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स्वामी को चाहिए ये 7 पद, तुरंत

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 18 मई, 2016 08:02 PM
  • 18 मई, 2016 08:02 PM
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सुब्रमणियन स्वामी दो धारी तलवार हैं. वे जितना विरोधियों के लिए खतरनाक हैं, उतने ही समर्थकों के लिए भी. लेकिन, फिलहाल उनका कुछ एजेंडा हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए कम से कम 7 पद तुरंत चाहिए.

सुब्रमणियन स्वामी नेता हैं, वकील हैं, अर्थशास्‍त्री हैं या पूर्व मंत्री हैं. या विरोधियों की मानें तो वे कोई जासूस या एजेंट हैं. ऐसे कई किरदार उनकी शख्सियत में समय-समय पर सटीक बैठते रहे है.

स्वामी की दोस्ती और दुश्मनी दोनों सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से ही होती है. बीते दशकों में आज के दोस्त को कल दुश्मन या इससे उलट करने की मानो स्वामी ने 100 फीसदी गारंटी दे रखी है. कभी सोनिया गांधी को साक्षात लक्ष्मी का अवतार बताने वाले स्वामी फिलहाल देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को गांधी मुक्त करने का एजेंडा चला रहे हैं. इसे इत्तेफाक ही कहें कि उनका एजेंडा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के स्वप्न से पूरी तरह मैच हो रहा है. नतीजा, सुब्रमणियन स्वामी राज्य सभा में बीजेपी के सांसद हैं.

सुब्रमणियन स्वामी

स्वामी और बीजेपी की दोस्ती में ये तो शुरुआती अंगड़ाई है. बीते कुछ वर्षों में स्वामी ने देश में हिंदू एजेंडा को आगे बढ़ाने के कई फॉर्मूलों पर एक साथ काम किया है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कराने से लेकर, देश में हिंदू अर्थव्यवस्था स्थापित करने जैसे मसलों पर स्वामी की राय न सिर्फ बेबाक है बल्कि उसके प्रभावी होने की 100 फीसदी गारंटी भी वो देते हैं. उनके इस अभियान में जो लोग अड़ंगा बनते दिख रहे हैं, उनके बारे में स्वासमी ने खुलकर बोलना शुरू कर दिया है. मसलन, उत्तराखंड में राष्ट्रसपति शासन लगाए जाने के फैसले को जब कोर्ट ने पलट दिया तो स्वामी के निशाने पर आ गए अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी. देश की माली हालत को लेकर अरुण जेटली से उनकी तनातनी सार्वजनिक है. इसके अलावा अब वे आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के बारे में भी कड़वे बोल बोल रहे हैं.

सुब्रमणियन स्वामी नेता हैं, वकील हैं, अर्थशास्‍त्री हैं या पूर्व मंत्री हैं. या विरोधियों की मानें तो वे कोई जासूस या एजेंट हैं. ऐसे कई किरदार उनकी शख्सियत में समय-समय पर सटीक बैठते रहे है.

स्वामी की दोस्ती और दुश्मनी दोनों सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से ही होती है. बीते दशकों में आज के दोस्त को कल दुश्मन या इससे उलट करने की मानो स्वामी ने 100 फीसदी गारंटी दे रखी है. कभी सोनिया गांधी को साक्षात लक्ष्मी का अवतार बताने वाले स्वामी फिलहाल देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को गांधी मुक्त करने का एजेंडा चला रहे हैं. इसे इत्तेफाक ही कहें कि उनका एजेंडा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के स्वप्न से पूरी तरह मैच हो रहा है. नतीजा, सुब्रमणियन स्वामी राज्य सभा में बीजेपी के सांसद हैं.

सुब्रमणियन स्वामी

स्वामी और बीजेपी की दोस्ती में ये तो शुरुआती अंगड़ाई है. बीते कुछ वर्षों में स्वामी ने देश में हिंदू एजेंडा को आगे बढ़ाने के कई फॉर्मूलों पर एक साथ काम किया है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कराने से लेकर, देश में हिंदू अर्थव्यवस्था स्थापित करने जैसे मसलों पर स्वामी की राय न सिर्फ बेबाक है बल्कि उसके प्रभावी होने की 100 फीसदी गारंटी भी वो देते हैं. उनके इस अभियान में जो लोग अड़ंगा बनते दिख रहे हैं, उनके बारे में स्वासमी ने खुलकर बोलना शुरू कर दिया है. मसलन, उत्तराखंड में राष्ट्रसपति शासन लगाए जाने के फैसले को जब कोर्ट ने पलट दिया तो स्वामी के निशाने पर आ गए अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी. देश की माली हालत को लेकर अरुण जेटली से उनकी तनातनी सार्वजनिक है. इसके अलावा अब वे आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के बारे में भी कड़वे बोल बोल रहे हैं.

