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नीतीश तो सेट हो गये, मगर मंडल-कमंडल की जंग में बीजेपी को कितना मिल पाएगा?

    • आईचौक
    • Updated: 05 अगस्त, 2017 03:50 PM
  • 05 अगस्त, 2017 03:50 PM
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शरद यादव ने भी तो कोई कच्ची गोली नहीं खेली. सबको बारी बारी से तौल रहे हैं. राहुल गांधी से मुलाकात कर रहे हैं तो अरुण जेटली से भी फोन पर बात कर ले रहे हैं. इसमें भी एक तरफ सत्ता का कुआं है तो दूसरी तरफ संघर्ष की खाई.

नीतीश कुमार ने सुपर तेजी दिखायी, चट इस्तीफा दिया, पट शपथ ली और फटाफट कुर्सी पर दोबारा काबिज हो गये. शरद यादव अब भी कन्फ्यूज हैं. एक तरफ सत्ता है, दूसरी तरफ संघर्ष. लालू यादव उन पर लगातार डोरे डाल रहे हैं और संघर्ष की अगुवाई की अपील कर रहे हैं. जेडीयू नेताओं के बयान से तो ऐसा लगता है जैसे वे मान कर चल रहे हों - आखिर जाएंगे कहां?

लेकिन शरद यादव ने भी तो कोई कच्ची गोली नहीं खेली. सबको बारी बारी से तौल रहे हैं. राहुल गांधी से मुलाकात कर रहे हैं तो अरुण जेटली से भी फोन पर बात कर ले रहे हैं. इसमें भी एक तरफ सत्ता का कुआं है तो दूसरी तरफ संघर्ष की खाई. प्रस्तावित साझी विरासत का मकसद भी सब को तराजू पर तौलना ही लगता है.

साझी विरासत

पटना में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी 19 अगस्त को होने जा रही है. इसके ठीक दो दिन पहले शरद यादव दिल्ली में साझी विरासत का आयोजन कर रहे हैं. माना जा रहा है कि इस आयोजन के बाद ही शरद यादव जेडीयू में बने रहने या लालू के साथ चले जाने या फिर जेडीयू से टूट कर कोई नया पार्टी बना लेने जैसा फैसला कर सकते हैं.

दरअसल, नीतीश के महागठबंधन छोड़ देने के बाद वहां एक स्पेस बन गया है. ये स्पेस वो कोई भी भर सकता है जो सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ और वंचितों, दबे-कुचले समाज के लोगों की आवाज बनने का दावेदार हो. शरद यादव को ये स्पेस काफी सूट भी करता है. अगर जेडीयू के कुछ विधायक टूट कर शरद यादव के साथ हो लेते हैं तो नया फोरम तो बन ही सकता है. शरद यादव के करीबी मीडिया को ऐसी बातों के संकेत भी दे रहे हैं.

निर्णायक होगा 'साझी विरासत'...

साझी विरासत मे शरद यादव ने आरजेडी, कांग्रेस और वाम नेताओं को तो न्योता भेजा है, लेकिन जेडीयू को नहीं बुलाया है. इसका मतलब ये कि जेडीयू से जो भी आएगा वो शरद...

नीतीश कुमार ने सुपर तेजी दिखायी, चट इस्तीफा दिया, पट शपथ ली और फटाफट कुर्सी पर दोबारा काबिज हो गये. शरद यादव अब भी कन्फ्यूज हैं. एक तरफ सत्ता है, दूसरी तरफ संघर्ष. लालू यादव उन पर लगातार डोरे डाल रहे हैं और संघर्ष की अगुवाई की अपील कर रहे हैं. जेडीयू नेताओं के बयान से तो ऐसा लगता है जैसे वे मान कर चल रहे हों - आखिर जाएंगे कहां?

लेकिन शरद यादव ने भी तो कोई कच्ची गोली नहीं खेली. सबको बारी बारी से तौल रहे हैं. राहुल गांधी से मुलाकात कर रहे हैं तो अरुण जेटली से भी फोन पर बात कर ले रहे हैं. इसमें भी एक तरफ सत्ता का कुआं है तो दूसरी तरफ संघर्ष की खाई. प्रस्तावित साझी विरासत का मकसद भी सब को तराजू पर तौलना ही लगता है.

साझी विरासत

पटना में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी 19 अगस्त को होने जा रही है. इसके ठीक दो दिन पहले शरद यादव दिल्ली में साझी विरासत का आयोजन कर रहे हैं. माना जा रहा है कि इस आयोजन के बाद ही शरद यादव जेडीयू में बने रहने या लालू के साथ चले जाने या फिर जेडीयू से टूट कर कोई नया पार्टी बना लेने जैसा फैसला कर सकते हैं.

दरअसल, नीतीश के महागठबंधन छोड़ देने के बाद वहां एक स्पेस बन गया है. ये स्पेस वो कोई भी भर सकता है जो सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ और वंचितों, दबे-कुचले समाज के लोगों की आवाज बनने का दावेदार हो. शरद यादव को ये स्पेस काफी सूट भी करता है. अगर जेडीयू के कुछ विधायक टूट कर शरद यादव के साथ हो लेते हैं तो नया फोरम तो बन ही सकता है. शरद यादव के करीबी मीडिया को ऐसी बातों के संकेत भी दे रहे हैं.

निर्णायक होगा 'साझी विरासत'...

साझी विरासत मे शरद यादव ने आरजेडी, कांग्रेस और वाम नेताओं को तो न्योता भेजा है, लेकिन जेडीयू को नहीं बुलाया है. इसका मतलब ये कि जेडीयू से जो भी आएगा वो शरद के साथ होगा.

