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आतंकवाद के खात्मे से अहम है बीजेपी-कांग्रेस की लड़ाई?

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 06 जनवरी, 2016 01:46 PM
  • 06 जनवरी, 2016 01:46 PM
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वैश्विक सभ्य समाज के सामने आतंकी संगठन आईएसआईएस एक बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है. हाल में हुए पेरिस हमले के बाद भी क्या देश में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए कोई एकीकृत फोर्स बनाई जानी चाहिए या फिर इस खतरे से ज्यादा जरूरी केन्द्र और राज्य की राजनीति है.

मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैय्यबा के 10 जेहादी आतंकवादियों ने हमला कर 164 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इस हमले में मुंबई पुलिस और एनएसजी के 17 कमांडो और 28 विदेशी नागरिक भी मारे गए थे. हमले के चार दिन बाद तत्कानील गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने सुरक्षा में चूक की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था और वित्त मंत्री के पद पर तैनात पी चिदंबरम को देश का नया गृह मंत्री बना दिया गया था. आतंक की इस घटना की सघन जांच के बाद चिदंबरम ने देश में नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (NCTC) के गठन का प्रस्ताव रखा. हालांकि यह प्रस्ताव देश के फेडरल स्ट्रक्चर और राज्यों की स्वायत्ता पर संकट के चलते दरकिनार कर दिया गया.

NCTC में क्या था खास दुनियाभर में बढ़ते इस्लामिक आतंकवाद को देखते हुए चिदंबरम ने अमेरिका के तर्ज पर इस सेंटर के गठन का प्रस्ताव किया था. यह सेंटर देश में आतंकवाद से लड़ने के लिए सूचनाओं को एकत्र करने, एजेंसियों और राज्यों की पुलिस को दुनियाभर और देश में आतंकवाद से जुड़ी सूचनाएं उपलब्ध कराने और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाने में अहम भूमिका निभाती. इस काम को करने के लिए इसे केन्द्र सरकार की इंटेलिजेंस ब्यूरो और गृह मंत्रालय से संलग्न करने का प्रस्ताव था और इस सेंटर के लिए देश के किसी कोने में सर्च और अरेस्ट करने का अधिकार रहता.

क्यों रिजेक्ट किया गया एनसीटीसी एनसीटीसी प्रस्ताव का सबसे मुखर विरोध गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. मोदी समेत कुछ अन्य राज्यों का मानना था कि इससे देश के फेडरल स्ट्रक्चर को खतरा है. दरअसल संविधान में पोलिसिंग या लॉ एंड ऑर्डर राज्य सूची शामिल विषय है और प्रत्येक राज्य को अपनी पुलिस और उसकी जरूरतो पर एकाधिकार है. वहां केन्द्र सरकार किसी राज्य की मदद सेना अथवा किसी अन्य राज्य की पुलिस से कर सकती है लेकिन इसके लिए उस राज्य की सहमति जरूरी है.

लिहाजा, एनसीटीसी के प्रस्ताव पर राज्यों को यह डर उठा की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के बहाने...

मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैय्यबा के 10 जेहादी आतंकवादियों ने हमला कर 164 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इस हमले में मुंबई पुलिस और एनएसजी के 17 कमांडो और 28 विदेशी नागरिक भी मारे गए थे. हमले के चार दिन बाद तत्कानील गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने सुरक्षा में चूक की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था और वित्त मंत्री के पद पर तैनात पी चिदंबरम को देश का नया गृह मंत्री बना दिया गया था. आतंक की इस घटना की सघन जांच के बाद चिदंबरम ने देश में नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (NCTC) के गठन का प्रस्ताव रखा. हालांकि यह प्रस्ताव देश के फेडरल स्ट्रक्चर और राज्यों की स्वायत्ता पर संकट के चलते दरकिनार कर दिया गया.

NCTC में क्या था खास दुनियाभर में बढ़ते इस्लामिक आतंकवाद को देखते हुए चिदंबरम ने अमेरिका के तर्ज पर इस सेंटर के गठन का प्रस्ताव किया था. यह सेंटर देश में आतंकवाद से लड़ने के लिए सूचनाओं को एकत्र करने, एजेंसियों और राज्यों की पुलिस को दुनियाभर और देश में आतंकवाद से जुड़ी सूचनाएं उपलब्ध कराने और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाने में अहम भूमिका निभाती. इस काम को करने के लिए इसे केन्द्र सरकार की इंटेलिजेंस ब्यूरो और गृह मंत्रालय से संलग्न करने का प्रस्ताव था और इस सेंटर के लिए देश के किसी कोने में सर्च और अरेस्ट करने का अधिकार रहता.

क्यों रिजेक्ट किया गया एनसीटीसी एनसीटीसी प्रस्ताव का सबसे मुखर विरोध गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. मोदी समेत कुछ अन्य राज्यों का मानना था कि इससे देश के फेडरल स्ट्रक्चर को खतरा है. दरअसल संविधान में पोलिसिंग या लॉ एंड ऑर्डर राज्य सूची शामिल विषय है और प्रत्येक राज्य को अपनी पुलिस और उसकी जरूरतो पर एकाधिकार है. वहां केन्द्र सरकार किसी राज्य की मदद सेना अथवा किसी अन्य राज्य की पुलिस से कर सकती है लेकिन इसके लिए उस राज्य की सहमति जरूरी है.

लिहाजा, एनसीटीसी के प्रस्ताव पर राज्यों को यह डर उठा की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के बहाने केन्द्र सरकार राज्यों की शक्तियों का हनन करने की कोशिश कर रही है.

आतंकवाद का नया कलेवर पेरिस हमलों के बाद पूरी दुनिया को एक बात साफ हो चुकी है कि आतंकवाद एक नए कलेवर या फिर लेबल में सामने आ रहा है. अलकायदा और लश्कर-ए-तैय्यबा मार्का आतंकवाद का दौर खत्म हो चुका है. अब वैश्विक स्तर पर आईएसआईएस आतंकवाद का नया चेहरा बन कर उभर रहा है. आतंकवाद के इस चेहरे पर काला नकाब चढ़ा है और काला झंडा इसकी पहचान है. जहां अलकायदा और लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे संगठनों को फाइनेंसिंग करने का तरीका जगजाहिर हो गया था वहीं आईएसआईएस पर सस्पेंस बरकरार है. जहां ‘रेडियो मुल्ला’ अलकायदा की मजबूत कड़ी थी वहीं ‘जेहादी जॉन’ आईएसआईएस का टॉप फीचर है. जहां अलकायदा महज पश्चिम दिशा में देख रहा था और लश्कर-ए-तैय्यबा पूर्वी दिशा में वहीं आईएसआईएस का काला झंडा दुनिया के हर कोने में फहराता दिख रहा है.

अतंकवाद के इस बदलते कलेवर के बीच हमें भी पुनर्विचार करने की जरूरत है कि क्या इस लड़ाई में हमें एक साथ होकर एनसीटीसी जैसी संस्था को विकसित करना चाहिए. या फिर वाकई इससे हमारे फेडरल स्ट्रक्चर पर बड़ा खतरा है और आईएसआईएस जैसे खतरे से लड़ने के लिए हमारे राज्यों की पुलिस पूरी तरह से सक्षम है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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