की ओर इशारा करता है.

गृहमंत्री राजनाथ सिंह विवेकशील राजनेता हैं. पर कल सदन में उन्होंने सैफुल्लाह के पिता के प्रति अपनी और समूचे सदन की 'सहानुभूति', 'नाज' और 'गौरव' का जो इजहार किया, वह एक खतरनाक स्थापना की ओर इशारा करता है. उनका मंतव्य भले न रहा हो, पर उनके कथन का सहज ही यह ध्वन्यार्थ निकल सकता सैफुल्लाह के पिता सरताज की तरह हर वैसे मुसलमान को अपनी देशभक्ति वक्तव्य देकर स्पष्ट करनी चाहिए. तभी भारत की संसद को, देश को उस पर 'नाज' होगा. वरना वे शायद शक के घेरे में घिरे रहें!

राजनाथ जी थोड़ा तो संभल जाते!

इसमें किसे शक है कि हमारे देश में भी आतंकवादी सिरफिरे हैं, देशद्रोही जिन्होंने देश की दुश्मन ताकतों से मिलकर देश में हादसे अंजाम दिए, अपने ही लोगों को मौत के घाट उतारा. लेकिन इससे उनके माता-पिता को तो आतंकवादी मनोवृति का नहीं मान लिया जाता है, न उन्हें देशद्रोही कहा जाता है, न उनसे कोई वक्तव्य या प्रमाण-पत्र मांगा जाता है.

दूसरे शब्दों में, उन्हें नाज या अफसोस के घेरे में धकेलने की नौबत ही नहीं आती. तब भी नहीं, जब मृत आतंकवादी का शव वे ले लेते हैं, भारी भीड़ के बीच अंतिम संस्कार करते हैं. आखिर माता-पिता और अन्य लोगों का रिश्ता मृतक से भावनात्मक स्तर पर भी रहा होता है. इसके अलावा, मृतक आतंकवादी या देशद्रोही गतिविधियों में शरीक था, इसकी पुष्टि होने में वक्त भी लगता है. कोई 'एनकाउंटर' या बरामद असला, पैसा, झंडा या पासपोर्ट अनिवार्य तौर पर किसी भारतीय को तत्काल- उसी घड़ी- आतंकवादी, देशद्रोही साबित नहीं कर सकता.

यूपी में एनकांउटर

प्रसंगवश, राजनाथ सिंह जी...

गृहमंत्री राजनाथ सिंह विवेकशील राजनेता हैं. पर कल सदन में उन्होंने सैफुल्लाह के पिता के प्रति अपनी और समूचे सदन की 'सहानुभूति', 'नाज' और 'गौरव' का जो इजहार किया, वह एक खतरनाक स्थापना की ओर इशारा करता है. उनका मंतव्य भले न रहा हो, पर उनके कथन का सहज ही यह ध्वन्यार्थ निकल सकता सैफुल्लाह के पिता सरताज की तरह हर वैसे मुसलमान को अपनी देशभक्ति वक्तव्य देकर स्पष्ट करनी चाहिए. तभी भारत की संसद को, देश को उस पर 'नाज' होगा. वरना वे शायद शक के घेरे में घिरे रहें!

राजनाथ जी थोड़ा तो संभल जाते!

इसमें किसे शक है कि हमारे देश में भी आतंकवादी सिरफिरे हैं, देशद्रोही जिन्होंने देश की दुश्मन ताकतों से मिलकर देश में हादसे अंजाम दिए, अपने ही लोगों को मौत के घाट उतारा. लेकिन इससे उनके माता-पिता को तो आतंकवादी मनोवृति का नहीं मान लिया जाता है, न उन्हें देशद्रोही कहा जाता है, न उनसे कोई वक्तव्य या प्रमाण-पत्र मांगा जाता है.

दूसरे शब्दों में, उन्हें नाज या अफसोस के घेरे में धकेलने की नौबत ही नहीं आती. तब भी नहीं, जब मृत आतंकवादी का शव वे ले लेते हैं, भारी भीड़ के बीच अंतिम संस्कार करते हैं. आखिर माता-पिता और अन्य लोगों का रिश्ता मृतक से भावनात्मक स्तर पर भी रहा होता है. इसके अलावा, मृतक आतंकवादी या देशद्रोही गतिविधियों में शरीक था, इसकी पुष्टि होने में वक्त भी लगता है. कोई 'एनकाउंटर' या बरामद असला, पैसा, झंडा या पासपोर्ट अनिवार्य तौर पर किसी भारतीय को तत्काल- उसी घड़ी- आतंकवादी, देशद्रोही साबित नहीं कर सकता.

यूपी में एनकांउटर

प्रसंगवश, राजनाथ सिंह जी से पूछा जाना चाहिए कि भोपाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए पैसे के लालच में काम करने वाले जो ग्यारह भाजपा कार्यकर्ता पकड़े गए हैं, उनकी इस 'गद्दारी' या देशद्रोही गतिविधियों के लिए क्या उनके माता-पिता का कोई वक्तव्य प्राप्त हुआ है? क्या आईएसआई को हमारी सैनिक गतिविधियों, शिविरों आदि की जानकारी देने वाले इन 'गद्दारों' से नाता तोड़ने का कोई औपचारिक ऐलान भाजपा अध्यक्ष ने किया है?

पार्टी को छोड़िए, क्या उन आरोपियों के माता-पिताओं ने उनसे अपना नाता तोड़ लिया है? अगर नहीं, तो वे माता-पिता, भारतीय होने के नाते, क्या अब नाज करने के काबिल नहीं रहे क्योंकि उनकी संतानें 'गद्दार' निकलीं?

नाज और लाज का इतना सरलीकरण भी न कीजिए, राजनाथ जी!

नोट- ये पोस्ट लेखक के फेसबुक वॉल पर सबसे पहले प्रकाशित हुई है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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