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वन रैंक वन पेंशन समेत अब तक 11 यू-टर्न

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 03 सितम्बर, 2015 01:59 PM
  • 03 सितम्बर, 2015 01:59 PM
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सवा साल के अपने कार्यकाल में मोदी सरकार अपने चुनावी वादों से इतनी बार पलटी मार चुकी है कि आप कहेंगे... क्या सच में मोदी फेकू ही हैं !

राजनीति में दोस्ती और चुनाव पूर्व के वादों का कोई भरोसा नहीं होता है. इन्हें राजनीति में सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धी और फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बहुत ही उम्मीदों के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार भी इसकी अपवाद नहीं है. सवा साल के अपने कार्यकाल में यह सरकार इतने वादों से पलटी मार चुकी है कि आप कहेंगे कि क्या सच में मोदी फेकू ही हैं !

अच्छे दिन का वादा हो या काला धन वापस लाने का मुद्दा या पूर्व सैनिकों की पेंशन से जुड़ा वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा. मोदी सरकार ने इन सभी वादों पर इतनी खूबसूरती से पलटी मारी है कि लोगों को मनोज कुमार का वह प्रसिद्ध गाना याद आने लगा है, ‘कसमें, वादें, प्यार वफा सब बाते हैं बातों का क्या!’

1. अच्छे दिन: जिस नारे ने मोदी की जीत में अहम भूमिका निभाई वही नारा उनकी जीत के बाद उनके लिए मुश्किल का सबब भी बन गया. लोगों को लगा था कि मोदी के पीएम बनते ही देश में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा और सबके अच्छे दिन आ जाएंगे. लेकिन जल्द ही पता चल गया कि यह सिर्फ एक चुनावी जुमला भर था हकीकत नहीं. तब तो हद ही हो गई जब सरकार यह कहने लगी कि उसने अच्छे दिन का नारा दिया ही नहीं. केंद्रीय इस्पात एवं खनन मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, 'अच्छे दिन का जुमला बीजेपी ने नहीं, आम आदमी ने दिया'. वैसे बीजेपी को यह बात याद रखना चाहिए कि जिस अच्छे दिन के नारे ने उसे जिताया उसे पूरा न करने पर उसे हराएगा भी वही!

2. सभी राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लानाः यह भी बीजेपी का एक अहम वादा था. लेकिन कथनी और करनी में फर्क होता है और अब मोदी सरकार इस वादे से भी मुकर रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक नोटिस के जवाब में मोदी सरकार ने कहा, 'राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने से इसके सुचारू संचालन में बाधा पहुंचेगी.' तो क्या ये वादा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए किया गया था?   

3. सुभाष चंद्र बोस की कहानी का सचः गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जनवरी 2014 में एक...

राजनीति में दोस्ती और चुनाव पूर्व के वादों का कोई भरोसा नहीं होता है. इन्हें राजनीति में सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धी और फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बहुत ही उम्मीदों के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार भी इसकी अपवाद नहीं है. सवा साल के अपने कार्यकाल में यह सरकार इतने वादों से पलटी मार चुकी है कि आप कहेंगे कि क्या सच में मोदी फेकू ही हैं !

अच्छे दिन का वादा हो या काला धन वापस लाने का मुद्दा या पूर्व सैनिकों की पेंशन से जुड़ा वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा. मोदी सरकार ने इन सभी वादों पर इतनी खूबसूरती से पलटी मारी है कि लोगों को मनोज कुमार का वह प्रसिद्ध गाना याद आने लगा है, ‘कसमें, वादें, प्यार वफा सब बाते हैं बातों का क्या!’