अरुण जेटली

1. वित्त मंत्री

सुब्रमणियन स्वामी 1990-91 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. इस दौरान व्यापार और कानून जैसे अहम मंत्रालय उनके अधीन थे. खुद स्वामी का दावा हैं कि अपने इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने ही देश में आर्थिक उदारीकरण का पूरा खांका तैयार किया था जिसे 1991 में नरसिंहा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने लागू किया था. लिहाजा, जाहिर है कि देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था को संभालने और चलाने के लिए स्वामी की नजर में उनसे दक्ष और कोई नहीं है. वहीं, स्वामी भली भांति जानते हैं कि मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली स्वास्थ चुनौतियों से घिरे रहे हैं. इसी के चलते अर्थव्यवस्था में राजन अपनी करने में सफल हो रहे हैं.

रघुराम राजन

2. रिजर्व बैंक गवर्नर

रघुराम राजन का केन्द्रीय बैंक के गवर्नर का कार्यकाल कुछ महीनों में पूरा होने जा रहा है. इस पद पर उनकी काबीलियत की चर्चा प्रधानमंत्री मोदी कई बार कर चुके हैं. साथ ही वित्तीय जगत के कई वैश्विक जानकार उन्हें ग्लोबल मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का श्रेय दे चुके हैं. लेकिन, इन सभी से सुब्रमणियन स्वामी इत्तेफाक नहीं रखते. स्वामी का दावा है कि राजन ने बीते दो वर्षों तक उच्च ब्याज दरों को महज इसलिए कायम रखा जिससे बीजेपी सरकार के कार्यकाल में किसी आर्थिक कारनामें को होने से रोका जा सके. कह सकते हैं कि वह कह रहे हैं कि रघुराम राजन के चलते मोदी सरकार के अच्छे दिन अभी तक नहीं आए हैं. लिहाजा, ऐसी स्थिति में स्वामी की दूरदर्शिता और आर्थिक समझ उन्हें इस पद के लिए बिलकुल उपयुक्त बनाती है. इस पद को संभालने की चाहत स्वामी में इसलिए होगी कि वह जल्द से जल्द मौजूदा सरकार के अच्छे दिनों को ले आएं.

3. नेता पक्ष, राज्यसभा

लोकसभा चुनाव जीतकर आखिरी बार 1998-99 में संसद पहुंचे सुब्रमणियन स्वामी ने लंबे अंतराल के बाद संसद में वापसी की है. राज्य सभा में इस बार उन्हें जगह भी एक विशेष जिम्मेदारी के तहत दी गई है. दो साल से सत्ता पर विराजमान पार्टी को राज्यसभा में कांग्रेस के विरोध का लगातार सामना करना पड़ रहा था. संसद के इस सदन में कांग्रेस का पलड़ा भारी है और मोदी सरकार के सभी अहम बिल या विधेयक यहां आकर दम तोड़ दे रहे थे. इस स्थिति में स्वामी को जिम्मेदारी मिली कि वह अद्भुद कला से कांग्रेस को उसी के गढ़ में बैकफुट पर ले आए. लिहाजा, बीते सत्र में स्वामी ने वही किया जिसकी उनसे उम्मीद थी. स्वामी ने एक के बाद एक इतने आरोप कांग्रेस पर मढ़ दिए कि वाकई कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ा. जाहिर है यह स्वामी की एक निर्णायक जीत है और यदि इसका पारितोषिक उन्हें मिलता है तो वह इस सदन के सर्वोपरि नेता बनना चाहेंगे. यहां भी उनकी काबीलियत जगजाहिर है.

4. अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया

सुब्रमणियन स्वामी पेशे से वकील हैं. हालांकि, राम जेठमलानी ऐसा नहीं मानते. बहरहाल, इससे उनके वकालतनामे पर आंच नहीं आती और वह देश के एक मात्र ऐसे वकील हैं जिसे मुकदमा करने के लिए किसी मुवक्किल की जरूरत भी नहीं पड़ती. मुद्दा उनके पसंद का हो तो वह किसी भी मुकदमे में बतौर एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) शामिल हो जाते हैं. गौरतलब है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, नैशनल हेराल्ड केस और राम मंदिर निर्माण केस कुछ ऐसे ही मामले हैं जो उनकी वकालत पर चार चांद लगाते हैं. अब वह सत्ता पक्ष से राज्य सभा में हैं लेकिन पेशे से हैं तो वकील ही. हाल ही में एक मामले में जब चीफ जस्टिस ने उनके अनायास मुकदमों पर टिप्पणी करते हुए सवाल किया कि ‘आखिर स्वामी हैं कौन’, तो इसका जवाब देने के लिए वे अटॉर्नी जनरल का पद मांग सकते हैं. भारत सरकार का सबसे बड़ा वकील.