लालू ने फेसबुक पर कुछ पोस्ट और फोटो शेयर कर ये संदेश देने की कोशिश की कि शरद यादव उनके साथ आने वाले हैं. लेकिन तेजस्वी के प्रेस कांफ्रेंस में जब शरद यादव को लेकर सवाल पूछा गया तो वो दावे के साथ नहीं कह पाये कि शरद यादव ने उन्हें कोई भरोसा दिया है. बस इतना ही बता पाये कि लालू और खुद उनकी भी शरद यादव से बात हुई है.

कौन आ सकता है शरद यादव के साथ? जाहिर है जिसे सत्ता का सुख नहीं मिलने की उम्मीद होगी, वही संघर्ष का रास्ता चुनेगा. तब जबकि नीतीश चाहते थे कि तेजस्वी इस्तीफा दे दें तो जेडीयू की मीटिंग में कुछ विधायक विरोध में आवाज उठाते थे. ऐसे विधायक तेजस्वी के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. बीजेपी के सपोर्ट से सरकार बना लेने के बाद भी नीतीश के सामने नाराज नेताओं को मनाने की चुनौती बनी हुई है. शरद यादव बड़े नेता हैं इसलिए उनकी नाराजगी को मीडिया में भी जगह मिल जा रही है. अब अगर ऐसे नेताओं को नीतीश की नयी व्यवस्था में भी कुछ नहीं मिल पाया है और आगे भी कोई उम्मीद नहीं है तो उनके लिए तो विकल्प खुला ही है.

देखा जाय तो शरद यादव साझी विरासत को एक ऐसे इवेंट के रूप में आयोजित कर रहे हैं जिससे अदाजा लगाया जा सके कि नीतीश द्वारा खाली स्पेस को भरने में कितनों की दिलचस्पी है. किसी की है भी या नहीं. अब इस इवेंट पर ही निर्भर करता है कि शरद यादव आरजेडी में चले जाएंगे, या नयी पार्टी बनाएंगे या फिर जेडीयू में ही बने रहेंगे.

तोड़ फोड़ चालू है

गुजरात के बाद अब बिहार में भी कांग्रेस खेमे में खतरे की घंटी सुनी गयी है. गुजरात में तो छापेमारी के बावजूद कांग्रेस अपने विधायकों को पहरे में रखे हुए है, लेकिन बिहार में वे खुला घूम रहे हैं. खबर है कि कांग्रेस के 27 में से 9 विधायक जेडीयू-बीजेपी के नये नवेले गठबंधन के नेताओं के संपर्क में हैं.

राज्य सभा चुनाव से पहले कांग्रेस को गुजरात में बड़ा नुकसान हुआ है. कांग्रेस के सबसे सीनियर नेताओं में से एक शंकर सिंह वाघेला ने तो पार्टी छोड़ ही दी है, 6 अन्य विधायकों ने भी साथ छोड़ दिया है.

खतरा तो कांग्रेस के साथ साथ आरजेडी पर भी मंडरा रहा है. जब यूपी में बीजेपी के लिए दूसरे दलों के विधायक इस्तीफा देकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में योगदान देने को तैयार हैं तो बिहार में क्यों नहीं संभव है?

मंडल बनाम कमंडल रिटर्न्स

नीतीश का काम तो बन गया मगर बीजेपी एक बार फिर मंडल और कमंडल के जाल में उलझने जा रही है. 2015 में बिहार चुनाव के वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर बयान को लालू प्रसाद ने हाथों हाथ लपक लिया था. माना गया कि लालू को इसका फायदा भी मिला. लालू ने एक बार फिर इस हथियार को आजमाने के संकेत दिये हैं. मंडल आंदोलन की ही दुहाई देकर लालू ने शरद यादव से साथ देने की भी अपील की है. लालू और तेजस्वी ये तो समझ ही चुके हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में वे घिर चुके हैं और ऐसे में कोई भी साथ आने से पहले दो बार सोचेगा जरूर. शरद यादव के भी फैसला लेने में उलझन की यही बड़ी वजह है.

अब तक ये तो साफ हो ही चुका है कि लालू प्रसाद की 27 अगस्त की पटना रैली और तेजस्वी की प्रदेश यात्रा का थीम मंडल ही रहने वाला है. तेजस्वी कह रहे हैं कि सबसे पहले वो चंपारण जाएंगे और महात्मा गांधी से माफी मांगेंगे. असल में इससे पहले वो चंपारण यात्रा की शताब्दी पर वहां नीतीश के साथ गये थे. चंपारण के बाद तेजस्वी पूरे बिहार में यात्रा करेंगे और अब तक जो बातें मीडिया के जरिये बता रहे हैं वे बातें लोगों से मिल कर बताएंगे.

बीजेपी ने महागठबंधन तोड़ को नीतीश को अपने पाले में कर लिया और सत्ता में हिस्सेदारी भी हासिल कर ली है, लेकिन आगे क्या? क्या बीजेपी को बस इतने भर से ही संतोष करना होगा? बीजेपी का मकसद तो 2019 में 2014 दोहराना और फिर 2020 में नीतीश से ज्यादा से ज्यादा सीटें लेकर लालू प्रसाद की पार्टी को हाशिये पर धकेल देना होगा. क्या ये सब बीजेपी के लिए इतना आसान होगा? ऐसे देखा जाये तो नीतीश तो सेट हो गये, लेकिन बीजेपी अभी मंडल और कमंडल की जंग में फंसदी जा रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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