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'मोदी लहर' नहीं बल्कि जुगाड़ से उपचुनाव जीती है बीजेपी !

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 13 अप्रिल, 2017 07:15 PM
  • 13 अप्रिल, 2017 07:15 PM
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बीजेपी को दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में तीन सीटों का फायदा जरूर हुआ लेकिन असम, मध्य प्रदेश की बांधवगढ़ की सीट तो बीजेपी के पास पहले से ही थीं. अब बीजेपी चाहे तो ये दावा कर सकती है कि मोदी लहर के चलते उसने अपनी ये दोनों सीटें बचा लीं.

आठ राज्यों की दस विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस के खाते में तीन सीटें ही आ पाई हैं. पश्चिम बंगाल की दोनों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा बरकरार रखा है.

बीजेपी भले ही इस जीत के लिए मोदी लहर को क्रेडिट दे लेकिन हकीकत बिलकुल उल्टा है.

1. दिल्ली की जिस राजौरी गार्डन सीट की बात करें तो इसे बीजेपी की जीत से ज्यादा आम आदमी पार्टी की हार के रूप में देखना होगा. खैर, इस सीट पर बीजेपी की जीत का शोर है, लेकिन उसके कैंडिडेट मनजिंदर सिंह सिरसा मूल रूप से शिरोमणि अकाली दल के सदस्य हैं. पंजाब की ही तरह बीजेपी और अकाली दल ने यहां मिल कर चुनाव लड़ा था.

राजौरी गार्डन में बल्ले बल्ले

2. राजस्थान की धौलपुर सीट पर बीजेपी शोभा रानी कुशवाह की जीत का जश्न मना रही है. ये तो सच है कि बीजेपी ने ये सीट बीएसपी से हथिया लिया है, लेकिन पूरा सच यही नहीं है. शोभा के पति बीएल कुशवाह इसी सीट से बीएसपी विधायक थे जिसे एक मर्डर केस में आजीवन कारावास की सजा हुई और ये सीट अपनेआप खाली हो गयी. उपचुनाव से पहले शोभा रानी बीएसपी के कई कार्यकर्ताओं के साथ बीजेपी में शामिल हुईं. खास बात ये रही कि बीएसपी ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. खबर है कि शोभा के पति पैरोल पर जेल से छूटे हुए हैं लेकिन जश्न के दौरान कहीं नजर नहीं आये.

आठ राज्यों की दस विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस के खाते में तीन सीटें ही आ पाई हैं. पश्चिम बंगाल की दोनों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा बरकरार रखा है.

बीजेपी भले ही इस जीत के लिए मोदी लहर को क्रेडिट दे लेकिन हकीकत बिलकुल उल्टा है.

1. दिल्ली की जिस राजौरी गार्डन सीट की बात करें तो इसे बीजेपी की जीत से ज्यादा आम आदमी पार्टी की हार के रूप में देखना होगा. खैर, इस सीट पर बीजेपी की जीत का शोर है, लेकिन उसके कैंडिडेट मनजिंदर सिंह सिरसा मूल रूप से शिरोमणि अकाली दल के सदस्य हैं. पंजाब की ही तरह बीजेपी और अकाली दल ने यहां मिल कर चुनाव लड़ा था.

राजौरी गार्डन में बल्ले बल्ले

2. राजस्थान की धौलपुर सीट पर बीजेपी शोभा रानी कुशवाह की जीत का जश्न मना रही है. ये तो सच है कि बीजेपी ने ये सीट बीएसपी से हथिया लिया है, लेकिन पूरा सच यही नहीं है. शोभा के पति बीएल कुशवाह इसी सीट से बीएसपी विधायक थे जिसे एक मर्डर केस में आजीवन कारावास की सजा हुई और ये सीट अपनेआप खाली हो गयी. उपचुनाव से पहले शोभा रानी बीएसपी के कई कार्यकर्ताओं के साथ बीजेपी में शामिल हुईं. खास बात ये रही कि बीएसपी ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. खबर है कि शोभा के पति पैरोल पर जेल से छूटे हुए हैं लेकिन जश्न के दौरान कहीं नजर नहीं आये.

शोभा रानी के पति बीएसपी विधायक थे

3. अगर मोदी लहर वाकई रही तो बीजेपी कर्नाटक की दोनों में से एक भी सीट पर जीत क्यों नहीं दर्ज कर पायी. उपचुनाव से पहले बीजेपी में कांग्रेस के बुजुर्ग नेता एसएम कृष्णा को लाया गया था. आगे की बात और है, लेकिन इस बार न तो बीजेपी को उनका कोई फायदा हुआ न कांग्रेस को नुकसान. कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष इस चुनाव में बैकवर्ड और फॉरवर्ड को मिला कर सोशल इंजीनियरिंग एक्सपेरिमेंट कर रहे थे जो खुद तो फेल रहा ही, मोदी लहर का तो दूर दूर तक असर नहीं दिखायी दिया. कांग्रेस ने दोनों सीटों पर कब्जा बरकरार रखा है.

4. कर्नाटक की ही तरह मोदी लहर का पश्चिम बंगाल में भी कोई असर नहीं देखने को मिला. राज्य की कांथी विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस ने अपना कब्जा फिर से बरकरार रखा है.

5. एक बात जरूर है कि बीजेपी को दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में तीन सीटों का फायदा हुआ लेकिन असम, मध्य प्रदेश की बांधवगढ़ की सीट तो बीजेपी के पास पहले से ही थीं. अब बीजेपी चाहे तो ये दावा कर सकती है कि मोदी लहर के चलते उसने अपनी ये दोनों सीटें बचा लीं. अटेर सीट पर कांग्रेस के हेमंत कटारे ने बीजेपी के अरविंद सिंह भदौरिया को शिकस्त दी है. कांग्रेस विधायक सत्यदेव कटारिया के निधन से खाली हुई इस सीट से कांग्रेस ने उनके बेटे हेमंत को टिकट दिया और उन्होंने पिता की तरह एक बार फिर बीजेपी के भदौरिया को मात दी है. इसी तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लिट्टिपाड़ा सीट पर जीत का सिलसिला कायम रखा.

कर्नाटक, झारखंड और पश्चिम बंगाल के नतीजे अलग क्यों

अगर मोदी लहर का कोई प्रभाव होता तो क्या ये सीट भी बीजेपी के खाते में नहीं जा सकती थी. ये अटेर उपचुनाव ही रहा जिसको लेकर ईवीएम विवाद हुआ था जब कोई भी बटन दबाने पर पर्ची पर कमल का फूल छप कर आ रहा था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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