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नीतीश कुमार : राजनीति के सबसे बड़े मौसम वैज्ञानिक !

    • राठौर विचित्रमणि सिंह
    • Updated: 27 जुलाई, 2017 04:31 PM
  • 27 जुलाई, 2017 04:31 PM
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कहते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. मोदी से शुरु होकर मोदी पर पहुंची नीतीश की राजनीति इसकी तस्दीक करती है.

बिहार में बहार है...फिर से नीतीशे कुमार हैं…बस पार्टनर बदल गया. जिस बीजेपी से चार साल पहले हाथ छुड़ाया था, आज उसके कंधे पर ही सवार होकर नीतीश ने छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि बड़े बड़े राजनीतिक धुरंधरों को पता ही नहीं चला कि राजनीति ने कैसे करवट बदली है. बुधवार की शाम जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब ये साफ नहीं था कि इतनी जल्दी बीजेपी से गठबंधन हो जाएगा. लेकिन पहले से दिल मिल चुका हो तो एक साथ आने में देर कितनी लगती है.

लालू-नीतीश की तनातनी तो पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के सवाल पर पहले से बढ़ी हुई थी. लेकिन ये साफ नहीं था कि इस तनाव का अंजाम नीतीश कुमार का एक झटके में इस्तीफा और उससे भी ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कदमताल के रूप में सामने आएगा. बुधवार शाम नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश को नायक जैसा बताकर तारीफ कर दी. इधर नीतीश ने मोदी की बधाई वाले ट्वीट पर शुक्रिया अदा भी नहीं किया कि बिहार में बीजेपी ने खुल्लमखुल्ला नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया.

लालू परिवार के भ्रष्टाचार के सवाल पर नीतीश चाहते थे कि तेजस्वी पर फैसला आरजेडी ही ले. लेकिन आरजेडी ने साफ कर दिया कि सिर्फ एफआईआर दर्ज कराने से तेजस्वी पद नहीं छोड़ेंगे. इसी बात पर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया. अब लालू परिवार कह रहा है कि सब कुछ बीजेपी के इशारे पर हुआ. हालांकि बीजेपी कह रही है कि नीतीश से हाथ मिलाने की पहले से कोई तैयारी नहीं थी लेकिन जितनी जल्दी से घटनाचक्र बदला उससे ये साफ है कि दोनों का रुख थोड़ा पहले से एक दूसरे के प्रति नरम हुआ था.

सबसे बड़ा दल होने के कारण आरजेडी ने सरकार बनाने का दावा किया. लेकिन उससे पहले ही नीतीश की फिर से ताजपोशी हो गई. 1996...

बिहार में बहार है...फिर से नीतीशे कुमार हैं…बस पार्टनर बदल गया. जिस बीजेपी से चार साल पहले हाथ छुड़ाया था, आज उसके कंधे पर ही सवार होकर नीतीश ने छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि बड़े बड़े राजनीतिक धुरंधरों को पता ही नहीं चला कि राजनीति ने कैसे करवट बदली है. बुधवार की शाम जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब ये साफ नहीं था कि इतनी जल्दी बीजेपी से गठबंधन हो जाएगा. लेकिन पहले से दिल मिल चुका हो तो एक साथ आने में देर कितनी लगती है.

लालू-नीतीश की तनातनी तो पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के सवाल पर पहले से बढ़ी हुई थी. लेकिन ये साफ नहीं था कि इस तनाव का अंजाम नीतीश कुमार का एक झटके में इस्तीफा और उससे भी ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कदमताल के रूप में सामने आएगा. बुधवार शाम नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश को नायक जैसा बताकर तारीफ कर दी. इधर नीतीश ने मोदी की बधाई वाले ट्वीट पर शुक्रिया अदा भी नहीं किया कि बिहार में बीजेपी ने खुल्लमखुल्ला नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया.

लालू परिवार के भ्रष्टाचार के सवाल पर नीतीश चाहते थे कि तेजस्वी पर फैसला आरजेडी ही ले. लेकिन आरजेडी ने साफ कर दिया कि सिर्फ एफआईआर दर्ज कराने से तेजस्वी पद नहीं छोड़ेंगे. इसी बात पर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया. अब लालू परिवार कह रहा है कि सब कुछ बीजेपी के इशारे पर हुआ. हालांकि बीजेपी कह रही है कि नीतीश से हाथ मिलाने की पहले से कोई तैयारी नहीं थी लेकिन जितनी जल्दी से घटनाचक्र बदला उससे ये साफ है कि दोनों का रुख थोड़ा पहले से एक दूसरे के प्रति नरम हुआ था.

