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गरीबी दुर्भाग्यपूर्ण, दलित होना सौभाग्य की बात!

    • करुणेश कैथल
    • Updated: 26 मार्च, 2016 12:16 PM
  • 26 मार्च, 2016 12:16 PM
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कई कारण हैं जिसके चलते आरक्षण के नियमों पर शुरू से ही सवाल खड़े होते आ रहे हैं. आरक्षण असल जरूरतमंदों तक कब तक पहुंचेगा इसकी आस लगाए सामान्य वर्ग जाति के लोग भी कई सवाल सरकार से पूछ रहे हैं.

आपके पास रोजगार नहीं है, बहुत मुश्किल से अपने और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेते हैं, कभी-कभी भूखे रहने की भी नौबत सी आ जाती है, तन ढ़कने के लिए किसी का दिया हुआ फटा-सिला कपड़ा पहनते हैं, आप बहुत ही गरीबी से जूझ रहे हैं.....! ये सारे लक्षण किसी गरीब के ही हो सकते हैं पर जरूरी नहीं कि यही लक्षण किसी दलित के भी हों!

समस्या यह है कि दलित शब्द का राजनीतिकरण हो चुका है. अक्सर आप नेताओं-मंत्रियों को गरीब से ज्यादा दलित शब्द का इस्तेमाल करते सुनते होंगे. क्योंकि इस दौर के राजनीतिज्ञों के अनुसार दलित शब्द का अर्थ किसी के गरीब होने से नहीं बल्कि अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा अति पिछड़े वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से होता है. अक्सर देश में आरक्षण की मांग की लड़ाई जारी रहती है. अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा अति पिछड़े वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आरक्षणधारी का दर्जा प्राप्त है.

ये भी पढ़ें- आरक्षण पर एक खुला पत्र हमारे नीति-निर्माताओं के नाम

चूंकि मुख्य रूप से इन जातियों से आने वाले लोगों के लिए सरकार की तरफ से कई सुविधाएं दी जाती हैं. परीक्षा से लेकर भर्ती तक में काफी छूट दी जाती है. अतः राजनीतिक पार्टियां इन दी जाने वाली छूट में कम या ज्यादा का हवाला देकर राजनीति करती नजर आती हैं. लेकिन अगर आपने ध्यान दिया होगा तो अक्सर ये राजनीतिज्ञ अपने संबोधनों में गरीब की जगह दलित शब्द का प्रयोग करते नजर आते हैं. क्योंकि उन्हें भी पता है कि गरीब तो किसी भी वर्ग या जाति का हो सकता है. लेकिन जैसे ही उनके जुबां पर दलित शब्द का इस्तेमाल होता है उन्हें सुन रहे लोगों में अपने आप दलित का मतलब समझ में आ जाता है.

हालांकि राजनीतिज्ञ अपने-अपने तरीके से दलित शब्द को परिभाषित करते...

आपके पास रोजगार नहीं है, बहुत मुश्किल से अपने और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेते हैं, कभी-कभी भूखे रहने की भी नौबत सी आ जाती है, तन ढ़कने के लिए किसी का दिया हुआ फटा-सिला कपड़ा पहनते हैं, आप बहुत ही गरीबी से जूझ रहे हैं.....! ये सारे लक्षण किसी गरीब के ही हो सकते हैं पर जरूरी नहीं कि यही लक्षण किसी दलित के भी हों!

समस्या यह है कि दलित शब्द का राजनीतिकरण हो चुका है. अक्सर आप नेताओं-मंत्रियों को गरीब से ज्यादा दलित शब्द का इस्तेमाल करते सुनते होंगे. क्योंकि इस दौर के राजनीतिज्ञों के अनुसार दलित शब्द का अर्थ किसी के गरीब होने से नहीं बल्कि अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा अति पिछड़े वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से होता है. अक्सर देश में आरक्षण की मांग की लड़ाई जारी रहती है. अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा अति पिछड़े वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आरक्षणधारी का दर्जा प्राप्त है.

ये भी पढ़ें- आरक्षण पर एक खुला पत्र हमारे नीति-निर्माताओं के नाम

चूंकि मुख्य रूप से इन जातियों से आने वाले लोगों के लिए सरकार की तरफ से कई सुविधाएं दी जाती हैं. परीक्षा से लेकर भर्ती तक में काफी छूट दी जाती है. अतः राजनीतिक पार्टियां इन दी जाने वाली छूट में कम या ज्यादा का हवाला देकर राजनीति करती नजर आती हैं. लेकिन अगर आपने ध्यान दिया होगा तो अक्सर ये राजनीतिज्ञ अपने संबोधनों में गरीब की जगह दलित शब्द का प्रयोग करते नजर आते हैं. क्योंकि उन्हें भी पता है कि गरीब तो किसी भी वर्ग या जाति का हो सकता है. लेकिन जैसे ही उनके जुबां पर दलित शब्द का इस्तेमाल होता है उन्हें सुन रहे लोगों में अपने आप दलित का मतलब समझ में आ जाता है.

हालांकि राजनीतिज्ञ अपने-अपने तरीके से दलित शब्द को परिभाषित करते नजर आते रहते हैं. गरीब और दलित के बीच अब फर्क सुनने से ही समझ में आ जाता है. अगर आप गरीब हैं तो शायद ही आपको सरकारी मदद मिल सके लेकिन अगर आप दलित हैं तो एक बार हाथ उठाने की देर है आपके आगे-पीछे नेता ही नेता दिखाई पड़ेंगे. इन्हीं कारणों से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अगर आप गरीब हैं तो यह आपके लिए बेहद ही दुर्भाग्य की बात है लेकिन अगर आप एक दलित वर्ग से आते हैं तो आप अमीर हैं या गरीब मायने नहीं रखता. सारी सरकारी सुविधाएं आपको प्राप्त होंगी.

ये भी पढ़ें- जाति की राजनीति के सियासी गिद्ध!

आजकल आरक्षण लेने के जो तरीके इजाद हो चुके हैं यह तो सवालों के घेरे में है ही. इस तरह के कई कारण हैं जिसके चलते आरक्षण के नियमों पर शुरू से ही सवाल भी खड़े होते आ रहे हैं. आरक्षण असल जरूरतमंदों तक कब तक पहुंचेगी इसकी आस लगाए सामान्य वर्ग जाति के लोग भी कई सवाल सरकार से पूछ रहे हैं. फिलहाल तो यही लगता है कि गरीब होना दुर्भाग्य की बात है जबकि दलित होना सौभाग्य की !

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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