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केजरीवाल पर आरोपों को लेकर क्या है सच की सभावना

    • डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र
    • Updated: 09 मई, 2017 05:31 PM
  • 09 मई, 2017 05:31 PM
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केजरीवाल का मौन आरोप की स्वीकृति का संदेह उत्पन्न करता है. वरना कपिल मिश्रा के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? उनके आरोपों का सप्रमाण खंडन क्यों नहीं किया जा रहा है?

कविवर रहीम का कथन है -

रहिमन अंसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रकट करेइ.  

जाहि निकासौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ..

अर्थात् जिस प्रकार आंसू नयन से बाहर आते ही हृदय की व्यथा को व्यक्त कर देता है उसी प्रकार जिस व्यक्ति को घर से निकाला जाता है, वह घर के भेद बाहर उगल देता है. कुछ ऐसी ही आंसू जैसी स्थिति कपिल मिश्रा की भी है, जिन्होंने ‘आप’ के मंत्रिमंडल से बाहर होते ही दो करोड़ की मनोव्यथा जग जाहिर कर दी. रहीमदास के उपर्युक्त दोहे से इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाता है कि कपिल मिश्रा ने दो करोड़ का रहस्य पहले क्यों नहीं प्रकट किया ? आंसू जब तक नेत्र से झरेगा नहीं तब तक मनोगत व्यथा व्यक्त कैसे हो सकती है ? वह तो आंसू के बाहर आने के बाद ही सार्वजनिक होगी.

आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पर लगा आरोप तब तक कोई अर्थ नहीं रखता जब तक कि पुष्ट प्रमाणों से वह सिद्ध न हो जाए, किन्तु इस आरोप की गंभीरता से इनकार नहीं किया जा सकता. साथ ही अन्य अनेक परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी उक्त आरोप की आधारहीनता पर संदेह उत्पन्न करते हैं. दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आदि आप नेताओं द्वारा आरोप को निराधार कह देने मात्र से वह निरस्त नहीं हो सकता. आरोप की असत्यता सिद्ध करनी होगी.   कपिल मिश्रा को झूठा साबित करना होगा.

मौन को स्वीकार का लक्षण माना गया है -‘मौनं स्वीकार लक्षणं’. केजरीवाल का मौन भी आरोप की स्वीकृति का संदेह उत्पन्न करता है. वरना कपिल मिश्रा के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? उनके आरोपों का सप्रमाण खंडन क्यों नहीं किया जा रहा है?   

केजरीवाल भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष का नारा उछालकर राजनीति में आए और अपनी ईमानदार नेतृत्व की...

कविवर रहीम का कथन है -

रहिमन अंसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रकट करेइ.  

जाहि निकासौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ..

अर्थात् जिस प्रकार आंसू नयन से बाहर आते ही हृदय की व्यथा को व्यक्त कर देता है उसी प्रकार जिस व्यक्ति को घर से निकाला जाता है, वह घर के भेद बाहर उगल देता है. कुछ ऐसी ही आंसू जैसी स्थिति कपिल मिश्रा की भी है, जिन्होंने ‘आप’ के मंत्रिमंडल से बाहर होते ही दो करोड़ की मनोव्यथा जग जाहिर कर दी. रहीमदास के उपर्युक्त दोहे से इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाता है कि कपिल मिश्रा ने दो करोड़ का रहस्य पहले क्यों नहीं प्रकट किया ? आंसू जब तक नेत्र से झरेगा नहीं तब तक मनोगत व्यथा व्यक्त कैसे हो सकती है ? वह तो आंसू के बाहर आने के बाद ही सार्वजनिक होगी.

आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पर लगा आरोप तब तक कोई अर्थ नहीं रखता जब तक कि पुष्ट प्रमाणों से वह सिद्ध न हो जाए, किन्तु इस आरोप की गंभीरता से इनकार नहीं किया जा सकता. साथ ही अन्य अनेक परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी उक्त आरोप की आधारहीनता पर संदेह उत्पन्न करते हैं. दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आदि आप नेताओं द्वारा आरोप को निराधार कह देने मात्र से वह निरस्त नहीं हो सकता. आरोप की असत्यता सिद्ध करनी होगी.   कपिल मिश्रा को झूठा साबित करना होगा.