सबसे बड़ा दल होने के कारण आरजेडी ने सरकार बनाने का दावा किया. लेकिन उससे पहले ही नीतीश की फिर से ताजपोशी हो गई. 1996 में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ बीजेपी से हाथ मिलाया था. लेकिन जब बीजेपी के आईने में मोदी की आदमकद छवि दिखी तो नीतीश ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया. कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में घुसने तक नहीं दिया था नीतीश कुमार ने. आज जिस बीजेपी पर पूरी छाप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है, उसी के साथ नीतीश की सरकारी गाड़ी दौड़ रही है.

इसी साल की शुरुआत में गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंचे तो नीतीश कुमार से उनकी गुफ्तगू से कयास निकाले जाने लगे थे. उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला तो विरोधी दलों में नीतीश कुमार ने सबसे पहले इसका समर्थन किया. तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी से नीतीश का मिलना जुलना राजनीतिक शिष्टाचार का हिस्सा लगता था, अब उसमें दूर की राजनीति देखी जा रही है.

इस बीच राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवार तय करने का सबसे पहले प्रस्ताव रखने वालों में नीतीश कुमार ही थे. लेकिन जब बीजेपी ने तब बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए तय किया तो नीतीश विपक्ष को झटका देते हुए कोविंद के समर्थन में उतर गए. हालांकि उप राष्ट्रपति के लिए नीतीश की पार्टी जेडीयू ने विपक्ष के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को वोट देने का फैसला किया था लेकिन अब परिवेश बदल गया है. मोदी विरोध का जाप करने वाले नीतीश ने मोदी से हाथ मिलाया लेकिन जेडीयू के ही कई बड़े नेता इससे आहत हैं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गए.

कहते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. मोदी से शुरु होकर मोदी पर पहुंची नीतीश की राजनीति इसकी तस्दीक करती है. चार साल पहले जैसे ही नीतीश कुमार को लगा कि अब बीजेपी नरेंद्र मोदी की छाया में अपना कमल खिलाएगी, वैसे ही नीतीश ने बीजेपी से अपना 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया. बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश रेल और कृषि मंत्री रहे. फिर बीजेपी के समर्थन से ही 8 साल तक मुख्यमंत्री रहे. लेकिन 2002 के गुजरात दंगों के साए में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से किनारा करना शुरु कर दिया. वो दूरियां पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान तल्खी के साथ सामने आई, जब मोदी और नीतीश एक दूसरे का डीएनए टेस्ट कर रहे थे.

एक तरफ बीजेपी का साथ, दूसरी तरफ धर्मनिरपेक्षता का चैंपियन बनने की चाहत. जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उनसे नीतीश की दूरियां इतनी थी कि मोदी का साथ नीतीश को गवारा नहीं होता था. 2009 में पंजाब की एक रैली में मोदी खुद नीतीश के पास पहुंचे और उनके साथ हाथ मिलाने वाली तस्वीर खिंचवाई. लेकिन इससे दूरियां मिटी नहीं. इसके बाद 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रचार के लिए नीतीश ने मोदी को बिहार में घुसने नहीं दिया. यहां तक कि एनडीए के लिए नीतीश कुमार ने दिया हुआ भोज बस इस बात पर रद्द कर दिया कि बीजेपी ने उनकी इजाजत के बगैर ही नीतीश के साथ उनकी तस्वीर वाला पोस्टर चिपका दिया था. पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बहाने उस अपमान का दर्द प्रधानमंत्री की जुबान से निकला.

जिस गोधरा कांड के साए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नीतीश की दूरियां बढ़ी, उस वक्त रेल मंत्री नीतीश कुमार ही थे. 2013 में जब नीतीश ने बीजेपी से मोदी के विरोध में दामन छुड़ा लिया तो बीजेपी ने वो वीडियो जारी किया, जिसमें नीतीश प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करते दिखे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नीतीश कुमार की दूरी बढ़ी तो लालू से नजदीकियां बढ़ी. राजनीति इसलिए भी संभावनाओं का खेल है कि जिस लालू के साथ नीतीश ने गठबंधन किया, उस लालू की नजरों में नीतीश की छवि बेहद घाघ नेता की थी. वो कहा करते थे कि नीतीश के तो पेट में दांत है. फिर उसी लालू से गठबंधन नहीं, महागठबंधन बना और बीस महीने तक सत्ता का मधुमास रहा.

अब फिर से नीतीश लालू को छोड़ बीजेपी या कहें कि अब तो मोदी के साथ चले गए. अब लालू भी सोच रहे होंगे कि राजनीति का सबसे बड़ा मौसम वैज्ञानिक कौन है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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