5. कम्पट्रोलर ऑडिटर जनरल (कैग)

यह बात सभी जानते हैं कि कम्पट्रोलर ऑडिटर जनरल (कैग) की रिपोर्ट ने मनमोहन सिंह सरकार पर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में उंगली उठाई थी. लेकिन इस अग्रिम रिपोर्ट को जनता के बीच ले जाकर मुद्दा बनाने और कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में स्वामी की अहम भूमिका रही है. इस रिपोर्ट के सहारे स्वामी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आवंटन में लापरवाही बरतने और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दबाव में आकर निर्णय लेने का आरोप मढ़ा था. अब अदालत में इस मामले पर क्या हुआ इसकी किसी को परवाह नहीं है क्योंकि स्वामी ने आसानी से इस रिपोर्ट का सार पूरे देश को समझा दिया कि आवंटन में सोनिया गांधी की भूमिका संदिग्ध थी और उन्हें इस मामले में लाभ पहुंचा था. लिहाजा, सरकार के खर्च का पूरा ब्यौरा रखने वाले इस विभाग को चलाने की इच्छा स्वामी में होगी.

6. राम मंदिर निर्माण कमेटी के अध्यक्ष

स्वामी अयोध्या में राम मंदिर का इसी साल निर्माण कराने के नए पैरोकार बन चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में स्वामी ने इसी साल जल्द से जल्द मंदिर का निर्माण शुरू करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की है. उनका दावा है कि 1989 में राजीव गांधी ने उनसे मंदिर का निर्माण कराने की बात कही थी लिहाजा वह कांग्रेस से भी अपील कर रहे हैं कि वह इस काम में उनका साथ दे. स्वामी के रोडमैप के अनुसार वह इस साल के अंत तक मंदिर का निर्माण काम शुरू करा देंगे और इसके लिए वह किसी भी समुदाय के साथ कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं करेंगे. यानी वह मंदिर निर्माण पर आपत्ति न करने के लिए देश में मुस्लिम समुदाय को तैयार कर लेंगे. ऐसे में मौजूदा केन्द्र सरकार के लिए स्वामी से उपर्युक्त कोई नहीं है जो उसके दशकों पुराने राम मंदिर निर्माण के वादे को पूरा कर सके. लिहाजा, राम मंदिर निर्माण के लिए बनी कमेटी को उनके अधीन करना देश के करोड़ों लोगों की आस्था के साथ न्याय करना होगा, खासतौर पर जब वह दावा कर रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय को वह इसके लिए तैयार कर लेगें.

7. माइनॉरिटी अफेयर्स मिनिस्टर

देश में अल्पमसंख्यरकों की परिभाषा और उन्हेंम मिलने वाले वाले अधिकारों को लेकर स्वा मी की अपनी राय है. स्वामी के मुताबिक देश में सिर्फ हिंदुस्तानी यानी हिंदू हैं और वह लोग हैं जिनके पूर्वज हिंदू थे. लिहाजा, स्वामी के मुताबिक देश में अधिकांश मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे और उनका 800 साल के इस्लामिक शासन के दौरान धर्म परिवर्तन कराकर मुसलमान बना दिया गया था. वहीं इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर स्वामी का मानना है कि मुसलमानों की निरक्षरता, गरीबी, उत्पीड़न और भेदभाव के चलते दुनियाभर में आतंकवाद पनप रहा है. लिहाजा, आतंकवाद को खत्म करने के लिए मुसलमानों के इन हालात को बदलने की जरूरत है. अब स्वामी की इस सोच को देखते हुए जाहिर है कि वह मुसलमानों के साथ सदियों से हो रहे अन्याय को रोकने के लिए समुदाय की इन चारों खामियों से लड़ने के लिए सबसे उपर्युक्त व्यक्ति हैं. स्वामी इन खामियों को पाटने का सबसे साधारण उपाय कॉमन सिविल कोड के रूप में बताते हैं. वे तर्क देते हैं कि जब मुसलमानों ने देश के क्रिमिनल कोड को मंजूर कर लिया है तो अलग से पर्सनल लॉ की जरूरत क्या है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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