1. अच्छे दिन: जिस नारे ने मोदी की जीत में अहम भूमिका निभाई वही नारा उनकी जीत के बाद उनके लिए मुश्किल का सबब भी बन गया. लोगों को लगा था कि मोदी के पीएम बनते ही देश में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा और सबके अच्छे दिन आ जाएंगे. लेकिन जल्द ही पता चल गया कि यह सिर्फ एक चुनावी जुमला भर था हकीकत नहीं. तब तो हद ही हो गई जब सरकार यह कहने लगी कि उसने अच्छे दिन का नारा दिया ही नहीं. केंद्रीय इस्पात एवं खनन मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, 'अच्छे दिन का जुमला बीजेपी ने नहीं, आम आदमी ने दिया'. वैसे बीजेपी को यह बात याद रखना चाहिए कि जिस अच्छे दिन के नारे ने उसे जिताया उसे पूरा न करने पर उसे हराएगा भी वही!

2. सभी राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लानाः यह भी बीजेपी का एक अहम वादा था. लेकिन कथनी और करनी में फर्क होता है और अब मोदी सरकार इस वादे से भी मुकर रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक नोटिस के जवाब में मोदी सरकार ने कहा, 'राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने से इसके सुचारू संचालन में बाधा पहुंचेगी.' तो क्या ये वादा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए किया गया था?   

3. सुभाष चंद्र बोस की कहानी का सचः गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जनवरी 2014 में एक रैली में कहा था, 'पूरा देश जानना चाहता है नेताजी की मौत किन हालात में हुई.'खैर, वादों से पलटने में माहिर बन चुकी इस सरकार ने दिसंबर 2014 में एक आरटीआई के जवाब में कहा, 'सुभाष चंद्र बोस से संबंधित दस्तावेजों का खुलासा दूसरे देशों से हमारे संबंधों को खराब कर सकता है.'  

4. काला धन: 2013 में मोदी ने एक रैली में कहा था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो वे काला धन वापस लाएंगे और इससे हर गरीब को 15-20 लाख रुपये मिलेंगे. लेकिन इस वादे का हश्र भी बाकियों जैसा ही हुआ. न तो काला धन वापस आया, न हर गरीब को 15 लाख रुपये मिले. और तो और अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो यह भी कह दिया कि यह सिर्फ एक मजेदार राजनीतिक अभिव्यक्ति (चुनावी जुमला) थी.

5. अनुच्छेद 370:  मोदी सरकार इस मुद्दे पर भी पलटी मार चुकी है. 2013 में मोदी ने अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कहा था कि अब समय आ गया है कि इस पर बहस हो. लेकिन इस मुद्दे को उठाने के बाद उठे विवादों के तूफान ने मई 2015 में बीजेपी को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि अनुच्छेद 370 पर यथास्थिति बनाए रखी जाएगी.

6. वन रैंक वन पेंशन का मुद्दाः समान रैंक वाले पूर्व सेना अफसर को आज रिटायर होने वाले सेना के अफसर के बराबर पेंशन दिए जाने को लेकर पूर्व सैनिकों की सालों से चली आ रही वन रैंक वन पेंशन की मांग को पूरा करने का वादा मोदी ने किया था. लेकिन अब सरकार कह रही है कि सैनिकों की यह मांग अव्यवाहारिक है और इसे उसी रूप में पूरा नहीं किया जा सकता है.

7. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माणः जिस मुद्दे ने पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाया वह भले ही बीजेपी के चुनाव पूर्व वादों में शामिल था लेकिन इसे पूरा कर पाना मोदी सरकार के वश में नहीं दिखता.

8. सभी बांग्लादेशियों को देश से निकालनाः मोदी ने भले ही अपनी रैलियों में इस मुद्दे पर खूब तालियां बटोरी हों लेकिन उनकी सरकार इस मामले में फिलहाल कुछ नहीं कर रही है.

9. सभी भ्रष्ट कांग्रेसियां को जेलः इस मुद्दे पर दहाड़ने वाली बीजेपी सत्ता में आने के बाद खामोश हो गई है. इसलिए रॉबर्ट वाड्रा को जेल की सलाखों के पीछे देखने वालों को निराश होना पड़ सकता है.

10. गंगा की सफाईः भले ही मोदी गंगा को मां कहकर भावुक होते रहे हों और उनकी सरकार ने इसे अपने प्रमुख एजेंडे में रखा हो. लेकिन फिलहाल इस योजना पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी काम आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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