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राष्ट्रपति चुनाव तो बहना है, कांग्रेस को समझाना है...

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 29 जून, 2017 10:36 PM
  • 29 जून, 2017 10:36 PM
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नीतीश कुमार कई मुद्दों पर एनडीए सरकार को अपना समर्थन देते रहे हैं. चाहे वो नोटबंदी का मामला हो, सर्जिकल स्ट्राईक का मामला या फिर जीएसटी का मामला हो. पर इसका ये मतलब नहीं है कि वो बीजेपी के साथ मिल जायेंगे.

बिहार के महागठबंधन सरकार में संकट भले ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर देखा जा रहा है लेकिन इसके पीछे की वजह कुछ और है. इस बात को न तो महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और आरजेडी समझ रही है और ना ही देश की मीडिया. सब मान कर चल रहे हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यू के नेता नीतीश कुमार के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का मतलब है बीजेपी से नजदीकियां बढ़ाना है. पर असल में बात कुछ और है. और ये बात कांग्रेस को समझना होगा. 2019 के चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार कौन होगा? किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा? इन सब बातों पर कांग्रेस को अब विचार करना होगा.

ये सही है कि नीतीश कुमार कई बार दो टूक कह चुके है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वो प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं हैं. लेकिन इसी में उसका उत्तर भी है. नीतीश कुमार बार बार इन बातों को दुहराते है लेकिन इन बातों को विपक्ष समझ नही पा रहा है. कांग्रेस इस मुगालते में है कि 2019 में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की चुनावी नैय्या पार कर लेगी. पर विपक्ष एकता का क्या होगा.

विपक्ष एकता का ताजा उदारहण है राष्ट्रपति का यह चुनाव. अकेले नीतीश कुमार के एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन करने से विपक्ष एकता क्षीण-भिन्न हो गई लगती है. वो विपक्ष जो पूरे देश में महागठबंधन बनाकर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहता था, एक राष्ट्रपति चुनाव में वो अपने में एकजुट नही रख पाई, आखिर इसकी क्या वजह है? वजह है कांग्रेस. कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश चुनाव में दरियादिली नहीं दिखाई. कांग्रेस के नेता सीपी जोशी यहां तक कह गए कि महागठबंधन का स्वरूप केवल बिहार तक सीमित है. यही वजह है कि जनता दल यू को ये कहने का मौका मिल गया कि राष्ट्रपति का चुनाव बिहार का नही बल्कि पूरे देश का है जहां महागठबंधन नहीं है. और रही सही कसर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद ने नीतीश कुमार की विचारधारा पर सवाल उठाकर पूरा कर दिया.

बिहार के महागठबंधन सरकार में संकट भले ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर देखा जा रहा है लेकिन इसके पीछे की वजह कुछ और है. इस बात को न तो महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और आरजेडी समझ रही है और ना ही देश की मीडिया. सब मान कर चल रहे हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यू के नेता नीतीश कुमार के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का मतलब है बीजेपी से नजदीकियां बढ़ाना है. पर असल में बात कुछ और है. और ये बात कांग्रेस को समझना होगा. 2019 के चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार कौन होगा? किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा? इन सब बातों पर कांग्रेस को अब विचार करना होगा.

ये सही है कि नीतीश कुमार कई बार दो टूक कह चुके है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वो प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं हैं. लेकिन इसी में उसका उत्तर भी है. नीतीश कुमार बार बार इन बातों को दुहराते है लेकिन इन बातों को विपक्ष समझ नही पा रहा है. कांग्रेस इस मुगालते में है कि 2019 में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की चुनावी नैय्या पार कर लेगी. पर विपक्ष एकता का क्या होगा.