मौन को स्वीकार का लक्षण माना गया है -‘मौनं स्वीकार लक्षणं’. केजरीवाल का मौन भी आरोप की स्वीकृति का संदेह उत्पन्न करता है. वरना कपिल मिश्रा के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? उनके आरोपों का सप्रमाण खंडन क्यों नहीं किया जा रहा है?   

केजरीवाल भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष का नारा उछालकर राजनीति में आए और अपनी ईमानदार नेतृत्व की छवि प्रचारित करते हुए अन्ना हजारे की लोकप्रियता का लाभ लेकर भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित हो गए. अन्ना आन्दोलन से बने वातावरण ने उन्हें और ‘आप’ को अपूर्व बहुमत देकर बड़े विश्वास के साथ दिल्ली की सत्ता सौंपी किन्तु सत्ता में आने के बाद ‘आप’ में हुए विखराव, मंत्रियों पर लगे गंभीर आरोप और स्वयं केजरीवाल की कार्यशैली ने उनकी तथाकथित ईमानदार छवि को उत्तरोत्तर प्रश्नांकित किया है.

आप पार्टी के प्रारंभिक उत्थान में ही योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण आदि समर्पित ईमानदार नेताओं का पार्टी छोड़ना, अरविंद केजरीवाल का भ्रष्टाचार के लिए अलग पहचान वाले लालूयादव से गले मिलना और उनके साथ गठजोड़ की राजनीति करना, नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर अनर्गल बयानवाजी करना,  रामजेठमलानी की फीस दिल्ली सरकार के खजाने से भुगतान कराने का प्रयत्न आदि अनेक ऐसी स्थितियां हैं जो आप पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल की ईमानदारी पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है. सत्येन्द्र जैन से उनकी निकटता भी स्वयं में एक गंभीर प्रश्न है. जिस व्यक्ति पर आयकर विभाग ने कालेधन को सफेद करने का प्रकरण दर्ज कराया हो उसका आप के मंत्रिमंडल में होना और केजरीवाल की उनसे घनिष्ठता होना भी कपिल के आरोपों को आधार प्रदान करते हैं.

यह सत्य है कि देश भ्रष्टाचार से संत्रस्त है और देश की सभी राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे रहे हैं. इस स्थिति में भ्रष्टाचार का पुरजोर विरोध करते हुए सत्ता में आने वाले केजरीवाल का अन्य सभी दलों के भ्रष्टाचारियों के साथ छत्तीस का आंकड़ा होना था, किन्तु उनके अब तक के बयान स्पष्ट करते हैं कि उनका सारा विरोध ईमानदार छवि वाले नरेन्द्र मोदी और भाजपा नेतृत्व से ही है. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे अन्य नेताओं से नहीं.आश्चर्य का विषय है कि जिन नरेन्द्र मोदी पर लम्बे राजनीतिक जीवन में अब तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा उन्हीं नरेन्द्र मोदी को भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज बुलन्द करने वाले केजरीवाल ने कदम-कदम पर अपना निशाना बनाया. अन्य दलों के नेताओं के साथ उनके सम्बंध मैत्रीपूर्ण हो गये. विचारणीय है कि भ्रष्टाचार के आरोपियों से उनकी मैत्री क्यों परवान चढ़ी ? पंजाब और गोवा में हुए चुनावी खर्च के संसाधन उन्होंने कहां से जुटाए और उनका कितना सही ब्यौरा चुनाव आयोग को दिया गया ? एम.सी.डी.चुनावों में आप की हार के पीछे यही सब कारण प्रमुख हैं.

सदाचरण और सदाचार के आडम्बर में भारी अन्तर है. संन्यासी-उपदेशक का ढोंग रचकर कुछ समय तक मनमानी हरकतें की जा सकती हैं किन्तु अन्त में कारावास की काली कोठरी ही मिलती है. साधु के वेश में सत्ता का सीताहरण किया जा सकता है किन्तु जागरूक जनता रूपी राम के तीखे वाणों से नहीं बचा जा सकता. काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. ईमानदारी का ढोंग रचकर जनता को देर तक नहीं बहकाया जा सकता. सत्य अंततः सामने आता ही है. संभव है आप की राजनीतिक कथित ईमानदारी के और भी काले कारनामे सामने आएं. उस स्थिति में इस राजनीतिकदल की दशा भी अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न नहीं होगी. जनता जनार्दन की अदालत में केजरीवाल को अब जबाव देना ही होगा.                                                               

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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