विपक्ष एकता का ताजा उदारहण है राष्ट्रपति का यह चुनाव. अकेले नीतीश कुमार के एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन करने से विपक्ष एकता क्षीण-भिन्न हो गई लगती है. वो विपक्ष जो पूरे देश में महागठबंधन बनाकर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहता था, एक राष्ट्रपति चुनाव में वो अपने में एकजुट नही रख पाई, आखिर इसकी क्या वजह है? वजह है कांग्रेस. कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश चुनाव में दरियादिली नहीं दिखाई. कांग्रेस के नेता सीपी जोशी यहां तक कह गए कि महागठबंधन का स्वरूप केवल बिहार तक सीमित है. यही वजह है कि जनता दल यू को ये कहने का मौका मिल गया कि राष्ट्रपति का चुनाव बिहार का नही बल्कि पूरे देश का है जहां महागठबंधन नहीं है. और रही सही कसर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद ने नीतीश कुमार की विचारधारा पर सवाल उठाकर पूरा कर दिया.

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

पर सवाल फिर वहीं का वहीं है. आखिर 2013 में नीतीश कुमार बीजेपी से अलग क्यों हुए? सबकुछ अच्छा चल रहा था. मुख्यमंत्री के तौर उनका कार्यकाल अच्छा चल रहा था, देश विदेश में अपने नाम के साथ साथ उन्होंने बिहार का नाम भी उंचा किया. लेकिन वो यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहते थे. वो देश के लिए भी कुछ करना चाहते थे. पर जब बीजेपी में ये तय हो गया कि प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी होने जा रहे हैं, तब उन्होंने अपना रास्ता बदला और 17 वर्षो का रिश्ता एक झटके में तोड़ दिया.

पर कांग्रेस और महागठबंधन के सहयोगी इस बात को नहीं समझ नही पा रहे हैं कि आखिर मुख्यमंत्री बने रहना है तो महागठबंधन सरकार से बेहतर स्थिति तो बीजेपी के साथ गठबंधन में थे नीतीश कुमार. जनता दल यू के महासचिव के सी त्यागी ने यह कहकर पुष्टी भी की है कि बीजेपी के साथ सरकार चलाना काफी सहज था. तो जब महागठबंधन में उन्हें मुख्यमंत्री के पद तक सीमित रहना होगा तो इससे बेहतर तो बीजेपी का साथ था. फिर महागठबंधन की सरकार में रह कर अपने द्वारा किए गए कामों पर पानी क्यों फेरा जाये.

केवल नीतीश कुमार के विपक्ष के विपरीत एनडीए को समर्थन देने से एकता का बंटाधार हो गया. विपक्ष ने उम्मीदवार के तौर पर मीरा कुमार जैसी योग्य दलित महिला को उतारा है, लेकिन कहीं से उत्साह नहीं दिख रहा है और ना ही उन्हें जिताने का प्रयास. यहां तक की उनके नामांकन के समय विपक्ष के कई बड़े नेता नही दिखे. नामांकन में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती समेत अजीत सिंह भी शामिल नहीं हुए. यहां तक कि छुट्टी मना कर लौटे कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी उपस्थित होना मुनासिब नहीं समझा. लालू प्रसाद यादव ने अपने दो मंत्रियों को भेजकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर ली.

हांलाकि ये सही है कि नीतीश कुमार कई मुद्दों पर एनडीए सरकार को अपना समर्थन देते रहे हैं. चाहे वो नोटबंदी का मामला हो, सर्जिकल स्ट्राईक का मामला या फिर जीएसटी का मामला हो. पर इसका ये मतलब नहीं है कि वो बीजेपी के साथ मिल जायेंगे. हां अगर विपक्ष और खासकर कांग्रेस उनके मर्म को नहीं समझती है तो निश्चित रूप से नीतीश कुमार का अगला कदम ये हो सकता है. और ये राजनैतिक रूप से इसलिए भी उचित होगा कि अगर महागठबंधन सरकार में भी मुख्यमंत्री ही बने रहना है तो फिर बीजेपी के साथ क्यों नहीं.

राष्ट्रपति का चुनाव एक अहम पड़ाव है. इस बात को समझने के लिए कि विपक्षी एकता बिना नीतीश कुमार के संभव नहीं है. और ये संभव तभी होगा जब नीतीश कुमार विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे. माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी को कोई चुनौती दे सकता है तो वो है नीतीश कुमार. ऐसे में यह कांग्रेस को तय करना है कि वो राहुल गांधी का मोह छोड़े.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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